जातिय आधार पर जनगणना, इतिहास, धार्मिकता

बिहार पहला राज्य है जो अपने जनसंख्या की लोगों का जाति के आधार पर किया एक सर्वे प्रकाशित किया, जो बहुत चर्चे में है। देशहित विकाश के ज़रूरी मुद्दों को छोड़ बिरोधी दल का देश के लोगों में आपसी मतभेद ला चुनावी जीत हासिल करने का यह शायद दुनिया के किसी देश का पहला प्रयत्न है। अन्य बिरोधी दल शासित प्रदेश सरकारें भी जाति के आधार पर जनगणना कराने की वायदा कर रहीं हैं। दसकों शासन करनेवाली कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी, जातिगत जनगणना के सबसे बड़े पक्षधरों रहें हैं आते प्रदेशों और फिर २०२४ के आम चुनावों को देखते हुए। देश में जाति की बात करना और किसी से उसकी जाति पूछना मेरे समझ में किसी भारतीय हिन्दू का एक राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का महापाप कर्म है।

जाति प्रथा सनातन धर्म की देन नहीं है और बढ़ते हुनरों की ज़रूरत के अनुसार इनकी संख्या बढ़ती गईं। शायद आज भारत में जातियों की संख्या हज़ारों में हैं। साथ ही जातियों में बहुत उप-जातियाँ भी बन गईं हैं, जिनमें एक दूसरे शादी नहीं करते, और एक को दूसरों से नीचा या ऊँचा कहते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के बारे में तो मुझे पता है। पर अन्य जातियों में यह होगा ही।


समय बदल गया है जब जाति की कोई आवश्यकता नहीं है। सभी वर्गों को शिक्षित होने और हुनर सीखने का अधिकार है। आज सबसे ज़्यादा कमाई व्यवसाय में है, आज की सरकार भी यही प्रयत्न कर रही है, किसी जाति के अध्यवसायी चाहे पुरूष हों या स्त्री स्टार्ट-अप एवं छोटे व्यवसायों के लिये भी बहुत कम दर के व्याज पर क़र्ज़ देकर उन्हें सम्पन्न बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। फिर जाति आधारित संरक्षण क्यों? कबतक कुछ परिवारवादी राजनेता वर्ग देश के लोगों की कमज़ोरियों का फ़ायदा ले वोट की राजनीति करते रहेंगे। आजतक इन प्रदेशों उन राजनेताओं ने, जो मुख्य मंत्री बने, चाहे बिहार के लालू- परिवार हों, मुलायम सिंह यादव हों, या पंजाब का बादल हों, हरियाना के चौताला या महाराष्ट्र के शरद पवार, या ठाकरे हों, या तेलगांना का या आंध्रप्रदेश के चन्द्रबाबू नायडू या तमिलनाडु के करूणानिधि, आदि और अब ममता बनर्जी या फिर केन्द्र का गांधी परिवार- केवल अपने परिवार के लिये अकूत सम्पति जमा करने और अपने ही परिवार के लोग उनके उत्तराधिकारी बनाने को निश्चित करने के वोट बैंक की राजनीति को छोड़ कोई राष्ट्र को एक करने, समाज के सबसे कम आय करनेवाले निचले वर्ग के लोगों की ज़िन्दगी ख़ुशहाली लाने में न मन से प्रयत्न किये और वैसा कुछ बदलाव आया। देश के प्रधान मंत्रियों में न लाल बहादुर शास्त्री, न अटल बिहारी बाजपेयी, और अब नरेन्द्र मोदी या अन्य राजनेताओं जैसे कामराज नादर, बिधान चन्द्र राय और आज के ओड़िसा के नवीन पट्टनायक… के मुख्य मंत्री की तरह के ईमानदार और लोग हुए।

तथाकथित बड़ी तीन या चार बड़ी जातियों पतन के रास्ते पर है। अपने को बड़ी जाति की पुरानी मानशिकता मिट नहीं रही है। न वें पढने में बड़ी संख्या में आगे हैं, न हुनर सीखने में दिलचस्पी रखते हैं। अब कुछ वर्षों में सम्पन्नता जाति के आधार पर ज्यादा कम नहीं होगी, उसका आधार होगा है, शिक्षा या हुनर और उसमें दक्षता।


भारत में करीब 3,000 जातियाँ और 25,000 उप-जातियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट काम में दक्षता से संबंधित हैं। कैसे बाँटेंगे, सभी जातियों में उनकी आबादी के अनुसार उनका हक़। कैसे राहुल गांधी का भारतीय जनता को बरगलाता यह ट्वीट ‘Jitni Abadi Utna Haq’ – this is our pledge,” Rahul posted on ‘X’, ज़मीनी हक़ीक़त बनायेंगे। फिर वे क्या अपने को अपने परनाना जवाहरलाल नेहरू से भी समझदार समझते हैं? Jawaharlal Nehru had said: “This way (ever larger scope of reservation) lies not only folly but also disaster. Let us help the backward groups by all means, but never at the cost of efficiency.” जवाहरलाल नेहरू ने कहा था: “इस तरह (आरक्षण का व्यापक दायरा) न केवल मूर्खतापूर्ण है, बल्कि विनाशकारी भी है। आइए हम पिछड़े समूहों की हर तरह से मदद करें, लेकिन दक्षता की कीमत पर कभी नहीं।”

दुर्भाग्य है कि अब जाति प्रथा पर बहस राजनीतिज्ञ कर रहे हैं, ज्ञानी, कोई व्यास या शंकराचार्य नहीं, जिनके लिये न राष्ट्र महत्व रखना है, देश का विश्व के देशों में वरीयता का स्थान।


संरक्षण के बाद दूसरा बदलाव का दौर आया। बहुत बढ़ई, लोहार, भांट आदि अपने को शर्मा कहने लगे। कायस्थ ऊँची जातियों में रहीं होगी, पर वे भी अपने को चित्रगुप्त के बंशज पर टीक गये।

जाति प्रथा में पिता माता की जाति पर बच्चों की जातियाँ होती हैं। इस प्रथा में न कोई वैज्ञानिकता है, न आज के बदलते समाज पर यह लागू हो सकता है। मैं भूमिहार या ब्राह्मण कैसे हो सकता हूँ, जब न खेती करता हूँ, न ब्राह्मण के गुण रखता हूँ। राजा या सैनिक बनना केवल क्षत्रियों तक कभी सीमित नहीं रहा। तथाकथित नीच जाति का होते हुये एकलव्य सबसे मशहूर धनुर्धर बना और एक ब्राह्मण धनुर्धर क्षत्रिय अर्जुन के कारण उससे बरगला कर अंगूँठा काट माँग लिये।मंतग चंडाल होते हुए भी अपनी तपस्या से ब्राह्मण बन गये। आज जब सभी जाति के लोगों के लिये, स्त्री, पुरूष, नपुंसक सबके लिये सभी पेशा, नौकरियाँ खुली हैं, चाहे सेना हो या खेल का मैदान या राजनीति। महिला अपने देश की सफलत्तम वित्त मंत्री हैं, बड़ी जाति के नहीं तथाकथित निचले वर्ग से आया ब्यक्ति देश का अबतक के हुये महानतम प्रधान मंत्रियों में एक है। यही भारत का सनातन धर्म है, क्योंकि हमारे ऋषियों ने सिखाया है-

यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥५॥
यस्मिन् सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद् विजानतः।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥ ६॥

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