रोज सबेरे यहाँ एक निर्माणाधीन मेट्रो के लोगों के रहने के लिये बनती बहुमंज़िली इमारत के सैकड़ों मज़दूरों को देखता था….ट्रैक्टरों पर आते नोयडा के किसी झुग्गी वस्ती से…पर आज के कोरोना के दूरी बनाये रखने की आवश्यकता को ये प्रवासी मज़दूर कैसे पालन करेंगे…..जब यह काम प्रारम्भ होगा।
नोयडा ऑथरिटी या ऐसे ही नगर निगम या राज्य सरकार लाखों की तादाद में काम करते शहर में आये प्रवासी मज़दूरों के लिये भाड़ा पर मिलने वाले बहुमंज़िली इमारतों के समूह का निर्माण चारों कोनों या उचित जगहों में क्यों नहीं करती, जहां स्कूल, बाज़ार, अस्पताल, आदि सुविधाएँ हों, जहां से बस सर्विस हो जिससे वे सभी जगह आ सके. अनियमित झुग्गियाँ किसी भी शहर के लिये कोढ़ हैं, जहां एक मनुष्य मनुष्य की तरह रह सके..
सभी वास की सुविधायें केवल उनके लिये ही क्यों जो कम से कम ५० लाख से १ करोड़ लगा घर ख़रीद सके….इनमें रहनेवाले या तो बड़ी बड़ी नौकरियों में हैं या सरकार में आमदनी के जगहों में या फिर व्यवसाय में….ये वही लोग हैं जो सरकार के कृपापात्र भी हैं….
हम कैसे जाने की सरकार इन प्रवासियों के प्रति संवेदनशील है जब न तो वे जहां से आते हैं, न जहां काम करते है, इसका एकत्रित सूचना एक जगह उपलब्ध हो, हर काम करनेवाले के पास कम से कम आधार कार्ड एवं बैंकों में खाते हों, जो ज़रूरी रूप से उनके सम्बंधी जानकारी हरदम हरदम अपडेट की जाती रहे. इनमें अधिकांश न सामान्य रूप से शिक्षित हैं, न किसी ने कोई हुनर हासिल की है….ऐसे स्कूल, कालेजों की पढ़ाई का क्या मतलब जो न सामान्य रूप से शिक्षित कर पाती हो जिसके बदौलत कुछ केवल अथक अमानवीय शारीरिक श्रम से ऊपर का काम पा सके, जिससे व्यक्ति अपना अधिकार समझ सकें, अपनी ज़िम्मेदारी समझ सके….बिचौलियों के बहकावे में न आये, धूर्त श्रमिक ठेकेदारों या एजेंटों द्वारा ठगे न जाये, सरकार की दी हुई सुविधाओं का ईमानदारी से लाभ उठा सके…..अगर पढ़ाई न कर पाता हो तो कुछ न कुछ हुनर हासिल करें जिससे अपने परिश्रम का पूर्ण फ़ायदा उसे मिले.
पूरी शिक्षा व्यवस्था ऐसी ही हो. इसे छोड़ जो शिक्षा स्कूलों, कालेजों, अन्य तथाकथित संस्थाओं में एक पराधीन काल की साज़िश की तहत दी जा रही है उसे बन्द कर देना ही अच्छा है. केवल अक्षर ज्ञान, बिना समझे पढ पाने की क्षमता शिक्षा नहीं है. यह केन्द्र और राज्य सरकार दोनों की ज़िम्मेवारी है, पर राज्य सरकारों की ज़्यादा…आज की राजनीति एवं राजनीतिक नेता क्या इस अवस्था को बनाये रखने की साज़िश कर रखें हैं, और इसी में समय लगाते हैं लोगों की बहुत सारी भावनात्मक एवं ऐतिहासिक कमज़ोरियों के चलते, यथास्थिति बनाये रखने में….
केन्द्रीय सरकार कोई बड़ा बदलाव कर ही नहीं सकती…कोई यह बतायेगा कि कैसे प्राइवेट कम्पनियों से बिना पेन्शन के रिटायर्ड लोग तो अपने घर कुछ समय काम करनेवालों को कोरोना काल में महीना देते रहे और व्यवसायी छोटे बड़े सभी न दें या उनका वेतन कम करें, अगर कोई व्यवसायी ६ महीने का खर्च चलाने की राशि हर दम सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं कर सकता तो यह पश्चिमी पद्धति ऐसे ही लोगों का शोषण करती रहेगी….कोई बतायेगा कि कोई सम्पन्न व्यक्ति कोरोना या ऐसे किसी अन्य किसी कारण से मरा है… कृपया जो सरकार के नज़दीक हैं वे इस मानवीय पहलू को समझें एवं मज़बूत नींव वाले भारत का निर्माण करें अपने रास्ते ….महात्मा गांधी का प्रेय ध्येय हो ईशोपनिषद् का पहला श्लोक …..जिसके लिये उन्होंने एक पत्रकार को कहा था…अगर हिन्दूओं के सभी धर्म ग्रंथ किसी अकस्मात् अग्नि के कारण जल जाये पर अगर यह श्लोक बच जायेगा तो हिन्दू फिर खड़े हो जायेंगे पहले की तरह…फिर उन्होंने कहा अगर इस श्लोक के तीन शब्द ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा’ बच जाये तब भी काफ़ी होगा. सरल अर्थ है, ‘तुम त्याग पूर्वक ही भोग करो, किसी अन्य के धन का लोभ न करो।’
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥
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īśā vāsyam idaṃ sarvaṃ yat kiñca jagatyāṃ jagat |
tena tyaktena bhuñjīthā mā gṛdhaḥ kasya sviddhanam ||
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जगत में जो कुछ भी चलने वाले और स्थिर रहने वाले प्राणी हैं वे सब ईश्वरके द्वारा व्याप्त हैं। तुम त्याग पूर्वक ही भोग करो, किसी अन्य के धन का लोभ न करो।
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Om. All this should be covered by the Lord, whatsoever moves on the earth. By such a renunciation protect (thyself). Covet not the wealth of others.