कोरोना-१९- क्या भोगा, क्या सीखा, क्या करना चाहिये

कोरोना-१९- क्या भोगा, क्या सीखा, क्या करना चाहिये
कोरोना-१९ वायरस का पहला केस भारत में ३१ दिसम्बर २०१९ को पता चला था, पर हम, पूरा देश जागे २४ मार्च को जब प्रधान मंत्री ने देश भर में आत्म निर्वासन लगाया गया-किन किन सावधानी को बरतना है. पर यह निर्वासन केवल कुछ ज़रूरी सेवाओं को मुक्त रखा है. घर में दूध देनेवालों को छोड़ सभी के आने पर मनाही कर दी गई. हमारे आम्रपाली इडेन पार्क की तरह के उच्च अट्टालिकाओं में रहते लोगों के लिये यह निर्वासन बहुत बड़े धैर्य शक्ति की माँग चाहता था. सभी दवाओं या किसी दुकान से भेजी खाद्य पदार्थों को गेट से हमें अपने जाकर लाना है. जहां हमारी तरह के लोग जो बहुत ऊपर के तल्ले में रहते हैं, उनके लिये यह असंभव है. हम दो तल्ले पर है, अत: थोड़ा आराम है, मुश्किल ज़रूर लगता है. हम यहाँ सभी दो या तीन,घर के रोज़ाना के सफ़ाई या खाना बनाने के लिये, सहायकों पर निर्भर रहे थे. यही हमारी सालों से जीवन क्रम बन चुका था, आदत सी हो गई थी, कुछ मजबूरी भी. अचानक सभी कुछ बदल गया, सभी काम अपने खुद करना पड़ रहा है. ७५-८० की उम्र के लोगों के लिये जीने के लिये ये ज़रूरी कार्यों को करना काफ़ी तकलीफ़देय है.मैं अपने एवं पत्नी यमुना ही यहाँ रहते हैं. मैं ८० का हो चुका हूँ, यमुना ७७ की. पर अपने घुटनों की तकलीफ़ एवं अन्य बीमारियों के कारण कुछ भी कर नहीं पाती हैं.पर तब भी यह निर्वासन हम में साहस जगाया है. घर के सभी कामों को करते हुए मज़ा आने लगा है मुझे, यद्यपि बहुत थक जाता हूँ, कभी कभी इसी कारण कुछ ग़लतियाँ हो जाती है, कहीं जल जाता है, कल खिचड़ी जल गई बड़े प्रेम से बनाया था, पर जली भी मीठी लगी. कुछ नुक़सान हो जाता है गैस पर पकने के लिये रखी चीजों के बारे में भूल उन्हें कार्बन में परिवर्तित हुए पाते हैं. कभी हाथ भी जला, दर्द सहा, पर करता रहा. हाँ….बहुत कुछ सीखने का मौक़ा भी मिला है.अगर आगे नहीं तो अगले जन्म में काम आयेगा और यही कारण है अपना अनुभव एवं उसी पर आधारित कुछ सलाहों के बारे लिखने का प्रयास कर रहा हूँ.
१. हर व्यक्ति के घर के काम-रसोई बनाना,बर्तन धोना,घर की सफ़ाई-झाड़ू-पोछा, घर के हर जगह की धूल साफ़ करना, कूड़ा हटाना,कपड़े साफ़ करना,आदि बचपन से ही सीखना चाहिये, करते रहना चाहिये शौक़िया, पर यह कभी भी सीखा जा सकता है.हमें अपने नौकर को महीने में एक-दो दिन या ज़्यादा छुट्टी दे इस अभ्यास को चालू रखना चाहिये.नहीं तो आज की अवस्था आने पर बहुत तकलीफ़ होता है.
२. हमें अपनी हर ज़रूरतों को कम रखने का भी अभ्यास रखना चाहिये एवं विकल्प से काम चलाने की कोशिश करते रहना चाहिये. पर यहाँ तो हम हम प्याज़, टमाटर के बिना खाना नहीं बना सकते, न चाय के बिना कुछ दिन काट सकते.कपडे ऐसा ही व्यवहार करें जिन्हें प्रेस करने की ज़रूरत न हो.
३. दोस्तों से गप्प मारने की आदत भी लगाना बड़ा दुखायी होता है ऐसी अवस्था में. शायद इसीलिये गीता आदि में विविक्तसेवी या एकाकी रहने की सलाह है.
४. मेरे पढ़ने लिखने के शौक़ एवं संग्रह से मुझे इतने लम्बे निर्वासन काल में बहुत राहत मिली, न मिनट की फुर्सत मिली, न समय काटना दुस्तर लगा.
५. हमें बहुत सारी कोरोना के कारण आरम्भ की गई आदतों को बनाये रखना चाहिये जितना संभव हो….पर शायद नाक, मुँह पर मास्क लगाना अब अनिवार्य हो जायेगा, वैसे बाहर से आने पर अच्छी तरह से हाथ धोना….हाथ मिलाने की जगह नमस्ते करना, और गले मिलना बन्द करना, दूरी बना बैठना एवं चलना आदि…
६. कोरोना ने हमें जो डिजीटली सब लेन देन,ख़रीदारी, स्कूल का अध्यापन और घर से काम करने को सिखाया है, उसका और विस्तार होना चाहिये….मॉल, सिनेमा आदि के शौक़ को भी कम करना चाहिये..इससे सड़कों की भीड़ के साथ प्रदूषण को कम करने बहुत मदद मिलेगी. हर घर में एक कम्प्यूटर कॉर्नर होगा, स्कूल की शिक्षकों के कमरे होंगे; ऑफ़िस भी घर का अंग होगा.
७. हाँ, सरकार के नीति निर्याणायकों को नोयडा की तरह के बस्ती वाले हर औद्योगिक शहरों के नये सेक्टरों में बहुमंज़िला इमारत खड़ा करते समय एक क्लस्टर प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत निचले तबके के कर्मचारियों, स्वरोज़गार एवं अव्यवस्थित क्षेत्र में लगे लोगों के लिये सुनियोजित ढंग से सभी सुविधाओं के साथ रहने की व्यवस्था भी होनी ज़रूरी है, जिससे झुग्गियाँ न बने, स्लम न पनपे, बाहर से आये इन सभी लोगों का एक व्यवस्थित ठिकाना हो…

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