आज के परिप्रेक्ष्य में तुलसीदास उनके राम
नानापुराणनिगमागम के ज्ञानी तुलसीदास(१४९७-१६२३) ने अपने इष्टदेव की तरह श्री राम को ही क्यों चुना? उनके समय में एवं पहले से ही भक्त कवियों में कृष्ण छा चुके थे जयदेव (१२०० ई.), सूरदास(१६४८-१५८४), मीरा(१४९८–१५४६) सभी कृष्ण में रमें….बाल्मिकी रचित संस्कृत के पहले महाकाव्य के व्यक्तित्व में तुलसीदास ज़रूर वह सब पाये जो एक देश निर्माता कवि को चाहिये था. पूर्ण रूप से राम में समर्पित एवं अपनी विभिन्न तीर्थ यात्राओं के अनुभवी भक्त तुलसीदास देश के लोगों में व्याप्त कुरितियों एवं आम लोगों के तकलीफ़ों से भी वाक़िफ़ थे, और उनके ऐतिहासिक कारणों से भी.साथ ही दूरदर्शी भी थे संस्कृत के ‘कवि’शब्द के अर्थानुकूल..ऐसा हो ही नहीं सकता कि उन्हें देश के सैकड़ों सालों से विदेशियों द्वारा पहले किये विध्वंसक आक्रमण एवं लूट,मन्दिरों एवं उनकी मूर्तियों के विनाश, देश के लोगों को दास बना ले जाने एवं बाद में हिन्दू राजाओं में एकताहीनता के कारण देश पर विजय प्राप्त कर शासक बन जाने एवं फिर उनका हिन्दू धर्म एवं भावना के प्रतिकूल आचरण करने आदि का इतिहास उनको मालूम न हो और उनको दुख नहीं देता हो.उन्हें इतिहास की जानकारी थी…कैसे सिकन्दर के आक्रमण के समय अम्भीक ने सिकन्दर का साथ पोल्स को हरवाया…कैसे पृथ्वीराज को जयेन्द्र ने धोखा दिया…कैसे न पंजाब, न गुजरात के अपने को महायोद्धा कहने वाले राजा एक होकर विदेशी आक्रमणों का सामना नहीं किये अपने ऐयाशी जीवन के लिये स्वार्थी बने रहे, आपस में लड़ते रहे, और फिर कैसे न हेमू का हिन्दू राजाओं ने साथ नहीं दिया, न महाराणा प्रताप का…यहाँ तक कि अपना भाई शक्ति सिंह ही धोखा दे गया और अपने राजा, महाराजा कहने वाले राजपूताना के अन्य वीर पर स्वार्थी लोग मुग़ल दरबार की शरण में आ गये बेटी बहन की शादी कर…एक राणा प्रताप अन्त तक भीलों को अपने साथ जोड़ लड़ते रहे अपनी कमजोर सेना के बावजूद भी ….कैसे तुलसीदास की तरह का विद्वान देश के पतन के इन कारणों से अपरिचित हो सकते हैं और उन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा होगा…उनका समय काल अकबर एवं महाराणा प्रताप का था. अकबर के नौ रत्नों में एक राजा टोडरमल भी थे, जिनसे से वे सम्पर्क में थे. तत्कालीन संस्कृत के पंडितों से अवधी में लिखे अपने रामचरितमानस के विरोध और उसे नष्ट करने की धमकी के कारण वे एक प्रति सुरक्षित रखने के लिये टोडरमल के पास भिजवाये थे। तुलसीदास ने भारत का राज्य करने के लिये राम के चरित्र द्वारा भारत के लिये एक आदर्श पुरूष एवं राजा की कल्पना की.समाज के आम गृहस्थ परिवार के लिये भी एक अनुकरणीय आचरण की मर्यादा बनाई.अपने अलग अलग माँ के चार भाई थे…चार भाइयों की पत्नियाँ भी दो भाइयों की बेटी थी….पर उनके आचरण को देखिये कैसे चित्रित किया तुलसीदास ने आदर्श रूप में, सौतेली माँ के अनुचित हठ के कारण पिता के आदेश को सहर्ष स्वीकार किया. वन गये चौदह साल के लिये वनवासी की तरह….रास्ते के ऋषियों से ज्ञान अर्जित किया, साधारण से साधारण लोगों से पूर्ण श्रद्धा मिली अपने स्वभाव के कारण, चाहे वे केवट हो या निषाद राज, बानर हनुमान हों या सुग्रीव, तत्तकालीन दुष्ट तपस्वियों को सतानेवाले राक्षसों को पराजित किये, शबरी के जूठे बेर भी खाये प्रेम से, सबकी सहायता ली सीता हरण के बाद पहले खोजने में, जटायु से विभीषण तक की, फिर समुद्र पर पुल बनाते हुए ज्ञान का रास्ता छोड़े अहंकारी ब्राह्मण राजा रावण को भी हराया, …एकपत्नी व्रत का पालन किया, और फिर ‘हम दो हमारे दो’ का भी आदर्श दिया…
रामचरितमानस के दो प्रकरण- अपने समय के कलियुग काल का वर्णन
“भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।..द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन..”
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥
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सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी॥
जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना॥
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एवं रामराज्य के रूप का चित्र
“सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥…
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥…
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला॥…..
उनकी तत्कालीन सामाजिक पतन एवं उद्धार दोनों के सम्बंध में उनके विचारों की गहरी पैठ की कहानी कहता है।
तीस चालिस साल पहले तक रामायण उत्तर भारत के हिन्दी प्रदेश गाँव गाँव तक गाया, जाना, समझा जाता था…नई शिक्षा पद्धति, नई विदेशी आचरणों का नक़ल पूरी तरह से हमारी संस्कृति को नष्ट कर दिया और यह प्रभाव फैलता ही जा रहा है और उसका निराकरण भी नहीं दिखता…होइहे वही जो राम रूचि राखा कह हम संतोष कर रहे हैं…
हाँ, एक और बात
इसी कारण से वे कृष्ण की मूर्ति को देख कह पाये:
“काह कहौं छबि आजुकि भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै धरो धनुष शर हाथ ॥
क्योंकि उनके आदर्श थे:
नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
भारत की आज़ादी में रामचरितमानस का बहुत बड़ा हाथ रहा है…क्योंकि महात्मा गांधी गीता एवं रामचरितमानस के भक्त थे….
आज भी तुलसीदास का रामचरितमानस उतना ही सामयिक सामाजिक सांस्कृतिक अध्यात्मिक है जितना अपने समय था….गीता और रामचरितमानस के जीवन दर्शन का अभाव समाज में एवं देश के लिये विपर्यय ला रहा है….
हम भूल जाते हैं तुलसीदास का महत्व जिनके बारे में दो विदेशी विद्वान— प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ ने उन्हें अपने समय का सबसे बड़ा व्यक्ति कहा है, यहाँ तक की अकबर से भी बड़ा एवं भाषाविद् सर जार्ज ग्रिफ़िथ ने उन्हें बताया, ‘ the greatest leader of the people after the Buddha’. यह अभी हाल में प्रकाशित पवन कुमार वर्मा की किताब ‘The greatest ode to Lord Ram’ में निम्नलिखित रूप में है-
The historian Vincent Smith has called him the greatest man of his age in India, greater than even Akbar himself. The linguist Sir George Griffith has described him as ‘ the greatest leader of the people after the Buddha’.
Let the Hindi knowing people of India not shun Tulsidas…..and it is only Ramcharitamanas that can keep the society together particularly in rural North India.