बदलते बिहार के पीछे का प्रयास

जानें माने समाचार पत्र ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड’ में आज एक बिहार के कृषि क्षेत्र की उपलब्धियों पर बडा सकारात्मक रिपोर्ट दिखा। वैसे तो लगता है यह किसी इस समस के सरकार के व्यक्ति का प्रयत्न है चुनाव के देखते हुए। पर फिर भी बहुत सारी सराहनीय बातें तो ज़रूर हैं। काश, बिहार के कृषि क्षेत्र के सफल प्रयोग करने वाले व्यक्ति द्वारा लिखा गया होता, तो यह ज्यादा विश्वसनीय होता।

“उत्तरी और मध्य जिलों में चावल गहनीकरण और गेहूँ गहनीकरण प्रणाली ने किसानों को बिना किसी अतिरिक्त रासायनिक आदानों या सिंचाई के अपनी उपज बढ़ाने में मदद की है। सरकार ने जलवायु-अनुकूल फसलों को भी प्रोत्साहित किया है और महिला स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया है। राज्य सरकार ने 2023-24 में कृषि यंत्रीकरण के लिए ₹11,900 लाख स्वीकृत किए हैं। 2020-21 और 2024-25 के बीच बिहार के 30 जिलों में जलवायु-अनुकूल कृषि कार्यक्रम लागू किए गए।”

इस रिपोर्ट में ही नीचे का यह फ़ोटो भी छपा है। हमारे गाँव,ननिहाल और ससुराल के गाँवों में भी बचपन से यह रोपनी करते हुए रोपनिहारिनों को देखा हूँ वे सब औरतें होतीं थीं। पुरुष केवल धान के बीजों को रोपने लायक हो जाने पर उखाड़ कर एक आंटी बना देते थे, फिर उन्हें बंडल या बोझा में माथे पर रखने रोपनी के लिये रोपे जाने वाले तैयार खेत में ले जाते थे, जहाँ रोपनिहारिनों एक समूह रोपनी करता था जब तक पूरा खेत नहीं भर जाता था। ये दोनों काम आज भी अधिकांश वैसे ही होता है, जो बहुत अस्वास्थ्यकर तरीका है। पैरों के अंगुलियों में बहुत तरह की तकलीफ़ हो जाती थीं, गन्दे पानी में देर तक काम करने के कारण। बाद में यह भी देखा कि पुरुषों ने भी यह काम करना चालू कर दिया।

आज बहुत तरह की मशीनें आ गई हैं, मशहूर महिन्द्रा ट्रैक्टर की कम्पनी भी इन मशीनों को बनाती है। साथ ही बहुत सस्ते छोटी मशीनें भी बाज़ार में हैं। मेरे ख्याल से इस काम को मशीन से करना ही ज़्यादा आसान और स्वास्थ्यकर होगा। सरकार को इन मशीनों को आसान तरीक़े से उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिये। सम्पन्नता आने पर और सरकारी मदद से शायद इसको करना चाहिये छोटे बड़े सभी किसानों के लिये। पहले फसल तैयार होने पर कटाई का काम भी हाथ से ही होता था, अब करीब अधिकांश मशीनों से होता है। साथ ही इस काम के लिये पैरों हाथों को चमड़े की तकलीफ़ों से बचाने का सरल उपाय सोचना चाहिये।

पंजाब इन मशीनों को बनाने बहुत दिनों से आगे है। दुर्भाग्य है कि पंजाब आज मैनुफैक्चरिंग में पीछे पड़ता जा रहा है। हमारे समय में वहां मैनुफैक्चरिंग में व्यवहृत सभी मशीनें बनती थीं। पर अब तो सिख के धार्मिक चिन्ह छोटी कटार भी चीन से आती हैं।

हमारे देश के व्यापारियों ने अपने फायदे के देश की रीढ़ मैनुफैक्चरिंग उद्योग का सबसे ज़्यादा नुक़सान किया है, अपने यहाँ से चीन में सैम्पल भेज हर चीजों को सस्ते बनवा आयात करने का, जो कोई सरकार रोकने सक्षम नहीं हो सकी, नहीं तो आजतक दिवाली की गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां, आतिसवाजी, बिजली की लाइटिंग , यहां तक कि रक्षाबंधन की राखी तक चीन से क्यों आती। दैन्दिन के घर के उपयोग के व्यवहार किये जाने बस्तुओं में चीन के बने स्पेयर पार्ट ही बाज़ार हर दूकान पर क्यों मिलते! सरकारी मशीनरी को शायद यह पता ही नहीं या सरकारी अफ़सरों के कारण यह हुआ है और चलता जा रहा है। इसी कारण से चीन में बने बनारसी ओर कांजीवरम की नक़ली चीन में बनी साड़ियाँ भारत के दुकानों पर मिल जायेंगे।

कब तक चलेगा यह खेल व्यवसायियों का?

केवल प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता का दिन रात का पूरे देशवासियों से अनुरोध क्या माने रखता है? यही सदियों की पराधीनता से पैदा हुई मानसिकता का इतना नुक़सानदेहय परिणाम , जो देश झेल रहा है हर सौविलियन डालर से हमसे अधिक चीन से आयात का कारण।
(अनुरोध- जरूरी सुधार कर लें)

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