यह बदलता बिहार क्या सच में बदल जायेगा?


महीनों पहले ग़ाज़ीपुर के चमड़े के एक उद्योग के बारे में पढ़ा और सुना था। वे रशिया के थल सेना के जवानों को और अन्य नागरिक ज़रूरतों को पूरा करते थे। वैसी फ़ैक्टरियाँ हर ज़िलों में जहाँ कच्चे माल चमड़े के लिये बहुतायत में पशु अभी भी हैं, लग सकती थीं। यह आम जनता के व्यवहार का उद्योग है, पूरे विश्व के लिये बनाया जा सकता है।
कल ‘प्रिन्ट’ में एक लम्बा लेख देख देखा। बिहार के बहुत जरूरी पुराने रोज़गारी का काम देने वाले बहुत सारे खुलते उद्योगों के बारे पढ़ अच्छा लगा। बिहार में पहले इंजीनियरिंग कालेज और आई.टी.आई बहुत ही कम थे। लड़के लड़कियां विशेषकर गाँवों की, सब किसी तरह किसी विषय में स्नातक बन जातीं थी। वही बहुत समझा जाता था। मुझे अन्य प्रदेश के लड़कियों को हर क्षेत्र में हर विज्ञान और तकनीकी विषयों पढ़ने नौकरी की संख्या लड़कों के बराबर हो रही थी। जानकर दुख होता था। पर शायद यह बदल रहा है, पर विशेषकर गाँवों के बच्चों में यह जोश नहीं आया है। आशा है जल्दी अन्य प्रदेशों से बिहार की लड़कियां, खेल-कूद, नृत्य-संगीत आदि में भी प्रदेश का नाम बढ़ायेंगी। ये समाचार सुन, पढ़ अच्छा लगता है। लड़कियों में केन्द्र सरकार से मिलती अभूतपूर्व प्राथमिकता को देखते हुए, जल्दी बिहार की लड़कियां भी देश हर शहरों में स्वतंत्र रूप से काम करतीं दिखेंगीं। कल ही प्रधानमंत्री ने बहुत सारे केंद्रीय विद्यालयों एवं परिवर्द्धित आई.टी. आई बनवाने की घोषणा किये हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण रूप से पंचायतें और ब्लॉकों में काम करते आफ़िसर इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि मनरेगा से लेकर किसी भी केंद्रीय प्रोजेक्टों का पूरा लाभ सहीं योग्य लोगों तक पहुंच ही नहीं पाता।
बिहार की लोगों की इन घटिया मनःस्थिति के लिये कौन ज़िम्मेदार है, केवल वहाँ के अब बुजुर्ग बनते लोग। उन्हें इसकी आत्मग्लानि नहीं, पर अगर कोई अपने धर्म सठीक पालन न करने पर राज्य, या केन्द्र सरकार तो ज़िम्मेदार नहीं हो सकती।
लोगों को इस बात का कोई असर ही नहीं पड़ता।
मेरे ख्याल से दुर्भाग्य वश बिहार राजनीति के जातिवाद को लेकर पिछड़ेपन में पड़ा हुआ रह गया। नेता ही नहीं बिहार में काम करते सैकड़ों आई.ए.एस आफ़िसर ही बिहार का बेड़ा पार अपनी दृढनिष्टा से कर सकने में सक्षम हो सकते हैं।
लेख तो अंग्रेज़ी में था, पर भाषा सरल है, नहीं कोई समझदार इसका गुग्ल ट्रांसलेशन की मदद से हिन्दी अनुवाद भी कर सकता है अगर पढ़ने की इच्छा है।
बिहार के लोगों को मानसिकता तो बदलनी ही होगी।
अगर आम लोगों में थोड़ी भी देशभक्ति है तो केवल देश करनेवालों को ही वोट दें, जो बिहार को सम्पन्न समृद्ध बना सकता है। कुछ नोटों के लिये ईमान न बेंचें।

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