दुर्गा पूजा-नवरात्र का महत्व

बंगाल की मिट्टी ने यह श्रद्धा जगाया है…
Durga Puja
According to Hindu mythology, Mahisasura had obtained a boon of invincibility from Lord Brahma, which meant no man or God could kill him. Taking advantage of the boon, he started harassing everyone and chased the Gods out of heaven. Thereafter, Goddess Durga was created by all the gods providing their armaments to defeat Mahisasura.Durga slew the demon on the Dashami, and hence the day is celebrated as Vijaya Dashami, symbolising the victory of good over evil.
तीसरा दिन
आज महा सप्तमी है, आज ‘कालरात्रि’ रूप में दुर्गा की पूजा की जाती है(माँ दुर्गा के ९ रूप-शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चन्द्रघंटा,कूष्माण्डा, स्कंदमाता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,
सिद्धिदात्री.)दुर्गा सप्तश्लोकी नवरात्रि दुर्गा पूजा के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पाठ माना गया है.पढने की कोशिश करिये, लाभ होगा, शान्ति मिलेगी.

ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं.
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्र चित्ता ॥2॥
‘मां दुर्गे!’ आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्धारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं. दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवी! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो.
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥3॥
नारायणी! आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हैं, आप ही कल्याणदायिनी शिवा हैं. आप सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली गौरी हैं. आपको नमस्कार है.
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥4॥
शरणागतों, दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणी देवी! आपको नमस्कार है.
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥5॥
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से संपन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवी! सब भयों से हमारी रक्षा कीजिए, आपको नमस्कार है.
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
देवी! आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हैं और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हैं. जो लोग आपकी शरण में हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं, आपकी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं.
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥7॥
सर्वेश्वरि! आप तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करें और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहें.

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