कुछ बचपन की यादें, कभी हम न भूले, कभी हम न भूले
वह दादी की लोरी, और लोरी में चंदा
को उनका बुलाना
और चुपके से कोरे का मुहं में लगाना, कभी हम न भूले.
कुछ बचपन की बातें, वह चाचा से लड़ना,
और चाची का आकर फिर मुझको बचाना,
वह आँगन का झुला
वह बरसा के आँगन में,
गिर कर फिसलना,
फिर माँ की वह झिड़की, और दादी का आना
और गोदी उठाना, कभी हम न भूले, …
फिर सर्दी की रातें और दादी की गोदी
दुबक कर वह सोना,
फिर माँ का वह आना
और खाना खिलाना, कभी हम न भूले, कभी…
कोनहर का पानीभरी वह तलैया
फिर अपनी बनाई वे कागज की नावें
हवा के झकोरों से उनका वह चलना, कभी हम न भूले, कभी हम न ..
वह आँगन का सुगना और उसका फुदकना
वह काली सी बिल्ली
और मोटा वह बिल्ला
जो पहले डराए, पर फिर मन को भाए, कभी हम न भूले …..
वह बाबु से डरना, फिर दादा से हिलना
और दादी की गोदी में बचने को छिपना
वे दोहे सवैयें, फिर सोहर के गानें
वे बागों के झूलें और कजरी कहानी
और खेतों में रोपनी और रोपनी के गानें
उन बीते दिनों की कुछ सहमी सी बातें
वह दादा का चांटा और दादी का गुस्सा
और दादा पर रूसना, फिर उनका मनाना
सदा याद आते, सदा याद आते..
यादों के झरोखों से छन छन कर आती
बहूत सी हैं बातें. कंहा तक कहूं सब
उमर की डगर यह, उन यादों में कटती
यही शायद सच्ची है, जीवन कहानी