बिरोधी राजनीतिक पार्टियाँ एक साथ मिल भारतीय जनता पार्टी से लड़ना चाहती हैं राज्य और केन्द्र में सरकार बनाने के लिये, पर अपनी अलग स्वरूप बरक़रार रखते हुये जो देश के हित में ख़तरनाक है.
केवल दो पार्टियों के गठबंधन की मंत्री परिषद् बनाने में अगर इतनी तकलीफ़ हुई कर्नाटका में, तो बारह या बीस पार्टियों के गठबंधन की केन्द्र में क्या अवस्था होगी, अगर जीत गये. कितने उप प्रधान मंत्री होंगे और कितने कितने अलग अलग दलों के मंत्री , फिर उनके विभाग का झगड़ा होगा. दिक़्क़त है सबको सत्ता चाहिये, सबकी बात चलनी चाहिये. सरकार बनवाने में मदद देने का हर दल क़ीमत और लाभांश लेने में पूरी शक्ति लगा देगा देश के हित का बिना ख़्याल किये. कहीं देश न बिक जाये इसमें.
आदर्श रूप से वे सब पार्टियाँ सेक्युलर है तो फिर मिलकर एक पार्टी बना लें जैसा जयप्रकाश नारायण के चलते इन्दिरा के काल में हुआ था जनता पार्टी के नाम से. दुख तब हुआ था जब मोरारजी सरकार में फूट डाला जा सका और सरकार गिरा दी गई.पर आज की बिरोधी अधिकांश पार्टियाँ पारिवारिक हैं क्षेत्रीय हैं.
इन सभी दलों को एक सूत्र में बाँधे रखने के लिये वह कौन मज़बूत और प्रभावकारी नेता होगा? क्या इस पर विना विवाद समझौता हो जायेगा? अगर हो गया तो अंकगणित बिरोधी दलों के संगठन के पक्ष में होगा, पर रासायनिक एकत्व की ज़रूरत होगी सरकार सुचारू रूप से चलाने के लिये….
मोदी के नेतृत्व में भारत को मैं मानता हूँ एक नई दिशा एवं गति मिली है, जो त्रुटिहीन तो नहीं है पर पुराने अनुभवों पर नई लगती है. इतने बड़े और बिविधता पूर्ण देश के लिये पाँच चाल का समय बहुत कम है कुछ सार्थक बदलाव के लिये. एक और टर्म उपलब्धियों को मापने एवं समझने के लिये आवश्यक होगा. अगर पिछली सरकार को जनता ने दस साल का समय दिया तो मोदी को कम से कम दस साल तो मिलना ही चाहिये. इससे उनके २०२२ तक समाप्त होनेवाले परियोजनाओं को स्वरूप देने का काम भी हो जायेगा जो उनकी क्षमता का मापदंड भी होगा.इनकी और बिरोधी दलो की कार्यप्रणाली में कौन ज़्यादा प्रिय है लोगों को समझ भी आ जायेगा.
ख़ैर, यह देश के सामूहिक निश्चय पर निर्भर होगा.आज की मीडिया या बिरोधी पार्टियों के अनुमान या चाह कोई सठीक दिशा नहीं दिखा रहे हैं। काफी लोग पक्ष या विपक्ष में हैं आज की सरकार के. बाबाओं के भविष्यवाणी में मैं विश्वास नहीं करता.
मोदी एवं भारतीय जनता पार्टी बाक़ी समय में कोई चमत्कारी निर्णय ले क्या हवा का रूख पूरी तरह अपने पक्ष में बदल सकेगी, और फिर से सत्ता में आ जायेगी, कहा नहीं जा सकता ?
पर अगले चुनाव में अगर सब बिरोधी दलों का गठबंधन हो गया तो सबसे ज़्यादा फ़ायदा कांग्रेस को होगा..कांग्रेस के भोट बिरोधी दलों के प्रत्याशियों को जीता सके या नहीं मालूम नहीं, पर गठबंधन के अन्य घटकों के भोट कांग्रेस में आ जाने से कांग्रेस एक सम्मानजनक परिस्थिति में आ सकती है आज के ४४-४५ की अपेक्षा.
देखिये क्या देती है भारत की जनता अपनी राय….पर २०१८ में हीं चालू हो गईं हैं सरगर्मियाँ,लगता है २०१९ जल्दी आ गया है…