प्रकृति की एक पुकार
मेरे कुछ घंटे से बरसने से,
अस्त व्यस्त हो जाता
तुम्हारा जीवन
तुम मुझको कभी,
कभी सरकार को कोसते हो
पर उसमें तुम्हारी तरह ही हैं
जानते केवल चुनाव शब्द
यही है काम उनका,
कुछ भी कर सकते
हैं उसके तो लिये।
न नालियाँ बनायेंगे,
न उनकी मरम्मत होगी
न कुछ तुम्हें जगायेंगे
जब मेरा चैन हर जाता
मेरा यह रूप होता
तुम न तो कोई रावण हो,
न राम ही बन पाये
बीच में लटकते हुए
असहाय बने रहते हो
तुम सोचो मेरे हित कुछ
मैं मैली होती जाती हूँ
तुमने ज़हरीले गैसों से
भर दिया सारा आसमान
क्या मैं क्रोध हीन बनूँ
देख तुम्हें करते सब,
सब समय नालायक हरकत
तब मुझे इसी तरह बरसना
पड़ता है।
मत करो मुझे तंग अब ज़्यादा
न तो जल प्लावन बन आऊँगा
तुममें नहीं कोई नूह या मनु
जो तुम्हें बचायेगा।
जब हर तुम बन सकते ब्रह्म
क्यों असुर बनते जाते हो
सोचों अपने ऋषियों को
जो सब तुम्हें बतायें हैं।
सब में है एक ब्रह्म
पेड़ पशु जल जीव
छोटे से छोटे में
बड़े की तो बात छोड़ो।
समय रहते चेत जाओ
न बनो मेरा शिकार
बचा लो प्यारी धरती को।
होगा बड़ा वह आत्मघात
कर्म समझो या की पाप।
उठो, जागो, सुनो बात
अब तो बदल जाओ
समय रहते स्वार्थ त्याग।