सनातन धर्म की विडंबना

एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति । ऋ. 1.164.46
-एक ही सत्य को विद्वान अलग अलग रूपों में व्यक्त करते हैं।
ये विद्वान कौन ऋषि से जिन्हें वेद ने अलग अलग रूपों में व्यक्त करने का अधिकार दिया था। उनमें बहुतों ने अपना नाम भी नहीं बताया, न अपनी जाति या वर्ण के बारे में कहीं कुछ लिखा। वे किसी से पूजे जाने की इच्छा नहीं रखें।वे साक्षात् परमात्म त्तत्व का स्वयं में अनुभव किये और बहुत बाद में आज तक अपने ज्ञान के कारण सभी वर्ग और श्रेणी के लोगों से पूजे गये। वे ब्रह्मज्ञानी बने और ब्रह्म विद्या की शिक्षा दी कुछ योग्य शिष्यों को ब्रह्मविद बनाया।
और शंकराचार्य आदि ब्रह्मज्ञानी सदियों बाद उन ग्रंथों का भाष्य लिखा, जो हमें अपने अलग अलग भाषाओं में उपलब्ध हैं। वे सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में जीवन खपा दिया।

हजार साल के करीब तुलसीदास हुए, उन्होंने महर्षि बल्मिकी के रामायण पर आधारित राम की कथा लिखी।

तुलसीदास जी ने भी मानस में लिखा-
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता

  • हरि अनंत हैं यानि उनका कोई पार नहीं पा सकता और इसी तरह उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं।

पर वे संत कौन कहे जायेंगे और असंत कौन तुलसीदास के रामचरितमानस में बहुत जगह, बहुत प्रसंग में वर्णित किया है। वालकाण्ड, अरण्यकाण्ड में, उत्तर काण्ड में और भी जगह।
यह समस्या तुलसीदास के समय भी आई होगी, अत: कलिकाल के लोगों के आचरण का उत्तरकाण्ड में बहुत बेवाक रूप से वर्णन किया है।

उपनिषदों भी इस विषय पर एकाध श्लोक हैं- पर महाभारत काल में परमात्मा के सगुण अवतार कृष्ण ने युद्ध के मैदान में भगवदगीता का उपदेश दिया, जिस गीता को सनातन धर्म सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया। कृष्ण ने इसकी जरूरत को अच्छी तरह समझी। जब एक तरफ परमात्म तत्त्व को एकमात्र सत् बताया, दैवी सम्पदा, आसुरी सम्पदा, नरक आदि का विस्तार से वर्णन किया। अध्याय सोलह में दैवी सम्पदा पर केवल ढाई श्लोक दिये जब बाद बाक़ी पूरा अध्याय केवल आसुरी सम्पदा की विस्तृत चर्चा की, यमराज वाले भीषण यातना मिलने वाले नरक का कारण बताया, सभी के समझ में आनेवाले आचरणों को बता कर।आज ज़रूरत है उस एक अध्याय के उपदेश को सब भाषाओं के संतों को पूरे देश के हर नागरिक तक सरल भाषा में पहुँचाने की ज़रूरत है। इससे ही देश जगेगा। दुःख यह कि आज के संत जो ख़ासी धन राशि कमाना सीखे हैं, श्रोता से कमाई कर, वे इसे नहीं करेंगे।
फिर कौन करेगा यह?

अगर सनातन हिन्दू केवल तुलसी के विचार से जो संत हैं उन्हीं को संत माने तो कोई दिक्कत नहीं। धीरे धीर असंत भी केवल भेषभूषा से अपने को असंत घोषित कर दें या कोई भी अपने को आत्मश्लद्धा के विभिन्न तरीक़े से संत बना लेता है, शिष्यमंडली बना लेता है जो उस संत का गुणगान कर, विभिन्न प्रकार के प्रचार के तरीक़े से महान संत बना दे, तो साधारण बुद्धि का विना संसारिक हथकंडों को न जानता उस असंत को अस्वीकार कैसे कर दे। कैसे तो पहचान हो। आजकल तो भीषण रूप से घातक सोशल मीडिया के भरोसे शायद यह संभव ही नहीं है।

इस बात को हमारे देशभक्तों को सोचना है…आप पढ़िये, समझिये, और सनातन को अपनाइये।एक श्लोक में सनातन सिद्धांत है..आप ईशोपनिषद का पहला श्लोक ले सकते हैं –
या भगवद्गीता का एक और आत्मसात् कर।
पूछ सकते हैं….my email- irsharma@gmail.com

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यह बदलता बिहार क्या सच में बदल जायेगा?


महीनों पहले ग़ाज़ीपुर के चमड़े के एक उद्योग के बारे में पढ़ा और सुना था। वे रशिया के थल सेना के जवानों को और अन्य नागरिक ज़रूरतों को पूरा करते थे। वैसी फ़ैक्टरियाँ हर ज़िलों में जहाँ कच्चे माल चमड़े के लिये बहुतायत में पशु अभी भी हैं, लग सकती थीं। यह आम जनता के व्यवहार का उद्योग है, पूरे विश्व के लिये बनाया जा सकता है।
कल ‘प्रिन्ट’ में एक लम्बा लेख देख देखा। बिहार के बहुत जरूरी पुराने रोज़गारी का काम देने वाले बहुत सारे खुलते उद्योगों के बारे पढ़ अच्छा लगा। बिहार में पहले इंजीनियरिंग कालेज और आई.टी.आई बहुत ही कम थे। लड़के लड़कियां विशेषकर गाँवों की, सब किसी तरह किसी विषय में स्नातक बन जातीं थी। वही बहुत समझा जाता था। मुझे अन्य प्रदेश के लड़कियों को हर क्षेत्र में हर विज्ञान और तकनीकी विषयों पढ़ने नौकरी की संख्या लड़कों के बराबर हो रही थी। जानकर दुख होता था। पर शायद यह बदल रहा है, पर विशेषकर गाँवों के बच्चों में यह जोश नहीं आया है। आशा है जल्दी अन्य प्रदेशों से बिहार की लड़कियां, खेल-कूद, नृत्य-संगीत आदि में भी प्रदेश का नाम बढ़ायेंगी। ये समाचार सुन, पढ़ अच्छा लगता है। लड़कियों में केन्द्र सरकार से मिलती अभूतपूर्व प्राथमिकता को देखते हुए, जल्दी बिहार की लड़कियां भी देश हर शहरों में स्वतंत्र रूप से काम करतीं दिखेंगीं। कल ही प्रधानमंत्री ने बहुत सारे केंद्रीय विद्यालयों एवं परिवर्द्धित आई.टी. आई बनवाने की घोषणा किये हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण रूप से पंचायतें और ब्लॉकों में काम करते आफ़िसर इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि मनरेगा से लेकर किसी भी केंद्रीय प्रोजेक्टों का पूरा लाभ सहीं योग्य लोगों तक पहुंच ही नहीं पाता।
बिहार की लोगों की इन घटिया मनःस्थिति के लिये कौन ज़िम्मेदार है, केवल वहाँ के अब बुजुर्ग बनते लोग। उन्हें इसकी आत्मग्लानि नहीं, पर अगर कोई अपने धर्म सठीक पालन न करने पर राज्य, या केन्द्र सरकार तो ज़िम्मेदार नहीं हो सकती।
लोगों को इस बात का कोई असर ही नहीं पड़ता।
मेरे ख्याल से दुर्भाग्य वश बिहार राजनीति के जातिवाद को लेकर पिछड़ेपन में पड़ा हुआ रह गया। नेता ही नहीं बिहार में काम करते सैकड़ों आई.ए.एस आफ़िसर ही बिहार का बेड़ा पार अपनी दृढनिष्टा से कर सकने में सक्षम हो सकते हैं।
लेख तो अंग्रेज़ी में था, पर भाषा सरल है, नहीं कोई समझदार इसका गुग्ल ट्रांसलेशन की मदद से हिन्दी अनुवाद भी कर सकता है अगर पढ़ने की इच्छा है।
बिहार के लोगों को मानसिकता तो बदलनी ही होगी।
अगर आम लोगों में थोड़ी भी देशभक्ति है तो केवल देश करनेवालों को ही वोट दें, जो बिहार को सम्पन्न समृद्ध बना सकता है। कुछ नोटों के लिये ईमान न बेंचें।

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बदलते बिहार के पीछे का प्रयास

जानें माने समाचार पत्र ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड’ में आज एक बिहार के कृषि क्षेत्र की उपलब्धियों पर बडा सकारात्मक रिपोर्ट दिखा। वैसे तो लगता है यह किसी इस समस के सरकार के व्यक्ति का प्रयत्न है चुनाव के देखते हुए। पर फिर भी बहुत सारी सराहनीय बातें तो ज़रूर हैं। काश, बिहार के कृषि क्षेत्र के सफल प्रयोग करने वाले व्यक्ति द्वारा लिखा गया होता, तो यह ज्यादा विश्वसनीय होता।

“उत्तरी और मध्य जिलों में चावल गहनीकरण और गेहूँ गहनीकरण प्रणाली ने किसानों को बिना किसी अतिरिक्त रासायनिक आदानों या सिंचाई के अपनी उपज बढ़ाने में मदद की है। सरकार ने जलवायु-अनुकूल फसलों को भी प्रोत्साहित किया है और महिला स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया है। राज्य सरकार ने 2023-24 में कृषि यंत्रीकरण के लिए ₹11,900 लाख स्वीकृत किए हैं। 2020-21 और 2024-25 के बीच बिहार के 30 जिलों में जलवायु-अनुकूल कृषि कार्यक्रम लागू किए गए।”

इस रिपोर्ट में ही नीचे का यह फ़ोटो भी छपा है। हमारे गाँव,ननिहाल और ससुराल के गाँवों में भी बचपन से यह रोपनी करते हुए रोपनिहारिनों को देखा हूँ वे सब औरतें होतीं थीं। पुरुष केवल धान के बीजों को रोपने लायक हो जाने पर उखाड़ कर एक आंटी बना देते थे, फिर उन्हें बंडल या बोझा में माथे पर रखने रोपनी के लिये रोपे जाने वाले तैयार खेत में ले जाते थे, जहाँ रोपनिहारिनों एक समूह रोपनी करता था जब तक पूरा खेत नहीं भर जाता था। ये दोनों काम आज भी अधिकांश वैसे ही होता है, जो बहुत अस्वास्थ्यकर तरीका है। पैरों के अंगुलियों में बहुत तरह की तकलीफ़ हो जाती थीं, गन्दे पानी में देर तक काम करने के कारण। बाद में यह भी देखा कि पुरुषों ने भी यह काम करना चालू कर दिया।

आज बहुत तरह की मशीनें आ गई हैं, मशहूर महिन्द्रा ट्रैक्टर की कम्पनी भी इन मशीनों को बनाती है। साथ ही बहुत सस्ते छोटी मशीनें भी बाज़ार में हैं। मेरे ख्याल से इस काम को मशीन से करना ही ज़्यादा आसान और स्वास्थ्यकर होगा। सरकार को इन मशीनों को आसान तरीक़े से उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिये। सम्पन्नता आने पर और सरकारी मदद से शायद इसको करना चाहिये छोटे बड़े सभी किसानों के लिये। पहले फसल तैयार होने पर कटाई का काम भी हाथ से ही होता था, अब करीब अधिकांश मशीनों से होता है। साथ ही इस काम के लिये पैरों हाथों को चमड़े की तकलीफ़ों से बचाने का सरल उपाय सोचना चाहिये।

पंजाब इन मशीनों को बनाने बहुत दिनों से आगे है। दुर्भाग्य है कि पंजाब आज मैनुफैक्चरिंग में पीछे पड़ता जा रहा है। हमारे समय में वहां मैनुफैक्चरिंग में व्यवहृत सभी मशीनें बनती थीं। पर अब तो सिख के धार्मिक चिन्ह छोटी कटार भी चीन से आती हैं।

हमारे देश के व्यापारियों ने अपने फायदे के देश की रीढ़ मैनुफैक्चरिंग उद्योग का सबसे ज़्यादा नुक़सान किया है, अपने यहाँ से चीन में सैम्पल भेज हर चीजों को सस्ते बनवा आयात करने का, जो कोई सरकार रोकने सक्षम नहीं हो सकी, नहीं तो आजतक दिवाली की गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां, आतिसवाजी, बिजली की लाइटिंग , यहां तक कि रक्षाबंधन की राखी तक चीन से क्यों आती। दैन्दिन के घर के उपयोग के व्यवहार किये जाने बस्तुओं में चीन के बने स्पेयर पार्ट ही बाज़ार हर दूकान पर क्यों मिलते! सरकारी मशीनरी को शायद यह पता ही नहीं या सरकारी अफ़सरों के कारण यह हुआ है और चलता जा रहा है। इसी कारण से चीन में बने बनारसी ओर कांजीवरम की नक़ली चीन में बनी साड़ियाँ भारत के दुकानों पर मिल जायेंगे।

कब तक चलेगा यह खेल व्यवसायियों का?

केवल प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता का दिन रात का पूरे देशवासियों से अनुरोध क्या माने रखता है? यही सदियों की पराधीनता से पैदा हुई मानसिकता का इतना नुक़सानदेहय परिणाम , जो देश झेल रहा है हर सौविलियन डालर से हमसे अधिक चीन से आयात का कारण।
(अनुरोध- जरूरी सुधार कर लें)

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चीनी दिवाली-कुछ प्रश्न


क्या जितनी चीन की चीज़ें दिवाली या अन्य त्योहारों या व्यक्तिगत आयोजन में आती हैं, उन्हें भारत सरकार की अनुमति से आती हैं और सरकार इसको ज़रूरी आयात समझती है? क्या इसके बिना यानी न होने पर हिन्दुस्तान के लोग को दूसरे देशवासी दिवाली का सम्मान नहीं देंगे? या ये जब चीन में भी नहीं बनते तो थो भारत में दिवाली या अन्य त्योहार नहीं आयोजित किये जाते थे? मैं जब आई.आई.टी, खड़गपुर में था, हमारे होस्टलों में बड़े पैमाने पर दीपोत्सव होता था तेल के दीप जला कर। कल अयोध्या में दीपोत्सव हुआ उनमें वैसे ही दीपों का व्यवहार हुआ। हमारी मानसिकता इतनी राष्ट्रीयता की बिरोधी क्यों होती जा रही थी।
शायद इस पीढ़ी को याद नहीं होगा कि स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के प्रधान मंत्री काल अन्न के अभाव के कारण जबतक हम पैदावार नहीं बढ़ाते, हम हफ़्ते में एक दिन खाना नहीं खायेंगे का आवाहन।
या तो हिन्दुस्तान के वैज्ञानिक और मैनुफैक्चरिंग उद्योगों के मालिक और नये स्टार्ट अप इन सभी चीजों को ज़रूरत के हिसाब से अपने यहाँ बनायें या नहीं तो तबतक हम पुराने तरीक़े से दीप जला दिवाली मनायेंगे। मिट्टी या धातुओं के लक्ष्मी गणेश से पूजा कर लेंगे। अपने देश की राखी बाँधेंगे ।
शर्म आनी चाहिये देश के लोगों इस देश तरह देश को नीचा दिखाने की आदत से। ऑटोमोबाइल उद्योग आज परमानेंट मैगनेट के लिये हाय तोबा मचा रहे है, उद्योग बन्द होने का रोना रोते हैं, उन्हें चीन की वस्तुओं को देश में बनाने का कोशिश करना चाहिये था। क्यों चीन का हम पर १०० विलियन डालर भार हर साल बढ़ता जा रहा है। यह कितना सही है। हम क्या कर रहे हैं, हमारे उद्योंगों के विलियनअर मालिक अनुसंधान या नई टेक्नोलॉजी क्यों नहीं लाते। क्या सभी सरकार करेगी? हमारे सैंकड़ों रिसर्च संस्थानों के वैज्ञानिक क्या कर रहें हैं। क्या वैज्ञानिक विषयों पर लेख लिखकर उनका दायित्व ख़त्म हो जाता है? हम सभी अपने अपने दरबों में केवल अपनी कमाई और अपनी शोहरत के लिये काम में लगे हैं।
गलती लिखा गया हो तो शुद्ध कर लीजियेगा। मेरे दिल की भावनाओं की कद्र करिये अपने उन दोस्त मित्रों से इन विषयों के बातचीत करने का एक आन्दोलनात्मक कार्य करिये। शायद वह योग्य लोगों को जो देश के इस सम्बंध में कुछ कर सकते हैं उनके कानों तक पहुँच जाये? एक समूह देश की इस समस्या राष्ट्रीय स्तर उपाय निकाल ले। पूरी भगवद्गीता इसी त्याग और तपस्या के विषय पर आधारित है। यही देश के यज्ञ, दान और तप है सबका।
दिवाली की शुभकामना

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बिहार का चुनाव- बिहार हित में मेरे बिचार

बिहार का चुनाव- बिहार हित में मेरे बिचार
कभी कभी आश्चर्य होता है कि हमें भारत के सबसे बड़े सपने- देश की स्वतंत्रता को हासिल करने के वाद के इन कुछ सालों के बाद ही हमें देश को जाति आधारित, भाषा आधारित, क्षेत्र आधारित दिन प्रतिदिन बढ़ती विचारों को कभी कभी अनुशासन, आचरण के हर सीमाओं का उलंघन होता क्यों देखना पड़ रहा है?
और असहनीय पीड़ा और मानसिक तनाव तब होता है जब यह तथाकथित आधुनिक उच्च शिक्षा युक्त लोगों के द्वारा उकसाया जाता है।
इन सालों में हमारा व्यवसाय, उद्योग विश्वप्रसिद्ध क्यों नहीं हो पाया, हमें आर्थिक प्रगति की गति को बढ़ाने में इतना समय क्यों न लग गया? हमारी शिक्षा पद्धति उस स्तर पर ले जाने में क्यों सक्षम हो सकी। हम दूसरे सभी अपने से पिछड़ी व्यवस्था से क्यों पीछे होने का रोज अहसास होता है।
क्या स्वतंत्रता के बाद के प्रजातांत्रिक तरीक़े से अपनाई जा रही बहुत व्यवस्थाओं के कारणों तो नहीं है? हम शिक्षा को प्रारंभ में ही प्रत्येक नागरिक का ज़रूरी कर्तव्य और फिर अधिकार को क्यों अंजाम न दे पाये? अवैज्ञानिक जातिप्रथा का पूर्ण रूप उन्मूलन क्यों न कर पाये। हमने जब राजनीति में परिवारवाद का कुरूप के सब नुक़सान सालों देखने के बाद भी प्रश्न क्यों नहीं उठा पाये? क्यों येन केन प्रकारेण सरकार चलाने वाली बात आई, और अधिकांश नागरिकों में उसी तरह येन केन प्रकारेण अकूत सम्पति के जमा करने पर कोई थोड़ा सा भी अंकुश नहीं लगा पाये? क्यों अभी भी हम विदेशों में पढ़ने और अपने देश में करोड़ों की कमाई कर बाहर के देशों में अपने ख़रीदे महलों में बसनेवाली मनोवृति पर क्यों नहीं किसी तरह का लगाम लगा पाये?
प्रजातंत्र के कारण कैसे एक व्यक्ति या परिवार विना किसी कर्मठता, योग्यता के बाद भी देश के लिये अहितकर पद्धति अपना गद्दी पर क़ब्ज़ा किये रहे और देश की सरकार और क़ानूनी ढाँचा कुछ न कर पाये? क्यों बिहार इतना पिछड़ गया? क्या तथा कथित सरकारी महकमें इतने अक्रिय और बेईमान हो गये?
बदलते हुए भारत के बावजूद भी राज्यस्तर या संस्था विशेष को केवल अपने .०१% लोगों को पूरा लाभ लेने की छूट लेती रही?
बिहार बंगाल पिछले पचास साल में इस स्तर पर पहुँच गया जिसके बारे में सोच कर इतना कुछ लिखना पड़ा।
कहीं किसी सनातन शास्त्र में आज की तरह के हज़ारों जातियों का ज़िक्र है। गीता में अध्याय १४ में सभी व्यक्ति वस्तुओं में तीन तरह के गुणों का ज़िक्र है और अध्याय १६ में दैवी और आसुरी आचरण बताया गया है। वर्ण के केवल चार हैं और वे वैज्ञानिक हैं। आज के माहौल में वर्ण व्यवस्था जो समाज हर व्यक्ति को खुद अपनी विशेषता पर आधारित वर्ण व्यवस्था एक सार्वभौमिक रूप से मानने योग्य है।

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भारतीय मोटर गाड़ियों का बढ़ता निर्यात-एक गर्व का विषय

भारतीय मोटर गाड़ियों का बढ़ता निर्यात-एक गर्व का विषय
आई.आई.टी खड़गपुर में १९५७-६१ तक रहते समय ही मेरा गर्मी छुट्टी में जमशेदपुर के उस समय के TELCO और आज के टाटा मोटर्स नाम से पूरे देश में जानेवाले मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के सबसे बड़े कारख़ाने से परिचय था, क्योंकि मैं अपने कुछ खड़गपुर के दोस्तों के साथ प्रशिक्षण लिया था। समय चक्र से मेकानिकल इंजीनियरिंग में स्नातक बन मैं कलकत्ता के पास के उत्तरपारा के नज़दीक के हिन्दमोटर से प्रसिद्ध हो गये जगह नें स्थित हिन्दुस्तान मोटर्स कम्पनी में विभिन्न पदों पर १९९७ तक काम किया। वहीं से मैं अमरीका, जर्मनी, इटली, इंग्लैंड, जापान, तैवान, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों में मोटर उद्योग और उसके लिये जरूरी मशीनों के निर्माण करनेवाली कारख़ानों को भी देखा।बार बार मुझे लगता था कि हम इतनी पीछे क्यों हैं उस उद्योग में और उस बात के साथ मैं अपने देश की पिछड़ेपन होने के उस समय की औद्योगीकरण और उनके मालिकों की दुर्बलता पर पर दुखी रहता था। चूँकि की देश के उद्योगों के बड़े बड़े लोगों और देश के मंत्रियों से भी मिलने का मौक़ा मिलता था, उन्हें अपने विचारों से अवगत कराता था, पर खुश से थे उस अवस्था पर भी, क्योंकि वे सभी तो समृद्ध होते जा रहे थे अच्छी गति से। फिर २००४-५ के बाद से धीरे धीरे चीन का दबदबा दिखने लगा मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में । मैंने २००० में काम करना बन्द कर दिया, पर उद्योग क्षेत्र की सब ख़बरों में रूचि के कारण और उन विषयों पर पढ़ते लिखते रहने के चलते सभी तकनीकी जानकारी तो रखता हूँ अबतक जब कि मैं ज़िन्दगी रूपी इनिंग ख़त्म होने की ओर हूँ।
आज देश का चार पहियों की सब मोटर गाड़ियों के साथ अन्य मैनुफैक्चरिंग उद्योग की प्रगति ख़ुशी देती है। हम काफी मात्रा में भारत में उत्पादित वस्तुओं का, जिनमें मोटर गाड़ियों के उद्योग आगे है, काफ़ी संख्या में बहुत सारे उन्नत देशों में निर्यात कर रहें हैं। विशेषकर पिछले सालों में तो अद्भुत प्रगति हुई है, पर हमारे देश के नयी पीढ़ी को इस क्षेत्र में सिरमौर बनाने के एक नई मानसिकता के साथ सभी बाक़ी क्षेत्रों में बहुत सधे दिल और दिमाग से बिना किसी देशों पर आश्रित हुए बहुत काम करना बाक़ी है। मुझे विश्वास है हमारा जाति धर्म के आधार की राजनीति हमें नई पीढ़ी राष्ट्रीय प्रगति और उसके प्रगति के रास्ते रूकावट पैदा न करें। हमें विश्वस्तरीय सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुंचने की निष्ठा पूर्वक चेष्टा करनी चाहिये, क्योंकि विकसित भारत २०४७ का लक्ष्य एक सम्भव युद्ध है, पर राष्ट्रीय कर्तव्य युद्ध से कम कभी नहीं।

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1.https://www.financialexpress.com/market/stock-insights/beyond-tesla-amp-tata-motors-3-hidden-tech-stocks-driving-indias-164-billion-ev-revolution/4021499/?ref=hometop_hp
2.https://www.business-standard.com/industry/auto/passenger-vehicle-exports-rise-18-in-apr-sep-maruti-suzuki-leads-siam-125102600121_1.html

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एक ज़िन्दगी से जुड़े जगह की याद 

क्या हिन्दमोटर्स के हेवी इंजीनियरिंग डिभिजन की याद है, इसके आख़िरी छोर पर एक स्टील फाउडंरी हुआ करता था। स्व. बृजमोहन बिरला के एकमात्र पोते श्री चन्द्रकांत बिरला के हाथ आई। वे पूरी ज़िन्दगी नाबालिग रहे। हिन्दुस्तान मोटर्स, हिन्द मोटर, उत्तरपारा और टाटा मोटर्स (TELCO), जमशेदपुर की भारतवर्ष की सबसे बड़ी कम्पनी १९९४_९५ तक रहीं। जब टाटा मोटर्स पूने में अपनी फैक्ट्री बनाने लगा तो बी. एम बिरला भी पीतमपुर, इंदौर में छोटी कार और होसुर, बड़ोदरा में जापान के सहयोग से ISUZU ट्रक हिन्दुस्तान मोटर्स के कारख़ाना बनाना चालू किये। मैं उस समय जेनेरल मैनेजर- कॉर्पोरेट था। वह मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी थी। दोनों कारख़ानों में आनेवाले धन का भी बैंकों ने इंतज़ाम कर दिया। बाहर के सलाहकारों ने पूरे प्रोजेक्ट रिपोर्ट और उनके लिये मशीनों के चुनाव की बहुत प्रशंसा की। पर उसी समय बी.एम. बिरला का देहान्त हो और प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन का भार चन्द्रकान्त पर आ गया। पर कुछ समय के अन्तराल के बाद ही उनकी अक्षमता और मनसा सामने आ गई। वे बिरला के इस ग्रुप की सभी कम्पनियों को बन्द कर देना चाहते थे। एक के बाद एक बिकने लगी- पहले बड़ोदरा का प्लांट बिका पहले जेनेरल मोटर्स को, फिर मद्रास का कैटरपिलर प्लांट बिका अमरीकन को जिसके लिये हमारे एक दोस्त आर. के. डागा ने बहुत ही अच्छा काम कर विश्वस्तरीय बनाया था। 

बाद में चन्द्रकान्त जी रिटायरमेन्ट प्लान लाये, धीरे धीरे सब ऊँचे पदवाले ५८ साल की उम्र होते ही रिटायर कर दिये। हिन्दमोटर का कार प्लान्ट बन्द हो गया। बाद में हेवी इंजीनियरिंग डिभीजन भी बिक गया जहाँ क्रेन और मैरियन Earthmoving Machines बनती थी। अब वहाँ पुरानी याद की तरह टीटागढ उद्योग ने हेवी इंजीनियरिंग में मेट्रो और वन्देभारत के कोचों को बनाने की बहुत ही अच्छा काम हो रहा है। आज एक विडियों देख यादें जाग गईं और मैंने यहां लिख दिया। 

Vande Bharat trains and Metro Manufacturing Factory of Titagarh Rail Systems in Kolkata https://youtu.be/vsr1kjzLorc?si=NBvLEaABKJnZL5-7 

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बढ़ती उम्र का राज

मैंने नोयडा में अपने जान पहचान एक सज्जन को १०३ पार करते जानता था। जब हम कुछ सीनियर मिल मेघदूतम् पार्क में सबेरे शाम एक जगह बैठते थे। वे सज्जन रेलवे के रिटायर्ड थे अपने बेटे के साथ रहते थे। वे उस समय शायद ९७ के थे। रोज सबेरे मेघदूतम् पार्क आते थे। मैंने उनको एक शाम सपरिवार बुलाया था अपने ग्रुप में । फ़ेसबुक में भी शायद इसके बारे में लिखा था।आज हर गाँव और शहर में ८० से ज़्यादा वर्ष के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। मेरे एक हिन्दुस्तान मोटर्स के सहकर्मी ९४+ के हो चुके हैं। हमारे साथ के कुछ आई. आई. टी खड़गपुर के दोस्त ८५ के ऊपर है.

आज एक ११५ साल की महिला की कहानी पढ़ अच्छा लगा। बहुत सी सरल लगती हैं। उनके अनुसार किसी के साथ बहस में न पड़ना, सरल जीवन उनकी लम्बी उम्र का राज हैं। नीचे लिंक है-

ईशोपनिषद् का पहला दो मंत्र १०० साल तक जीने का गुर बताया है-

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥१॥
-यह दृश्यमान गतिशील,जगत सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। इस सबके त्याग द्वारा तुझे इसका उपभोग करना चाहिये; किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि मत डाल।

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥२॥

इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिये। हे मानव! तेरे लिए इससे भिन्न किसी और प्रकार का विधान नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।


आज से तीन चार पहले मेरे आई. आई. टी के दोस्त और समधि जनार्दन शर्मा के न रहने का समाचार मिला। वे एक रह गये थे जिनसे जब इच्छा होती बात कर लेता था। वह भी ख़त्म हो गया।पूरी ज़िन्दगी बड़ी सादगी से बिताये। बहुत सारी यादें भी हैं उनसे सम्बन्धित, पर केवल शान्ति पाठ छोड़ क्या कर सकता हूँ। पिछली कुछ साल पहले मिला था जब राजेश उन्हें अमरीका से वापस पटना पहुँचाने के लिये लाये थे, मेरे अनुरोध पर रात को ठहरे थे, बहुत सारी बातें हुईं थी।शायद एक दिन पहले ही बताये थे कि अब उनकी खाना बनानेवाली महिला उनके में ही रहने के लिये राज़ी हो गई थी। मैंने प्रसन्नता ज़ाहिर की कि अब ठीक है। उतने बडेघर में अकेले रहना इस उम्र में अपने आप में एक समस्या होती है।

पर क्या किया जा सकता है। समय बदल गया है। अब परिवार में आख़िरी में केवल दो ही रहते हैं और एक दिन एक रह जाते हैं। ऐसे में कब वह समय आ जाये, जब वह एक भी अपने गन्तव्य की ओर चल देता, सब कुछ पीछे छोड़। ॐशान्ति…

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भारतीयों की राष्ट्रविरोधी मानसिकता


पिछले युद्ध ने यह ज़रूर इस सत्य को आम कर दिया कि भारत का मुख्य विरोधी पक्ष और उसके कुछ शीर्ष नेता और समर्थक प्रजातंत्र के बोलने की आज़ादी का नाजायज भायदा उठा देश का अहित कर रहे हैं। देश का नेतृत्व संभालने की इतनी जल्दी क्यों है? जिन दलों के पास एक एक राज्य भी हैं वहाँ जनताहित कुछ अभूतपूर्व नई सोच का बदलाव ला देश के निचले वर्ग का प्रति व्यक्ति कमाई को कम से कम समय में एक सम्माननीय स्तर पर ले जाने का प्रयत्न और उपाय की तो सोचें और कारवन्यन कर तो दिखाये।
केन्द्र और राज्य सरकार सभी को यह मौक़ा बराबर है।देश की विशेषकर उत्तर भारत के प्रदेशों में- बिहार, बंगाल आदि में शिक्षा का स्तर क्यों नहीं अच्छा हो रहा है? क्यों नहीं गाँव गाँव अपने शत प्रतिशत लोगों को शिक्षित करने का मुहिम लें।लड़कों के विज्ञान के विषयों में महारत का नया प्रयोग किया जाये। शिक्षक योग्य हों। हर लड़का कुछ न कुछ हुनर सीखे या सद्भाव से व्यवसाय करने की मिहनत के साथ चेष्टा करे।
अगर एक किसान उतने ही खेत से लाखों कमा समृद्ध हो सकता है, तो बाक़ी क्यों नहीं कर सकते? कब तक लोग अपनी छोटी जाति का होने का फ़ायदा लेंगे और कितने सौ साल। जो बड़ी जाति के लड़के हैं वे भी तो ही पढ़ना लिखना छोड़ वैसे ही निठल्ले हो ठ्ठरा पी ज़िन्दगी ख़राब कर रहे हैं। मुखिया से ले सांसद मन्त्री सब उन्हें इसी स्थिति में रखना चाहते हैं।


योग्य नहीं बनना, हीन आचरण रखना, मिहनत से भागना, गलत से ग़लत तरीक़े से किसी तरह पेट भरने भर कमाई करना, दिनभर आवारागर्दी करना ओर तथाकथित नेताओं या बाहुबलियों के गलत कमाई में हाथ बँटाना।
किसी राजनीतिक दल ने क्या काम किया है इस दिशा में। सब केरल की तरह शिक्षित, तमिलनाडु की तरह के औद्योगीकरण आदि को आदर्श मान क्यों अपने कार्यकर्म बना सकते।


पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह की अवस्था क्यों लाना चाहते हैं लोग और नेता। क्या अब भी समझ नहीं आता कि हिन्दू प्रधान देश भारत को कोई मदद नहीं देगा, कोई इसका सच्चा दोस्त नहीं बनेगा।

गोरों में अभी भी अपनी चमड़ी के रंग का गुमान है, और अधिकांश इस्लामिक देश धर्मनिरपेक्ष बन ही नहीं सकते।

देश के सबसे बड़े धनी लोगों से सबसे छोटों तक को यह समझना होगा। क्या आज कोई महाराणा प्रताप का भामाशाह बन सकता है या सिराजुद्दौला का जगत सेठ।
क्यों नहीं, बिरला, और सैकड़ों ऐसे देश भावना से देश के लिये जरूरी उद्योग लगाते। क्यों आज चीन से आयात किये बिना उनका काम चल ही नहीं सकता? क्यों नहीं भारत चीन से श्रेष्ठ बन सकता? जब कि इतिहास कहता है भारत ही ज्ञान विज्ञान में सब देशों से उपर था। भारत आज भी वैसा ही है, पर भारतीय सबसे ज्यादा ख़ुदगर्ज़ हो गये हैं। बच्चों के लिये अकूत धन जमा करते है। और बच्चे मजे कर उस धन मौज मजा या विदेशों में जा बसने का प्रयास….पता नहीं क्या मिलता है और क्या खो देते हैं। नाम भी कोई नहीं याद रखता।

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Take a jump in life, be Entrepreneur

Take a jump in life, be Entrepreneur
Today I watched this podcast of Saurabh Mukhejea, a successful entrepreneur himself talking on how to get into your own startups, your own business rather than working for salary in established companies. I know there must be others too talking on the subject. But because of a great praise for Saurabh’s achievements by my son, Anand who has been again an employee only of a big well known company in US, I have become Saurabh’s fan. I have read and enjoyed one of Saurabh book, ‘ Behold The Leviathan’. The book was bought and sent by Anand only. I really loved it.
For all young men and women of India, today India is the best place to get into business rather than working for a company as salaried employee even on a very lucrative pay package. However, if you must have certain aptitude and tenacity for getting great success as entrepreneur. But that happened with all the richest entrepreneurs of the world but for those who inherited a lucrative business from their parents or family and continued with the same dedication.
Please watch this podcast and let your children see it…

“The Ecosystem for Entrepreneurial success in India” https://youtu.be/bFaK5SY8Wz8?si=plg-r3d1uMdxaGxd
India can become a great country and Indians really rich with this attitude only…Pl. share and encourage others to watch if that have an aspirations to make their kids really rich and well known in society and thus make their kids country of great. It is already happening and that will make our country join the group of developed countries of the world.

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