पिछली ट्रेन यात्रा की कुछ और यादें- हिन्दू धरम और आज के बाबा

आजकल फिर बाबा लोगों की चर्चा यूट्यूब से लेकर अन्य सोशल मीडिया का ख़ासा विषय बना हुआ है। अपना देश विचित्र है। पता नहीं यह अशिक्षा के कारण है या यह भी आज की फैलती राजनीति नामक रोग के कारण है। एक तरफ़ ‘नीम करोली बाबा’ को भगवान हनुमान का अवतार माना जा रहा है। बाबा नीम करोली का आश्रम उत्तराखंड के कैंची धाम में है।

दूसरे बहुचर्चित बाबा बागेश्‍वर हैं, जो चमत्कार दिखाते हैं। और इनके चमत्कारों के चर्चे देश के हर कोने में है। सुन्दर भी हैं, नौजवान भी, बहुत विशेष सुन्दर पहनावा भी, शादी के लिये तैयार बहुत सुन्दर लड़कियाँ भी ।देश के इन चर्चित बाबाओं का नाम विदेशों तक पहुँच जाता है। वहाँ रहतें भारतीयों में भी कुछ उनके अनजाने भक्त बन जाते हैं और उनसे बातों से अमरीकी लोगों तक चमत्कारी भारतीय बाबाओं की पहुँच हो जाती है। यह बहुत सालों से चल रहा है यह क्रम और बढ़ता ही जा रहा है। कुछ राम-रहीम, आसाराम जैसे और अन्य भी जेल में भी चले जाते हैं सालो के लिये। पर उनके भक्त अभी भी पूजा कर रहे हैं। बहुत पढ़े लिखे लोग और विशेषकर राजनीतिक नेता और व्यवसायी भी होते हैं उनके शिष्यों में। आसाराम के एक शिष्य आई. आई.टी कानपुर के मेरे परिचित भी थे, जिन्हें उन पर अंधविश्वास था, शायद आज भी हो। मेरा सम्पर्क टूट गया है।

पिछली ट्रेन यात्रा में नौ जून के सबेरे आस पास बैठे लोग मुझसे धर्म चर्चा करने लगे। मैं तो केवल उपनिषद, गीता और रामचरितमानस थोड़ा समझने की कोशिश में लगा हूँ और उसकी की ही बातें करता हूँ। करता रहा और वे बहुत दिलचस्पी से सुनते रहे। अचानक उनमें एक नवजवान व्यक्ति ने बडी विनम्रतापूर्वक एक प्रश्न पूछने की आज्ञा मांगी। मैंने हामी भर दी। उसका सवाल था- क्या आप बाबा वागेश्वर के चमत्कारों में विश्वास करते हैं? मैंने कहा मैं बाबाओं के चमत्कार में विश्वास नहीं करता। मैं तो विवेकानन्द, उनके गुरू राम कृष्ण परमहंस, रमन महर्षि आदि को ब्रह्म ज्ञानी मानता हूँ और उनके उपदेशों में विश्वास करता हूँ। बहुत अन्य भी जैसे स्वामी रामसुखदास, तेजोमयानन्द, स्वामी सर्वप्रियानन्द, और भी जिन्हें सुनता हूँ। हर से कुछ नई समझ मिलती है। हर हिन्दू को भी सच्चे धर्म के ज्ञानियों की पहचान होनी चाहिये। दुर्भाग्य वंश आज हिन्दूओं में इन सब ज्ञानोपदेश रूचि कम होती जा रही है और स्पर्धा की दौड़ में आगे बढ़ने की होड़ मची है। ब्रिटेन से हट अब अमरीका का आकर्षण भारत के नौवजवानों को खींच रहा है। पर अंधी नक़ल घातक बन रही है। जैसे शिक्षित स्वास्थ्य में अगर आपके पास पैसे न हों तो आगे बढ़ना मुश्किल है।

हाँ चूँकि सहयात्री झारखंड के थे, और सबेरे के नाश्ते के लिये ठेकुआ, मठरी लाये थे, मुझे भी खिलाये। बहुत बढ़िया स्वाद था, या पता नहीं भूख। पैंटरी का खाना मेरी उम्र के लायक नहीं था।इसके लिये सैंडविच लेना चाहता था, पर नहीं हुआ था। बिहार, झारखंड के लोगों वहाँ की स्पेशल डिसेज को देश में लोकप्रिय बनाने की ज़रूरत है। हमारे सहयात्री भी माने। कौन जाने यह ट्रेन की आख़िरी यात्रा हो… हाँ
सब ठीक ही होगा।

पिछली सासाराम की यात्रा ब्यक्तिगत थी, कुछ बाक़ी काम निपटाने की ज़रूरत थी, क्योंकि बच्चे यह नहीं कर सकते थे। पर सासाराम और अपने पितातुल्य चन्द्रमणि मामा की यादें बहुत पुरानी है। ख़ुशी हुई, सासाराम को पूरी तरह बदला पाया और यह ख़ुशी ह आन्तरिक थी बहुत गहरी। वह सोया अन्धेरा पिछड़ा सासाराम अब अन्य जिलापीठों से ज़्यादा प्रकाशित और आधुनिक लगा। न स्टेशन पहचान पाया, न जी. टी रोड के दोनों ओर एक दम बदले बहुत सुन्दर मकानों एवं दुकानों की श्रृंखला। दोपहर और रात में लिया चित्र बतायेगा। कभी सोच भी नहीं सकता था कि सासाराम इतना सुन्दर लगेगा। स्टेशन के प्रकाशित रैंप और सीढ़ियाँ इतना मनभावन लग रहीं थीं। शहर में एक उत्सव सा चलता लग रहा था। बहुत नामी सुसज्जित दुकानें हैं। एक डिजनीलैंड का प्रतिरूप भी देखा, और शिव की विशाल मूर्ति किसी बाबा और उनके धनी शिष्यों की कृपा का बखान कर रहा था। ताराचंडी भी बहुत प्रभावित किया। कैसे लोग हैं जो अब भी कहते चलते हैं देश और विदेश में भी कि भारत पिछड़ा है, गन्दा है, गरीब है। खोजने पर वैसी जगहें तो अमरीका में भी मिल जायेंगी। एक होटल का कुछ घंटों का अनुभव अच्छा रहा। अब कोई अमरीका वाला भी रह सकता है। कुछ कमियाँ हैं, समय से ठीक हो जायेंगीं । शेरसाह का मक़बरा भी साफ़ लगा। अब इसके चारों के तालाब में मछलियां पाल कर सरकार कमा रही है। भीतर जाने पर भी टिकट ख़रीदना पड़ता है। पर हमें तो केवल फ़ोटो लेना था, द्वारपाल मान गये।
वाह सासाराम …बढ़ते रहिये रोहिताश्व गढ़ जाने की मनसा शायद कभी पूरा न हो, पर कौन जानता है…बहुत जगह जा नहीं सका। पत्नी जो अब माँ बन चुकी हैं उनकी देख रेख को केवल कुछ घंटे ही छोड़ा जा सकता है दूसरों पर।अलविदा सासाराम …,

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