प्राचीन समय से ही कलियुग को सबसे निकृष्ट युग बताया गया.बहुत ग्रंथों में इस का ज़िक्र है. दो जानता हूं- भागवत पुराण एवं रामचरितमानस मानस.भागवत पुराण के अंश की जानकारी डा. यू.डी.चौबे से मिली. किसी जानकार ब्यक्ति ने उनके पास भेजा था, बाद में मैंने उसे एक ब्लाग में इंटरनेट पर भी देखा. भागवत पुराण का लेखन तुलसीदास के पहले हुआ होगा समय काल का पता नहीं.
भागवत पुराण में कलियुग के हालातों का वर्णन बहुत पहले ही कर दिया था। भागवत पुराण की सबसे पहले भविष्यवाणी थी कि इस दौर में व्यक्ति के अच्छे कुल की पहचान सिर्फ धन के आधार पर ही होगी। धन के लिए वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों का रक्त बहाने में भी हिचक नहीं महसूस करेंगे। कुछ बानगी देखिये-
2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां
कारणं बलमेव हि ॥
*कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !*
3. दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः
मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः
विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥
*कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.*
*व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.*
4. लिङ्गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं
पाण्डित्ये चापलं वचः ॥
*घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जायेगा.
तुलसीदास की रचनाओं से बचपन से परिचय हो गया दादाजी के चलते और बढ़ता गया समय और उम्र के साथ…..अब जीवन के संध्याकाल में उन्हीं के साथ साथ काफ़ी समय व्यतीत होता है, बाक़ी गीता के साथ…..पर कलिकाल की सठीकता पर कुछ प्रश्न उभरते हैं- उत्तर नहीं मिलते , अगर आप सुधीजन को कुछ ज्ञात हो तो बतायें!
१.क्या तुलसीदास भविष्यद्रष्टा थे और भविष्य को अपने दिव्य दृष्टि से देख सकते थे जिसकी उन्होंने चर्चा की है विस्तार के साथ रामचरितमानस के उत्तर कांड में काकभुसुन्डी के शब्दों में की है?
२.क्याआम कवि की तरह तुलसीदास अपने समय के समाज में अर्थात् १५-१६वीं सदी के भारत में घटित हो रहे चीज़ों, आहार व्यवहार का वर्णन किया है?
३. क्या उस समय ही बदलाव आ रहा था समाज में जिसकी झलक देख तुलसीदास कलि के समय उसके विस्तार की सम्भावना समझ लिख डाले?
कृपया इसे महत्व दीजिये. कुछ उदाहरण उनके कुछ कलि काल के कल्पना से….
१.’नारि मुई गृह संपति नासी। मूड़ मुड़ाइ होहिं संन्यासी॥’
२.’कलिकाल बिहाल किए मनुजा। नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा॥
नहिं तोष बिचार न सीतलता।’
कलिकाल ने मनुष्य को बेहाल (अस्त-व्यस्त) कर डाला। कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता। (लोगों में) न संतोष है, न विवेक है और न शीतलता है।
३.’सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं।।…..
ससुरारि पिआरि लगी जब तें। रिपुरूप कुटुंब भए तब तें॥’
पुत्र अपने माता-पिता को तभी तक मानते हैं, जब तक स्त्री का मुँह नहीं दिखाई पड़ता।जब से ससुराल प्यारी लगने लगी, तब से कुटुम्बी शत्रु रूप हो गए।
५.’नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं ।।’
राजा लोग पाप परायण हो गए, उनमें धर्म नहीं रहा। वे प्रजा को नित्य ही (बिना अपराध) दंड देकर उसकी विडंबना (दुर्दशा) किया करते हैं।
६. ‘जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥”
जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥
७. ‘जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ।
मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ॥’
जिनके आचरण दूसरों का अपकार (अहित) करने वाले हैं, उन्हीं का बड़ा गौरव होता है और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन, वचन और कर्म से लबार (झूठ बकने वाले) हैं, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं।
८. ‘नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं।।’
सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह (उनके नचाए) नाचते हैं।
९ ‘हरइ सिष्य धन सोक न हरई।’गुरु शिष्य का धन हरण करता है, पर शोक नहीं हरण करता ।
१०.’बहु दाम सँवारहिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती॥
तपसी धनवंत दरिद्र गृही।’
संन्यासी बहुत धन लगाकर घर सजाते हैं। उनमें वैराग्य नहीं रहा, उसे विषयों ने हर लिया। तपस्वी धनवान हो गए और गृहस्थ दरिद्र।
पर दो बातें उन भविष्यवाणियों में ग़लत भी लगती हैं. दोनों महापुरूषों के अनुसार १. ब्यक्ति की आयु बहुत कम होजायेगी. आज औसतन आयु सत्तर वर्ष के लगभग है. २. हरदम अकाल पड़ता रहेगा और इससे बहुतों की मृत्यु होगी. अकाल अब तो पड़ते नहीं और वैसी स्थिति से निबटने के लिये सारा संसार सहायक बनने को तैयार है. कुछ भी हो सोचने के लिये बाध्य तो करतीं हैं उन महापुरूषों की भविष्यवाणियां.