क्यों ‘आदि पुरूष’ में जन प्रिय ‘सीता राम’ बने वैदेही राघव बने?
मनोज शुक्ला, जिन्हें मनोज मुंतशिर के नाम से ज्यादा जाना जाता है । एक भारतीय राष्ट्रवादी गीतकार थे। Sony टेलीविजन के Indian Idol गानों की प्रतियोगिता में कुछ ख़ास प्रोग्रामों (जैसे नव रात्रि का राम कथा पर आधारित था) में संचालन भी करते देखा था। उन्हें शब्दों का ताना बाना अच्छा बुनते देखा सुना था, अच्छी बुलन्द आवाज़ के भी धनी हैं। लेखक भी हैं। पर आदि पुरूष के बाद लगा रहा है कि मनोज शुक्ला पैसे कमाने की धुन में कुछ भी लिखने के लिये तैयार लेखक हैं। हिन्दी के फ़िल्म निर्माता ‘आदिपुरुष’ चलचित्र को बनाने में पूरा दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की शैली को अपनाये को अपनाये हैं। इस चलचित्र के नायक और नायिका और अन्य पात्रों के नाम एवं संवाद भी उन्हीं के मस्तिष्क की उपज है। यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है। क्यों असली ब्राह्मण बता हिन्दू धर्म की व्याख्या करनेवाला मनोज शुक्ला कैसे राज़ी हो गया प्रोड्यूसर के दबाव में ? मोदी के भक्त लगते मनोज लगता है तुलसीदास को भी भूल गये और उनके बाल कांड की प्रसिद्ध ‘ राम नाम की महिमा’पर लिखे दोहों और चौपाइयों को भी।
‘सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।’
बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
अर्थ- रघुनाथजी के नाम ‘राम’ की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप से बीज है। वह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है।
आखर मधुर मनोहर दोऊ। बरन बिलोचन जन जिय जोऊ॥
ससुमिरत सुलभ सुखद सब काहू। लोक लाहु परलोक निबाहू॥
अर्थ:-दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं।
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ॥
अर्थ-श्री रघुनाथजी के नाम के दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं, जिनमें से एक (रकार) छत्ररूप (रेफ र्) से और दूसरा (मकार) मुकुटमणि (अनुस्वार) रूप से सब अक्षरों के ऊपर है।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥21॥
- यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ रूपी देहली पर रामनाम रूपी मणि-दीपक को रख।
फिर है- ‘ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।’
फिर सीता कौन हैं?
आदि कवि वाल्मीकि जी कहते हैं-
श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी।
जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान की॥
-हे राम! आप वेद की मर्यादा के रक्षक जगदीश्वर हैं और जानकीजी (आपकी स्वरूप भूता) माया हैं, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर जगत का सृजन, पालन और संहार करती हैं।
राम और सीता का नाम बहुत सोच समझ कर हमारे संतों, आदि कवि, और अन्य ऋषियों ने रखा था। कैसे चलचित्र के निर्माता या पट लेखक उस को बदल सकते हैं? यह मज़ाक़ है कि हमारे सगुन अवतारों के नाम और चरित्र के साथ ऐसी मनमानी की जाये। निराला जी की एक सर्व प्रसिद्ध कविता है ‘ राम की शक्ति- पूजा’। क्यों नहीं कोई उस पर आधारित चलचित्र बनाता- राम एक दम नया रूप और अद्वितीय कहानी सब रस लिये बन सकती है ?
आज नमस्कार में किये जाते ‘राम, राम’ या ‘जय सिया राम’ में व्यवहृत राम यों ही नहीं आया है। और फिर इस देह के अन्त होने पर अन्तिम यात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ बोलते जाना का ख़ास महत्व है। राम ब्रह्म है, अन्तिम सत्य है। क्या निर्माता या मनोज जी ‘राघव’ में वह पाते हैं?
हनुमान, विभीषण आदि युगपुरुष हुए। दोनों को हमारे ग्रंथों ने अमर कहा है और हर युगों में रहनेवालों में स्थान दिया है। हनुमान भक्ति की मिसाल है। फिर मनोज जी कैसे संवाद में उन चरित्रों से गलत सड़क छाप भाषा बुलवा सकते हैं। हिन्दी फ़िल्म जगत आज दक्षिणी भारतीय चलचित्रों की सफलता से प्रभावित हो कुछ भी करना चाहता पैसा कमाने के लिये। मनोज शुक्ला भी उसी के शिकार हो गये हैं। उन्हें अगर शिक्षित हिन्दी भाषी हर हिन्दू से श्रद्धा या इज़्ज़त पाना है तो उन्हें अपनी गलती के लिये माफ़ी माँगता चाहिये सभी मीडिया पर। हिन्दी फ़िल्म जगत दक्षिण भारत की नक़ल कर कभी नहीं अपना खोया स्थान पा सकता है। शरत चन्द्र चटर्जी के उपन्यास ‘देवदास’ पर कितनी फ़िल्में बनीं और हिट हुईं। रामकथा हर रूप में मर्यादा रखते हुए बनाई जा सकती है और हिट भी होंगी। दुर्भाग्य है हिन्दी और इसके आंचलिक भाषाओं के फ़िल्म जगत के लोग यह करने सक्षम नहीं हुए। आज भी अगर मानवीय संवेदना को ध्यान रख समाज के तत्कालीन स्थिति से उबरने के विषय पर अच्छी फ़िल्म बनाई जा सकती है। एक बार कोई दिनकर के ‘रश्मि रथी ‘ के कर्ण की कथा क्यों नहीं लेता। इतनी बडा हिन्दी समुदाय साहित्य, कला, नृत्य, नाट्य आदि आगे बढ़ने की जगह पिछड़ता ही जा रहा है। दुर्भाग्य है पर कोई बताये की हल क्या है।
राम के नाम का महत्व देखिये इस यूट्यूब में- https://youtu.be/zXZvZ-XG2rg