अबोध बच्चे एवं हमारी ज़िम्मेदारी

भगवद् गीता में कृष्ण ने ‘सर्वकर्मफलत्याग’(समस्त कर्मों के फल का त्याग) को ही उपासना,अभ्यास,ज्ञान,ध्यान से भी उत्तम रास्ता बताया है भगवत् प्राप्ति का.इस ८० के नज़दीक के उम्र में हम क्या कुछ अच्छा कर्म करें-जो हम कर सकें एवं मन को शान्ति भी दे, किसी फल की आकांक्षा भी न हो. शिक्षा हरदम से मेरा प्रिय विषय रहा है. देश के ६०-७० प्रतिशत बच्चे जो शिक्षा पाते हैं अपने स्कूलों में; वे बारह साल या ज़्यादा हिन्दी (या अपनी भाषा)और इंग्लिश पढ़ने के बाद भी इन भाषाओं में लिखी पुस्तकों को न सठीक साफ़ साफ उच्चारण के साथ बढ़िया से पढ सकते हैं,न उसका अर्थ समझते है. कितनी दयनीय स्थिति है शिक्षा की, पर फिर भी वे परीक्षाओं में अच्छे अंकों से उतीर्ण हो जाते हैं. इस पढ़ाई का क्या फ़ायदा? अगर स्कूल के अध्यापक इस एक योग्यता को बच्चों में ला दें, तो शिक्षा सार्थक हो जायेगी.दुनिया बहुत बड़े सफल लोग स्कूली शिक्षा न होने के बावजूद भी केवल पढ़ना समझना जानने के कारण स्वाध्यन कर सब कुछ कर पाये- जैसे विल गेस्ट्स,जुकरवर्ग, स्टीव जॉब और बहुत सारे. पिछले दिनों में मैंने मेडसरवेंटस् के पाँच लड़के लड़कियों से लम्बी बातचीत की, समस्या को समझने और उसका कुछ हल निकालने के लिये. अपने घर में काम करनेवाली सुनीता के बच्चों-लक्ष्मी एवं गोलु- को खाने पर बुलाया जिससे वे खुलकर बात कर सकें.खाने के बाद हमने उन्हें एक स्कूल स्तर का इंग्लिश हिन्दी शब्द कोष दिया और उसका ब्यवहार करना सिखाया. हिदायत दी कि वे अगर पाँच शब्द रोज़ सीखें तो वे बहुत जल्द इसके फ़ायदे समझ जायेंगे.दो बातें तय है कि इन बच्चों के माता पिता स्कूल में भर्ती कराने के अलावा बच्चों की पढ़ाई में कोई सार्थक मदद नहीं करते,न कर सकने लायक हैं.यहां तक की घर में भी माता पिता का कोई ध्यान इन बच्चों की पढ़ाई की प्रगति पर नहीं होता. स्कूल से आ ये बच्चे शायद ही किताब खोलते हैं.शायद बच्चों से ज़्यादा उनके मांबाप को शिक्षा एवं उचित सलाह की ज़रूरत है कि वे कैसे बच्चों की शिक्षा की रूचि को बनायें रखें एवं इस जानकारी के महत्व को समझें.अधिकांश बच्चे माँ बाप के काम को ही देखते एवं करने की इच्छा बना लेते हैं. न माँ बाप न स्कूल के अध्यापक उन्हें समय रहते बताते हैं कि वे मिहनत कर कैसे अपना भविष्य ख़ुशहाल और समृद्ध बना सकते हैं. हम सभी शिक्षित एवं सम्पन्न अगर अपने घर में काम करनेवाली के बच्चों को कुछ अच्छा बनने में थोड़ी सी सहायता कर दें पैसे से नहीं, इन बच्चों को उत्साहित कर, कुछ ग़लतफ़हमियों को दूर कर तो बहुत बड़ा सकारात्मक अन्तर आ सकता है. केवल महीने में एक घंटा अधिक से अधिक समय का दान देना है इस पवित्र यज्ञ के लिये, पीढ़ियाँ सुधर जायेंगीं इन पिछड़ों की, देश आगे बढ़ जायेगा देखते देखते.हमारे आम्रपाली इडेन पार्क में १५५ औरतें घरों में काम करतीं है, पूरे एफ ब्लॉक में तो शायद हज़ार से ऊपर की संख्या होगी. काश, हम समाज के पिछड़े वर्गों की सहायता कर सकते इस तरह….

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