चुनाव २०२४-एक रोचक वाक़या

रास्ते में २०-२२ साल का नौजवान उबर ड्रॉइवर अचानक बात करने लगा उत्तरप्रदेश के वोटरों के मोदी के साथ विश्वासघात करने के लिये जिसने उत्तरप्रदेश के निचले वर्ग के लिये इतना किया और पर उसकी उत्तेजना मेरे समझ में नहीं आई। मैंने समझाने की कोशिश की। पर वह बार बार कहता रहा कि ये मतलबी अपने वर्ग को दिये सब सुविधाओं का लाभ उठाये, जो किसी ने इतने सालों में नहीं दिया। मैं जानना चाहा क्या दिया मोदी ने। उसका जबाब था, “सर, क्या वे ज़िन्दगी में कभी शौचालय बना पाते? क्या कभी उनको घर मुअस्सर होता? क्या घर में पानी के नल का सोच भी सकते थे सपने में या गैस के चूल्हे खाना बनाने का?…वह बोलता जा रहा था बिना मेरी तरफ़ से देखे बिना मेरी प्रतिक्रिया जाने या किसी प्रश्न किये….”ज़िन्दगी के क्या कभी सोचे भी होंगे बिजली के प्रकाश का घर में? कौन उन्हें आजतक मुफ्त प्रति व्यक्ति पाँच किलो अनाज देता सालों? कौन उसी घर के लोगों को सब्ज़ी या फल या, मछली आदि का ठेले पर या रास्ते में दुकान लगाने के लिये सस्ता बैंक से क़र्ज़ा दिलाता? क्या यह पैसा नहीं है? तब भी क्यों उनका सबसे बड़ा ख़र्चा ढर्रे पर है? और एक बोतल शराब पर गाँव के ठेकेदार उनका वोट ख़रीद लेता है और वोट देने के बाद सौ-दो सौ रूपया और देने का वायदा कर बूथ तक जाना पक्का कर लेता है? मैं उसे रोक रहा था, क्योंकि मुझे लगता था कि वह मेरा घर भूल जायेगा और मुझे देरी हो जायेगी। एकदम मेरे टावर के नीचे तक गाड़ी लाया, श्रद्धा से प्रणाम किया बार बार, फिर पता नहीं किस चीज़ के लिये ‘सारी’ भी कहा। उसे धन्यवाद कर और खुश रहने की नसीहत दे मैं निकल आया सीढ़ियाँ चढ़ने के लिये….
मैं अभी तक भी नहीं समझ पाया कि उसका मोदी या उनकी पार्टी के प्रति इतनी सहानुभूति क्यों है? हाँ, एक बात की याद आती है गाँव के पंचायत के चुनाव में ऐसा ही होता था-प्रति वोट कुछ ख़ास रक़म और…..दु:ख की बात है कि आज हर क्षेत्रों में काम पाने का ज़रिया ठीक्केदार ही हैं यहाँ फ़ैक्टरियों में, घर पर नर्स रखने केलिये, रसोइया, सुरक्षाकर्मी ..ये ठिक्केदार बहुत पैसेवाले होते जा रहें हैं। पर यह सिस्टम ग़लत है। यह उद्योगपतियों का लेबर कोस्ट कम करने का तरीक़ा है…
पुन्श्च: हाँ, एक बात और मैं उबर ड्राइवर के दुख का कारण के पक्ष में बता रहा हूँ। FE में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार एक रिपोर्ट के अनुसार, “भाजपा की हार अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों तक फैल गई। हारी हुई 92 सीटों में से 29 एससी और एसटी के लिए आरक्षित थीं, जिससे इन समुदायों के समर्थन में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई।”

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