सनातन धर्म की वैज्ञानिक वर्ण-व्यवस्था

उपनिषदों में असुरों की बात आई है। गीता के अध्याय 16 में  देव एवं असुर दो भाग किया गया मनुष्यों का ही- ‘द्वौभूत सर्गो लोकेऽस्मिन्दैव असुर एव च’-  (16.6)। उपनिषदों के कहानियों में कुछ व्यक्ति व्यक्तियों के जाति के नाम आये हैं। भगवद्गीता में चांडाल के लिये ‘श्वपाक’ शब्द का व्यवहार हुआ है (5.18) यहाँ तक कि कृष्ण के लिये भी ‘यादव’ शब्द का उपयोग किया गया है।(11.41) महाभारत में रथचलानेवालों के लिये ‘सूत’ (कर्ण को सूतपुत्र), मतंग मुनि को जन्म से ‘चांडाल’ कहा गया है-

स्थाने मतंगो ब्राह्मण्यं नालभद भरतर्षभ। चणडालोयोनौ जातो हि कथं ब्राह्मण्यमाप्नुयात्॥

– युधिष्ठिर ने कहा, हे भीष्मपितामह, कृपया मुझे बताएं कि मतंग महर्षि जो चांडाल के रूप में पैदा हुए थे, अपने जीवन में ही ब्राह्मण कैसे हुए?’ महाभारत अनुशासनपर्व

न शूद्रा भगवद्भक्ता विप्रा भागवता: स्मृता:। सर्ववर्णेषु ते शूद्रा ये ह्यभक्ता जनार्दन।

यदि भगवद्भक्त शूद्र है तो वह शूद्र नहीं, परमश्रेष्ठ ब्राह्मण है। वास्तव में सभी सवर्णों में शूद्र वह है, जो भगवान् की भक्ति रहित है।’ (महाभारत)

बाल्मिकीय रामायण के बालकाण्ड में एक कहानी है। राजा राम के गुरू वशिष्ठ ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण थे। पर विश्वामित्र जो क्षत्रिय वर्ण के प्रसिद्ध राजा थे और राम के धनुर्विद्या के गुरू। राम के समय तक अपनी इन्द्रियों को अनवरत बहुत काल तक की तपस्या से वश में कर ब्राह्मण बन चुके थे और यह खुद ब्रह्मा और वशिष्ठ दोनों के द्वारा अनुमोदित किया गया था।        

शायद हमारे धार्मिक ग्रंथों में भगवद्गीता के अध्याय ४ के १३ श्लोक में मनुष्य समुदाय के चार वर्णों को भगवान कृष्ण अपने द्वारा बनाया बताते है।

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः 
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥4.13॥

भगवद्गीता के 18 अध्याय के श्लोक 40 से 45 में ये चारों वर्ण परिभाषित हैं और उसमें उसके निर्णय का आधार ‘स्वभावप्रभैवगुणो’ बताया गया है। फिर बाद के श्लोकों में चारों वर्णों के कर्म बताये गये है। नीचे वे श्लोक हैं-

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप।कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥ 18.41॥

हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किए गए हैं ॥41॥

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्‌ ॥18.42॥

अंतःकरण का निग्रह करना, इंद्रियों का दमन करना, धर्मपालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, वेद, शास्त्र, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद-शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन करना और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना- ये सब-के-सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं ॥42॥

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्‌।दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्‌॥18.43॥

शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना, दान देना और स्वामिभाव- ये सब-के-सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं ॥43॥

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्‌।परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्‌॥18.44॥

खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार (वस्तुओं के खरीदने और बेचने में तौल, नाप और गिनती आदि से कम देना अथवा अधिक लेना एवं वस्तु को बदलकर या एक वस्तु में दूसरी या खराब वस्तु मिलाकर दे देना अथवा अच्छी ले लेना तथा नफा, आढ़त और दलाली ठहराकर उससे अधिक दाम लेना या कम देना तथा झूठ, कपट, चोरी और जबरदस्ती से अथवा अन्य किसी प्रकार से दूसरों के हक को ग्रहण कर लेना इत्यादि दोषों से रहित जो सत्यतापूर्वक पवित्र वस्तुओं का व्यापार है उसका नाम ‘सत्य व्यवहार’ है।) ये वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं तथा सेवा करना शूद्र का भी स्वाभाविक कर्म है ॥44॥

 

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्‌।स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः॥18.46॥

जिस परमेश्वर से संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत्‌ व्याप्त है (जैसे बर्फ जल से व्याप्त है, वैसे ही संपूर्ण संसार सच्चिदानंदघन परमात्मा से व्याप्त है), उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है ॥46॥

ऊँची जाति के लोग के अपने कर्मों को न करने और निचले वर्ण लोग के ऊँचे वर्ण के कर्मों को करने फल क्या होगा?

श्रीमद्भागवत (3.33.7 और 7.9.10) श्लोकों में कहा गया है कि अपने वर्तमान जीवन के कर्म से चांडाल ब्राह्मण बन सकता है और ब्राह्मण चांडाल। श्लोक नीचे दिया जा रहा है-

यस्य यल्लक्षणं प्रोक्तं पुंसो वर्णाभिव्यजकम्। यदन्यात्रापि दृश्येत तत् तेनैव विनिर्दिशेत्॥7.11.35॥ श्रीमद्भागवत

जिस मनुष्य के वर्ण को बतानेवाला जो लक्षण कहा गया है, वह यदि दूसरे वर्णवाले में भी मिलते हैं तो उसे भी उसी वर्ण का समझ लेना चाहिये।

मनुस्मृति में भी इसी तरह का आदेश है-

पाषण्डिनो विकर्मस्थान्बैडालव्रतिकांछठान्।हैतुकान्बकवृत्तींश्च वांमात्रेणणापि नार्चयेत्॥ मनुस्मृति 4.30

-‘पाखण्डी, विरूद्ध कर्म करनेवाले, बैडालव्रती, शठ, हेतुवादी, बकवादी, ब्राह्मणों का वचनमात्र से भी आदर न करें।’

न वार्यपि प्रयच्छेत्तु बैडालव्रतिके द्विजे। न बकव्रतिके विप्रे नावेदविदि धर्मवित् ॥मनुस्मृति 4.192

-‘धर्मज्ञ गृहाश्रमी बैडालव्रती और वेद को नहीं जाननेवाले ब्राहमण के लिये पानी भी न दे।’

भगवत् गीता में ही चांडाल और ब्राहमण को पंडितों एक दृष्टि देखने की शिक्षा गई है (5.18 श्लोक)। स्त्रियों में सबसे नीच समझे जानीवाली वैश्या, वैश्य (पता नहीं ‘वैश्य’ क्यों) और शूद्र को भगवान ब्रह्म कृष्ण अपनी भक्ति का और मोक्ष का समान अधिकार देते है (9.32 श्लोक)

आज की सामाजिक अनुसार एक परिवर्तन

हम सभी, विशेषकर मध्यम वर्ग के लोग अगर गृहस्थ जीवन में सभी वर्णों के गुणों का समन्वय ठीक तरह से अपने नहीं कर सकते हैं तो वे एक अच्छे सुखी व्यक्ति या अच्छे नागरिक नहीं बन सकते। इसे सभी समझते सकते हैं।

हम जिस किसी काम में लगें हमें उस ख़ास विषय का विशेष ज्ञान अर्जन करते रहना होगा, अपने किये व्यवसाय या नौकरी में उन्नति के लिये। अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये अपने भी जब तक हो सके उसके लिये ज़रूरी ज्ञानों को यथासंभव अर्जित करना होगा। साथ अपनी जिवीका चलाने के हम जो काम करने उसमें पदोन्नति हमें अलग स्तर पर ज़रूरी ज्ञानों को भी सीखना होगा ( ऐसा करते समय हम ब्राह्मण होते हैं)। हम अपने जीवन को सम्पन्न बनाने के लिये विना व्यवसाय-बुद्धि (वैश्य गुण) से अर्जित धन को ज़रूरत के अनुसार खर्च या निवेस कर ही वर्तमान और भविष्य की ज़रूरतों के लिये उसे बढ़ा नहीं सकते। बिना क्षत्रियों के गुणों के हम न अपनी नौकरी और न अपनी सम्पति, न अपने परिवार की रक्षा कर सकते। और बिना परिचायात्मक कर्म किये तो हम एक दिन भी नहीं जी सकते। हमें अपने घर के कर्म, साफ़ सफ़ाई करना, अन्य काम करते ही रहना होगा (यहाँ तक की अपने बाथ रूम के कमोड आदि की सफ़ाई भी) सोचिये, यही सब परिचार्यत्मक कर्म (शूद्र) है। सोच कर देखिये कोई भी इससे विचार असहमत नहीं होगा। साथ जो हमारा जीविका का कर्म है, वह अपने जाति के कर्म अनुसार नीचा होने पर भी करना होगा, उदाहरण के लिये डाक्टर, नर्स आदि सभी बड़े छोटे कर्म।

आशा है, वर्ण व्यवस्था के सिद्धान्त आपको पसन्द आये होंगे।

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