हमारे पुराने ग्रंथों में कितनी गीता हैं?
क. महाभारत की गीता
गीता आदि नाम ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ तीन शब्दों को मिला कर बना है- श्रीमत् + भगवत् + गीता. हम में अधिकांश को केवल एक लाख श्लोकों से पूर्ण महाभारत के एक ही भगवद्गीता की जानकारी है। महर्षि व्यास की लिखी महाभारत के ‘भीष्म पर्व’ का तीसरा उप-पर्व ‘श्रीमद्भगवद्गीता पर्व’ है। मुझे पता नहीं हमारे वेदान्त के प्रस्थानत्रयी की भगवद्गीता का नाम महर्षि व्यास ने दिया या यह बाद में और किसी ने। श्री बिवेक देवरॉय ने अन्य प्राचीन ग्रंथों में महाभारत का भी अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। वे वैसे अर्थशास्त्री हैं, पर महान विद्वान हैं और वे बराबर हमारे धार्मिक ग्रंथों के विषय पर लेखों से नई जानकारी देते रहते हैं। उनके अनुसार भंडारकर प्राच्य शोध संस्थान, पुणे द्वारा संशोधित महाभारत का ६३वें भाग भागवत् गीता से जुड़ा है। ‘भीष्म पर्व’ के इस उप पर्व को ‘भागवत् गीता’ कहा गया है। इसमें ९९४ श्लोक हैं और २७ अध्याय। पहले नौ अध्याय युद्ध की तैयारियों आदि के बारे में है। इसका दसवां अध्याय प्रचलित गीता के प्रसिद्ध पहले श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:..’से प्रारम्भ होता है। उप-पर्व के पहले के नौ अध्यायों के श्लोक मुख्य ग्रंथ की निरंतरता को बड़ी सरलता से बनाये रख 10वें अध्याय की ओर ले जाते हैं, जो हमारी प्रचलित ‘भगवत गीता’ का पहला अध्याय है। अगर कोई ‘भागवत गीता’ को महाभारत के हिस्से के रूप में पढ़ता है,तो इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि भगवत गीता महाभारत का एक अभिन्न अंग है। वास्तव में, भगवत गीता में ७०० श्लोक और १८ अध्याय हैं, लेकिन भगवत गीता के नाम पर महाभारत के उप-पर्व में श्लोकों की संख्या प्रचलित भगवत गीता, से अधिक है। https://openthemagazine.com/columns/a-dirge-for-desire/
इसके बाद से मैं देवरॉय के ‘Open’ नामक साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित होते लेखों को बराबर पढ़ता रहा हूँ और उनके पुराने लेखों को भी।पर यह जानकारी मुझे आश्चर्यचकित की, जब पूर्ण महाभारत के अनुवादक श्री बिबेक देबरॉय के लेखों से जाना कि महाभारत में क़रीब २० ऐसी गीता उसके १८ पर्वों में बिखरी मिलती हैं।
१. पहली ‘उतथ्य गीता’ शान्ति पर्व के पर्वांशं ‘राज धर्म पर्व’में है और राजा के धर्म का विवेचन दो अध्याय के ९४ श्लोकों में किया गया है। उतथ्य बृहस्पति के बड़े भाई और महर्षि अंगिरा के पुत्र थे और युवानस्व पुत्र मांधाता एक प्रसिद्ध राजा थे। भीष्म ने इस ‘उतथ्य गीता’ में युद्धिठिर को ऋषि उतथ्य द्वारा राजा मंधाता को बताये क्षत्रिय राजाओं के राजधर्म को ही बताया है।मांधाता इक्ष्वाकु वंश के नरेश युवनाश्व और गौरी के पुत्र थे।इस लिंक (http://hinduonline.co/Scriptures/Gita/UtathyaGita.html) में आपको यह पूरी गीता संस्कृत में मिल जायेगी। श्री बिबेक देबरॉय ने अपने लेख में उसके वर्णित राजधर्म का संक्षिप्त विवरण अपने एक अंग्रेज़ी लेख में दिया है। उदाहरणार्थ:”हे पुरूष सिंह! धर्म सबसे अच्छा है। अपनी प्रजा पर सदाचारी शासन करने वाला ही सच्चा राजा होता है। व्यक्ति को काम और क्रोध से बचना चाहिए और धर्म का पालन करना चाहिए। राजा द्वारा पालन किया जाने वाला धर्म ही सबसे अच्छा कर्म है।”…”जब राजा धर्म का पालन करता है, तो वर्षा सही समय पर होती है। समृद्धि होती है और प्रजा सुखी एवं प्रसन्न होती है।”https://openthemagazine.com/columns/the-sovereign-condition/
२. एक और पाँच श्लोक की गीता है जिसको ‘काम गीता’ कहते हैं, जो ‘अश्वमेध यज्ञ’ के तेरहवें अंश के श्लोक १२-१७ को कहते हैं । यह गीता कामना (इच्छा) के दमन के महत्व के बारे में है। यह बताती है कि कैसे उपयुक्त साधनों के बिना कामना (इच्छा) को दबाने की हर क्रिया बेकार हो जाती है।उदाहरण के लिये इस गीता का एक प्रारम्भिक श्लोक है नीचे-
“अत्र गाथाः कामगीताः कीर्तयन्ति पुरा विदः
शृणु संकीर्त्यमानास ता निखिलेन युधिष्ठिर।”
https://www.sacred-texts.com/hin/mbs/mbs14013.htm
३.बिवेक देवरॉय ने एक अन्य गीता को जिसका नाम ‘अणु गीता’ है, भगवद्गीता के बाद महाभारत की गीताओं में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कहा है। यह महाभारत के १४ वें मुख्य पर्व ‘अश्वमेध पर्व’ का दूसरा उपपर्व है। इसका एक अंग्रेज़ी में अनुवाद शायद सबसे पहले १८८२ में काशीनाथ तेलंग ने किया। अणु गीता महाभारत में उस समय आया है जब अश्वमेध यज्ञ के बाद कृष्ण के द्वारिका जाने की बात आई है। ३५ अध्यायों की यह गीता तीन भागों में है- एक सिद्ध ब्राह्मण और कश्यप का संवाद, ब्राह्मण और उसकी पत्नी का संवाद एवं फिर ब्रह्म और ऋषियों का संवाद। ये संवाद कृष्ण और अर्जुन के द्वारा महाभारत में दिखाया गया है। पहला संवाद ही असल में अणु गीता माना जाता है।https://openthemagazine.com/columns/whos-a-free-man/
४.पिंगल गीता महाभारत के शान्ति पर्व के उपपर्व ‘मोक्ष धर्म पर्व’में आती है।युद्धिष्ठिर के एक प्रश्न का जबाब पितामह भीष्म ने ‘पिंगल गीता’ के पिंगल एवं सेनजित के संवाद द्वारा दिया है।पिंगल राजा सेनजित के दरबार के ज्ञानी पंडित थे। इसी संभाषण का विवरण है इस गीता में। https://openthemagazine.com/columns/hope-and-happiness/
५.पराशर गीता : महाभारत के लेखक वेद व्यास के पिता ऋषि पराशर हैं। महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म और युधिष्ठिर के संवाद में युधिष्ठिर को भीष्म राजा जनक और पराशर के बीच हुए वार्तालाप को सुनाते हैं। इस वर्तालाप को पराशर गीता नाम से जाना जाता है। इसमें धर्म-कर्म संबंधी ज्ञान की बाते हैं।
६.वामदेव गीता राजधर्म पर्व की दूसरी गीता है। यह राजाओं के धर्म के बारे में है और उनको उनके राजकीय दायित्व को शास्त्रीय विधान का ध्यान रखते हुए निभाने का निर्देश देता है।वामदेव गीता में, भीष्म ने युधिष्ठिर को वही बताया जो वामदेव ने राजा वसुमान को बताया था। बातचीत मूल रूप से उत्थ्य गीता से ही प्रारम्भ होती है जो वामदेव गीता तक चलती है। https://openthemagazine.com/columns/a-road-map-for-the-ruler/
७.सदजा गीता शान्ति पर्व के ‘आपद धर्म’ उपपर्व के आख़िर में आती है और इसमें केवल एक अध्याय है।इसमें पाँच पांडवों एवं विदुर का धर्म के बारे में विचारों को रखा गया है। https://openthemagazine.com/columns/the-force-of-destiny/
८. ब्याध गीता -महाभारत का ‘व्याध गीता’में एक व्याध द्वारा एक ब्राह्मण संन्यासी को दी गई शिक्षाएं शामिल हैं। यह महाभारत के वानपर्व खंड में है और ऋषि मार्कंडेय द्वारा युधिष्ठिर को सुनाया जाता है। कहानी में, एक अभिमानी संन्यासी को एक व्याध (शिकारी) धर्म के बारे में सीखाता है,”कोई कर्तव्य कार्य पापमय नहीं है, कोई कर्तव्य अशुद्ध नहीं है” और यह केवल जिस तरह से कार्य किया जाता है, उससे निर्धारित होता है।
महाभारत की अन्य गीताओं के बारे में अभी और नहीं जानता। पर महाभारत के पात्रों को ले अन्य अध्यात्म के ग्रंथों में ज़रूर और बहुत गीता हैं।अगली किस्त में ‘महाभारत के बाहर की गीता’….