१
19.3.2017 कैसे ख़त्म होंगी हिन्दूओं में जाति प्रथा ? कैसे समझ पायेंगे साधारण रूढ़िवादी गाँव शहर के लोग जिन्हें जातियों एवं छूआछूत के भ्रम में रख न शिक्षित होने दिया गया, न सम्मानित , न समृद्ध कुछ धर्म के ठेकेदारों द्वारा. मौर्य और राजभर दुनिया के सबसे सम्मानित सम्राट और विदेशियों को मात देनेवाले राजा तो बन गये पर समय के अन्तराल के कारण उनके बंशजों को कुछ अर्द्ध ज्ञानी और स्वार्थ साधने वाले ठेकेदार नायकों ने समाज की दृष्टि में धीरे धीरे निम्न और अस्पृश्य बना दिया. भारतीय महर्षियों की सार्वभौम अलौकिक वर्ण के सिद्धान्त को न समझ चार तरह के कर्म के बदले एक ख़ास कारण से पिता के त्तत्कालीन जीविका अर्जन के काम के आधार जाति का नाम दे दिया, सामूहिक वर्चस्वता के कारण छोटी जाति का अस्पृश्य कह दिया. ये वही लोग है जो दूसरे जाति के घर अनुष्ठान कराने जा पूड़ी सब्जी, मिष्ठान तो दबा कर खाते है पर चावल नहीं खाते. धर्म सम्बन्धी अनर्गल बातें समझा लोगों को पिछड़ा बनाये रखने में मदद करते हैं. आज शिक्षा सबको बराहम्ण और वर्णों को बनाने में मदद कर रही हैं. किसी जाति में जन्मा ब्यक्ति अध्यापक बनते ही बराहम्ण है, सेना में नौकरी मिलते ही राजपूत, ब्यवसाय में लग धनार्जन करते ही वैश्य है. यह सार्वभौम सिद्धान्त है और तार्किक है. प्रत्येक संस्था इसी तरह के चार वर्ण चलाते है. हर ब्यक्ति ख़ुद भी समय समय पर इन चारों वर्णो का काम करता रहता है. जाति प्रथा का समय ख़त्म हो चुका है. केवल लोगों को समझना है. जाति प्रथा के कारण हिन्दू समाज अपनी synergy का पूरा फ़ायदा नहीं ले पा रहा है, और दुनिया के नज़रों में पिछड़ा हुआ है. पिछले दिनों आयोजित प्रांतों के सांसदीय चुनाव के नतीजे शायद एक मद्धिम सा संकेत देते हैं कि जातियों की दलबन्दी कम हो रही है, यहांतक की अल्पसंख्यक भी शायद पुराना कट्टरपन छोड़ते नज़र आ रहें हैं, शिक्षा चाहिये, नौकरी चाहिये, कारख़ाने बढ़े, इलाज चाहिये, सम्पन्नता चाहिये…देश के नेतृत्व को पुराना रास्ता छोड़ना होगा, जाति, धर्म के बल पर चुने लोग देश को दुनिया के अग्रिम पंक्ति में नहीं ला सकते….किसी को इस विषय में तार्किक मत दे हमें ग़लत बताने का अधिकार है…..
२
18.3.2017: कल से ही यहाँ आरोग्यम् के लॉन में किसी समारोह की तैयारी हो रही है. पता चला रुड़की के बीजेपी के सद्यसमाप्त चुनाव में जीते MLA श्री प्रदीप बत्रा के सम्मान में आज शाम पार्टी है. तैयारियाँ किसी धनी परिबार की शादी जैसी हो रही थी, लॉन में निमंत्रित लोगों के बैठने के लिये कुर्सियाँ , टेबल, एक तरफ़ मनोरंजन का स्टेज, कोने में खाना बनाने की ब्यवस्था, चारों तरफ़ किनारे पर खाने की टेबलें, पूरे लॉन में लाइटों की लड़ियाँ, होटल ब्लॉक के भीतर पीने पिलाने की ब्यवस्था. फिर किसी ने कहा ‘बत्राजी वे क्या घूम रहें हैं मिल लिजीये. मैं क्यों चूकता, सहर्ष मिले, अभी जवान हैं, निमंत्रित किये पार्टी में आने के लिये, मैंने यमुना की तकलीफ़ बता माफ़ी माँग ली, कहे हम फिर मिलेंगे. अच्छा लगा. मैं कहा कि ‘आप हरिद्वार और रुड़की जो विश्व में प्रसिद्ध हैं बदल डालो, हम सभी का आशीर्वाद है , आप और आगे जाओ, मंत्री , मुख्य मंत्री बनो’. ‘देखिये बदलाव तो आयेगा ही, ज़रूर आयेगा’. ऐसे युवक चाहें तो बदल सकते हैं इस धर्म स्थल हरिद्वार और कैन्टोन्मेन्ट और सौ साल से भी पुराने इंजीनियरिंग कालेज के लिये मशहूर रुड़की की तस्वीर, जो अब आई. आई. टी. हो गया है. दोनों ही शहरों में बहूत गन्दगी है और किसी तरह से आधुनिक नहीं कहे जा सकते, जबकि दोनों जगहों में विश्व के हर कोने से यात्री आते हैं और उनकी संख्या बढ़ने से यहाँ की आर्थिक उन्नति होगी. एक विश्व स्तर का कान्फरे हॉल भी रुड़की में ज़रूरी है और अच्छे स्तर के होटलों की कमी है. रुड़की IIT में एक सम्पन्न इंक्युबेटर्ज़ से नये उद्योगों की संभावना भी बढ़ेगी . कृषि पर आधारित उद्योग तो बडी मात्रा में लग सकते है हैं, साथ ही BHEL की एक बडी फ़ैक्टरी के कारण यहाँ छोटे छोटे इंजीनियरिंग उद्योग भी आ सकते हैं. कल दोपहर मनीष ढल मुझे न्यौता दिया था आठ बजे पार्टी में आने का, पर यमुना तो इतनी दूर भी नहीं चल सकती . अत: माफ़ी माँग ली. रात आवाज़ आती रही पार्टी के शोरगुल की. जबआज सबेरे घूमते समय किसी ने बताया. काफ़ी धनी ब्यक्ति हैं, रुड़की में होटल, रेस्टूरान्ट, मॉल हैं . पहले कांग्रेस के विधायक रहे पाँच साल , इस साल बीजेपी की टिकट ली और फिर जीत गये हैं. कल करीब लाखों ख़र्च किये दस हज़ार लोगों को बुलाया था. हमारे ही ब्लाक में आरोग्यम् में उनका एपारटमेंट है. सोचा ये तो बंगले एवंआलीशान कोठियों वाले हैं, यहाँ क्यों?)
३
कल रात यहाँ स्थान और परिवर्तित परिस्थितियों को ध्यान में रख एक छोटी होलिका दहन हुआ, पर जब मैं गया था तो कोई दिखा ही नहीं था. मुझे इस दिन की याद १९७० के लगभग के एक साल के एक रात की याद दिला गई. मैं हिन्दमोटर की कॉनभॉय की गाड़ी से रात करीब ११बजे लड्डूई स्कूल पर पहुँचा था और फिर एक मील चल अपने गाँव पिपरा. मैं अकेले ही गया था. परिवार के सदस्य होली जलाने के समारोह में जाने के लिये तैयार थे, सभी ख़ुश हो गये और आश्चर्यचकित भी. चाचीजी बहुत ख़ुश हुईं और खिलाने की ब्यवस्था कीं. उन दिनों गाँवों में ११ बजे चारों तरफ़ घोर अंधेरा होता था, और होली की पूर्णमासी का चन्द्रमा अपनी सुन्दरता की पराकाष्ठा पर रहते हुये आसमान से रोशनी और अमृत दोनों बरसाता था. होली गाँव के पूरब में देऊ बाबा के खेत में जलती थी, कुछ लगी फ़सल नुकशान होती थी, पर उनके समर्थ रहते तक परम्परा चलती रही, और मेरे देखते देखते वे सभी परम्परायें मरती गईं , पूरा माहौल बिद्वेष और छुटपन का बनता गया…..दूसरी बार देखा ….अब लोग होली अलग अलग मनाने लगे….गानेवालों की टोली जो गाँव की गलियों में कबिरा गाती फेरा लेती थीं, अब नहीं होता …..या हम भद्र हो गये होली हुड़दंगी को भी सहन नहीं कर सकते….पर फिर होलिका की कहानी की याद आती है….होलिका हिरण्यकश्यपु की बेटी थी, भक्त प्रह्लाद उसका भाई……., पिता बेटे की विष्णु की अप्रतिम भक्ति का बिरोधी और अपने को उनसे ज्यादा महान समझता था और बेटे को मारना चाहता था किसी तरह , क्योंकि जिसका बेटा ही पिता को किसी ब्यक्ति विशेष से बडा न माने तो दूसरे लोग कैसे मानते. अचानक पिता को याद आया की पुत्री होलिका को एक दिब्य वस्त्र पाप्त है जिसके ओढ़े रहने से आग भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती थी. फिर पिता का आदेश हुआ होलिका को भाई को गोदी में ले ओढ़नी अपने पर डाल चिता पर बैठने की . होलिका विवश थी पिता के आदेश के आगे कुछ न कर सकती थी, चिता में आग लगा दी गई. प्रिय भाई जलने को हुआ, कहानी है दिव्य ओढ़नी अपने उड़ प्रह्लाद ढक ली पर सत्य इससे परे था…..बहन का दिल पिघल गया था पहले ही, चिता की प्रारंभिक धुंआ की आड़ में बहन ने दिव्य चुनरी से भाई को ढक दिया था . भाई बेदाग़ बच गया, बहन भाई के लिये चिता की अग्नि में ख़त्म हो गई…..भक्त प्रह्लाद कितने लोक प्रिय हुये मालूम नहीं , होलिका अपना ही दहन दे भाई के लिये अमर हो गई. हर साल बसन्त में फाल्गुन की पूर्णिमा को बार बार जलती रही निमित्त स्वरूप ही सही……….काश! भाई समझ पाते होलिका की भातृ प्रेम को…..सक्षम बहनें समझ पातीं अपने दायित्व को……
४
11.3.2017आज का आता हुआ चुनाव परिणाम मुझे एक ख़ास ख़ुशी दे रह है. मेरा डर पंजाब को लेकर था उसके सीमान्त प्रान्त होने के कारण और मीडिया का बार बार अरविन्द केजरीवाल को जीतने का समाचार देते रहने के कारण. अरविन्द का कनाडा के खलिस्तानियों से साँठगाँठ और उनसे पैसा लेना और प्रचार कराना मुझे बहुत डरा रहा था. अरविन्द को किसी तरह विश्वास नहीं किया जा है. वह अपनी महत्वाकांक्षा के लिये किसी से , केवल अन्ना हज़ारे हीं नहीं देश से भी ग़द्दारी कर सकता है. बिना मतलब के मोदी से झगड़ा मोल ले दिल्ली का कितना नुकशान किया है, अन्यथा दिल्ली का चेहरा कुछ विश्वीय स्तर का होता…..गोवा में भी वैसा ही था……पंजाब में कांग्रेस पारिवारिक अकाली दल से अच्छी है…..
५
१०.३.२०१७: नोयडा क्या बदलेगा? सरकार वही रहेगी या पूरी तरह से नई हो जायेगी कल पता चल जायेगा. क्या अन्तर आयेगा अगर किसी तरह बी जे पी की सरकार आ गई, क्योंकि ऐसा नहीं होने की हालत में सबकुछ जैसा अब है चलता रहेगा. प्रान्तीय सरकार केन्द्र को सब कुछ के लिये ज़िम्मेवार ठहरा पल्ला झाड़ती रहेगी….सरकारी तंत्रों का पैसा कमाना चलता रहेगा, न नोयडा स्वच्छ होगा न तंत्र. पर क्या नये बदलाव के बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा. नोयडा ऑथरिटी, रजिस्ट्रार आफ़िस, बेईमान बिल्डर्स या पुलिसवाले ईमानदार हो जायेंगे, काम मुस्तैदी से होने लगेगा. स्वच्छ भारत, सुगम्य भारत, सबके लिये मकान, स्टैंडअप इंडिया, दक्ष भारत के सठीक क्रियान्वयन से लोग ख़ुश हो जायेंगे. अधिकांश कहते हैं कुछ नहीं बदलेगा….शायद यही ठीक है…आफिसर वही रह जातें हैं और उनके काम करने का तरीक़ा भी. जबतक कोई चीफ़ मिनिस्टर या मिनिस्टर बहुत ही अच्छा नेता और योग्य मैन मैनेजर न हो किसी पॉलिसी या प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन समयानुसार नहीं होता. क्या अच्छा होता सभी पत्यासियों को सभी आई आती एम मिल एक इंटेनसिव प्रशिक्षण देते चुनाव में जाने के पहले और उसके स्कोर के अनुसार टकट मिलता. पर दो छोटे छोटे प्रोजेक्ट हमारे यहाँ अभी अभी चल रहे है निर्वाचन के चलते रहने वावजूद और ख़ुशी मिलती है. काम प्रारम्भ होने में देरी लगती है, धीरे होता है पर फिर भी….मेघदूतम् पार्क में तीन स्टील के ढाँचे बन रहे हैं उन पर बल्लरियों को चढ़ाने के लिये -ये तीनों बजरीवाले घूमनेवाले रास्ते पर बन रहे हैं…..एफ ब्लाक के खुले बडे नाले की दीवाल हटा उसे ऊपर से ढका जा रहा है…..दिवाल टूट चुकी है…इंटें जमा की जा रहीं है….ठीकेदार फ़ायदे में रहेगा….,क्या यह आने वाले समाचार संकेत बदलने का? चलिये कल का और आने महीनों का इंतज़ार करें…..
६
९.३.२०१७: अखिलेश यादव अनर्थक आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे और उसे बलियाँ तक ले जाने का दावा अपने प्रोजेक्ट के तहत करते हैं, यह तो मायावती के राज्य में हो चुका था. मायावती से मैं उसके जातिय और साम्प्रदायिक गणित पर ज़ोर देने के कारण विरोध करता हूँ. मैं आशा करता हूँ कि मायावती उनकी बुद्धिमत्ता के लोग जैसे अम्बेडकर और अन्य अपने को ब्राह्मण समझें अपने ज्ञान के बल पर या आज जो पेशा करते हैं उसके अनुरूप जाति का दर्जा लें. अपने को जन्म के आधार पर उच्च वर्ग के लोग भी वै सा नहीं समझ सकते. अखिलेश का मुलायम के साथ किया वर्ताव ही काफ़ी होना चाहिये था उस पार्टी के हारने का, अगर भोटर समझदार होते…..यह मेरा बिचार है और इस पर मैं अटल हूँ क्योंकि जातियां और छुवाछूत बाद के अत्यन्त निम्न कोटि के ब्राह्मण के स्वार्थी दिमाग़ की ऊपज थी…वर्ण सिद्धांत यह नहीं कहता….
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1.3.2017:आजकल मैं बहुत दुखी हूँ …टी वी पर दिखाये जाते उन विज्ञार्थियों पर जो ‘कश्मीर आज़ादी चाहे, बस्तर आज़ादी चाहे’. न ये न इनके बाप दादे किसी ने आज़ादी के लिये कोई तकलीफ़ नहीं उठाये…और आज ये मुफ़्त और बेईमानी के पैसे से पढ़ाई के ना म पर मज़े कर रहे हैं…..आज इस ७७+ की उम्र में भी अगर कोई उनमें मेरे सामने आ यह कहें तो मैं इनको मृत्यु के हवाले करने की कोशिश करूँगा. सफल होऊँ या नहीं, नहीं होने पर दुख होगा…कैसे हैं इनके माँ बाप । मुझे मेरादेश चाहिये ..अनर्गल बातों को कहने का अधिकार नहीं ….इन्हें भारत से कोई प्रेम नहीं, भारत से कोई श्रद्धा नहीं…इनका रहना न रहना कोई मायने नहीं रखता….इनकी पढ़ाई कोईमायने नहीं रखती, इनसे करोड़ों अशिक्षित अच्छे हैं…इन्हें बताया ही नहीं गया जननी जन्मभूमिश्च स्वरगादपि गरीयसी….कैसे जाने यह अंग्रेज़ी में नहीं लिखा है…..)
८
२८.२.२०१७: क्या शिक्षा क्षेत्र को राजनीतिज्ञ और मीडिया बख्स नहीं सकते? प्रतिदिन घटता गुणवत्ता स्तर, शिक्षकों की अपने पवित्र कार्य के प्रति उदासीनता, अभिभावकों का रोजीरोटी की ब्यस्तता के कारण बच्चों की पढ़ाई को ट्यूटरों पर छोड़ देना, सरकार का शिक्षा की अवनति के मूल कारणों की सुधार के प्रति दृढपरतिज्ञता का सम्पूर्ण अभाव, सब वर्गों की यनियन और सब अच्छी बुरी घटनाओं एवं निर्णयों पर आक्रामक बिरोध, शिक्षा और उसके मूल्यों को ख़त्म करती जा रही है. हम अगर नहीं चेतें तो क्या होगा अगले दस साल में पता नहीं.
९
२६.२.२०१७: बहुत शीघ्र किसानों को, विशेषकर कम ज़मीन के किसानों को खेती में आमूलचूल बदलाव लाना होगा. धान और गेहूँ मुख्य फ़सल नहीं रह सकेंगी और अपना एकाधिकार खो देंगी, न तो उत्पादन उतना बढ़ पायेगा , न सरकारी बाज़ार मूल्य, जिस कारण वह लाभदायक बनी हुई हैं. पहले दलहन, तेलहन को उचित महत्व दे उसकी खेती बढ़ानी होगी. कम ज़मीन के कारण भी सब्जी, फल, पशु, मछली, व्यवसायिक पेड़ किसानी मुख्य उत्पादन होंगे. सिंचाई में भी कम से कम जल के ब्यवहार के लिये धार में पानी न डाल बुन्दों में पानी की बौछार करनी होगी जो जड़ से उचित दूरी पर ही पड़े.हम अगर जातिय आधार पर खेतों से जुड़े हैं और किसी कारणबस पूरी तरह से शिक्षित नहीं हो पाये हैं, गाँव में रहने का निश्चय किया है तो बैज्ञानिक एवं ब्यवसायिक ढंग की खेती अपना ही समृद्ध और सुखी बनने के सपने को पूरा करना होगा और आज यह सम्भव है , अगर हम इस पर जीताने लगा जुट जायें…….गाँव के युवक मिल गाँव को सुन्दर बनायें, हर गाँव में एक साप्ताहिक बाज़ार की शुरूआत करें…..लाइब्रेरी बनाये…खेल, स्पोर्ट्स का आयोजन या प्रतियोगिता करें…. १०
२६.२.२०१७: परसों अशोक आये पर दाँत निकाले जाने के बाद की डाक्टरी की हिदायत के कारण खुल के अपने नहीं बोल सका. कुछ बातें दुख देतीं हैं और कुछ थोड़ी खुशी भी. चकरक्का में जहाँ अभी बावन गाँवोवाला आयोजित रामचरितमानस मानस यज्ञ हुआ था का पानी से भरा रहना दुख दिया. यह गाँव का शान था, यहीं सबकी खलिहानों होती थी, बेटियों के के शादियों के तम्बू लगते थे जिनकी बहूत मिट्ठी यादें आज भी है और बरसात में टिक्का भी खेला जाता था, फिर बदलते समय से लडके फ़ुटबॉल और शायद क्रिकेट खेलने लगे.
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२३.२.२०१७: पुच्चु बताते हैं आपके सभी लड़के, पोते, पोतियाँ अमरीकी नागरिक बने. आख़िरी राजेश सेफाली को कल मिल गई अमरीका नागरिकता. पुच्चु ख़ुश दिखे, जिन्हें मिला वे भी ख़ुश होंगे, पर पता नहीं हमें ख़ुशी हुई कि नहीं .दूसरों के मुख से सुनते या कभी कभी अपने भी बताते अच्छा लगता है कि मेरे ती नों बेटे सपरिवार अमरीका में रहते हैं…….पर मन में कहीं न कहीं कसक भरी कमी महशूश होती है आख़िरी क्षण का हम दोनों के …..वह भी अपना ही दायित्व होगा या जो पास मिल जायेगा और दया खा सहायता कर पायेगा उसका सहारा लेना पड़ेगा…., हमें इसका दुख नहीं होना चाहिये ज के परिप्रेक्ष्य में, यह बात समझ तो आती है…….पर फिर दिल है कि मानता नहीं ….बार बार कुछ अकेले होने पर कुछ ज़िन्दगी में हारने की कसक उठती है जिसका मुझे को अफशोश नहीं……
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मोदी को मैं पसन्द करने लगा हूँ क्योंकि उनके और अपने काम करने के तरीक़ों मैं सामंजस्य पाता हूँ. अपने कार्यकाल में चाहे मुझे जो भी काम मिला असीम परिश्रम से, अपनी तरह से, नये असाधारण तरीके से किया. प्रति दिन सोलह अठारह घंटे तक भी काम किया. हर मशीन के काम में बदलाव कर सहज, सरल और द्रुत काम हो वैसी ब्यवस्था की. अलग अलग पूरी तरह से भिन्न तकनीकी आधार और ज़रूरी ज्ञान के बिभागों के हेड की तरह अध्ययन और अवलोकन कर कुछ अत्यन्त महतपूरण योगदान दिया और जब अपनी इनिंग पूरी की बिना किसी लाग लाट के चुपचाप बेदाग़ निकल गया. कुछ प्रशंसक भी बने पर अधिकांश को नहीं मन भाया. पर भले ही चाहे डर सभी का प्रशंसा पात्र भी रहा….और फिर यह बनवास को अपना लिया….. सालों के परिचित लोगों से दूर चला आया…. मोदी जिस दिन
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पिपरा के बच्चों के फ़ोटो देखकर: कैसे पहचानूँ आप सबको? कल अशोक आये और बताये कि अब तो बच्चों के बाबा का नाम पूछना पड़ता है जानने के लिये कि वे किस परिवार के हैं. अमलाजी को बचपन में देखा था नंगे नंगे सूरज बाबा घूमाते थे हमारे दरवाज़े पर..त्रिलोकी जी को नगीना राय कंधे पर डाल घूमाया करते थे. समय कितना आगे चला आया…कल अशोक यज्ञ में आने को कह गये , आज ही सबेरे एक पैर में जूता और दूसरा ऐसे ही दौड़ना पड़ा यमुना को करैम्प हो गया था पानी के लिये आवाज़ दे रहीं थीं, मैं आख़िरी छोर पर के कमरे में कपड़ा बदल रहा था घूमने जाने के लिये….
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कितने गाँव से निकली गाँव की लड़कियाँ आज गाँव के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं. सभी आज की सुख सुबिधा का उपभोग कर भूल जातीं हैं अपना बचपन, पिता की मिहनत जो उन्हे बडा बनाई और के उनकी सफलता के पीछे थी. मधुलिका स्वागत है. कितना अच्छा होता हर गाँव का एक बेटा और बेटी अपने गाँव को बदलने में मदद करते…सब कुछ आसान हो जाता. हर बात के लिये सरकार का आसरा नहीं रहता…. हर गाँव एक वरक्सॉप, लोग बनाते, बेंचते, पैसा कमाते, समृद्ध होते……)
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हम अब भी भोजपुरी बोलते हैं …पर तीसरी पीढ़ी का कोई बोल पायेगा या नहीं शंका है।
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शिवसेना मुम्बई की: मेरे ब्यक्तिगत बिचार के अनुसार शिवसेना हप्ता वसूल करनवालों की पार्टी है. उनकी संस्था इसी तरह अपने सदस्यों की रोज़ी रोटी का जुगाड़ करती है. उसी हप्ते का बडा हिस्सा पारिवारिक पार्टी शिवसेना के फ़ंड में भी जाता है जो उन्हें उच्चतम जीवन शैली बनाये रखने में मदद करता है. अपने १९९०-९७ की मुम्बई यात्राओं में मैं बराबर यू.पी. , बिहार के टैक्सी चालकों से बातें कर मैं इस नतीजे पर आया हूँ . तमिल, यूपीयन, बिहारी सभी बाहरीवाले ब्यवसायीयों या काम करनेवाले को देना पड़ता है. धर्म, क्षेत्र, जाति की राजनीति जिसमें देश भारत गौड़ हो जाये कैसे हमें आगे जा सकता है इस सैकड़ों राष्ट्रों के विश्वीय दौड़ में. क्या इस बार मुम्बई का म्यूनिसिपल चुनाव जीत बीजेपी शिवसेना के अत्याचारों को बन्द करा सकेगी? काश! ऐसा होता…..)
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२१.२ अपनी संतान के कृतित्व का कुछ सेहरा अपने सर बाँधने में मां-बाप भी कुछ न कुछ हिस्सा तो लेना ही चाहते हैं, जो स्वभाविक है. कुछ बढाचढा कर बोलते बताते ही हैं. कुछ चुप रह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं.
कल शाम पुच्चु (आन्नद)से बात बात करते हुये जब पूछा राजेश के बारे में कि अभी कल ही उसने मैराथन पूरा दौड़ा ह, उससे बात हुई थी. फिर मैं ही बात कर लिया. आस्टिन में वहाँ के हिसाब से कुछ ज्यादा ताम्रानुशासन और उमस के बावजूद राजेश २६.२ मील का माराथन करीब ६.२५ घंटे में पूरा किया जो उसका सर्वोत्तम नहीं है जो वह करना चाहता था. अभी तक तीन पूरा मैराथन कर चुका है राजेश. मुझे ख़ुशी इसके चलते परिवार से मिली कमज़ोरियों वह बिजय पायेगा..वैसे भी हर हफ़्ते वह हाफ मैराथन तो दौड़ ही लेता है…मुझे याद है वह एक मात्र सेवराफूलि से काँवर ले तारकेश्वर गया था स्कूल के दिनों ….मैंने भी यमुना की मनाती पर दो बार वह यात्रा की थी. ख़ाली पैर चलने की महत्ता के कारण वह बहुत कष्टकारी हो जाती थी… दूरी ३७ किलोमीटर यानी २३ मील थी.
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13.2.2017: सहिजन या सहजन के पेड़ों से आप सब परिचित होगे. एक प्लांट पर खेती करो, ख़ास पानी भी नहीं चाहिये. एक स्वास्थ्य उपयोगी चीज़ बहुतायत में पैदा करो, बेंचों , पैसे कमाओ. आज की किसानी ऐसी चीज़ों की खेती से होगी, धान , गेहूँ से नहीं…….सभी प्रगतिशील किसान इस बात को समझ कर फल, सब्जी, पशुपालन से ज्यादा कमा रहे हैं. विशेषकर छोटे काश्तकारों को खेती से इससे बेहतर अच्छे जीवन यापन का बेहतर रास्ता नहीं हो सकता…..हाँ, विस्तृत जानकारी हासिल करना होगी……http://www.thehindubusinessline.com/specials/india-interior/drumsticks-beat-back-poverty-in-arid-zones/article9535043.ece?homepage=true
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११.२.२०१७ दो कोशिशों में श्री अरोरा, मेरे सबसे नज़दीकी दोस्त की सहायता से आख़िरकार आज मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक का कर्त्तव्य निभा पाया. मेरे निर्वाचन कार्ड में मेरा नाम हिन्दी में ‘इन्द्र’ की जगह ‘इन्दु’ लिखा मिला था २०१३ में. मैं उनकी आफ़िस में जा सभी कार्रवाई कर आया था, उन्होंने कार्ड को घर भेजने के लिये पैसे भी माँगे थे और मैंने दिये थे. पर आदत के अनुसार सोचा हो ही जायेगा, कोई रिकार्ड भी नहीं रखा. कार्ड नहीं आया. २०१४ के लोक सभा चुनाव में भी आज की तरह बुथ पर जा अपना नाम खोज भोट दिया था. इसबार डी. एम. के पास ई-मेल किया, उनका आश्वासन तो मिला पर कार्ड नहीं मिले. सबेरे ११ बजे जा कोशिश कर नाकाम हो वापस आ गया था, पर अरोराजी ज़ोर दे बुला लिये और उनके साथ जा नाम खोज लिया वहाँ के अधिकारियों की सहायता से, भोट भी डाल दिया, ख़ुशी मिली. पर मुझे २०१९ के लिये आम्रपाली इडेन पार्क के पत्ते का कार्ड तो बनवाना ही होगा….
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आज यू. पी. में पहले चरण का भोट हो रहा है. मेरे ख़्याल से बिहार के बाद यह दूसरा मौक़ा है देश के सबसे पिछड़े और सर्वाधिक जनसंख्या वाले हिन्दी क्षेत्र के लोगों के लिये जाति धर्म से ऊपर उठ मोदी सरकार को एक दस साल का सरकार चलाने के लिये मौक़ा देने का इंगित देने का और पिछले सत्तर सालों चलती हुई सरकारों की ग़लतियों को सुधारने का. यूपी की जीत के बिना राज्य सभा में न इनका बहुमत होगा , न सुधारों की प्रक्रिया को तेज़ गति मिलेगी. परीक्षा भारतीय जनता पार्टी की नहीं है परीक्षा यूपी के लोगों की है. एक उन्नत समृद्ध इमानदार भारत या बेईमान भारत. इस बात में ….कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि मोदी ने ईमानदारी से पिछले ढाई सालों से देश को विश्व में सम्मान दिलाने का अथक प्रयास किया है. देश की जनता अपने पैरों में अपनी इच्छा से कुल्हाड़ी मारना चाहे तो मोदी क्या करे?
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