A Real Great News- India Moving in Big Leauge

A Real Great News: Will it materialise with total R&D support to remain the most efficient? Billionaire Mukesh Ambani on Thursday announced in its annual General meeting, ‘a Rs 75,000 crore investment in setting up four ‘Giga’ factories to make solar photovoltaic cells, green hydrogen, batteries and fuel cells over the next three years. Addressing the company’s annual shareholder meeting, he said Reliance will set up 100 GW of solar power generating capacity, mostly through rooftop installations and de-centrali\sed operations in villages. Reliance will build solar manufacturing units, a battery factory for energy storage, a fuel cell-making factory and an electrolyser unit to produce green hydrogen as a part of the business.

A Future Plan of Reliance Industries
have started work on developing the Dhirubhai Ambani Green Energy Giga Complex on 5,000 acres in Jamnagar.
It will be amongst the largest such integrated renewable energy manufacturing facilities in the world. Jamnagar was the CRADLE OF OUR OLD ENERGY BUSINESS. Jamnagar will also be the CRADLE OF OUR NEW ENERGY BUSINESS. Allow me to take you through our 3-part plan.
The first part of our plan is to build Four Giga Factories.
These will manufacture and fully integrate all the critical components of the New Energy ecosystem. One, for the production of solar energy — we will build an integrated solar photovoltaic module factory.
Two, for the storage of intermittent energy — we will build an advanced energy storage battery factory. Three, for the production of green hydrogen — we will build an electrolyser factory.
Four, for converting hydrogen into motive and stationary power – we will build a fuel cell factory.
Over the next 3 years we will invest over 60,000 crore rupees in these initiatives. Reliance will thus create and offer a fully integrated, end-to-end renewables energy ecosystem.
explain each of these facilities in some more detail.
Our first Integrated Solar Photovoltaic Giga Factory will create solar energy. We will start with raw silica and convert this to poly silicon which we will then convert to ingot and wafers. These wafers would be used to make high efficiency solar cells and finally assembled into solar modules of highest quality and durability.
We will target to achieve costs that are lowest in the world to ensure affordability of our solar modules. We are highly inspired by the goal set by our Prime Minister Shri Narendra Modiji for India to achieve 450GW of renewable energy capacity by 2030.
Out of this, I am pleased to announce today, that Reliance will establish and enable at least 100GW of solar energy by 2030. A significant part of this will come from rooftop solar and decentralised solar installations in villages. These will bring enormous benefits and prosperity to rural India.
Solar energy is available only during the day, while power is needed round the clock. Therefore, storage is an important piece of the puzzle to solve. For this, we will launch our second initiative — an Advanced Energy Storage Giga Factory.
We are exploring new and advanced electro chemical technologies that can be used for such large-scale grid batteries to store the energy that we will create.
We will collaborate with global leaders in battery technology to achieve the highest reliability for round-the-clock power availability through a combination of generation, storage, and grid connectivity.
Besides Electricity, Green Hydrogen will be a unique energy vector that can enable deep decarbonization of many sectors such as transportation, industry and power. One of the most common methods of generating Green Hydrogen is by electrolysis of pure water through Electrolysers.
This brings me to our third initiative — an Electrolyser Giga Factory to manufacture modular electrolysers of highest efficiency and lowest capital cost. These can be used for captive production of green hydrogen for domestic use as well as for global sale.
And, finally, our fourth initiative will be the Fuel Cell Giga Factory. A Fuel Cell uses Oxygen from the air and Hydrogen, to generate electricity. The only emission of this process is non-polluting water vapour.
In the new era, Fuel Cells will progressively replace internal combustion engines. Fuel Cell engines can power automobiles, trucks and buses.They can also be used in stationary applications for powering data centres, telecom towers, emergency generators and micro grids and industrial equipment.
Plan for providing infrastructure and materials to support the four Giga factories:
Reliance will put Gujarat and India on world solar and hydrogen map.
JIO became the first operator outside China to cross 400 million mobile subscribers in a single country.
We are truly grateful to all our valued customers. Thanks to them, JIO is today the world’s second largest mobile data carrier handling monthly traffic of over 630 crore GIGABYTES.

https://www.financialexpress.com/auto/industry/reliance-industries-batteries-hydrogen-fuel-cell-plants-coming-up-in-india-with-more-than-rs-75000cr-investment-ev-charging/2277685/
Read the full address: It is worthwhile to know about a company that is globally competitive, and its target is to be the best. I wish some top business houses come out such a big future plan that it executed timely over the years of their existence. Jamnagar of Gujarat must one day may be named after some clan of Ambani’s… https://www.cnbctv18.com/business/companies/reliance-agm-2021-heres-the-full-text-of-chairman-mukesh-ambanis-speech-9768391.htm

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कितनी गीता

कितनी गीता
पिछले लेख (https://drishtikona.com/2021/06/05/हमारे-पुराने-ग्रंथों-में/) को मैंने यह कहते हुए समाप्त किया था, ‘महाभारत की अन्य गीताओं के बारे में अभी और नहीं जानता। पर महाभारत के पात्रों को ले अन्य अध्यात्म के ग्रंथों में ज़रूर और बहुत गीता हैं।अगली किस्त में ‘महाभारत के बाहर की गीता’….’

अभी दो दिन पहले ही https://www.gitasupersite.iitk.ac.in पर देखा जहां अन्य गीता में अटावक्र गीता, एवं अवधूत गीता के अलावा कपिला गीता, विभीषण गीता हैं। श्री राम गीता का ज़िक्र देख उत्सुकता बढ़ी।साइट पर स्रुति गीता, उद्धव गीता भी उपलब्ध हैं मूल में, उनके संस्कृत श्लोकों का कोई अनुवाद नहीं दिया गया है।स्रूति गीता में दो अध्याय हैं-पहले में ३० एवं दूसरे में ९ श्लोक हैं।


आश्चर्य तब हुआ जब पाया कि ‘विभीषण गीता’ में तुलसीदास के रामचरितमानस का एक छोटा अंश दिया गया है लंका कांड से…राम के पास रथ न होने के विभीषण के प्रश्न के उत्तर में जो कहा। मेरे नित्य पाठ में भी है।

अगर साइट के उत्तरदायी व्यक्ति इस तरह के प्रकरण को गीता नाम देना चाहते हैं तो रामचरितमानस के कुछ और अंशों को विभिन्न नाम के गीता से पुकारा जा सकता है और वे उनको अपने साइट पर दे सकते हैं। मैं इन सबका पाठ नित्य करता हूँ। भगवद्गीता की तरह ये अंश हमारे दैनिक आचरण को अध्यात्म, सुख, शान्ति एवं मोक्ष की ओर मोड़ने में, विशेषकर हर प्रबुद्ध हिन्दी जाननेवाले भारतीयों को,आसानी से मदद करेंगे, क्योंकि इसकी भाषा समझ में आनेवाली है।
वे हैं- बल्मिकी के मुख से, राम की प्रार्थना, राम के प्रणाम एवं अपने रहने के स्थान की जानकारी माँगने पर,उनके रहने का सांकेतिक स्थान बताते हुए कहवाया है तुलसीदास ने। यह अंश अयोध्याकांड के छंदसहित १२६वे दोहा से प्रारम्भ हो १३१ दोहा तक जाता। इसमें पहले राम को ‘श्रुति सेतु पालक’ ‘जगदीस’बताया और फिर उनके लिये ‘वचन अगोचर बुद्धिपर, अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह’का व्यवहार किया गया है। जानकी सीता को माया(‘जो सृजति जगु पालति हरति रूख पाइ कृपानिधान’)।


फिर उपनिषद् की तरह की एक चौपाई है- ‘ सोई जानइ जेहि देहु जनाई’ जो मंडूकोपनिषद् के ‘यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्‌’ की याद दिलाता है। फिर बल्मिकी जब कहते हैं १२७वे दोहे का ‘जहं न होहु तहं देहु कहि तुमहि देखावौं ठाउं’ तो ‘ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्’ की याद दिला देता है।भारत के आज के आम व्यक्ति के लिये आचरण का ध्येय का निर्देश १२९वें दोहे के बाद १३० वें दोहे के प्रथम चौपाई तक बहुत संक्षेप में दिया गया है एवं वह सब कह देता है जिससे देश के लोगों में आज भी बदलाव आ सकता है जो आज इतने निम्न स्तर पर आ गया है। मैं उन्हें यहाँ देने का लोभ संवरण नहीं कर सकता-
“काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥1॥
सब के प्रिय सब के हितकारी। दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी॥
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी। जागत सोवत सरन तुम्हारी॥2॥
जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी॥3॥
जे हरषहिं पर संपति देखी। दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी॥
जिन्हहि राम तुम्ह प्रान पिआरे। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे॥4॥”
बाक़ी अधिकांशतः: विभिन्न प्रकार के भक्तों के लिये है। और यह यह गीता यहाँ ख़त्म की जा सकती है। क्यों न इसे ‘बल्मिकी गीता’ कह दिया जाये?


फिर अरण्यकांड के सबरी का प्रकरण ३४वें दोहे से प्रारंभ होता है। राम उसकी भेंट के जुठे बेर से तृप्त हो प्रशंसा करते हुए सबरी को बताते है नवधा भक्ति का प्रकरण जो ३४ दोहे के बाद के आख़िरी चौपाइयों से चल कर ३६ वे के बाद के दोहों में पहले ही आया है। इसके बाद सबरी राम के पद पकड़ योग अग्नि से उनमें लीन हो जाती है। नवधा भक्ति में नौ प्रकार में किसी एक को ज़िन्दगी में उतार व्यक्ति ब्रह्म लोक पा सकता है। और सब बड़े सरल लगते हैं जो सब जानते हैं। पहला है संतों का संग, दूसरा भगवान की कथा के प्रसंगों में मन को लगाना, तीसरा गुरू सेवा है, ६वें से नौवें तक में कुछ औपनिषदिक एवं गीता की तरह का निर्देश है, जिन्हें सबको बताना उचित समझता हूँ क्योंकि पता नहीं पाठक रामचरितमानस खोल इन प्रकरणों को खोजने एवं पढ़ने का प्रयास करेंगे या नहीं-
“छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1॥
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥”मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझ में तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है।
इस प्रकरण को ‘सबरी गीता’ का नाम दिया जा सकता है।
विभीषण गीता तो लंका कांड के ७९-८० वें दोहे ख़त्म हो जाता है।
और पर एक आख़िरी गीता भी बन सकती है उत्तरकांड के पक्षीराज गरूड द्वारा पूछे सात सात प्रश्न एवं काकभुसुंडि का उनके सप्त प्रश्नों का उत्तर। सातवें प्रश्न का उत्तर नीचे है-
प्रश्न
मानस रोग कहहु समुझाई। तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई॥
उत्तर
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा॥14॥
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना॥16॥
ममता दादु कंडु इरषाई। हरष बिषाद गरह बहुताई॥
पर सुख देखि जरनि सोइ छई। कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई॥17॥
अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ॥
तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुन तिजारी॥18॥
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लगि कहौं कुरोग अनेका॥19॥

हाँ इसे आप ‘काकभुसुंडि गीता’कहेंगे या गरूड़ गीता वह आप पर है।

हाँ, दूसरी इच्छा है कि कोई विद्वान एक ‘तुलसी गीता’ पूरे रामचरितमानस से लिये छन्द, दोहे,एवं चौपाइयों पर आधारित हो । एक उचित नाम ‘राम गीता’भी हो सकता है। मैं अपने सुधी पाठकों की राय की अपेक्षा करूंगा। मेरा इ-मेल irsharma@gmail.com……

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हमारे पुराने ग्रंथों में कितनी गीता

हमारे पुराने ग्रंथों में कितनी गीता हैं?
क. महाभारत की गीता
गीता आदि नाम ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ तीन शब्दों को मिला कर बना है- श्रीमत् + भगवत् + गीता. हम में अधिकांश को केवल एक लाख श्लोकों से पूर्ण महाभारत के एक ही भगवद्गीता की जानकारी है। महर्षि व्यास की लिखी महाभारत के ‘भीष्म पर्व’ का तीसरा उप-पर्व ‘श्रीमद्भगवद्गीता पर्व’ है। मुझे पता नहीं हमारे वेदान्त के प्रस्थानत्रयी की भगवद्गीता का नाम महर्षि व्यास ने दिया या यह बाद में और किसी ने। श्री बिवेक देवरॉय ने अन्य प्राचीन ग्रंथों में महाभारत का भी अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। वे वैसे अर्थशास्त्री हैं, पर महान विद्वान हैं और वे बराबर हमारे धार्मिक ग्रंथों के विषय पर लेखों से नई जानकारी देते रहते हैं। उनके अनुसार भंडारकर प्राच्य शोध संस्थान, पुणे द्वारा संशोधित महाभारत का ६३वें भाग भागवत् गीता से जुड़ा है। ‘भीष्म पर्व’ के इस उप पर्व को ‘भागवत् गीता’ कहा गया है। इसमें ९९४ श्लोक हैं और २७ अध्याय। पहले नौ अध्याय युद्ध की तैयारियों आदि के बारे में है। इसका दसवां अध्याय प्रचलित गीता के प्रसिद्ध पहले श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:..’से प्रारम्भ होता है। उप-पर्व के पहले के नौ अध्यायों के श्लोक मुख्य ग्रंथ की निरंतरता को बड़ी सरलता से बनाये रख 10वें अध्याय की ओर ले जाते हैं, जो हमारी प्रचलित ‘भगवत गीता’ का पहला अध्याय है। अगर कोई ‘भागवत गीता’ को महाभारत के हिस्से के रूप में पढ़ता है,तो इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि भगवत गीता महाभारत का एक अभिन्न अंग है। वास्तव में, भगवत गीता में ७०० श्लोक और १८ अध्याय हैं, लेकिन भगवत गीता के नाम पर महाभारत के उप-पर्व में श्लोकों की संख्या प्रचलित भगवत गीता, से अधिक है। https://openthemagazine.com/columns/a-dirge-for-desire/

इसके बाद से मैं देवरॉय के ‘Open’ नामक साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित होते लेखों को बराबर पढ़ता रहा हूँ और उनके पुराने लेखों को भी।पर यह जानकारी मुझे आश्चर्यचकित की, जब पूर्ण महाभारत के अनुवादक श्री बिबेक देबरॉय के लेखों से जाना कि महाभारत में क़रीब २० ऐसी गीता उसके १८ पर्वों में बिखरी मिलती हैं।
१. पहली ‘उतथ्य गीता’ शान्ति पर्व के पर्वांशं ‘राज धर्म पर्व’में है और राजा के धर्म का विवेचन दो अध्याय के ९४ श्लोकों में किया गया है। उतथ्य बृहस्पति के बड़े भाई और महर्षि अंगिरा के पुत्र थे और युवानस्व पुत्र मांधाता एक प्रसिद्ध राजा थे। भीष्म ने इस ‘उतथ्य गीता’ में युद्धिठिर को ऋषि उतथ्य द्वारा राजा मंधाता को बताये क्षत्रिय राजाओं के राजधर्म को ही बताया है।मांधाता इक्ष्वाकु वंश के नरेश युवनाश्व और गौरी के पुत्र थे।इस लिंक (http://hinduonline.co/Scriptures/Gita/UtathyaGita.html) में आपको यह पूरी गीता संस्कृत में मिल जायेगी। श्री बिबेक देबरॉय ने अपने लेख में उसके वर्णित राजधर्म का संक्षिप्त विवरण अपने एक अंग्रेज़ी लेख में दिया है। उदाहरणार्थ:”हे पुरूष सिंह! धर्म सबसे अच्छा है। अपनी प्रजा पर सदाचारी शासन करने वाला ही सच्चा राजा होता है। व्यक्ति को काम और क्रोध से बचना चाहिए और धर्म का पालन करना चाहिए। राजा द्वारा पालन किया जाने वाला धर्म ही सबसे अच्छा कर्म है।”…”जब राजा धर्म का पालन करता है, तो वर्षा सही समय पर होती है। समृद्धि होती है और प्रजा सुखी एवं प्रसन्न होती है।”https://openthemagazine.com/columns/the-sovereign-condition/


२. एक और पाँच श्लोक की गीता है जिसको ‘काम गीता’ कहते हैं, जो ‘अश्वमेध यज्ञ’ के तेरहवें अंश के श्लोक १२-१७ को कहते हैं । यह गीता कामना (इच्छा) के दमन के महत्व के बारे में है। यह बताती है कि कैसे उपयुक्त साधनों के बिना कामना (इच्छा) को दबाने की हर क्रिया बेकार हो जाती है।उदाहरण के लिये इस गीता का एक प्रारम्भिक श्लोक है नीचे-
“अत्र गाथाः कामगीताः कीर्तयन्ति पुरा विदः
शृणु संकीर्त्यमानास ता निखिलेन युधिष्ठिर।”
https://www.sacred-texts.com/hin/mbs/mbs14013.htm


३.बिवेक देवरॉय ने एक अन्य गीता को जिसका नाम ‘अणु गीता’ है, भगवद्गीता के बाद महाभारत की गीताओं में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कहा है। यह महाभारत के १४ वें मुख्य पर्व ‘अश्वमेध पर्व’ का दूसरा उपपर्व है। इसका एक अंग्रेज़ी में अनुवाद शायद सबसे पहले १८८२ में काशीनाथ तेलंग ने किया। अणु गीता महाभारत में उस समय आया है जब अश्वमेध यज्ञ के बाद कृष्ण के द्वारिका जाने की बात आई है। ३५ अध्यायों की यह गीता तीन भागों में है- एक सिद्ध ब्राह्मण और कश्यप का संवाद, ब्राह्मण और उसकी पत्नी का संवाद एवं फिर ब्रह्म और ऋषियों का संवाद। ये संवाद कृष्ण और अर्जुन के द्वारा महाभारत में दिखाया गया है। पहला संवाद ही असल में अणु गीता माना जाता है।https://openthemagazine.com/columns/whos-a-free-man/


४.पिंगल गीता महाभारत के शान्ति पर्व के उपपर्व ‘मोक्ष धर्म पर्व’में आती है।युद्धिष्ठिर के एक प्रश्न का जबाब पितामह भीष्म ने ‘पिंगल गीता’ के पिंगल एवं सेनजित के संवाद द्वारा दिया है।पिंगल राजा सेनजित के दरबार के ज्ञानी पंडित थे। इसी संभाषण का विवरण है इस गीता में। https://openthemagazine.com/columns/hope-and-happiness/


५.पराशर गीता : महाभारत के लेखक वेद व्यास के पिता ऋषि पराशर हैं। महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म और युधिष्ठिर के संवाद में युधिष्ठिर को भीष्म राजा जनक और पराशर के बीच हुए वार्तालाप को सुनाते हैं। इस वर्तालाप को पराशर गीता नाम से जाना जाता है। इसमें धर्म-कर्म संबंधी ज्ञान की बाते हैं।


६.वामदेव गीता राजधर्म पर्व की दूसरी गीता है। यह राजाओं के धर्म के बारे में है और उनको उनके राजकीय दायित्व को शास्त्रीय विधान का ध्यान रखते हुए निभाने का निर्देश देता है।वामदेव गीता में, भीष्म ने युधिष्ठिर को वही बताया जो वामदेव ने राजा वसुमान को बताया था। बातचीत मूल रूप से उत्थ्य गीता से ही प्रारम्भ होती है जो वामदेव गीता तक चलती है। https://openthemagazine.com/columns/a-road-map-for-the-ruler/


७.सदजा गीता शान्ति पर्व के ‘आपद धर्म’ उपपर्व के आख़िर में आती है और इसमें केवल एक अध्याय है।इसमें पाँच पांडवों एवं विदुर का धर्म के बारे में विचारों को रखा गया है। https://openthemagazine.com/columns/the-force-of-destiny/


८. ब्याध गीता -महाभारत का ‘व्याध गीता’में एक व्याध द्वारा एक ब्राह्मण संन्यासी को दी गई शिक्षाएं शामिल हैं। यह महाभारत के वानपर्व खंड में है और ऋषि मार्कंडेय द्वारा युधिष्ठिर को सुनाया जाता है। कहानी में, एक अभिमानी संन्यासी को एक व्याध (शिकारी) धर्म के बारे में सीखाता है,”कोई कर्तव्य कार्य पापमय नहीं है, कोई कर्तव्य अशुद्ध नहीं है” और यह केवल जिस तरह से कार्य किया जाता है, उससे निर्धारित होता है।

महाभारत की अन्य गीताओं के बारे में अभी और नहीं जानता। पर महाभारत के पात्रों को ले अन्य अध्यात्म के ग्रंथों में ज़रूर और बहुत गीता हैं।अगली किस्त में ‘महाभारत के बाहर की गीता’….

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प्रधान मंत्री मोदी जी से एक ज़रूरी प्रार्थना आम गाँववालों के लिये

प्रधान मंत्री मोदी जी से एक ज़रूरी प्रार्थना आम गाँव वालों के लिये
बिहार, बंगाल, यहाँ तक कि अन्य प्रदेशों में गाँवों में स्वास्थ्य सम्बंधी बहुत काम नहीं हुआ। बिहार में मेरे गाँव, ननिहाल, ससुराल में ८० साल की तरह किसी तरह की व्यवस्था होते नहीं देखा है मैंने।यहाँ तक कि हर पंचायतों में भी अस्पताल नदारद हैं, सामान्य केन्द्र भी नहीं हैं। न कोई प्राइवेट या सरकारी डाक्टर या कोई दवाई की दुकान। फिर कहाँ वे कोविद जैसे बीमारी की जाँच करायें या अन्य कोई जाँच । किसी गाँव में एक रक्त चाप जानने की कोई सम्भावना नहीं है। कौन वैक्सीन देगा और दवाई या कहाँ होगा ज़रूरी देख भाल। न आक्सीजन, न वैन्टिलेटर, फिर कैसे बचेंगे गाँववाले, बहुत सारे छोटे क़स्बों के लोग?

राज्य सरकारों ने अबतक कुछ नहीं किया है। अगर पंचायत घरों या स्कूलों के साथ एक छोटे अस्पताल की व्यवस्था होती तो स्कूल और पंचायत घर जिसमें शायद ही कोई पिछले सालों में गया होगा, कम से आज व्यवहृत हो जाते। केन्द्र ने भी कोई पहल नहीं किया केन्द्रीय विद्यालयों की तरह गाँवों के लिये स्वास्थ्य सम्बंधी व्यवस्था की। कृपया सभी डी. एम और कलक्टरों को और राज्य सरकार को ज़िम्मेदार बनाइये। हर गाँव में स्वास्थ्य सम्बंधी कुछ व्यवस्था तो होनी ही चाहिये ही। हर पंचायतों में अच्छे क़िस्म की।

आज तो सब ज़िला अस्पताल भी बहुत निम्न कोटि के हैं। बहुत ज़्यादा प्राइवेट अच्छी व्यवस्था भी नहीं आई है बड़े क़स्बों एवं शहरों में भी।कृपया अब तो सड़क और बिजली की तरह इसकी भी ब्यवस्था तो करवाइये, राज्यों से मिल कर।


राजनेता हों या धर्म के ठेकेदार क्यों कोई गाँवों का बहिष्कार कर दिये? राजनेता तो चुनाव के लिये रखे अपने दलालों से मिलने आते हैं।पंचायत प्रधान, सरपंच करोड़ों बना शहर में जा बसे। पढ़े लिखे लोग जहां गये बही बस गये। गुरूओं को शहरों के चेलों से धन मिलता है, वे गाँव गाँव क्यों घूमें। यह लोगों को धर्म की बात बतानेवाले लोगों की। कृपया आप तो कुछ कीजिये । भारत को बचाने की। गांधी ने यही चाहा था पर नेहरू दिल दिमाग़ एवं शरीर से अंग्रेज बने रह भी महान हो गये। आप तो कीजिये। आप कुछ कीजिये गाँवों को बचाने के लिये। बहुत ग़लत हो रहा है वहाँ के लोगों के भविष्य के लिये बदलिये।

भगवान आपको दीर्घ आयु दें….

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गाँव क्या करे- रोयें या शहर भागे

आज रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता दिखी जो बहुत सामयिक है। पर मुझे इसके रचनाकार के विवाद में नहीं पड़ना, जिसकी भी हो बहुत सठीक एवं साम्य की दशा को दर्शा रही है।

प्रभु रथ रोको!
क्या महाप्रलय की तैयारी है।
बिना शस्त्र का युद्ध है जो,
महाभारत से भी भारी है
कितने परिचित कितने अपने
आखिर यूं चले गए
जिन हाथों में धन-संबल
सब काल से छले गये
हे राघव-माधव-मृत्युंजय
पिघलो, ये विनती हमारी है
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो
महाभारत से भी भारी है।

१. धर्म नेता एवं राजनेता ने गाँवों पिछड़ापन दिया। इस पूरे भयंकर महामारी के बाद भी हमारे धर्म गुरू कुम्भ की तरह के घातक धार्मिक जमघटों का आयोजन करने से आम धर्मांध लोगों को नहीं समझाते। अपने अपने मठों में बैठे धनवान अंधे उनको और उनके शिष्यों का भरण पोषण कर रहे हैं। अगर उनमें थोड़ी मानवीय संबेदना रहती तो गाँव गाँव जाते और उनको समझाते उपनिषदों के अद्वैत ज्ञान को,उनके साथ रहते। राजनीतिक नेताओं की तरह इन्होंने भी गाँवों का वहिष्कार कर दिया है, क्योंकि गाँवों में उस धन की प्राप्ति नहीं होती जो उनके उन आयोजनों को करती अपना महत्व बनाये रखने के लिये झूठे स्वर्ग या नर्क का भय दिखा । पर भगवान तो बार बार कहते हैं लोक संग्रह के लिये ‘सर्वभूते रता’ काम करने के लिये है यह मनुष्य रूप में जन्म और वे उन्हें ही मिलते हैं…..यही राजा से लेकर साधारण परिवार के लोगों यही सिखाया जाता है। यह सभी धर्मों में कहा गया है; अतिथि देवों भव । मैं अपने बचपन में गाँव पर की जमीन्दारी संभालने वाले छोटे दादाजी को करते देखा था जब तक वे ज़िन्दा रहे।सभी सांसदों की, गुरू रामदेव, श्री श्री रविशंकर महाराज के लाखों शिष्य हैं, वे एवं चारों शंकराचार्य के लाखों शिष्य हैं जो गाँवों की सेवा में मदद कर सकते हैं। हर गाँव में अस्पताल बनवा सकते हैं वहीं के लोगों की मदद से। राम कृष्ण मिशन, चिन्मयानन्द की देश विदेश फैली संस्था और ऐसी बहुत से ग्रुप गाँवों को स्वर्ग बना सकते हैं दस साल के भीतर। पूरानी पीढ़ी के उद्योगपतियों को जैसे बिरला, टाटा, डालमिया आदि थे, वे बहुत सारा ऐसा काम करते थे। अब सभी पैसा कमाने की लिये शहरों में इस काम में बहुत धन निवेश कर रहे हैं। गाँव के भी बहुत लोग ऐसे काम जो शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिये होती थी, में रूचि रखते थे, अब भी नहीं दिखते। सब एक दूसरे से ज़्यादा धनी बनना चाहता है।
२. राज्य सरकारों द्वारा गाँवों स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। आज तक हर बड़े गाँव या हर पंचायत में भी अस्पताल नहीं है। मैं बिहार, बंगाल को तो नज़दीक से वर्षों से जानता हूँ। इसके लिये सभी राज्य सरकारें और राजनीतिज्ञ दोषी हैं। कहाँ टेस्टिंग होगी, कहाँ चिकित्सा दिया जायेगा। कौन वैक्सीन लगायेगा, इतने बड़ी संख्या में पीड़ित लोगों के लिये। चुननेवाले लोग भी ज़िम्मेदार और पंचायत चलानेवाले। सभी लोग पैसा कमाते रहे एक दूसरे के नाम ज़िम्मेदारी डालकर। कैसा दुर्भाग्य है। अब तो चेते केन्द्र, राज्य सरकार, सरकारी अफ़सर, और नेता पंचायत से ले संसद तक के। गाँव के लोग भी , तिलक, यज्ञ आदि में लाखों में खर्च कर सकते हैं पर हास्पिटल बनाने में नहीं। वे सब शहर भाग गये और गाँव के बचे खिंचे गरीब निबटे इससे।
क्या आज भी देश, समाज, लोग जागेगे?
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कोविद-१९ का भयंकर आक्रमण जो गाँवों बर्बाद कर देगा और देश को भी
अशोक गुलाटी का आज का लेख जिसे हर गाँव के व्यक्ति को समझने की ज़रूरत है। क़रीब क़रीब भारत के सभी गाँवों ऐसी स्थिति है। लोगों में सभी अंध विश्वास वैसे ही हैं जैसे आज से १०० साल पहले। नारी शिक्षा अभाव, ग़रीबी, जनसंख्या की वृद्धि को रोकने की कोई मानसिकता नहीं। न किसी के बताये ज़रूरी अनुशासनात्मक कदमों को उठाने, बताये निर्देशों को मानने की, न ठीक तरह सही मास्क का उपयोग न दो गज से ज़्यादा की दूरी बनाये रखना, न हाथों का ठीक साबुन से सफ़ाई; न अपना टेस्ट कराने की इच्छा, वैक्सीन लेने में उत्साह, या दर्द का भय या कोई और ग़लतफ़हमी, फिर कैसे बचेंगे इस काल देवता से। शादी, तिलक, दाह संस्कार,त्योहार,अन्य घरेलू परम्परागत कार्यक्रम, आदि को पता नहीं क्यों ४ या पाँच आदमी से निपटाया नहीं जा सकता। सभी गाँव की औरतों और लोगों को बुलाना, न आनेवाले के प्रति दुश्मनी चालू कर देना, यह कैसी बुद्धिमानी है। सभी सच्चे धर्मग्रंथ कहते हैं मरने बाद देह का कोई महत्व नहीं। यहाँ हम अन्य जीवों से भी बेकार हैं, क्योंकि मरने के बाद भी वे काम के होते हैं। फिर कैसे भी कोई इसको निपटा दे क्या फ़र्क़ पड़ता है जब श्मशानों में भीड़ लगी हो एवं अस्पताल पहले से शरीर दान किये के स्वीकृति के बावजूद भी शरीरों को न ले रहे हों। https://indianexpress.com/article/opinion/columns/what-we-need-to-save-lives-and-livelihoods-as-covid-reaches-rural-india-7327210/

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कोविद-१९ काल की दो विचार

पहला दुख

प्रवासी मज़दूर समस्या, समाधान: आज इंडियन एक्सप्रेस में एक जाने माने कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी एवं बी. बी. सिंह का लेख पढ़ा प्रवासी मज़दूरों का। ये वे लोग हैं जिनका न अपना रहने की जगह होती है, न वे उस राज्य के वोटर होते हैं, न उनको राज्य के नागरिकों की अन्य सुविधा मिलती है, न उनके बच्चों को स्कूल मिलता है वास स्थान के पास, न उन्हें सरकारी राशन सुविधा, न केन्द्र सरकार की मुफ्त सुविधाएँ, क्योंकि न उनमें अधिकांश के पास आज भी जन धन एकाउंट है, न किसी अन्य बैंक में कोई एकाउंट,न चिकित्सा की सुविधा, न कोई, जहां वे काम करते हैं वहाँ, उनके बारे में सोचनेवाला मानवीय अधिकारी, न सरकारी, न कम्पनी या ठेकेदार का। जो हैं उन्हें चुननेवाले हैं।कुछ अपना कुछ करते हैं सड़कों किनारे, या ठेलियों में घुम घुम कर। ऐसे नाई भी हैं, दर्ज़ी भी, कपड़े प्रेस करनेवाले, फल बेंचने वाले, कितना गिनाया जाये। स्थानीय पुलिस एवं अधिकारियों के अत्याचार के शिकार से बचने के लिये इन्हें ऊपर से हफ़्ता भी देना पड़ता है। आश्चर्य है कि ऐसे लोगों का न स्थानीय नगरपालिकाओं, न अन्य किसी जगह- न उनके जन्म के, न काम करने की जगह के प्रदेश में उनके बारे में कोई रिकॉर्ड होता,न केन्द्रीय व्यवस्था में। क्या करोड़ों में गिनती के इन भारतीयों के प्रति देश की सरकारें पिछले पचास सालों से पूरी उदासीनता नहीं दिखाई? क्या यही इस देश को आज़ाद करानेवाले लोगों का गुणगान वाले राजनीतिज्ञों का विचार है? क्या इनकी समस्याओं का समाधान हो ही नहीं सकता? क्या इनके परिश्रम से कमाई करनेवाले व्यवसायियों, मिल मालिकों, या अन्य सरकार तंत्र चलानेवालों का कोई दायित्व नहीं बनता?
दुर्भाग्य है कहिये या सौभाग्य, करीब ६०-७० प्रतिशत ऐसे लोग केवल कुछ उत्तरी एवं मध्य प्रदेशों से आते हैं- वे हैं बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िसा।


कैसे इन प्रदेशों की सरकारें और वहाँ के राजनीतिक व्यवस्था के ठेकेदार आज़ादी से ले आजतक कभी शर्मसार नहीं हुए और आम लोगों को बेवकूफ बनाते हुए सरकार चलाते रहे और चला रहे हैं। आज कि इस भीषण अवस्था को देखते हुए कोई हल न निकाल कर एक दूसरे को समय समय ख़राब बता अपना उल्लू सीधा किये जा रहे हैं। मोटी मोटी रक़मों को हर माह लेनेवाले सरकारी आफ़िसर,कम्पनियों, या व्यवसायों के मालिक और उनके चम्मच न केवल इनको यें सुविधाएँ देने की सम्भावना या तरीक़े के बारे सोचते या करते हैं, बल्कि इनको चूसने वालों की मदद में कोई कसर नहीं छोड़ते, क्योंकि वे मोटी रक़म से इनकी जेब भरते रहते हैं। बिचौलिये दलालों के चलते इनके रोज़ाना कमाई भी कम होती जाती है। आप प्राइवेट सिक्योरिटी गार्डों से पूछिये, घरों में काम करनेवाली महिलाओं या लड़कों से पूछिये, जो दलालों द्वारा आते हैं, यह साफ़ हो जायेगा और हम सब जानते हैं। न पहले कुछ हुआ, न आज भी कोई बदलाव दिखने की कोई संभावना लगती है। क्योंकि समय समय पर सब्ज बाग दिखाने की तरह के इन सभी के लिये दिये जानेवाले सुविधाओं हड़प जाने वाले रास्ता निकाल ही लेते हैं।सभी पॉलिसियाँ बेकार ग़लत साबित हुए हैं। न ‘मनरेगा’ में कुछ देखने लायक़ बना, न इन लोगों की आमदनी बढ़ा या बदल पाया। न सरकारी कैस सहायता भी अधिकांश इन ज़रूरतमंदों की समस्याओं को नहीं सुलझा पाई क्योंकि वे सभी आधे मन से किये गये उपाय थे, अस्थायी थे।जितनी धन राशि किसानों के नाम दी जाती है, वे सब या अधिकांश केवल ज़मीन के मालिक हैं, खेती को लिज़ पर दे रखे हैं।


क्या यह संघीय ढाँचे के चलते है? क्या केवल केन्द्र सरकार की ज़िम्मेदारी है या राज्य सरकारों की? आश्चर्य है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भी उत्तर भारत के राज्यों के राजनीतिज्ञों की तरह के बेईमान, लूटनेवाले राजनीतिज्ञों ने कैसे वहाँ की अर्थ व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य- को उत्तर के राज्यों बहुत बेहतर बना दिया? वहाँ के जन्मे लोग भी प्रवासी हैं पर बहुत बहुत अच्छी जगहों पर और सम्पन्न।

मेरे ख़्याल से उत्तर भारत के लोगों की सदियों की पतन के राह पर जाती मानसिकता इसका कारण है। अपनी पूरानी ग़लत भ्रान्ति पूर्ण मान्यताएँ समय से दृढ़ से दृढ़ होती गई हैं। सामान्य व्यक्तियों का आचरण सम्बंधी बढ़ती हीनता कारण है। आत्मिक कमज़ोरियाँ कारण हैं। गहरी बैठी हज़ारों प्रकार की जातियों का मतभेद कारण है। धर्म और धार्मिक आचरण के प्रति गिरती आस्था कारण है। केवल अपने स्वार्थ पर पूरी निष्ठा, कारण है। ब्राह्मण सब तरह से अशिक्षित दुश्चरित्र होते गये हैं और अन्य लोग, ब्राह्मणों के आचरण संहिता को अपनाये बिना, उनकी गद्दी पर बैठ गये।
कुछ सुझाव माइग्रेंट मज़दूरों की कोविद-१९ के समय के आने-जाने-फिर आने और जाने की प्रक्रिया को बन्द करने के लिये-
१. दोनों राज्य सरकारों- जहां से प्रवासी आते हैं, और जहां काम करते हैं- को इनकी समस्याओं को सुलझाने के सक्रिय और तत्काल कदम उठाने होंगे।
२. एक देश, एक राशन कार्ड की तौर पर इनको आधार कार्ड के आधार पर जहां काम कर रोज़ी कमाते हैं वहाँ वोट देने का अधिकार देना होगा, नहीं पार्टियाँ इन की समस्याओं क्यों सुलझायेंगीं।
३. काम पाने में एक आदमी की चलाई जा रही बिचौलियों की कम्पनियों को हटाना होगा और रजिस्टर्ड कम्पनियों को ज़िम्मेदार बनाना होगा।
४. सभी औद्योगिक इकाइयों को इनको एक अच्छी स्थानीय रहने की सब निम्नतम सुविधाओं का इंतज़ाम करना होगा, चाहे उन्हें रेंट पर डॉरमेटरी या एक कमरे के आवास, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का सवाल हो।
५. हर नगरपालिका आदि को अपना स्वयं का रोज़गार करनेवाले लोगों के लिये एक कालोनी बनानी होगी उस शहर में।
६. हर राज्य सरकार ज़िला के सर्व प्रमुख को अपने ज़िला के हर पंचायत में वहाँ के लायक स्थायी रोज़गार देनेवाले गृह या लघु उद्योगों की ज़िम्मेवारी देनी होगी और इस काम को सबसे महत्वपूर्ण बनाना होगा।
-उस अधिकारी का मुख्य अपने ज़िले के हर परिवार के आय को बढ़ाने का दायित्व और उसे सभी ज़रूरी सुविधा के साथ अधिकार भी देना होगा।
-ज़िला स्तर पर इन प्रवासियों दोनों तरह के राज्यों में रिकार्ड रखा जाये। और शायद बाहर जानेवालों को उनको हुनर सीखने के लिये प्रेरित करने एवं सिखाने के काम को भी इसी ज़िलाध्यक्ष का ही काम होना चाहिये।
७. सभी इन्फ़्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्टों- बिल्डिंग या रोड आदि के कंस्ट्रक्शन में भी अस्थायी शीघ्रातिशीघ्र जोड़कर तैयार करने एवं इसी तरह खोलकर अन्य स्थान पर ले जा लगानेवाली सभी व्यवस्थाओं को करने को सोचना होगा।
८. केन्द्रीय सरकार को यथाशीघ्र अपनी पॉलिसियों की कमियों को सुधारने के लिये कदम उठाना चाहिये एवं साथ ही जनसंख्या पर नियत्रंण का क़ानून भी उतना ज़रूरी है। देश को निकट भविष्य में लॉकडाउन मुक्त बनाने का राष्ट्रीय मुहिम चलाना ज़रूरी है, उसके बिना देश का क्या होगा हम सोच ही नहीं सकते। https://indianexpress.com/article/opinion/columns/second-wave-covid-19-lockdown-migrant-workers-mgnrega-informal-sector-7288881/
पुनश्च: अगर किसी जानकार मित्रों को कोई सुझाव हो तो ज़रूर लिखें या मुझसे सम्पर्क करें। जिनकी सरकारों में जान पहचान हैं उन्हें बताएँ इस समस्या, अगर वे इसके भयानक रूप से परिचित हों। irsharma@gmail.com 9560186661

दूसरी बात

मेरे दुख का कारण: मैंने दो दिन पहले बिहार के गाँवों की हालत जानने के लिये अपने गाँव और ससुराल बात की थी। आता समय बहुत ही भयानक दिख रहा है। कोविद का कोई अनुशासन नहीं माना जा रहा है। अभी तिलक, शादी, यहां तक की श्राद्ध आदि में या दैनिक कार्य कलाप में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है। बिहार में तो स्वास्थ्य पर कोई ध्यान हीं नहीं दिया गया पिछले ७० सालों में। कुछ मूल सुविधाएँ दूर दूर तक मयस्सर नहीं। हाँ, रोड, बिजली एवं फ़ोन ज़रूर है सबके लिये शायद । मेरे गांव की आबादी १-२ हज़ार से तीस हज़ार के क़रीब हो गई, पर आज तक कोई अस्पताल नहीं, कोई डाक्टर नहीं है कहीं। आश्चर्य बावन गाँवों का मिलकर आयोजित यज्ञ में कई लाख खर्च हो जाता है सभी के योगदान से, पर उस हित जमा किये पैसे में से अगर आयोजन के गाँवों में अगर एक अस्पताल बन गया रहता, तो आज बहुत सारे गाँवों में अस्पताल होते। जैसी प्रजा, वैसा राजा। किसी तरफ़ से कोई चेष्टा नहीं की गई। यहाँ तक भी ज़िला की आफ़िस एवं कचहरियों वाले शहर में भी कोई आधुनिक सुविधा युक्त अस्पताल नहीं है। अगर जहां हैं, वहाँ की सुविधा डाक्टरों के लापरवाही एवं अनुपस्थिति के कारण बेकार हो गई। आज गाँवों में कोविद की बीमारी के लक्षण होने पर भी उसकी जाँच की कोई व्यवस्था नहीं। वैक्सीन देने की शायद मोबाइल अस्पताल की कुछ व्यवस्था हुई है। एक बार ४५ से ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगा भी है। पर प्रतिशतता बहुत कम ही होगी। कुछ की बारी नहीं आई वैक्सीन लगवाने से अभी भी डरते हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह कोविद की दूसरी लहर भयानक रूप लेती नज़र आ रही है ग्रामीण इलाक़ों में। शायद अन्य प्रदेशों का भी यही हाल होगा। उत्तर एवं मध्य भारत के प्रदेशों में यही हालत होगी। कौन इन आने दिनों में सब व्यवस्था करेगा, कर पाया जायेगा या नहीं , मालूम भी नहीं? और अभी तो मंत्री भी कह रहे हैं कि तीसरी चौथी लहर भी आ सकती है और हर अगली लहर पहलेवाली से भयंकर होगी। बिहार के गाँवों रहने वाले शिक्षित युवा वर्ग एवं सम्पन्न इसमें आगे आते तो अच्छा होता, पर गाँव तो शहरों से बेकार होते जा रहे हैं आपसी सौहार्द दिखाने में, अपने को बड़ा दिखाने में। पता नहीं यह घमंड एवं कटुता क्यों बढ़ती ही जा रही है।संयुक्त परिवार ख़त्म ही हो गये हैं, जो बचे हैं केवल नाम के है। गाँव से, यहाँ तक की शहरों से भी पढ़ाई करने या व्यवसाय की सोचना नवयुवकों में ग़ायब हो गई है। जब मैंने बचपन में अपने दादाजी को विभिन्न कोशिश करते हुये पाया था अपने बेटों के लिये, पर कोई उसमें रूचि नहीं लिया, न पढ़ाई की। जो हुआ वह भगवान भरोसे। पर खैर आज की परिस्थिति पहले अपनी ज़िन्दगी में मैंने कभी देखी नहीं। काश, कोई ईमानदार प्रयत्न करता राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त के सपने की ‘ अगर गाँव शिक्षित हो जाते, वह स्वर्ग यहीं बन जाता’। उनके कल्पना की शिक्षा तो पूरे बिहार से ग़ायब है। केवल राजनीतिज्ञों ने विभिन्न रूप से आम लोगों को बेवकूफ बना अपना उल्लू सीधा किया है। नक़ली पढ़ाई, नक़ली सर्टिफिकेट, नक़ली चरित्र, नक़ली जीवन …..भगवान ग़ायब, भक्त ग़ायब, देव ग़ायब, गायें ग़ायब, भैंसे ग़ायब, रह गयी हैं केवल मशीनें, मिक्सी, फ्रिज, ऑवेन, टी.वी, वातानूकुलन की व्यवस्था……जागो, उठो, भगवान के बताये रास्ते पर चलो, कर्म करो, श्रेष्ठों के बताये रास्तों पर चलो……केवल आप सब मिल कर ही निःस्वार्थ भाव से समाज के लिये काम कर ही अपना और समाज का भला कर सकते हो जितनी तुम्हारी शक्ति हो और विश्वास मानों वह तुम्हारी शक्ति असीम है, समझो अपने को, अपनों को…..
अगर मेरी बात अच्छी न लगे तो एक वृद्ध अशक्त की बात जान माफ़ कर देना……

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आत्मा- ब्रह्म कैसे दिखते हैं?

आत्मा- ब्रह्म कैसे दिखते हैं
हमारे उपनिषदों के ऋषियों ने अपने जिस ब्रह्म को देखा उसका वर्णन किया है। हममें अधिकांश इसको मानने को तैयार न होंगे। पर अगर हम परमहंस रामकृष्ण, विवेकानन्द के निकटस्थ लोगों की अपने अनुभवों पर लिखी किताबों में उनकी समाधि के अन्तिम लक्ष्य को पाने के विवरण को पढ़े, या उनके बाद के बहुचर्चित परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित‘An Autobiography of Yogi’ को पढ़े तो यह विश्वास करना पड़ता है कि ब्रह्म को लोगों ने अपनी एकनिष्ठ भक्ति एवं योग साधना के द्वारा देखा है। ऐसे अद्भुत ऋषि हर काल में, हर देश में, हर धर्मों में हुए। अत: कैसे इस को हम नकारें।

अलग अलग उपनिषदों में जिन्हें मैं अब तक देख चुका हूँ इस यात्रा में, वहाँ से निम्नलिखित जानकारी मिली-

श्वेताश्वतरोपनिषद् के रचयिता ऋषि ने पहले ही अध्याय में लिखा है कैसे महान सिद्ध ऋषियों ने ब्रह्म को देखा एवं पाया अपनी पूर्ण आत्मशक्ति युक्त एकनिष्ठ साधना के द्वारा-
‘ते ध्यानयोगानुगता अपश्यन्ह्देवात्मशक्तिं स्वगुणैर्निगूढाम्‌।
यः कारणानि निखिलानि तानि कालात्मयुक्तान्यधितिष्ठत्येकः॥१.३॥

तब ऋषियों ने एकाग्रचित्त होकर ध्यान योग में स्वयं भगवान की सृजन-शक्ति को देखा जो अपने गुणों में छिपी हुई थी। ये वही एकमेवाद्वितीयं हैं जो काल, आत्मा तथा सभी कारणों के अधिपति हैं। The sages, absorbed in meditation through one-pointedness of mind, discovered the creative power, belonging to the Lord Himself and hidden in its own gunas. This is that Lord who is one without second and who rules over all those causes – time, the self and the rest.

ईशोपनिषद् में ब्रह्म या ईश्वर का स्वरूप ऋषि बताते है,‘स्वयम्भुः पर्यगात् अकायम् अस्नाविरम् अपापविद्धं शुक्रम् अव्रणं शुद्धं कविः मनीषी परिभुः। सः याथातथ्यतः शाश्वतीभ्यः समाभ्यः अर्थान् व्यदधात्’- ‘वह पुरुष ही सर्वत्र व्याप्त, वह तत् ज्योतिर्मय, शरीर-रहित, अपूर्णता के चिह्न या दाग से शून्य, स्नायु एवं नस-नाड़ी से रहित और शुद्ध है एवं पाप से बिधा नहीं है। सर्वदर्शी, मनीषवान् वह एकमेव जो सर्वत्र सब कुछ हो जाता या बन जाता है, उस स्वयंसत् पुरुष ने ही सनातन वर्षों से, अनादि काल से सभी पदार्थों को उनके स्वभाव के अनुरूप पूर्णतया ठीक-ठीक, यथातथ रूप में व्यवस्थित कर रखा है।’

कठोपनिषद् में यमराज ब्रह्म ज्ञान ही के एकमात्र अभिलाषा लिए सभी आसक्त करनेवाले प्रलोभनों को ठुकराने पर नचिकेता को बताते है ब्रह्म स्वरूप,’..अशव्दम् अस्पर्शम् अरुपम् अव्ययं तथा अरसं नित्यम् अगन्धवत् च भवति अनाद्यनन्तम् महतः परं ध्रुवं…’(१.३.१५)- जिसमें न शब्द है, न स्पर्श और न रूप है, जो अव्यय है जिसमें न कोई रस है और न कोई गन्ध है, जो नित्य है, अनादि तथा अनन्त है, ‘महान् आत्मतत्त्व’ से भी उच्चतर (परे) है, ध्रुव (स्थिर) है।

मंडूकोपनिषद् में ऋषि कहते हैं, ‘यत् तत् अद्रैश्यम् अग्राह्यम् अगोत्रम् अवर्णम् अचक्षुः श्रोत्रम्। तत् अपाणिपादं नित्यं विभुं सर्वगतं सुसूक्ष्मं तत् अव्ययं’- वह’ जो अदृश्य है, अग्राह्य है, सम्बन्धहीन (अगोत्र) है। अवर्ण है, चक्षु तथा श्रोत्र रहित है, जो अपाणिपाद (हाथ-पाँव रहित) है, नित्य है, विभु है, सर्वगत है, सब में ओतप्रोत है, अतिसूक्ष्म है, अव्यय है, जो समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का उद्गम-स्थल (योनि) है….

प्रश्नोपनिषद में भी आता है-
परमेवाक्षरं प्रतिपद्यते स यो ह वै तदच्छायमशरीरम्लोहितं शुभ्रमक्षरं वेदयते यस्तु सोम्य स सर्वज्ञः सर्वो भवति;
‘जो उस छायाहीन, वर्णहीन, अशरीरी शुभ्रे एवं अक्षर ‘चैतन्य’, ‘जिवात्मा’ को जानता है, वह उस ‘परम अक्षर’, ‘सर्वोच्च तत्त्व’ को प्राप्त करता है।
हे सौम्य वत्स, वह सर्वज्ञ मनुष्य स्वयं ही ‘सर्वम्’ बन जाता है।

तैत्तरीयोपनिषद से
भूः भुवः सुवः इति एताः तिस्रः वै व्याहृतयः उ…तत् ब्रह्म सः आत्मा ..शिक्षावल्ली .५.१
‘भू’ ‘भुवः’ ‘तथा’ ‘स्वः’ ये तीन ‘विशेष शब्द’ (व्याहृतियाँ) हैं ‘उसके’ नाम के। …..वह ‘ब्रह्म’ है, वह ‘आत्मा’ है।
ओमिति ब्रह्म। ओमितीदं सर्वम्‌।…८.१.॥’ओम्’ ही ब्रह्म है, ‘ओम्’ ही यह समस्त विश्व है।
..
विज्ञानात्मा सह देवैश्च सर्वैः प्राणा भुतानि संप्रतिष्ठन्ति यत्र।
तदक्षरं वेदयते यस्तु सोम्य स सर्वज्ञः सर्वमेवाविवेशेति ॥१.४.११॥
सौम्य वत्स! जो उस ‘अक्षर’ तत्त्व को जानता है जिसमें विज्ञानात्मा, अर्थात् बोधात्मक चैतन्य, समस्त देवगण, प्राणवायु एवं सभी महाभूत समाविष्ट हो जाते हैं, वह सर्वज्ञ है, वह सम्पूर्ण ‘विश्व’ को जानता है।
तिस्रो मात्रा मृत्युमत्यः प्रयुक्ता अन्योन्यसक्ताः अनविप्रयुक्ताः।
क्रियासु बाह्यान्तरमध्यमासु सम्यक्प्रयुक्तासु न कम्पते ज्ञः ॥१.५.६॥
ये मात्राएँ, परस्पर संलग्न एवं अविच्छेद्य, जब तीन मात्राओं के रूप में प्रयोग की जाती हैं तब वे मृत्युमती, मृत्यु की सन्तान-रूप होती हैं; किन्तु ज्ञानी पुरुष इससे विकम्पित नहीं होता; कारण, त्रिविध कर्म होते हैं, बाह्यकर्म, आभ्यन्तर कर्म तथा दोनों के मिश्ररूप कर्म, और वह निर्भय होकर अकम्पित, अविचलित भाव से इन तीनों कर्मों को उचित रूप से करता है।
यत् शान्तम् अजरम् अमृतम् अभयं परं तं विद्वान् ओङ्कारेण आयतनेन एव अन्वेति। च इति ॥१.५.७॥ विद्वान् पुरुष ‘ओंकार’ में स्थित होकर ही उस लोक को प्राप्त करते हैं, वे उस ‘परमा शान्ति’ को भी प्राप्त करते हैं जहाँ जरा का प्रभाव है तथा ‘अमृतत्व’ के द्वारा भय से मुक्ति मिल जाती है।
स यथेमा नध्यः स्यन्दमानाः समुद्रायणाः समुद्रं प्राप्यास्तं गच्छन्ति भिध्येते तासां नामरुपे समुद्र इत्येवं प्रोच्यते।
एवमेवास्य परिद्रष्टुरिमाः षोडशकलाः पुरुषायणाः पुरुषं प्राप्यास्तं गच्छन्ति भिध्येते चासां नामरुपे पुरुष इत्येवं प्रोच्यते स एषोऽकलोऽमृतो भवति १.६.५॥
जिस प्रकार प्रवाहित होती हुई नदियाँ सागर की ओर अग्रसर होती हैं, किन्तु सागर में पहुँचकर वे उसी में विलीन हो जाती हैं तथा उनके नाम और रूप समाप्त हो जाते हैं और सब कुछ केवल सागर ही कहलाता है, इसी प्रकार इस द्रष्टारूप ‘चैतन्य’ की षोडश कलाएँ ‘पुरुष’ की ओर अग्रसर होती हैं एवं जब वे उस ‘पुरुष’ को प्राप्त कर लेती हैं तब वे ‘उसी’ में विलीन हो जाती हैं तथा उनके अपने नाम-रूप समाप्त हो जाते हैं और इस समस्त को एकमात्र ‘पुरुष’ कहा जाता है; तब ‘वह’ कला (अंश) रहित एवं अमृत-रूप हो जाता है।
अरा इव रथनाभौ कला यस्मिन् प्रतिष्ठिताः।
तं वेध्यं पुरुषं वेद यथा मा वो मृत्युः परिव्यथा इति ॥१.६.७॥
जिस प्रकार रथ के चक्र की नाभि में समस्त अरे अवस्थित होते हैं, उसी प्रकार ‘वह’ है जिसमें ये कलाएँ अवस्थित हैं ‘उसी’ को ‘पुरुष’ समझो जो कि ज्ञान का चरम लक्ष्य है, इसी के द्वारा तुम मृत्यु एवं उसकी व्यथा से मुक्त होओगे।

उसी ब्रह्म शक्ति के रूप का विशद वर्णन हम भगवद्गीता के पूरे एकादशोऽध्याय -‘विश्वरूपदर्शनयोग’ में देखतें हैं, जिसको देखने एवं सुनने का सौभाग्य अर्जुन और साथ ही सारथी संजय को मिलता है-

संजय कहते हैं उनके कृष्ण के द्वारा दिखाये विश्वरूप के बारे में-
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥११.१२॥
यदि आकाश में सहस्रों सूर्यों की ज्योति एक साथ उठी हुई हो तो वह ज्योति उस महापुरुष के देह की ज्योति के सदृश कदाचित् ही हो सके ।
Such is the light of this body of God as if a thousand suns had risen at once in heaven.
*
फिर अर्जुन बताते हैं अपना अनुभव-
पश्यामि देवांस्तव देव देहे
सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् ।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ-
मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥
आपकी देह में समस्त देवों को और विभिन्न जातीय जीवों के समूहों को, कमल रूप आसन पर बैठे हुए सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, शिव, एवं विष्णु को और समस्त ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देखता हूँ ।
I see all the gods in Thy body, O God, and different companies of beings, Brahma, Shiva, and Vishnu seated in the Lotus, and the Rishis and the race of the divine Serpents.


जब कृष्ण सब तरह से समझा चुके तो पहले अपनी विभूति की विस्तृत जानकारी दी १० वें अध्याय में , पर उसके बाद भी अर्जुन ने साक्षात् देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो पूरे ११वें अध्याय में अपना विश्वरूप ही दिखा दिया, और तब तक दिखाते रहे विभिन्न तरह से, जब तक अर्जुन उनसे अपने को सामान्य सखा सारथी के रूप में लौट आने की प्रार्थना न की।

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दुर्गा सप्तशती, रामनवमी, एवं सुन्दर कांड


२१ अप्रैल, २०२१ आज बहुत ही शुभ एवं व्यस्त दिन था- दुर्गासप्तशती के नवरात्रि के नौ दिनों के थोड़े तपस्वी आचरणों के साथ रहने एवं पाठ समाप्ति का अन्तिम दिन, और साथ ही तुलसी के रामचरितमानस के नायक मर्यादा पुरूष राम का जन्मदिन। साथ में दैनिक सुन्दर कांड के पाठ को भी बरकरार रखने की ज़िद की भी रही।

दुर्गासप्तशती में मेरा आकर्षण तो बचपन से बंगाल में रहने के कारण आया, दादाजी दुर्गा पूजा के ‘महालया’ के दिन प्रसिद्ध तत्कालीन वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के दिव्य स्वर में किसी को भी आकर्षित करने में समर्थ चंडी पाठ सुना करते थे रेडियो पर बंगला, संस्कृत मिले घंटे से ऊपर के आयोजन का। वह प्रोग्राम १९६६ तक चला, और आज भी उसका रिकॉर्डेड रूप रेडियो पर चलता है।

बहुत सालों से मैं यह अनुष्ठान पाठ करता रहा हूँ। यहाँ तक कि हिन्द मोटर या देश विदेश में जहां भी रहता था करता रहता था, सभी तकलीफ़ों के बावजूद। पर पता नहीं क्यों इस बार मुझे इस कार्य से हर साल से ज़्यादा ख़ुशी मिली। लगा कि आज के विश्व संकट की लड़ाई का एक अप्रत्यक्ष योद्धा इस तरह भी बना जा सकता है। संस्कृत पाठ कठिन है, पर ‘करत करत अभ्यास जडमत होत सुजान’ के अनुसार सालों से थोड़ी थोड़ी कोशिश से संस्कृत के श्लोक भी अब मुझे दुरूह नहीं लगते। मार्कण्डेय पुराण में शायद यह कथा है और ऋग्वेद की आठ ऋचाओं पर ‘देवी सूक्त’ के आठ मन्त्र दुर्गा हैं दुर्गा संबंधी। सप्तशती की दुर्गा इस बात की याद दिला दी कि वे पूरी ब्रह्म शक्ति का ही एक विचित्र रूप हैं जो संख्या में बहुत ही बड़े असुर शक्ति को हरा इसलिये पाईं क्योंकि सभी देवों की अलग अलग प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दिव्य शक्तियों का भी साथ मिला। सभी देवों से जुड़ी देवियाँ – नारायणी, शिवा, ब्रह्माणी के साथ समस्त नारी शक्ति (स्त्रिय: समस्त सरला जगत्सु..) मिल कर अपनी पूरी शक्ति से असुरों एवं उनके नायकों से लड़ने लगीं एवं उन्हें परास्त कर दिया। दशमोध्याय में शुम्भ कहता है- ‘ अन्यथा बलमाश्रित्य युद्धयसे यातिमानिनी’। देवी स्वीकार कहती हैं वे मेरी से ही बनी है, मेरा ही रूप हैं, तुम्हें अलग लगती हैं। आज हिन्दुस्तान की नारी शक्ति अपने को क्यों असहाय मानती है। क्योंकि समाज में असुरों का बोलबाला और मनमानी तो आज भी है।क्यों नहीं वे दुर्गा से सीख लेती हैं।

फिर अपने आदर्श पुरूष राम पर जब भी सोचता हूँ तो लगता है कि उस जमाने में सजातीय शक्तिशाली राजा असुरों के विरूद्ध के किसी न्याय युद्ध में एक दूसरे का साथ नहीं दिये और राम को भी वह नहीं मिला। फिर राम एक अलग वर्ग से सहायता लिये, कितने प्यार से पाये और उनकी हर कदम पर सहायता ली और आभार ज्ञापन किया, उन्हें अपना भाई बनाया, उन्हें सम्मान दिया, उनकी आन्तरिक आत्मशक्ति को जगाया, जिसे उस समय एवं आज के शक्ति शाली भी उन्हें नीच या दीन समझ छोड़ देते हैं, न उनकी सहायता करते हैं, न उनकी सहायता एवं शक्ति पर उनका विश्वास जगता है। केवट, गुह, शबरी, जटायु, हनुमान, जामवन्त सुग्रीव, हनुमान, विभीषण की सहायता कितनी सहजता से ली गई और दुनिया के सबसे शक्तिशाली असुर रावण से जीत हासिल की गई।

और सुन्दर कांड के नायक हनुमान राम कथा में चौथे कांड में राम से मिले और उनके हो कर रह गये। सभी असाध्य कर्म किया राम के लिये और राम ही तरह पूरे मानव जाति के लिये भक्ति का अनुपम उदाहरण रख राम की तरह हर हिन्दू के दिल में बस गये। मेरा पूरे हिन्दू समाज के हर परिवार के हर व्यक्ति से यह आग्रह है कि वे हनुमान चालीसा का यह मंत्र बराबर जाप करें जो पानी की तरह सहज है जीवनदायी अमृत है और जीवन सफल करें…
“बुद्धिहीन तनु जानके सुमिरौं पवनकुमार!
बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहीं
हरहु क्लेश विकार ….”।।।।

और कुछ नहीं तो तुलसी दास जी के मानस का निम्नलिखित छोटा सुभाषित ही ज़रा याद रखें, तो समाज में बढ़ती मानसिक एवं शारीरिक हिंसा कम हो जाये-
”परहित सरिस धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।”
परोपकार से बढ़कर कोई उत्तम कर्म नहीं और दूसरों को कष्ट देने से बढ़कर कोई नीच कर्म नहीं ।

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An Emergency Writeup

Some Questions of National Importance: I saw a column written by one highly respected intellectual of the country on an issue that is totally irrelevant as on today- Weaponising faith: The Gyanvapi Mosque-Kashi Vishwanath dispute https://indianexpress.com/article/opinion/columns/gyanvapi-mosque-dispute-kashi-vishwanath-temple-asi-7270802/. Some so-called religious goons are raising this sort of issues or politicians at this moment of the country. Unfortunately most of these columnists in all national media are mostly engrossed about the mistakes of the politicians in power and their policies or any thing that supports or opposes divisive mentality.This is when a huge democracy of billions are facing many problems of their living condition and welfare put in hazard of serious consequences of Covid-19.

Why are our intellectuals not talking about these burning issues? Vaccine Manufacturing Hub of India and whatever health care services we have are the only hope to fight the spreading Covid-19. They require full support from all, particularly our argumentative masses that has been nurtured by our so called democratic processes.It must cause a serious concern to all Indians. Whereas, neither so call religious gurus sitting on huge wealth nor the politicians and other religious leaders have any concern. Perhaps they are neither capable nor interested still to get over this present crisis to Indian economy. The right- minded wise men of India must think about on these key issues. How can we all build a better disciplined mass of billion plus population? Why could not have beeen the election rallies or even the elections for that matter or Kumbha Mela could have been postponed? Heaven would not have fallen if it would not have been held for one or more years as no one on earth can bring a discipline required or demanded for controlling the spread of Covid with the sheep mentality of the Indian masses….Not even One politician worth name or a religious leader or even the leaders of the farmers protest have suggested this postponement in the interest of the country. How can a country like India sustain even the minimal living standards of its maximum number of poor families with lockdowns and uncertainty in all industrial and commercial sectors, particularly the service sectors employing the maximum number of these poor persons for sustaining their families. The richer classes are hardly sensitive enough to solve the problems of the almost half a billion of migrant labourers in providing them vaccines or a good enough dormitory living facilities. The government and richer peers in industry are not helping the vaccine manufacturers to enhance their facilities which they are asking for. Instead the government has imposed a price limit for their vaccines to make it look people-friendly to the vote bank ….Unfortunately none is talking about it or advising the decision makers in government or private sector to do something as one for a National Emergency situation… Further even after the first lockdown, the industrial units and other places have not worked out the best they could do face the repeat of the same or similar pandemics and keep their activities going. I remember from my own life that there was a somewhat much difficult condition in good olds in Bengal related to extreme shortage of electric power. And the industrial plants and almost every one found a way out to cross over the situation through various means from the reorganising the working systems to innovative new products etc. Every sector will have to think of the present situation of Covid Chaos to reappear again and again. Why the marriages or festivals like Kumbh or for that matter any activity where a crowding foreseen, look into the way it is causing spread.Let us all including huge number of columnists of media and other intellectuals and business leaders think over:

1. if our country need so many political parties going over thousand,

2. if the country can’t have all the elections of all levels, for centre, states including Panchayats simultaneously once in three, four or five years,

3. if the country need to have a national emergency in situation such as this type of worldwide pandemics and its consequences on the economy, education, etc that can take back the country and its people backward in every manners.

Can more and more raise these question to himself and in his known circles of people?

And please also consider a special case of democratic India when China and Pakistan are the type of enemy countries that we are having. Let the democracy must a boon into bane.

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उपनिषदों की आचरण संहिता

उपनिषदों की आचरण संहिता
हमारे आदिग्रंथ- वेद, उपनिषद्, गीता सभी में व्यक्तिगत अनुशासन,संयम, नियम, आचरण की ज़रूरत पर बल दिया गया है। व्यक्ति के कर्ममय जीवन के किसी क्षेत्र में प्राचीन काल से आजतक इनको निष्ठा के साथ मान कर ही उच्चतम शिखर तक पहुँचा जा सकता है।
उपनिषदों में भी वर्णित है आत्म ज्ञान या ब्रह्म ज्ञान के पथिकों से सद आचरण की अपेक्षा। कुछ उपनिषद् धीर एवं मन्द शब्दों से बुद्धिमान एवं मन्द बुद्धि वाले दो तरह के व्यक्तियों की बात कही है। व्यक्ति के बुद्धि के द्वारा लिये इनके निर्णयों को श्रेय एवं प्रेय बताया गया है। दोनों के लक्षणों को भी बताया है। आदमी का चरित्र और आचरण कुछ हद तक जन्मजात होता है पूर्व जन्म के कर्मों के कारण, पर इस जन्म की संगति, परिवार,एवं शिक्षा और फिर स्वनिर्माण की प्रक्रिया, सद गुणों से भरे जीवन या दुर्गुणों में लिप्त जीवन की नींव डाल सकती है। यहाँ मैं उपनिषदों से लिये कुछ अपेक्षाओं के बारे में लिख रहा हूँ।

१. ईशोपनिषद् का पहला ही श्लोक एक ऐतिहासिक महत्व रखता है। महात्मा गांधी ने इसी के ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’ पर अपने जीवन को जिया और वे महात्मा हो गये। इसके बारे में पहले भी लिख चुका हूँ। सभी अन्य उपनिषदों भी त्याग महिमा बताया। वह श्लोक या मंत्र है-
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥१॥
इस ब्रह्मांड के सभी चर अचर ईश्वर का है और हर व्यक्ति त्याग कर जीवन का आनन्द ले और किसी अन्य के, यहाँ तक की अपने भी धन का लोभ नहीं करे, क्योंकि वह तो ईश्वर का है।

२.कठोपनिषद् कहता है कि कैसे व्यक्ति आत्मा को जानने में असमर्थ होंगेव-‘ दुश्चरितां न अविरतः न अशान्तः न असमाहितः न वा अशान्तमानसः’(२.२४)
-जो दुष्कर्मों से विरत नहीं हुआ है, जो शान्त नहीं है, जो अपने में एकाग्र (समाहित) नहीं है अथवा जिसका मन शान्त नहीं है। उपनिषदों में अथिति के आदर का निर्देश है। कठोपनिषद् में यमराज भी कहते है कि जिसके घर में अतिथि ब्राह्मण को बिना भोजन रहना पड़ता है उनकी सब दौलत नष्ट हो जाती है-‘ब्राह्मणः अनश्नन् यस्य गृहे वसति तस्य अल्पमेधसः पुरुषस्य आशाप्रतिक्षे सङ्गतम् सुनृताम् इष्टापूर्ते पुत्रपशून् सर्वान् एतत् सर्वं वृङ्क्ते(१.८)-जिसके घर मे ब्राह्मण बिना खाए रहता है, उस अल्पबुद्धि मनुष्य की सारी आशा-प्रतीक्षाएँ, जो कुछ उसने पाया है, जो सत्य और शुभ उसने बोला है, जो कुएँ खुदवाए हैं तथा जो यज्ञ किये हैं, और उसके सब पुत्र एवं पशु उस अनादृत ब्राह्मण के द्वारा विनष्ट कर दिये जाते हैं। और अथिति नचिकेता की अपने ही घर में तीन दिन भूखे प्यासे रहने के कारण यमराज उसे तीन महत्वपूर्ण वर माँगने को कहते एवं उसे पूरा कर देते हैं जो कठोपनिषद का मूल विषय है।
आगे चल कर यज्ञ, दान, और तप- त्रिकर्म को निष्काम भाव से करने का विधान बताते हैं।

३. मुंडकोपनिषद में नित्य ऐसे ही आचरणों को करने की सलाह दी है आत्मा को पाने के लिये। ‘सत्येन तपसा सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण च लभ्यः(३.१.५)- सत्य से, आत्म-संयम (तप) से, सम्पूर्ण एवं सम्यक् ज्ञान से, ब्रह्मचर्य से सर्वदा लभ्य है।
और फिर कहा है,’सत्यम् एव जयते अनृतं न’- सत्य’ की ही विजय होती है असत्य की नहीं।(३.१.६) ‘सत्यमेव जयते’यह भारत के संविधान का मूल मंत्र है। फिर ऋषि ने बताया है कि कैसे लोगों को आत्मज्ञान नहीं मिलता-‘अयम् आत्मा बलहीनेन न लभ्यः प्रमादात् च न वा अलिङ्गात् तपसः अपि न लभ्यः(३.२.४)बलहीन व्यक्ति के द्वारा लभ्य नहीं है, न ही प्रमादपूर्ण प्रयास से, और न ही लक्षणहीन तपस्या के द्वारा।

४. केनोपनिषद् में कहा गया-‘तस्यै तपो दमः कर्मेति प्रतिष्ठा वेदाः सर्वाङ्गानि सत्यमायतनम्‌ (४.८)-तप, आत्म-विजय (दम) तथा कर्म इस उपनिषद् के ज्ञान का आधार (प्रतिष्ठा) हैं, ‘वेद’ इसके सब अंग हैं, सत्य इसका धाम है। फिर
‘यो वा एतामेवं वेदापहत्य पाप्मानमनन्ते स्वर्गे लोके ज्येये प्रतितिष्ठति प्रतितिष्ठति’-जो इस अन्तरज्ञान को जानता है वह अपने पाप का उच्छेदन करके उस बृहत्तर लोक एवं अनन्त स्वर्ग में प्रतिष्ठित हो जाता है, अवश्यमेव वह प्रतिष्ठित हो जाता है।

५. प्रश्नोपनिषद में ब्रह्म ज्ञान के इच्छुक आये विद्यार्थियों को गुरू ऋषि की पहली शर्त है- ‘तपसा ब्रह्मचर्येण श्रद्धया भूयः एव संवत्सरं संवत्स्यथ…’(१.२)-एक वर्ष ब्रह्मचर्य, श्रद्धा एवं तपस्यापूर्वक व्यतीत करिये फिर जो चाहें प्रश्न पूछिये।
फिर आगे भी कहा है- ‘अथ तपसा ब्रह्मचर्येण श्रद्धया विद्यया आत्मानम् अन्विष्य..’(१.१०)- ‘आत्मा’ का ब्रह्मचर्य, विद्या, श्रद्धा एवं तपस्या के द्वारा अन्वेषण कर लिया है.. वे ‘सूर्यलोक’ के अपने स्वर्ग को जीत लेते हैं।वहाँ अमृतत्व अभय प्रदान करता है,वहीं से कोई लौटता नहीं हैं।
कुछ उन ऋषियों के व्यक्तिगत जीवन का अनुभव भी दर्शाता है या कारण के सम्बन्ध के कारण।जैसे श्लोक १.१३ में ‘ये दिवा रत्या संयुज्यन्ते प्राणं वै एते प्रस्कन्दन्ति। रात्रौ यत् रत्या सयंयन्ते तत् ब्रह्मचर्यम्’ -जो दिन में स्त्री-रति में सुख लेते हैं वे स्वयं ही अपने प्राणों (जीवन) को नष्ट कर देते हैं; जो रात्रि में स्त्री-रति में सुख लेते हैं वे ब्रह्मचर्य का ही पालन करते हैं। पर १.१५ में ऋषि कहते है- ‘येषां तपः ब्रह्मचर्यं येषु सत्यं प्रतिष्ठितं तेषाम् एव एषः ब्रह्मलोकः,’-किन्तु ब्रह्मलोक उनका है जिनमें तप तथा ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठित हैं।१.१६ में फिर इस बात पर बल देते हैं- ‘तेषामसौ विरजो ब्रह्मलोको न येषु जिह्ममनृतं न माया चेति’-उन्हीं का है यह निर्मल ब्रह्मलोक जिनमें न कुटिलता है, न मिथ्यात्व है, न कोई भान्ति है।’इसी उपनिषद् में आगे कहा है-‘यः अनृतं वदति एषः वै समूलः परिशुष्यति तस्मात् अनृतं वक्तुं न अर्हामि॥६.१॥-जो असत्य बोलता है वह समूल नष्ट हो जाता है।’

६. तैत्तरीय उपनिषद् में व्यक्ति के आचरणों पर बहुत साफ़ साफ़ रूप से कहा गया है- ‘ऋतं च स्वाध्यायप्रवचने च।सत्यं च स्वाध्यायप्रवचने च।तपश्च स्वाध्यायप्रवचने च। दमश्च स्वाध्यायप्रवचने च।शमश्च स्वाध्यायप्रवचने च। १’ – वेद के स्वाध्याय एवं प्रवचन के साथ सत्याचरण-ऋतम् हो; …सत्य हो; ….तपश्चर्या हो; …आत्म-प्रभुत्व (दम) हो;…. आत्म-शान्ति (शम) हो। फिर ‘स्वाध्यायप्रवचने च अनुष्ठेयानि सत्यम् एव अनुष्ठेयं इति सत्यवचाः राथीतरः मन्यते तपः एव अनुष्ठेयं इति तपोनित्यः पौरुशिष्टिः मन्यते स्वाधायप्रवचने एव अनुष्ठातव्ये इति नाकः मौद्गल्यः मन्यते । तत् हि तपः। तत् हि तपः। स्वाध्यायप्रवचने।… ”सत्य सर्वप्रथम है” सत्यवादी ऋषि राथीतर (रथीतर के पुत्र) ने कहा। ‘तप सर्वप्रथम है” नित्य तपोनिष्ठ ऋषि पौरुशिष्टि (पुरुशिष्ट के पुत्र) ने कहा। “वेदों का स्वाध्याय एवं प्रवचन सर्वप्रथम है” मुद्गल पुत्र नाक ऋषि ने कहा। कारण, यह भी तपस्या है तथा यह भी तप है।’
‘सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः। आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः।सत्यान्न प्रमदितव्यम्‌। धर्मान्न प्रमदितव्यम्‌।कुशलान्न प्रमदितव्यम्‌। भूत्यै न प्रमदितव्यम्‌।स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्‌।
देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्‌। मातृदेवो भव।पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव। यान्यनवद्यानि कर्माणि। तानि सेवितव्यानि। नो इतराणि।यान्यस्माकं सुचरितानि।तानि त्वयोपास्यानि। नो इतराणि।
ये के चास्मच्छ्रेयांसो ब्राह्मणाः। तेषां त्वयासनेन प्रश्वसितव्यम्‌। श्रद्धया देयम्‌। अश्रद्धयाऽदेयम्‌। श्रिया देयम्‌। ह्रिया देयम्‌। भिया देयम्‌। संविदा देयम्‌।११.१,२,३॥’
-सत्य बोलो, अपने धर्म के मार्ग पर चलो, वेदों के स्वाध्याय में अवहेलना मत करो। अपने आचार्य को उनका इष्ट धन लाकर देने के बाद तुम अपनी पुत्र परम्परा के दीर्घ सूत्र को नहीं काटोगे। सत्य के विषय में तुम प्रमाद मत करना। अपने कर्तव्य के विषय में तुम असावधान मत होना। कुशलता के सम्बन्ध में तुम असावधान मत होना। अपनी उन्नति, वृद्धि एवं उद्यम के प्रति असावधान मत होना। वेदों के स्वाध्याय एवं प्रवचन के विषय में प्रमाद मत करना।
देवों अथवा पितरों के प्रति अपने कर्तव्यों में अवहेलना मत करना। तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए देवतुल्य हों तथा तुम्हारे माता देवीतुल्या हों जिनकी तुम आराधना करते हो। अपने आचार्य की देवसमान सेवा करो तथा घर आये अतिथि की देवसमान अभ्यर्थना करो। लोगों के सम्मुख हो कर्म अनिन्द्य हैं तुम केवल उन्हीं कर्मों को सयत्न करना, अन्यान्य कर्मों को नहीं। हमने जिन सत्कर्मों को किया है वे ही तुम्हारे द्वारा धर्म-समान करणीय (उपास्य) हैं, अन्य कोई नहीं।
जो भी ब्रह्मचारी हमसे अधिक श्रेष्ठ एवं महान् हों तुम्हें उनको आसन देकर सम्मानित एवं परितृप्त करना चाहिये। तुम्हें श्रद्धा एवं आदरपूर्वक दान करना चाहिये; अश्रद्धा से तुम नहीं दोगे। (तुम श्री-सम्पत्ति के अनुरूप दान करोगे)*। तुम सलज्जभाव से दान करोगे, तुम सभय दान करोगे; तुम संविदभाव से (सहदयता एवं सहानुभूतिपूर्वक) दान करोगे। इसके अतिरिक्त यदि तुम्हें अपने कर्म तथा कर्मपथ (आचरण) के विषय में शंका हो तो जो भी ब्राह्मण वहाँ हों जो सुविचारशील हों भक्त हों, दूसरों से संचालित न हों धर्मपरायण हों, कठोर एवं क्रूर न हों, जैसा वे उस विषय में आचरण करे वैसा ही तुम करो। और यदि कोई व्यक्ति दूसरों के द्वारा अभियुक्त तथा अपराधी घोषित हो तो उसके साथ भी तुम उसी प्रकार आचरण करो जैसा उसके प्रति वे सब ब्राह्मण करते हैं जो सुविचारवान् श्रद्धावान् हैं, दूसरो के द्वारा संचालित नहीं हैं, धर्मपरायण हैं, जो कठोर एवं कूर नहीं हैं।
भृगुबल्ली में गृहस्थों, किसानों को कुछ निर्देश हैं जो सबके लिये ही हैं-
अन्नं न निन्द्यात्।…. (७.१) तुम अन्न की निन्दा नहीं करोगे; कारण, वह तुम्हारे श्रम का व्रत है।(८.१)’अन्नं न परिचक्षीत…’तुम अन्न का तिरस्कार नहीं करोगे।
(९.१)अन्नं बहु कुर्वीत।…तुम अन्नवृद्धि तथा अन्न-संचय करोगे।(१०.१)’वसतौ कम् चन न प्रात्यचक्षीत’-तुम अपने आवास में आये किसी भी व्यक्ति की अवमानना नहीं करोगे।

७. बृहदारण्यक उपनिषद् में कहानी है जो प्रजापति ने अपने तीन पुत्रों- देव, मनुष्य,और असुरों को कहा जब वे उनसे अलग होने लगे और पूछें कि हमें अपनी अन्तिम शिक्षा दीजिये। उन्होंने कहा, ‘द द द इति दाम्यत दत्त दयध्वमिति तदेतत्त्रय शिक्षेद्दमं दानं दयामिति।’
वह आज भी बरसात में बिजली की गर्जना में ईश्वरीय आवाज़ बन द, द, द …में निहित होती है- पहला‘द’ देवों को दम (आत्म संयम), दूसरा ‘द’ मनुष्यों को दान, और तीसरा ‘द’ असुरों को दया या करुणा करते रहने की सीख देता है। That very thing is repeated even today by the heavenly voice, in the form of thunder, as “Da,” “Da,” “Da,” which means: “Control yourselves,” “Give,” and “Have compassion.”
यह आज के सभी मनुष्यों के लिये भी है, क्योंकि हम में ही दैविक, राजसिक, एवं आसुरी प्रवृति के लोग है।
क़रीब क़रीब सब मुख्य उपनिषदों की उद्धृति यहाँ दी गई है। सोचिये हज़ारों पहले सिद्ध ब्रह्म ज्ञानी ऋषियों ने समाज के लोगों से कैसे जीवन आचरण की उम्मीद की गई थी आज भी कितना सार्थक है एक अच्छे समाज, राष्ट्र एवं विश्व के लिये।
इन्हीं आचरणों को अधिक विस्तार से भगवद्गीता और फिर तुलसीदास के रामचरितमानस में किया गया है। अगर व्यक्ति सच्चरित्र नहीं, सदाचरण नहीं करता तो कभी कोई सफलता उसके हाथ नहीं लगेगी जिससे वह अन्त तक शान्तिमय जी सके। कभी देर नहीं होती है। जब जागो तभी सबेरा। आपके बहुमूल्य सुझाव की अपेक्षा रहेगी।

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