बिचारों के जंगल में-१

ज़माने भर का मुझे क्या करना
जब अपने से ही फ़ुरसत नहीं

एक हैं अरविन्द केजरीवाल एक राज्य की जीत ने जिन्हें सपने देखना सीखा दिया, सब विद्याओं में महारत दे दी, दिल्ली की गद्दी ने बहुत सारे दोस्तों को दुश्मन बना दिया. दिल्ली को दुहराने की लड़ाई छड़ी गई गुजरात, पंजाब, गोवा और फिर टी. वी वालों ने बैठा दिया दिमाग़ में कि अगर नितिश, ममता, राहुल सपने देख सकते है मोदी को पटकनियाँ देने की तो मैं क्यों नहीं. आख़िर दिल्ली के मुख्य मंत्री के घर से दिल्ली में प्रधानमंत्री के घर की दूरी ही कितनी है ? एक छलाँग और ….,पर लगता है इन सपनों ने उन्हें आम नेताओं की तरह हौवा खड़ा करना सीखा दिया. क्या गुल खिलाता है अब उनका भाग्य? कौन जाने….आई. आई. टी का बन्दा है भोटिंग मशीन में दस तरह की कमज़ोरी की बात कर सकता है , काश पाँच सालों में दिल्ली कुछ तकनीकी तरीके से दुनिया सर्वश्रेष्ठ नगर ही बना दे, या यहाँ का मौसम ही बदल दे…..लोगों में भाँति भाँति की अफ़वाहें फैलाओ , शायद काम बन जाये इस प्रजातंत्र में…. अन्ना हज़ारे का भला हो …अरविन्द को खड़ा कर अपने ग़ायब हो गये…..गुरू गुड ही बना रहा , चेला चीनी हो गया, अब पछताने से क्या लाभ…..कुछदिन पहले कहे हैं “I am pained by the Shunglu committee report because Arvind was with me in the fight against corruption. I had great hopes from the young and educated Kejriwal and felt that young people like him will create a corruption-free nation. But he has dashed all my hopes.” and further “the Shunglu committee report shows that Kejriwal has forgotten everything in the pursuit of power….. …Kejriwal has gone off track, the CM’s chair has changed him.” और मुख्य मंत्री के काम का नायाब तरीक़ा चौरसिया को काम सौंप अपने ज़िम्मेदारी मुक्त…..हर महीने पैसे तो मिलते ही हैं…मुख्य मंत्री की अच्छी खाँसी पगार और पेंशन भी आजीवन और शायद सरकारी घर भी जैसा यू. पी. में …..)

पैदल चलने की आदत डालिये एवं स्वस्थ रहिये. ७७+ की उम्र में औसतन ५-६ मील चलता हूँ. पैदल चलने का कोई मौक़ा हाथ से निकलने नहीं देता हूँ. तकलीफ़ है शहरों के निर्माण के योजना कर्ता पैदल चलने वालों के लिये सड़कों पर कोई सुरक्षित जगह ही हीं देते . न सड़क के किनारे एक लाल पट्टी जहाँ द्रुत गति से चलती गाड़ियाँ न आयें या पैनलों की समतल पगडंडी. पूरी योजना सड़कों की केवल बाहनवालों के लिये सोची लगती है, उनके दिमाग़ में पैदल चलने वाले का इतने सम्पन्न लोगों के शहर में क्या काम.

अभिनन्दन बदलते नितिश कुमार का: शराबबन्दी उनकी पहली ग़लती का सुधार प्रयास था……बडी सख़्ती के साथ क्रियान्वयन हुआ…. कुछ ब्यवहारिक सुधार किया जा सकता तो और बेहतर होता…… पर नितिश का तिलक प्रथा और बाल बिबाह के बिरोध का अभियान एक अत्यन्त प्रशंसनीय प्रयास है जिसकी नितिश को जितनी शाबाशी दी जाये य वह कम ही होगी. वे अगर इसे एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में औरतों एवं पढ़ी लिखी बच्चियों के ज़रिये फैला सकें या एक पूरे प्रान्त की इसी ध्येय को मुख्य रख यात्रा कर सकें तो उनकी बात को लोग ज्यादा गम्भीरता से लेंगे. सभी वर्ग के लोगों में इसकी बुरायियों के सत्य क़िस्से फैलाये जांये. बिहार के हर धर्म एवं जाति में। यह बिष ब्याप्त है. इसके बन्द होने से बिहार और प्रान्तों से आगे निकल जायेगा. एक और छोटी सी उम्मीद उनसे करता हूँ . वे हर मीडिया से अच्छी शिक्षा पर ज़ोर दें…..और लोगों को बताये की कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने वाले अभिभावकों ही स्वर्ग मिलता है और हर नक़ल का प्रयास करने में मदद करनेवाले को नर्क . बिहार की ख़ुशहाली का यह मार्ग है और दूसरा कुछ नहीं और यह सब हमारे हाथ में है…

…५

लालू प्रसाद के बेटे फिर से समाचार में हैं. ………लालू के सब बेटे बेटियाँ करोड़पति तो पहले ही थे….मुलायम परिवार से रिश्ता बन चुका है तो बिचारों का लेने देन भी होगा ही…वे भी एक साधारण स्थिति से आज देश के सबसे सम्पन्न राजनीतिज्ञों में माने जाते हैं……लालू पुत्रों के सामने भी यही महात्वाकांक्षा ………कैसे अरबपति बना जाये जब तक शासन पर हाथ है …परिवार के कम से कम तीन लोगों का प्रत्यक्ष रूप से….उधर बिचारा पिता कहता है , क्यों न करें वे सब, क्या मेरे बच्चे ग़रीबी में मरें? ग़रीब कहाँ दो सौ करोड़ का मॉल बनाता है….मॉल बनाते वक़्त नींव से निकली मिट्टी को भी अपने ही सरकार के बिभाग में ७०-८० लाख में बेंच देता है…..मायावती, मुलायम परिवार , बादल, जयललिता, थाक्करे सभी तो अरबपति हैं….क्यों तेजस्वी और तेज़ प्रताप न बनने की कोशिश करें…

http://www.ndtv.com/india-news/should-my-sons-die-in-poverty-lalus-comeback-to-land-scam-allegations-1679236?pfrom=home-lateststories

……

सभी सरकारें और वर्तमान मोदी सरकार भी पर्यटन को ज़ोर शोर से बढ़ावा देती हैं- विशेषकर बिदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये बहुत बिज्ञापन और अन्य एजेन्सिओं का उपयोग किया जाता है. उद्देश्य रहता कि वे बिदेशी ज्यादा से ज्यादा समय यहाँ बितायें.होटलों में रहने, जगह जगह मनपसन्द की चीज़ें खाने, सवारी के उपयोग करने, याददाश्त के लिये यहाँ की अनूठी चीज़ों को ख़रीदने में पैसा ख़र्च करें और इस तरह बिदेशी मुद्रा देश में आये. पर उनमें करीब शत प्रतिशत माँसाहारी होते हैं एवं मदिरापान के शौक़ीन. वे खाने पीने, प्राकृतिक दृश्यों के लिये मशहूर जगहों , पशु पक्षियों में ज्यादा आनन्द लेते हैं और हमारे देश के ऐतिहासिक धरोहरों की बारीकियों को समझने में कम. अत: अपनी सांस्कृतिक या धार्मिक हिरासत के नाम पर हम उन्हें शुद्ध शाकाहारी ब्यंजन एवं शरबतों से आकर्षित करना चाहेंगे तो शायद ही हम पर्यटन को बढ़ा पायें. फिर ये पर्यटक अपने आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार छोटे बड़े सभी तरह के होटलों और भोजनालयों में रहते खाते हैं, अत: पता नहीं माँस मदिरा का रोक कहाँ तक युक्ति संगत है, यह देशहित में है या नहीं? समय के साथ हमें चलना चाहिये. सोचें, समझें, आचरण करें अनुकर्णीय. World Economic Forum, Switzerland, ranked India at 40th position from 52nd in 2016 on World Travel and Tourism Index………

७.४.२०१७: समझ में नहीं आ रहा है कि देश में कुछ अच्छा काम हो भी रहा है या नहीं. टी वी न्यूज़ चैनलों पर लगातार चलते समाचार और उन पर विवाद और उनके राजनीतिक रंग से अब डर लगने लगता है. आज पिछले सत्तर सालों में क़ानून ब्यवस्था में इतनी ढील क्यों दी गई कि हर चीज़ समाधान से बाहर दिखती है. समस्या की शुरूआत एक घटना से होती है, पूरे देश में मीडिया उसे आग की तरह फैला देती है. फिर सभी सम्बन्धित लोग समस्या का एक सामयिक हल निकाल लोगों को शान्त कर देते हैं और फिर लोग भूल जाते हैं जब वही चीज़ फिर घटती है. कुछ समस्याओं का हवाला दूँ. कुछ नई भारी मत से चुनी राज्य सरकारें पिछले दिनों अवैध बूचडखानों को सख़्ती से बन्द करा दी. हायतौबा मच गया . क्यों हज़ारों लाखों ग़ैरक़ानूनी बिना स्वास्थ्यकर ब्यवस्था वाले बूचडखाने देश के हर गल्ली मुहल्ले के कोने में खुल गये सरेआम? मैं तो दिखते ही घबड़ा जाता हूँ, आँख बन्द कर जल्दी से निकल जाना चाहता हूँ . सरकारी महकमें के लोग जिन्हें इसे देखना रोकना था क्यों नहीं रोके समय पर, या उनके राजनीतिक आका क्यों नज़र अंदाज करते रहे और मीडिया इसके सम्बन्ध में कभी कोई ज़ोर का आवाज़ क्यों नहीं उठाई? आज सभी नई सरकार को दोष देते हैं, बेरोज़गारी का रोना रोते हैं, और कुछ इसे साम्प्रदायिक रंग दे देश का नाम बदनाम करते है. 

दूसरा निर्णय सर्व्वोच न्यायालय का आया. राजमार्ग के ५०० मीटर तक कोई शराब का ब्यवसाय नहीं होगा चाहे वे छोटी दुकानें या बार हों या पाँच स्टार का होटल . कारण बताया गया रोड किनारे की इन जगहों से शराब ड्राइवर गाड़ी या ट्रक चलाते हैं और भयंकर दुर्घटना करते जान लेते, साल में हज़ारों में. फिर इन रोकों के बिरोध में आन्दोलन होते हैं और सरकार या कोर्ट को क़ानून या देश का भला भूलने पर बाध्य किया जाता है. या कुछ दिनों में मामला अपने ही शान्त हो जाता , पुरानी अवस्था वापस आ जाती है, अफ़सर और कर्मचारी आँख बन्द कर लेते हैं. एक और दबाव का कारण बनता है लाखों साधारण पढ़े लिखे लोगों की कमाई के बन्द होने की बात. पर इसके मूल में सार्वभौमिक अच्छी शिक्षा या किसी हुनर में महरियत का अभाव जो एक अच्छी नौकरी दे सके. यह कैसा प्रजातंत्र है जिसमें किसान या बडी बड़ी कम्पनियों के लोग क़र्ज़ तो लेते हैं पर उसे लौटाने की इच्छा नहीं रखते और उसकी माफ़ी के लिये हर तिकड़मों का ब्यवहार करते हैं. बड़े और छोटों की एक ही लालसा होती है कैसे सरकार पर दबाव डाले और क़र्ज़े को माफ़ कराये. किसानों की समस्या का निदान क़र्ज़ा माफ़ी तो नहीं है जो कांग्रेस वालों ने की और इसबार पहला पहल राहुल का ही था, क्यों कि उनको इसके सिवाय कोई रास्ता सूझ नहीं सकता है. बात चार एकड़ और एक एकड़ की जमीनवाले किसानों की है. इन्हें खेती की फ़सलें बदलनी होगी, धान एवं गेहूँ की पुरानी तरीके की खेती के दिन लद गये. किसानों को दलहन, तेलहन, सब्जी, फल, की खेती करनी होगी; मछली, मुरग़ी, भेंड, बकरी, गाय, भैंस पालन को ब्यवसायिक ढंग से करना होगा. मसीन, अच्छे बीज, अच्छी खाद का अनुभव प्राप्त कर उपयोग करना होगा. हर ब्यक्ति पुराने ज्ञान- साम, दाम, दंड, और भेद का उपयोग कर अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है. एक देश का सासंद ए्अर इंडिया के कर्मचारी को पच्चीस चप्पल मारता है बिना किसी दोष के और देश के सभी बिरोधी दलों के लोग उसे संसद से निकालने की बात नहीं करते बल्कि उसके पक्ष में बोलते हैं. नोटबन्दी के दिनों के जौहरियों, तथाकथित ब्यवसायिओं के, कुछ बैंक कर्मचारियों के कारनामे अब जगज़ाहिर है. पिछले महीने मैं हरिद्वार गया था, देखा हमारे आवास आरोग्यम् और गुरू रामदेव के पातांजलि संस्थान के बीच हाई वे के किनारे दसों झोंपड़ियों की तरह छोटे मकान हैं. सबकी दीवालों पर लिखा है यहाँ अंग्रेज़ी शराब मिलती है. क्यों ऐसा है……होता है….क्या निदान है ……समस्यायें सदियों की है कुछ आर्थिक पर ज्यादा पुराणपंथी से जुड़ी. अच्छी शिक्षा, हुनर की शिक्षा, अनुशाशन, कठिन परिश्रम पर दृढ़ बिश्वास की बेसिक ज़रूरत देश के नागरिकों में . ठीक नियम क़ानून और उनके पालन में कोई कोताही कभी नहीं…शासन का दृढ़ संकल्प और कड़ी नज़र इस संकट से उबरने का एक मात्र रास्ता है…..I have a confidence that the government will go for long term solution.

२.४.२०१७: नोयडा में इस ७८ पहुँचते उम्र में हमारी तरह के लोगों के लिये बिना किसी युवा पीढ़ी के नज़दीकी ब्यक्ति के एक बहुत बडा संघर्ष लगता है. जब भी मेरी अपनी तबियत ख़राब होती है तो यह अहसास अचानक ज्यादा तकलीफ़ देने लगता है. यह और भी चिन्तित करता है जब जीवन साथी पूरी तरह दूसरे पर निर्भर है. यह अजीब ही इत्तफ़ाक़ है हम जब हम सक्षम थे तो बहुत सहायक भी थे. बहुत अन्य तकलीफ़ों को झेलते हुये घर की रोज़मर्रा की ज़रूरतों की चिन्ता नहीं होती थी. क्या यह नियतिनिर्धारित है या इसे किसी पूर्व प्लानिंग द्वारा निपटा जा सकता था या अभी भी संभावित समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है. 

१.४.२०१७ कल रात अजीबोग़रीब सपनों में परेशान हुआ, अब कहॉ मैं मैनेजर और कहॉ ऑटो सेक्टर के उन दिनों में किये कारनामे. पेट में गैस की तकलीफ़ भी, खाने पर कभी कभार अपना नियंत्रण खो देने के कारण. पिछले कुछ समय से देर तक सोने का प्रयास आज बिफल हो गया. पर उसके बाद घटित तकलीफ़ कुछ सोचने पर मजबूर कर दी: मच्छरों के दिमाग़ और पहचान शक्ति सम्बन्धित. हरदम की तरह मैं ड्राइंग रूम में आ कभी खड़ा हो, कभी बैठ पढ़ने लगा. सोचा पेट को कुछ आराम मिलेगा. पर फिर जब कुछ मच्छर काटे तो चाइनीज़ मच्छर मारने के बल्ले का ब्यवहार किया, कुछ पट पट की आवाज़ कर मरे, सोचा था इतने हीं होंगे, निजात मिल जायेगा, ….पर वे कहाँ रूकते बल्कि बार बार हमला करते रह समूह में, मैं इधर उधर घूमता रहा एवं रह रह कर चाइनीज़ बल्ला घूमाता रहा…..कभी लगातार चार पाँच चटकने की आवाज़ आती तो सोचता अब उस दिशा से आनेवाले ख़त्म हो गये….पर यह लड़ाई चलती रही है घंटों और मैं जूझता रहा अनचाहे मेहमानों से जो इतनी सफ़ाई के बावजूद समझ नहीं आता मेरे यहाँ कैसे आ गये हैं इतनी तदाद में? कुछ उनसे लड़ने और कुछ उनके हमले की प्रतीक्षा में रात कटी. पर क्या मच्छरों का दिमाग़ भी इतना बिकशित है कि वे अपने हन्ता को पहचान लेते हैं जगह बदलने पर भी, एक दल के बिनाश के बाद दूसरा दल हमला करता रहता है जबतक सब न मर जायें….. यह नोयडा की गन्दगी के चलते है या आम्रपाली की लापरवाही के कारण, शायद दोनों इसके ज़िम्मेदार हैं…..मच्छरों की बुद्धि बढती जा रही है, पर हमारे ब्यवसायी झूठमुठ में मच्छर मारने के बिभिन्न वस्तुओं से ग्राहकों को फुसला पैसा कमाने में ब्यस्त हैं…..और सरकारी तंत्र समुचित सफ़ाई रखने में हर छोटे बड़े शहरों में बेख़ौफ़, बेअसर हैं…कभी गाँव की याद आती है, फिर पुराने दिनों के सासाराम की, और अब नोयडा …..आज सब सुबिधा होने के बावजूद कभी कभी आदमी इतना असहाय हो जाता है….

१०

२९.३.२०१७ केवल बूचडखाने हीं नहीं, कितने कारोबार बिना लाइसेंस के, और उसमें निहित ब्यवस्था के, या बिना फ़ी दिये और उनके नियमों के मानते हुये चलते हैं. हर ब्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वे क़ानून का पालन करे और अपनी असल तकलीफ़ों को सरकारी अफ़सरों के सामने रखे. यही नियम सी ए, वक़ील एवं डाक्टरों के लिये भी हो, वे अपनी फ़ीस और सर्टिफ़िकेट अपने आफ़िस में प्रदर्शित करें….बहुत बिना डिग्री के इन पेशों में हैं …बैंकिंग, कार्ड, या डिजिटली अपना फ़ीस लें….अपने उत्तरदायित्व को माने…ग़लत सर्टिफ़िकेट या ग़लत तरीक़ा न बताये अपने क्लायंटों को….दवाइयों का दाम पूरे देश में हर दूकान पर कम और एक हो, आज उन पर ० से ३०-४० प्रतिशत डिसकाउंट भिन्न तरीक़ों से दिये जाते हैं. मज़े की यह है कि जो समर्थ हैं उन्हें ही सबसे ज्यादा डिसकाउंट मिलता है. जिस देश में लोग और मीडिया सड़क के कुत्ते को मार देने पर बवाल कर देते हैं वहाँ गाय, भैंस, बकरी आदि के बिना इजाज़त और नियमों का पालन किये कटना तो बवाल का कारण हो ही सकता है और हर सरकार का कर्त्तव्य था और है कि यह नहीं होता या हो. सरकार राष्ट्रहित निर्यात के लिये नियम बना ही सकती है. इसी तरह शराबबन्दी न कर एक नियमबद्ध तरीके से उस पर रोक लगाना बेहतर होता. और बन्द करनेवाले पूरी पीढ़ियों को बरबाद करनेवाले एअरेटेड कोकाकोला, पेप्सी आदि पर पहले रोक लगना चाहिये. चीनी, आलू, चावल पर खपत कम करने की दिशा में बढ़ने के लिये नियंत्रण होना चाहिये या उन्हें नुकशान रहित बनाने की दिशा में प्रयत्न होना चाहिये. जो भी हो वह कुछ दिनों के लिये न हो, वह पार्टी का मैनिफेस्टों न हो, हर सरकार द्वारा ख़्याल रखा जाये और हर नागरिक के आदत का हिस्सा हो . …..उम्मीद है उतर प्रदेश बेहतर हो जायेगा और हम इस की सरकार के गुण गायें.?.

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२६.३.२०१७ इस बसन्त में पहली बार आज सबेरे कोयल की कूक सुन उठ गया हूँ…..याद आती है….२३ मार्च को ही अलोक ने एक शुभ समाचार दिया था. मैने एक टेलिफ़ोन नम्बर माँगा था, हरदम की तरह अलोक शायद भूल गये हैं….समाचार था…..,अलोक की शादी में देखी वह छोटी ज्योति माँ बन गई..हरदम बडी प्यारी लगती रही है …….मेरा ओहदा कुछ और बढ़ गया …मेरे कानों में कोई धीरे से ‘नानू ‘कह भाग गया . और ख़ुशी से सराबोर.मैं और ..मेरे सपने ज़िन्दाबाद…..ज़िन्दगी में सुखी रहने के लिये ऐसे सभी सपने हीं तो साथ देते हैं….टनों आशीर्वाद तो हम देते ही रहेंगे….बच्चे और जच्चे के लिये….सब अपने से उम्र में छोटों के लिये वे चाहे हमें भूलते रहें….हम भूल जायेंगे तो सच के बुढ्ढे कहे जायेंगे..,,

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२७.३.२०१७ मेरा आग्रह है अगर भूमिहार बराहम्ण का कार्य कर रहा हो जैसे अध्यापक, प्लानर, डिज़ाइनर अपने को उस बिधा में श्रेष्ठ बनाये, अगर क्षत्रिय का काम कर रहा हो जैसे सैनिक या मैनेजर तो वहाँ श्रेष्ठ बने, अगर बैश्य के काम ब्यवसाय में लगा है तो अच्छे वैश्य की भाँति उसे करे. अगर सेवा के छोटे या बड़े काम में लगा है तो वही अच्छी तरह कर हरदम आगे रहे. 

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