दिल्ली और आसपास के इलाक़े की दुर्दशा


आज यह इलाक़ा राजनीतिक दृष्टि से देश के सभी नगरों से महत्वपूर्ण है। यह देश की राजधानी है, दुनिया की राजधानियों में सबसे पुरानी भी क्योंकि यहीं पुराने क़िले के नीचे महाभारतकाल के पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी, जो अनूठे तरह के भवन निर्माण की कला से युक्त थी महाभारत काल में। उस समय के राजमहल के अद्भुत निर्माण कला के कारण नगर के साम्राज्य की रानी का एक वाक्य महाभारत का युद्ध का कारण बन गया। उसके बाद भी पृथ्वीराज के समय से आजतक भारत की राजधानी है। यहां बसनेवाले ही दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश चलाते हैं, जिसका नाम आज पूरे दुनिया में डंका बजा रहा है। दिल्ली और उसके उसके आसपास के शहर- गुरूग्राम, नोयडा, ग़ाज़ियाबाद, फरीदाबाद देश के सबसे बड़े औद्योगिक केन्द्र भी हैं। देश का सबसे समृद्ध लोग भी रहते हैं और हमारे तरह के बृद्ध भी। यहां पर विज्ञान और इंजीनियरिंग के भी सबसे बुद्धिमान लोग भी रहते हैं और देश के सभी धनवानों के वासस्थान भी हैं।
पर कितना दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था इस जगह की यहाँ प्रदूषण स्तर दुनिया के सबसे भयानक स्तर का है और वह सब मानवीय कमज़ोरियों और उनके मनमाने व्यवहार के कारण है। और हम मूक द्रष्टा हैं। यहाँ के कोई वैसे व्यक्ति जो कुछ कर सकते हैं, वे मौन साधे बेबस लाचार अपने अपने घरों में बन्द जीवन यापन कर रहे हैं। शायद उन्हें पता नहीं कि कब उनकों यहाँ के किसी अस्पताल में जाना पड़ सकता है।
कैसे हम या हमारी तरह के लोग लोग जियें इस अवस्था में। कम से कम मैंने तो ज़िन्दगी में कभी यह सोचा नहीं था। प्रदूषण की मात्रा ४००-५०० में है और हमारे कर्णधारों में कोई जाति आधारित जनगणना कराने की लड़ाई लड़ रहा है और कोई एक देश, एक चुनाव- कराने का क़ानून बनाने में। जो पढ़ा लिखा कहाने वाला सालों से शासक है वह अगले चुनाव जीतने में लगा है जेल से निकल।
क्या बिडम्बना है और क्या इससे निकलने का उपाय? मैंने तो यहाँ से बाहर न जाने का प्रण किया हुआ, तो फिर क्या करूँ गीता में ही मन लगाता हूँ । जब तक यमुना थी तो उनकी देखभाल में दिन निकल जाते थे, पर अब वह व्यस्तता भी ख़त्म हुए साल होने को आये। क्या क…? कौन सुनेगा? शायद सर्व शक्तिमान!

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