पता नहीं किस राजनीतिक दबाब से भारत सरकार जातिय आधार पर जनगणना कराने का निर्णय लिया। अबतक लगता था वर्तमान सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कल तक यह विचार नहीं था। मेरा बिचार इस पर अलग है। जातिय आधार पर कोई भेदभाव करना ही नहीं चाहिये। एक हिन्दू की तरह मैं अपना वर्ण बता सकता हूँ , पर जाति नहीं, क्योंकि इनके नाम का न ऐतिहासिक, न वैज्ञानिक कोई आधार हैा परमहंस रामकृष्ण एवं विवेकानन्द की कहानी कहीं जाति को कोई मान्यता नहीं दी थी। दक्षिणेश्वर मन्दिर बनानेवाली रानी रासमनि, माता पिता की जाति से शायद मल्लाह थी, रामकृष्ण ब्राह्मण, स्वामी विवेकानन्द कायस्थ। भारत के उदय को देखनेवाले उनको मानते है, देश विदेश में, क्योंकि राम कृष्ण मिशन देश विदेश में सनातन धर्म का आधुनिक युग में पताका फहराने वाली सनातन धर्म की एक बड़ी संस्था है। अमरीकन और अन्य देश वाले बड़ी संख्या में हिन्दू बन रहे हैं। कल, अगर देश और यहां के समझदार लोगों नें ISKCON और रामकिशन मिशन को साथ दिया तो सनातन धर्म पूरे विश्व में ख़ुशी से ख़ुशी फैल जायेगा एक न एक दिन। सनातन धर्म सगुण राम, कृष्ण, रामकृष्ण आदि को भी मान लेगा और निर्गुण ब्रह्म की अवधारणा को भी। जातियों का कोई आधार नही, क्योंकि वे केवल पेशे पर आधारित हैं और ये जातियां आती पीढ़ियों के नये नये पेशे के साथ बदलती गईं हैं और बदलती जायेंगी नये नये जीवन निर्वाह के धंधों के साथ, उसमें आजके भारत की सब जातियां समाहित हो जायेंगी। आप कोई भी एक कम्प्यूटिंग का काम करनेवालों को किस जाती का कहेंगी, उनके माता पिता की जाति का? क्या यह सामाजिक न्याय होगा। उसमें कौन कितना महीने में आमदनी करेगा वह जाति पर नहीं काम और काम जानने और करनेवाले की बुद्धि पर निर्भर करेगी। किसी रिजर्वेशन की जरूरत नहीं होगी, कम बेशी अर्जन के लिये जरूरी ज्ञान सबको उपलब्ध होगा। किस तरह यह आज की जाति आधारित जनगणना किस काम में सहायता देगी।
भारत के राजनीतिज्ञों को अपनी विवेकशक्ति बढ़ाने की जरूरत है। जाति विशेष के होने से किसी का सम्मान नहीं बदलता। नहीं तो भक्ति काल के महापुरुष जाति के धर्म के बन के रह जाते महा पुरुष नहीं होते, पहले और आज की तरह पूजे नहीं जाते।
यह केवल सठीक शिक्षा और विवेक ही है जो तुलसीदास, राम, कृष्ण, रविदास, कबीर, रसखान, मीरा, आदि को बराबर का सम्मान दिला रहा है, क्योंकि उन्होंने एक आदर्श रखा जो उनके मा-बाप की जाति के कारण नहीं आया था।आज कौन उनकी बंशवाली देख उनके बंशवालों को सम्मान देगा। किसी मौर्य को क्या चन्द्रगुप्त या अशोक का सम्मान मिलेगा?
संरक्षण सरकार की चीज है १५ साल के लिये था, राजनीति उसको ७५+ साल तक पोसती, संवर्धित करती रही है। बन्द करिये अपनी राजनीति, नहीं तो देश नहीं बचेगा। सब क्षेत्रों में विश्वगुरु, अग्रणी बनने दीजिये राष्ट्र को। लोगों को तोड़िये मत, जोड़िये, गाँव गाँवों में जाकर ज्ञान अर्जन, नवाचार, हुनर की अलख जगाईये झोपड़ी झोपड़ी तक ….यही विवेकानन्द का सपना था विश्वगुरु बनाने का भारत को… आइये इस यज्ञ में आहुति दें अमर बनिये।
मेरे देश के गेरुआ, या सफेद या अन्य वेशधारी भी इस बात को समझे और समझाये। वे बताये सनातन धर्म क्या है सरल भाषा में। हमारे शास्त्र गीता, रामचरितमानस कहते हैं-
१. एक ब्रह्म परमात्मा पूरे संसार में व्याप्त है- गांधी का प्रिय ईशोपनिषद का पहले श्लोक की पहली पंक्ति कहती है-
१अ. ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
-जगत्यां यत् किं च जगत् अस्ति इदं सर्वम् ईशा वास्यम्। यह सबका सब ईश्वर के आवास हैं- पूरे संसार के हर हर कण में ईश्वर का निवास है।
गीता (७.७) कहती है- मत्तः परतरं न अन्यत् किञ्चित् अस्ति धनञ्जय । मयि सर्वम् इदम् प्रोतम् सूत्रे मणिगणाः इव ॥
-मेरे सिवाय दूसरा कोई किंचिन्मात्र भी नहीं है। जैसे सूत की मणियाँ सूत के धागे में पिरोयी हुई होती है, ऐसे ही यह सब संसार मुझमें ही ओतप्रोत है।
२. तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः। इस सबके भीतर है और इस सबके बाहर भी है।
३ यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सतेद॥परन्तु जो सभी भूतों को परम आत्मा में ही देखता है और सभी भूतों या सत्ताओं में परम आत्मा को, वह फिर सर्वत्र एक ही आत्मा के प्रत्यक्ष दर्शन के पश्चात्, किसी से कतराता नहीं, घृणा नहीं करता।
गीता कहती है-६.३२ आत्मा-उपम्येन सर्वत्र समम् पश्यति यः अर्जुन । सुखम् वा यदि वा दुःखम् सः योगी परमः मतः ॥
-जो भक्त अपने शरीर की तरह सब जगह सबमें मुझे समान देखता है, वह परम योगी है।
४. पूरी की पूरी गीता इन दोनों सनातन दर्शन से भरी है। तुलसीदास जी ने उन्हीं भावों लोकभाषा में गाया है। पर हम इन दोनों दुनिया हर वर्ण, रंग, कदकाठी के लोगों को जोड़नेवाले सत्यों को लोगों को समझाये दुनिया प्रेममयी होगी।
पर दुनियाभर के लोगों को लम्बी चौड़ी रसभरी कथाएं सुनाते रहते हैं सैकड़ों तथाकथित संतों, महात्माओं, गुरुओं आदि नाम से जानने वाले लोग।
मैं सभी उत्सुक लोगों इन दो बातों के महत्व को समझाने के लिये प्रस्तुत हूँ जो विविधता में एकता की बार बार बात कर हमें परमात्मा-प्रदत्त शाश्वत सुख और शान्ति के पास पहुँचाने का मंत्र बताते है।
बहुत पंथ बन चुके, बहुत भाषाएं, बहुत मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर बन गये, अब उनकी जरूरी नहीं। अब आई.आई.टी चाहिये, आई. आई.एससी चाहिये, ISRO चाहिये।यही मौक़ा है, सही मौक़ा है। शिक्षा विशेषकर उत्तर भारत के प्रदेशों में बहुत सुधार की जरूरत रह है।शिक्षा के साथ हुनर सीखाने की जरूरत है, नहीं तो नौकरियाँ कहाँ मिलेंगी। सरकार में राजनीतिक कारण से लोगों को सरकारें भरती जा रही है, जो गलत है, बेकार का खर्चा है।