१
भगवद् गीता का परिचय दादाजी द्वारा बताये कुछ श्लोकों से स्कूल के दिनों में ही हुआ. एक जिसे वे मुझे बराबर उद्धृत करते थे- ‘ या निशा सर्व भूतानाम् तस्यां जाग्रति संयमी……’फिर हिन्दमोटर में गीता का पाठ करना आरम्भ किया, पर कुछ अच्छी तरह समझ में नहीं आता था, अत: चला नहीं बहुत दिनों तक. हाँ कुछ और श्लोक की समझ हो गई-योग: कर्मसु कौशलम्.पढ़ता रहा अपने कार्यब्यस्तता के बावजूद.बच्चनजी की नागर गीता (गीता हिन्दी कविता रूप में)एवं गीता प्रेस की किताबों का सहारा लिया.पर कैसे थोड़ी गहराई तक जाया जाये. गुरू तो मिलने से रहे जो आधुनिक ढंग से गीता को समझाये. चिन्मय मिशन के तेजोमयानन्द के प्रबचनों को यू-ट्यूब पर सुना, अच्छा लगा, कुछ समझ में भी आया, पर कुछ ही…… क्या गीता की ब्याख्या की किताबें सहायक होंगीं? कुछ महीने से मैंने किताबें ख़रीदना शुरू किया और उनका सबेरे सबेरे अध्ययन.अब जब समय ही समय है और सन्यासी भाव अपने आप धीरे धीरे आ रहा है, शायद कुछ अभ्यास से कुछ और गहरी समझ आ जाये. देखता हूँ हिन्दी में गीता की ब्याख्या अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती है.आजकल समय दो किताबों के साथ ब्यतीत होता है- सबेरे ५ से ६.३० बजे तक स्वामी शिवानन्द की ‘भगवद् गीता’- एवं दिन में रामचन्द्र गुहा की १००० पेजवाली मोटी नई पुस्तक ‘Gandhi-the years that changed the world 1914-1948.सोचता हूँ आज के राजनीतिक एवं सामाजिक सवालों के संदर्भ में क्या गीता या गांधी देश के काम आ सकते हैं? संभावना तो है.आज ही सोलहवा अध्याय पढ़ा ‘दैवासुरसंपदि्विभाग योग’. मानव जाति- दैवी,अासुरी,एवं राक्षसी-तीन विभागों में बंटी है अपने गुणों के आधार पर. बिस्तृत चर्चा है दैवी एवं असुरी प्रवृति के लोगों की.इसी तरह चौदहवें अध्याय में सत्त्व, रजस और तमस गुणों पर विस्तार में चर्चा है. कहीं इन गुणों एवं प्रवृत्तियों को जन्म आधारित जाति से नहीं जोड़ा गया है. करीब तीन हज़ार साल बाद भी ये बातें उतनी ही सामयिक लगती हैं जितना लिखने के समय थी.लगता है जैसे कोई वर्तमान काल का सुधारक कह रहा हो यह सब.काश! इन अंशों को लोगों को बताने का साहस करते हमारे आज के गुरू और नेता. वे कैसे करेंगे अासुरी प्रवृत्तियों या तामसिक आचरणों की ब्याख्या, जब वे अधिकांश ही उसी वर्ग में अपने को पायेंगे.पर आज के मीडिया की चौबीसों घंटे चलते बकवास में गीता की चर्चा की कहाँ जगह है और क्या, कहाँ असर कर पायेंगे गीता के रचयिता की बातें? बानगी देखिये-
दैवी
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥१।।
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्॥२।।
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥३।।
अासुरी
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्॥५।।
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते॥७।।
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्॥८।।
…….
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्॥२०।।
दैवी पर तीन श्लोक अासुरी पर पन्द्रह …….आसुरी प्रवृति वालों को समझाने सुधारने का सब प्रयास ……
महात्मा गांधी ने भी भगवद् गीता एवं रामचरितमानस का अध्ययन किया था और उनके अंश उनकी प्रार्थना सभाओं में गाये जाते थे. देश को गीता के सक्षम आदर्श प्रवचन कर्त्ताओं की ज़रूरत है, पर उनको सुनने के लिये क्या वे लोग सामने आयेंगे जिन्हें सुधारने के लिये ऐसे कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे????
२
प्रजातंत्र का हर काम के बिरोध करने के अधिकार देश को प्रजातंत्र से दूर लेने में भलाई का एलान करता है. अब पटेल की एकता की मूर्ति का वहाँ के आदिवासियों द्वारा वहिष्कार का पहल करनेवाले नेता क्या चाहते हैं पता नहीं चलता.
३
आज दशहरा है, पर पता नहीं देश के पंडित हर पर्व त्योहार को दो दिनों में बांट कर संशय पैदा करते रहते हैं.अच्छा होता अगर वे इसे एक ही दिन में सीमित रखते. इतना सुधार तो होना ही चाहिये. बचपन से दशहरा की याद है, इस दिन शाम को अच्छा कपड़ा पहन हम गाँव में सभी परिचितों के घर जाते थे बड़ों को प्रणाम करने की प्रथा थी उनके आशीर्वाद के लिये.कहीं कहीं कुछ मुँह मीठा भी हो जाता था. अब मालूम नहीं क्या होता है, बंगाल में दशहरा या बिजया के दिन हर घर में मिठाई की बहुत बड़ी खरीददारी होती थी. टेलिफ़ोन होने पर हम इस दिन परिवार के बुज़ुर्गों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते रहे. वह प्रक्रिया मामाजी एवं चाचाजी के रहते चला. अब इस उम्र में स्वभाविक कारणों से कुछ न रहा हमारे लिये, इक्के दुक्के फोन आ जाते हैं, मैं भी कुछ परिचितों को शुभकामनाएँ दे देता हूँ……रावण दहन हमारे यहाँ या बंगाल में नहीं होता था अब सब जगह होने लगा है….पर सभी कुछ धार्मिकता से ज़्यादा दिखावा करने के लिये होता है चाहे उससे समाज के लिये कुछ नुकाशानदायक परिणाम ही क्यों न घटें….
४
आज सबेरे प्रात: भ्रमण के समय दूर से आती चंडीपाठ की आवाज़ बड़ी मधुर लगी. सधारणत: यह बंगाल में रहते ही सुना करता था महालया से नवमी तक.हमारे कुछ त्योहार देश भर में फैलते जा रहे हैं, दुर्गा पूजा और छठ आज देश के हर कोने में मनाये जा रहे हैं, लोगों को एक दूसरे को समझने का मौक़ा देते हैं. इसी तरह गणेशपूजा एवं डांडिया है. शायद यही देश को एक सूत्र में बाँधें, यही विश्वास ख़ुशी देती है. दुर्भाग्यवश कुछ लोग इस सकारात्मक बदलाव को न समझते हैं ,न सराहते हैं. पर इन त्योहारों को मनाते समय कुछ बदलाव लाने की भी ज़रूरत हैं जिससे हमारे इनको मनाने की तरीक़े प्रदूषण न बढ़ायें, देश को सदा स्वच्छ रखने के लक्ष्य में कोई दिक्कत न आये. हाँ , हमारे सभी त्योहार देश में ब्यवसाय एवं ख़ुशहाली भी दिखाते हैं. ऑमजन पर अगर आप दिवाली सम्बंधी चीज़ों को देखें , तो मन ख़ुश हो जाता है, देश ज़रूर आगे बढ़ रहा है. हमारी मेड हमसे ज़्यादा जानती है इन नई चीज़ों के बारे में…ख़ुशी होती है….
५
नारी के लिये जयशंकर प्रसाद ने लिखा ‘ नारी, तुम केवल श्रद्धा हो……’ आज के #Me Too प्रकरण को देख बहुत दुखी होते….हम गड़े मुर्दे क्यों निकाल रहे हैं, अब की एवं आनेवाले कल की बात क्यों नहीं करते……लगता है सब ये महिलाएँ दूध की धूलीं हैं, और सभी मर्द रावण….
६
देश के मंत्रियों एवं अधिकारियों में किसी समस्या के निराकरण के उपायों की न समझ है, न उन्हें सुलझाने की इच्छा शक्ति है.आज एक समाचार था कि मारुति सुज़ुकी ने अपने सभी पुर्ज़ों को देनेवाले से अपील की है कि वे उनके द्वारा आयातित बस्तुओं का उपयोग न कर उसे देश में हीं बनायें. आज के माहौल में देश के लिये ज़रूरी है कि अनावश्यक आयात न किये जायें, वस्तुओं को यथा सम्भव देश ही में बनाया जाये. देश की दूसरी दक्षिण कोरिया की कम्पनी एल. जी. के ९० प्रतिशत पुर्ज़े देश में बनते हैं, जबकि उसकी तरह की अन्य कम्पनियाँ ५०-८० प्रतिशत तक ही यहाँ बना पाईं है. मुझे समझ में नहीं आता कि एक ऐसा ही अपील प्रधान मंत्री भारत के प्रमुख आयात करनेवाले ब्यवसायिकों एवं फ़ैक्टरी के मालिकों से क्यों नहीं कर सकते. खुली अर्थव्यवस्था में आयात की सुबिधा दी जाती है, पर इसका उपयोग तभी करना चाहिये जब उस वस्तु का देश में निर्माण एकदम सम्भव नहीं हो. पर आज आलम यह है कि सभी ज़रूरी ग़ैरज़रूरी चीज़ों का आयात कर ही सब ख़ुश हैं क्योंकि किसी उत्पादन के ब्यवसाय में मिहनत एवं ज्ञान की ज़रूरत होती है, कौन करे यह मिहनत..और क्यों..
७
देश के हिन्दूओं को चेतावनी: अगर सभी हिन्दू , जाति पाँति और उसके आधार पर पनपा वैमनस्य, भूला एक नहीं होते तो देश एवं हिन्दूओं का भविष्य ख़तरे में है. भारत बिरोधी शक्तियाँ हिन्दूओं की इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठा पहले हिन्दूओं में बिरोध पैदाकर एक दूसरे का दुश्मन बनायेंगीं और फिर देश को एक बार फिर तोड़ देंगी, इसबार बहुत खंडों में….
८
हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक भगवद् गीता सर्वसामान्य द्वारा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसके १८वें अध्याय के श्लोकों में हिन्दूओं की चारों जातियों-ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र के स्वाभाविक गुणों एवं ब्यवहार की चर्चा है.कहीं भी जाति को जन्म से नहीं जोड़ा गया है.समय के साथ समाज के अपना उल्लू सीधा करनेवाले ठेकेदारों ने जाति को जीवन यापन के पेशे के आधार पर नाम दे दिया और माता पिता की जाति से जोड़ दिया.आज हर ब्यक्ति अपनी शिक्षा, हुनर, दक्षता एवं अनुभव के आधार पर कोई कार्य पाता है, करता है और समय के साथ ऊँचे योग्य पदों को प्राप्त करता है.सभी प्रचलित जातियाँ कोई मायने नहीं रखतीं. फिर बार बार हम बहकाने के कारण इस पचड़े में क्यों पड़ जाते हैं.हम हर शिक्षक को ब्राह्मण क्यों नहीं कहते, हर सिपाही को क्षत्रिय क्यों नहीं।इसी तरह सभी सेवक के कामगार को केवल कर्मचारी क्यों नहीं.हम सभी अपनी शिक्षा, हुनर और अनुभव के आधार पर बड़ी जातियों में पदोन्नति पा सकते हैं. छोड़िये जातियों का झगड़ा एवं बनिये जो बनना चाहें….जाति पर लड़ना बन्द कीजिये..देश को टूटने से रोकिये…बहकाने में मत पड़िये .
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हम कैसे देश में रहते हैं? क्या चरित्र है रेलयात्रियों का? पिछले साल लम्बी दूरी की ट्रेनों में यात्रियों ने १.९५ लाख तौलियाँ,८१,७३६ चादरें, ५५,५७३ तकिये के गिलाफ, ५,०३८ तकिये एवं ७,०४३ कम्बल चुरा लिये गये. अगर यात्रियों ने नहीं चुराया तो क्या रेल कर्मचारियों ने यह दुष्कर्म किया?
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क्या यही होती है राजनीति? राहुल गांधी की हाल की कहानी, “6 जून को मंदसौर दौरे के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, ‘मेरा सपना है कि 5-7 साल बाद जब मैं यहां आऊं और जब हम अपने मोबाइल की तरफ देखें तो उस पर मेड इन मंदसौर लिखा आ रहा हो. नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह इस सपने को पूरा नहीं कर सकते, इसे सिर्फ कमलनाथ और ज्योतिरा्दित्य सिंधिया ही सच कर सकते हैं.’राहुल लंबे समय में देश में रोजगार की कमी को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. उनका कहना है कि देश में रोजगार लगातार कम होता जा रहा है. उनकी सरकार आई तो रोजगार बढ़ेगा.” मनमोहन के दस साल में शाहजादे क्या दूध पीते बच्चे थे, या केवल अपनी ही सरकार द्वारा लाई अध्यादेश फाड़ना सीख रहे थे?