पचपन में मैं
पंद्रह का था |
आज के ही दिन
५५ साल पहले
मैं दूल्हा था
एक गाँव में |
और गाँव के बाल बृद्ध
और महिलाएं
समझ नहीं पा रहीं थी
कौन है दूल्हा |
क्योंकि
साधारण बारातियों की तरह थी भेसभुषा
सादी थी धोती और सादा था कुर्ता|
कर्मकांड हुए सजे मांडो में
कोहबर में
और मैं थक कर था सोया
शायद ही समझता था
बिबाह का अर्थ या इसका अनर्थ |
पर समय की गति से
सम्बन्ध फलता रहा
फूलता रहा
और एक ब्यक्ति से
एक परिवार बनता रहा |
नहीं कोई चित्र उसका
पर मधूर यादें हैं
बहूत मधूर बातें हैं
और है उसका आनंद |
और हे परमपिता
सब तुम्हारी है माया और जाल
और आशीर्बाद |
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