२७.१२.२०१९ को अचानक मन में एक बात आई और सोचा कि लोगों से भी बताऊँ, कुछ दिनों में एक दशक के अन्त और दूसरे का प्रारम्भ होने के अवसर की एक अकस्मात् आई यह सोच है: ज़िन्दगी, जब बचपन से अब तक के, आजतक के बारे में सोचता हूँ, तो अंक गणित का बेसिक- जोड़, घटाव, या कभी कभी गुणा और भाग लगती है. शायद हम शून्य से प्रारम्भ कर शून्य में लय हो जाते हैं या शायद अनन्त से चल कर अनन्त में विलीन हो जाते हैं…
कभी भी जब हम चारों ओर देखते हैं तो बहुत जीवन सत्य समझ आता है. भगवद्गीता में बार बार कर्म की महिमा बताई गई है पर यह भी वह काम बिना फल की इच्छा या चिन्ता के किया जाना चाहिये- ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।‘ इस दृढ़ विश्वास के साथ हम काम करते हैं, तो फल की चिन्ता करने से जो फल मिलता, उससे ज़्यादा अच्छा फल मिलते हुए देखा हूँ.
भगवद्गीता में अध्याय १८ में यह भी बताया है कि किसी कार्य में सफल होने के लिये पाँच चीजों की ज़रूरत होती है: पञ्चैतानि कारणानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्…..
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ।विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम् ॥१८.१४॥
१. अधिष्ठान, २. कर्ता, ३. करण, ४. चेष्टा, और ५. दैव
हम आज पीछे मुड़कर देखते हैं, तो लगता है हर कदम पर कर्म ज़रूरी है पर दैव सब जगह एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है… हमारे स्कूल में सबसे अच्छे होना और अपने कार्यकाल के परिश्रम पर यह नहीं निर्भर करता है कि हम सबसे सम्माननीय ओहदे पर पहुँचेंगे कि नहीं….इसी तरह सम्पन्नता एवं सुखी जीवन के प्राप्त होने में भी लगता है दैव एक बड़ी भूमिका अदा करता है….हाँ, पर हम किसी मोड़ पर प्रमाद नहीं ला सकते जीवन युद्ध में….
सोचिये भगवान, जिसे आप कोई नाम दे सकते हैं, कैसे कैसे सहायता करता है या किया आपको आगे बढ़ाने, सुखी, सम्पन्न बनाने में…..वह सबका ख़्याल करता रहता है अगर अपने कर्म को करते जायें…उसे स्मरण करते करते….