एक खोया श्लोक: आज सबेरे सबेरे यू. डी. चौबे जी का फ़ोन ने मेरी उनसे किये हुए एक श्लोक को सठीक जानने की इच्छा पूरी कर दी और इसके लिये मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। मेरे दादा जी मेरे किसी ध्येय में असफलता के समय इसके द्वारा मुझे समझाते भी थे, हमको शान्त करने एवं कोशिश को जारी रखने में उत्साहित करने के लिये। उस समय तक तो संस्कृत की कोई जानकारी ही नहीं थी मुझे। कुछ और श्लोक थे जो गीता से थे, उन्हें तो गीता में रूचि आने पर जान लिया और याद भी कर लिया।वे थे…
१
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥२.४७॥
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल की चिन्ता न कर कर्म में भी पूरी निष्ठा को केन्द्रित करो।
You have the right to work, but never to the fruit of work. You should ever engage in action for the sake of reward, nor should you long for inaction.
२
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥२.६९॥
सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जब रात्रि होती है, उस समय ज्ञानार्थी जगता हुआ पूर्ण निष्ठा के साथ चेष्टा रत होता है अपने ज्ञान अर्जन के लिये स्वाध्याय, मनन, चिन्तन में; और दिन में जब सभी सांसारिक व्यस्त हो जाते हैं सांसारिक सुख की प्राप्ति में और जागते हैं। तब ज्ञानार्थी के लिये वह रात्रि की तरह रहती है।
In the night of all livings, a sage remains awake. And so-called day of the livings is the night of ignorance to the wise.
पर समय समय पर उस न याद आनेवाले श्लोक की याद आती थी, पर इसके केवल भाव एवं केवल अन्तिम दो शब्द ही ग़लती सही याद थे। पिछले दिनों मैंने चौबे जी से इसके बारे में पूछा था, उस दिन उन्हें याद नहीं आया था, पर कल के समागम वार्ता में जब एक बार फिर अनुरोध किया तो उसको आज वे मुझे क़रीब क़रीब पूरा बता दिये ।मैं फिर इसे गुगल से खोज लिया….सबकी जानकारी के लिये वह श्लोक यहाँ दे रहा हूँ….यह बताता है कि लक्ष्मी देवी उन्हीं के पास आती हैं जो किसी चेष्टा में असफलता के बाद भी उस सफलता के बारे में कारण जानने का सतत प्रयास कर ग़लती को सुधार अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। यह संस्कृत के प्राचीन एवं अति लोकप्रिय पंचतंत्र से है-
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उद्योगिनं पुरूषसिंहमुपैति लक्ष्मी ,
दैवं हि दैवम् इति कापुरूषा वदन्ति ।
दैवं निहत्य कुरू पौरूषम् आत्मशक्त्या,
यत्ने कृते यदि न सिद्धयति कोअत्र दोष: ।।
( पंचतंत्र, मित्रसम्प्राप्ति )
Goddess Lakshmi always stays with the industrious people. Everything depends on the Luck is the thinking of the lazy people. Therefore, we should leave apart the luck and devote ourself to do the hard work. If full efforts are made but desired results are not achieved, there is no harm in that.
उद्यमी पुरूष के पास ही सदैव लक्ष्मी जाती है । सब कुछ भाग्य पर निर्भर है ऐसा कायर पुरूष सोचते हैं । इसलिए भाग्य को छोड़ कर हमें उद्यम करना चाहिए । यथाशक्ति प्रयास करने के बावजूद भी यदि सफलता नहीं मिली तो इसमें कोई दोष नहीं है ।
फिर से चौबे जी की स्मरण शक्ति को दाद देते हुए जो भगवान की कृपा से प्राप्त होती है, जैसा गीता के १५ अध्याय के १५ श्लोक में बताया गया है-
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥
मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (संशय आदि दोषों का नाश) होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य (सर्व वेदों का एकमात्र जानने योग्य ‘परमेश्वर’) हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ॥15॥
I am seated in everyone’s heart, and from Me come memory, knowledge and forgetfulness. By all the Vedas, I am to be known. Indeed, I am the compiler of Vedanta, and I am the knower of the Vedas.
हम में हर व्यक्ति में स्मृति शक्ति कम बेशी होती है, यद्यपि अभ्यास से इसे बढ़ाया जा सकता है। पर महापुरूषों में यह अनोखी होती है जैसे स्वामी विवेकानन्द जी की जो मेरठ में एक लाइब्रेरियन को आश्चर्यचकित कर दिया था। जब उन्हें पता चला था कि लाइब्रेरी में इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के सभी नये भ्लयूम उपलब्ध हैं तो अपने स्थानीय एक शिष्य के मार्फ़त दो दो कर मंगाने लगे एवं दूसरे दिन लौटा देते थे। एक दिन लाइब्रेरियन को उत्सुकता हुई और पूछ बैठा कि क्या वे अध्ययन भी करतें है या उलट पुष्ट कर लौटा देते हैं। इस पर विवेकानन्द ने उससे किसी भी पृष्ट के विषय में पूछने को कहा और सब अक्षरश: बता दिये। चौबे जी की भी याददाश्त बहुत अच्छी है। इतने दिनों के साथ से यही निष्कर्ष निकाला हूँ ।