पराली का प्रलय: हत्यारे बनते किसान

 

आज सबेरे धूंआ की एक तीव्र गंध के कारण नींद खुल गई। थोड़ा सोचने पर लगा कि यह आम प्रदूषण नहीं है। फिर नोयडा का API index भी देखा। वह तो 183 ही था। फिर लगा कल रात एक शीशे का दरवाज़ा बन्द नहीं किया था, बाहर की थोड़ी ठन्ढी हवा के लिये। शीशे का दरवाज़ा बन्द किया । नित्य प्रात: का स्नान, पाठ, गीता स्वाध्याय और थोड़ा सामान्य शारीरिक व्यायाम को 6 बजे ख़त्म कर तैयार हो गया नीचे जा भ्रमण के लिये। पर बाहर निकलते ही वही तीव्र धूंये की गंध के कारण मास्क पहना। नीचे पहुँच घूमने की कोशिश की थोड़ी देर। मेनगेट के गार्डों से पूछा तो एक ने कहा पराली जल रही है चारों ओर नोयडा, हवा के कारण धुआँ यहाँ तक छा गया है। फिर याद आया कि अमरीका से आईबड़ी बहू ने कुछ दिन पहले बताया था कि जब वह पास के हापुड़ में रहते अपने मौसी जी घर गई थी तो देखी थी पराली जलते हुये। मीडिया ने क़रीब एक महीने पहले बताया था कि इस बार यह पराली का जलाना कम हुआ है।एक समाचार में बताया कि एक कम्पनी किसानों के खेतों से पराली उठा लेती है। इस पर मैंने पहले भी फ़ेसबुक में लिखा था। गड़करी के अनुसार एक बड़ी तेल कम्पनी ने पराली से एथानॉनल बनाने के लिये एक लाख लिटर के सालाना क्षमता की एक कम्पनी बनाई है। 10% तक पेट्रोल गाड़ियों एथानल मिलाने का क़ानून भी गया है। आयात कम करने  की बड़ी संभावना भी है। अभी भी किसान समझते नहीं या समझना चाहते नहीं कुछ लोगों के बहकाने से।* हमारे किसान अपनी जड़ मानसिकता को छोड़ने को तैयार नहीं और अन्नदाता से मृत्युदाता बन गया है पिछले सालों में। आज ज़मीन के मालिक अपने खेती की ज़मीनों को गाँव के कमजोर बेबस खेती से कमाने वाले लोगों को अच्छे सालाना रेट का रूपया ले पर साल भर के लिये दे देतें हैं, जो उसमें खेती कर अपने परिवार का पोषण करते हैं। हाँ, किसानों का सरकारी अनुदान ज़मीन के उन्हीं निक्कमें मालिकों को मिलता है जिनके नाम ज़मीन है सरकारी रिकॉर्ड में। जमीन्दारी प्रथा क़ानूनी ढंग से ख़त्म होने पर भी एक नये रूप में आ गई। ये खेतों से उत्पादन की कमाई पर आश्रित असली खेती करते लोग सभी तरह से खेतों से जितनी ज़्यादा कमाई जितनी कम खर्च पर कर सकते हैं, करते हैं चाहे ज़मीन का नुक़सान हो, या पर्यावरण का। वे नयी तकनीक क्यों सीखें।  सभी राजनीतिक नेता इस नई व्यवस्था में शामिल हैं। पराली के जलाने की शुरूआत उसी के कारण हुआ है और चल रहा है। सरकार निर्विकार भाव से टैक्स देनेवालों के पैसे किसानों पर खर्च कर वोट जीतने के प्रयास में लगी है।दुर्भाग्य है कि सरकार के प्रमुख  नीतिनिर्माताओं को यह पता ही नहीं या पता होने पर भी वह ज़ाहिर नहीं करना चाहते हैं। कौन अपना नुक़सान करे-  चाहे ज़मीन अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाये, पराली जले, या प्रदूषण फैले, और लोग बीमार हों या मरे।

पिछले साल मेरी पत्नी को जब न्यूरोलाजिस्ट ने कहा कि उन्हें डिमेंसिया हो गया है जिसे Clouded Dimentia कहते हैं। और उसका कारण है  प्रदूषण के कारण सुर्य की रोशनी का न हो अंधियारा छाया रहना जो हर साल पराली जलाने के समयकाल में दिल्ली के चारों ओर के इलाक़े में हो जाती है।इन्हीं दिनों ऐसे मरीज़ों की संख्या बहुत बढ़ जाती है।  जिसका कोई इलाज ही नहीं है और यमुना की तरह के मरिज अपनी याददाश्त खोते जाते हैं। डाक्टर से कुछ दिनों पहले फिर पूछा था कि आनेवाली इस समस्या से कैसे लड़े।  वे दवाई चलाते रहने के लिये कहें और सूरज की रोशनी होने पर सबेरे धूप में थोड़ी देर बैठाने के लिये जब प्रदूषण कम हो।मैं नोयडा में 1997 में आया,  पर उस समय ऐसा नहीं होता था।पिछले दशकों में पंजाब से पराली का जलाना चालू हुआ, अब तो हरियाना, उत्तरप्रदेश आदि सभी प्रदेशों में फैलता जा रहा है। पंजाब को लोग अभी भी खेती करने के तरीक़ों में अगुआ मानते हैं। पर पंजाब कृषि में अपना वर्चस्व खो चुका है।

 

दिल्ली के मुख्य मंत्री जो दुर्भाग्य से हमारे आई. आई. टी-खडगपुर के विद्यार्थी थे और लोकप्रिय भी है। तभी तो बार बार चुने गये हैं। पर बिहार के इंजीनियर  मुख्य मंत्री नीतिश कुमार जैसे बिहार को निराश किये, वैसे ही केजरीवाल से हमें बड़ी उम्मीद थी दिल्ली के कायापलट सम्बंधी मुझे, पर ग़लत निकली। केजरीवाल  इंजीनियर का दिमाग़ खो दिये, केवल लोगों की  वोट जीतनेवाली कला में माहिर हो गये। दिल्ली का कुछ बदलाव नहीं कर पाये।यह तो अच्छा है कि दिल्ली देश की राजधानी भी है और अन्य स्वतंत्र एजेन्सियाँ भी है दिल्ली को आगे ले जा संसार में एक नया स्थान बनाने में मदद के लिये।

 

और अब जब पंजाब में जहां काँग्रेस पार्टी की सरकार थी, पिछले चुनाव में केजरीवाल का आप पार्टी आ चुकी है।पर केजरीवाल न पंजाब के किसानों को समझा पाये न पाये इस साल भी और  दिल्ली और आसपास के क्षेत्रीय शहरों में पराली जनित क़हर से बचाने का कोई प्रयास नहीं किये। क्या दिल्ली और इनके पास के इलाक़े में बढते प्रदूषण को रोकने का प्रयत्न किये, हाँ देश के प्रधान मंत्री बनने का सपना देख सकते हैं? क्या दिल्ली शहर संसार की नज़रों में एक अच्छा शहर बन पायेगा? क्या दिल्ली या उसके पास के क्षेत्रों में कोई विदेशी आ रहना पसंद करेगा या यहाँ विदेशी प्रर्यटक यहाँ आना चाहेंगे? क्या प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री और राजनीतिक दलों के नेतृत्व को हर दलगतऔर व्यक्तिगत विरोध या कठिनाई के बावजूद भी इस देश की प्रतिष्ठा को बचाने के लिये इस काम पर एक व्यापक प्रयास नहीं करना चाहिये था?

 

क्या इस क्षेत्रों के प्रबुद्ध नागरिकों को मिल इसलिये एक स्वार्थरहित आन्दोलन करने के लिये आगे नहीं बढ़ना चाहिये? क्या सभी स्कूलों के हेडमास्टरों और बच्चों स्कूलों को बन्द कर इसका बिरोध नहीं करना चाहिये जिससे बहरे अंधों को इस समस्या का समाधान ज़रूरी है समझ में आये? IT वालों को गाड़ी न चला घर से क्यों काम नहीं करना चाहिये प्रदूषण को कम करने के लिये? क्या धूँआ उगलते सब जेनेरेटरों, ट्रकों, ट्रैक्टरों को क्यों इस क्षेत्र में प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिये? क्यों बिजली के वाहनों  को और सूर्य शक्ति से बिजली उत्पादन को उन सभी को बढ़ावा नहीं देना चाहिये जिनके पास जगह है। क्या शहरी संस्थानों  के ख़ाली ज़मीन में या भवनों पर शौर्य उर्जा का उत्पादन करना ज़रूरी नहीं कर देना चाहिये? कब सभी काम सरकार पर हम छोड़ते रहेंगे? आज का दो मीडिया रिपोर्ट देखिये और कुछ सोचने और कुछ प्रयास के कदम उठाने की चर्चा करिये और सोचिये और इस अंचल को कालकोठरी बनने से बचाइये।  यह ८३ साल का बूढ़ा इसके लिये जो पहल करेगा उसके साथ होगा।

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s