२१ अप्रैल, २०२१ आज बहुत ही शुभ एवं व्यस्त दिन था- दुर्गासप्तशती के नवरात्रि के नौ दिनों के थोड़े तपस्वी आचरणों के साथ रहने एवं पाठ समाप्ति का अन्तिम दिन, और साथ ही तुलसी के रामचरितमानस के नायक मर्यादा पुरूष राम का जन्मदिन। साथ में दैनिक सुन्दर कांड के पाठ को भी बरकरार रखने की ज़िद की भी रही।
दुर्गासप्तशती में मेरा आकर्षण तो बचपन से बंगाल में रहने के कारण आया, दादाजी दुर्गा पूजा के ‘महालया’ के दिन प्रसिद्ध तत्कालीन वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के दिव्य स्वर में किसी को भी आकर्षित करने में समर्थ चंडी पाठ सुना करते थे रेडियो पर बंगला, संस्कृत मिले घंटे से ऊपर के आयोजन का। वह प्रोग्राम १९६६ तक चला, और आज भी उसका रिकॉर्डेड रूप रेडियो पर चलता है।
बहुत सालों से मैं यह अनुष्ठान पाठ करता रहा हूँ। यहाँ तक कि हिन्द मोटर या देश विदेश में जहां भी रहता था करता रहता था, सभी तकलीफ़ों के बावजूद। पर पता नहीं क्यों इस बार मुझे इस कार्य से हर साल से ज़्यादा ख़ुशी मिली। लगा कि आज के विश्व संकट की लड़ाई का एक अप्रत्यक्ष योद्धा इस तरह भी बना जा सकता है। संस्कृत पाठ कठिन है, पर ‘करत करत अभ्यास जडमत होत सुजान’ के अनुसार सालों से थोड़ी थोड़ी कोशिश से संस्कृत के श्लोक भी अब मुझे दुरूह नहीं लगते। मार्कण्डेय पुराण में शायद यह कथा है और ऋग्वेद की आठ ऋचाओं पर ‘देवी सूक्त’ के आठ मन्त्र दुर्गा हैं दुर्गा संबंधी। सप्तशती की दुर्गा इस बात की याद दिला दी कि वे पूरी ब्रह्म शक्ति का ही एक विचित्र रूप हैं जो संख्या में बहुत ही बड़े असुर शक्ति को हरा इसलिये पाईं क्योंकि सभी देवों की अलग अलग प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दिव्य शक्तियों का भी साथ मिला। सभी देवों से जुड़ी देवियाँ – नारायणी, शिवा, ब्रह्माणी के साथ समस्त नारी शक्ति (स्त्रिय: समस्त सरला जगत्सु..) मिल कर अपनी पूरी शक्ति से असुरों एवं उनके नायकों से लड़ने लगीं एवं उन्हें परास्त कर दिया। दशमोध्याय में शुम्भ कहता है- ‘ अन्यथा बलमाश्रित्य युद्धयसे यातिमानिनी’। देवी स्वीकार कहती हैं वे मेरी से ही बनी है, मेरा ही रूप हैं, तुम्हें अलग लगती हैं। आज हिन्दुस्तान की नारी शक्ति अपने को क्यों असहाय मानती है। क्योंकि समाज में असुरों का बोलबाला और मनमानी तो आज भी है।क्यों नहीं वे दुर्गा से सीख लेती हैं।
फिर अपने आदर्श पुरूष राम पर जब भी सोचता हूँ तो लगता है कि उस जमाने में सजातीय शक्तिशाली राजा असुरों के विरूद्ध के किसी न्याय युद्ध में एक दूसरे का साथ नहीं दिये और राम को भी वह नहीं मिला। फिर राम एक अलग वर्ग से सहायता लिये, कितने प्यार से पाये और उनकी हर कदम पर सहायता ली और आभार ज्ञापन किया, उन्हें अपना भाई बनाया, उन्हें सम्मान दिया, उनकी आन्तरिक आत्मशक्ति को जगाया, जिसे उस समय एवं आज के शक्ति शाली भी उन्हें नीच या दीन समझ छोड़ देते हैं, न उनकी सहायता करते हैं, न उनकी सहायता एवं शक्ति पर उनका विश्वास जगता है। केवट, गुह, शबरी, जटायु, हनुमान, जामवन्त सुग्रीव, हनुमान, विभीषण की सहायता कितनी सहजता से ली गई और दुनिया के सबसे शक्तिशाली असुर रावण से जीत हासिल की गई।
और सुन्दर कांड के नायक हनुमान राम कथा में चौथे कांड में राम से मिले और उनके हो कर रह गये। सभी असाध्य कर्म किया राम के लिये और राम ही तरह पूरे मानव जाति के लिये भक्ति का अनुपम उदाहरण रख राम की तरह हर हिन्दू के दिल में बस गये। मेरा पूरे हिन्दू समाज के हर परिवार के हर व्यक्ति से यह आग्रह है कि वे हनुमान चालीसा का यह मंत्र बराबर जाप करें जो पानी की तरह सहज है जीवनदायी अमृत है और जीवन सफल करें…
“बुद्धिहीन तनु जानके सुमिरौं पवनकुमार!
बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहीं
हरहु क्लेश विकार ….”।।।।
और कुछ नहीं तो तुलसी दास जी के मानस का निम्नलिखित छोटा सुभाषित ही ज़रा याद रखें, तो समाज में बढ़ती मानसिक एवं शारीरिक हिंसा कम हो जाये-
”परहित सरिस धरम नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।”
परोपकार से बढ़कर कोई उत्तम कर्म नहीं और दूसरों को कष्ट देने से बढ़कर कोई नीच कर्म नहीं ।