मैनुफ़ैक्चरिंग- मेरा जीवन, मेरा देश


एलान मस्क (Elon Musk) युगान्तरकारी टेस्ला ईवी गाड़ियों के लिये प्रसिद्ध हो गया, वह स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से है। भारत अगर आई. आई. टी आदि देश के जाने माने इंजीनियरिंग कालेजों से अगर अमरीका के एलान मस्क, स्टीव जॉब्स आदि की तरह का इंटरप्रेनर और इनोभेटर पैदा करना चाहती है तो मेरे विचार हमारे कालेजों के भर्ती से ले पढ़ाने के तरीक़े में आमूल परिवर्तन करना होगा। इसके लिये इन सभी कालेज के डायरेक्टरों को अच्छे फैक्लटी की सलाह से बदलाव लाना होगा। यह सरकार का निर्देश हो सकता है, सरकार आर्थिक सहायता दे सकती है अगर चाहे। पर करना इन इंस्टीट्यूट के शिक्षाविदों को ही होगा।


दो विशेष कमियाँ मेरी नज़र में हैं अपने अनुभव के अनुसार और आधार पर-
१. भर्ती के लिये चिन्हित विद्यार्थियों की स्वाभाविक रूचि को जानना जरूरी है जो आज नहीं होता- मैं १९५७ में खडगपुर आई.आई. टी प्रवेश परीक्षा से होकर गया था। उस समय भी ४०,००० परीक्षा देते थे। पर भर्ती होने के पहले मुझे मेकेनिकल ब्रांच के लिये चार प्रोफ़ेसरों के एक इंटरव्यू में यह बताना पड़ा था कि मुझे मेकेनिकल में क्यों भर्ती चाहिये, मेरी इसकी रूचि का कारण क्या है? मैंने उत्तर दिया कि मैं जहां मैट्रिक तक का शिक्षा पाया, वह देश का जाना माना जूट मिल था, जहां एक कोयले से चलने वाला अच्छा ख़ासा पावर हाउस भी था और जूट उद्योग मशीनें अलग से। मैं वहाँ के चीफ़ इंजीनियर को मिलते सम्मान से प्रभावित था, स्कूल में कक्षा में प्रथम होते रहने के चलते मिला भी था। वहाँ हुगली नदी में एक जेटी थी जहां दो क्रेन भी थे जो बड़े वोटों से सामान उतारते थे।मैं अकेले जेटी पर हर शाम हुगली नदी को निहारता रहता था। इसका हमारे मेकेनिकल इंजीनियर बनने में बहुत हाथ था। मैंने क़रीब पंद्रह बीस मिनट इस विषय पर इंटरव्यू लेनेवालों को बताया और शायद इसी कारण मुझे वह विभाग मिल गया।


२. पर पूरे चार की पढ़ाई में मज़ा हमें चौथे साल में ही आया जब हमारे तीन प्रोफ़ेसर अमरीकन यूनिवर्सिटी के आये और उनसे पढ़ने का सौभाग्य मिला। आश्चर्य कि बात यह हुई कि चौथे साल के जिस सेमेस्टर में वे पढ़ाये मैं क्लास में औवल हो गया। मुझे उनके सिवाय शायद ही किसी प्रोफ़ेसर की कक्षा में पढ़ाये चीजों की पूरी समझ हुई और उनके औद्योगिक उपयोग की कोई जानकारी हुई।
मैं बराबर अपने तीनों बच्चों और अन्य दोस्तों को कहता रहा कि खडगपुर के पूरे चार साल में मैं शायद ही कुछ इंजीनियरिंग सीखा। जो कुछ भी इंजीनियरिंग सिखा वह हिन्दमोटर के कारख़ाने काम करते करते सीखा और इतना सीखा कि पूरे उद्योग में लोग जाने। मैंने आज के टाटा मोटर्स के इंजीनियरों को कुछ विषयों पर बताने के लिये बुलाया गया। इंजीनियरिंग की किताबें भी लिखीं जिन्हें उद्योगों ने मेरे माँगे दाम पर ख़रीदा। आज भी वह एक मेरी रूचि का अंश है।


३. मेरे ख़्याल से सभी इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को अपने रूचि के जाने माने उद्योग में चारों साल ट्रेनिंग अनिवार्य होना चाहिये। उन्हें मन लगा कर उद्योगों की ज़रूरतों को समझना चाहिये, वैसे ही ज्ञान अर्जन भी करना चाहिये। वहाँ के बड़े इंजीनियरों को अपने मिहनत प्रभावित करना चाहिये। नौकरी पहले ही पक्की हो जायेगी। उद्योगों एवं इंजीनियरिंग में बहुत ज़्यादा तालमेल होना चाहिये।


४. आज बदले परिवेश में प्रोजेक्ट के जरूरी धनराशि का प्रबंध इतना आसान है तो फिर स्टार्ट अप न बना नौकरी क्यों? सभी आई आई टी के लड़कों की तरह मिहनत करनेवाले भी नारायनमूर्ति, धीरूभाई अम्बानी, या गौतम आदानी बन सकते हैं। सोचिये क्यों नहीं आयेंगी और बढ़ेगी मैनुफ़ैक्चरिंग उद्योग और हम क्यों नहीं चीन को मात दे सकते हैं बिना युद्ध किये।


मुझे दुख होता है कि मेरे तीनों मेकेनिकल इंजीनियर बेटे अपने को आई. टी उद्योग के बन गये अमरीका जा, जब सबको इसी देश के मैनुफ़ैक्चरिंग उद्योग मे। मुझसे अच्छा जॉब मिला था। वे अमरीका में एम.एस किये और फिर वही नौकरी करने लगे।बाद एक ने एक ने आई.टी का छोटा कम्पनी स्थापित किया और वह और उसकी पत्नी कुछ भारत के लोगों भारत में नौकरी दे काम करवाते हैं।


इससे उनके मैनुफ़ैक्चरिंग पढ़ने का कोई ख़ास लाभ नहीं हुआ। यही कारण है कि हमारा देश मैनुफ़ैक्चरिंग में फिसड्डी बनता गया १९९० के बाद से और देश चीन के दबाब में है।


उद्योगपति इस बात को समझते नहीं, उन्हें तो सस्ते सस्ते लोग चाहिये जो देश में बहुतायत से हैं। बहुत निम्न से अतिश्रेष्ठ इंजीनियरिंग कालेज हैं। हमारे देश के इंजीनियरों ने आई. टी उद्योग में देश के लिये नाम तो कमाया, पर दूसरी तरफ़ करोड़ों को काम देनेवाला उद्योग नहीं स्थापित कर सके।चीन की तरह का सोच रख कर ही हम उनकी बराबरी कर सकते हैं और हो सकता है कि आगे भी जा पहुँचे। क्या सरकार और प्राइवेट सेक्टर मिल कर यह सुविधा प्रदान कर सकते हैं कि देश का ९५% व्यक्ति – पुरूष और स्त्री दोनों किसी न किसी या एक से हुनर में प्रशिक्षित हो
यह विषय बहुत विशद है । और विना समझे बनाये गये व्यापारिक धंधों से लाभ को प्राथमिकता दे, एक छोटा वर्ग तो ज़रूरत से ज़्यादा सम्पन्न हो सकता है, पर अधिकांश जन वर्ग नहीं…यह समझना और मेरे बताये रास्ते पर चल ही देश का कल्याण होगा। दुख है कि जो यह कर सकते हैं उनके मन में यह विचार नहीं और मुझमें ८५ साल की उम्र वह ताक़त नहीं मैं उन लोगों से मिलने का प्रयास करूँ और अपने मत को समझाऊँ । क्या कोई मेरा मदद कर सकता है? मेरे पोस्ट कोई भी किसी तरह से उपयोग कर सकता है, अगर इससे देश का लाभ हो।
मेरी पूरी कहानी उपलब्ध है http://www.drishtikona.com पर …

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