नए दशक की आशा

एक नया दशक
दस्तक देता
दरवाजे पर.

खोलो कपाट
आये बयार
बदलो जहान
सबकी जय हो.

कुछ नए स्वप्न
कुछ नए लक्ष्य
कुछ नए गीत ले नए छंद
छू, छू ओठों को जाते हैं.

पर मन बिद्रोही कहता
है ललकार लिए-

रे ! नहीं प्रलय की बात करो
न हिम गलने की भ्रान्ति भरो
हम सभी सजग हो जायेंगे
धरती को हमीं बचायेंगे
यह दशक बड़ा न्यारा होगा
सब जीर्ण शीर्ण मिट जाएगा
हर ओर ज्ञान धरा होगा
जो हर मन को हर्सायेगा
यह धरती हरी भरी होगी
नदियाँ कलकल बहती होगी
सागर का नाद मधुर होगा

पर सोच वहीँ रूक जाती है
एक प्रश्न उभर ही आता है
‘क्या लोभ, काम मिट जायेगा?’ <

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

Leave a comment