गाँव के किसान के परिवार में पैदा होने और बचपन के कुछ वर्ष वहाँ बिताने के कारण आज भी वहाँ के समाचार और लोगों के जीवन स्तर की ख़बरें आकर्षित करतीं हैं.आज राज्यसभा टी.वी. चैनल पर किसान क्या चाहता है बजट से पर परिचर्या सुन रहा था.किसान दिल्ली के आसपास के गाँवों के थे. कृषि विभाग के एक राजस्थान से आते कृषक केन्द्रीय मंत्री भी उपस्थित थे. उनके विचार बड़े सुलझे लगे…..सुनने के बाद कुछ बातें दिमाग़ में आई, उसे कहना चाहता हूँ.
१. किसानों की एक बड़ी शिकायत थी कि वे अपने उत्पादन को दिल्ली के लोगों को सीधे बेंच नहीं सकते, दाम बिचौलियों तय करता है, फ़ायदा भी उसे ही होता है. पूरे अमरीका के हर शहरों में मैंने अच्छी तरह बने किसान बाज़ार (फ़ारमर्स मार्केट)देखे हैं. दिल्ली के सभी नगरों और विहारों में और साथ ही इसके चारों के शहरों में ये किसान बाज़ार क्यों नहीं बनाये जाते जहाँ किसान सीधे उपयोग करनेवाले लोगों को अपने खेतों या घरों में या से तैयार चीज़ें बेंच सके. हर गाँव के लोग सड़क से जुड़े हैं, बिजली उपलब्ध है , स्मार्ट फ़ोन से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं,पर फ़ायदा क्या अगर उनकी आमदनी वृद्धि न हो सके? कम से कम इन गाँव के लोगों का पलायन क्यों हो? इनके घरों में अतिरिक्त मूल्य संवर्धन के लिये छोटी छोटी मशीनें क्यों न लगाईं जायें? दिल्ली के गाँवों में पानी की कमी क्यों हो? पानी का संचयन क्यों न हो?
2. किसानों को उनके खेत के मालिकाना के हिसाब से किन फ़सलों से सबसे ज़्यादा लाभ हो सके और सबसे कम लागत लगे यह क्यों नहीं बताया जा सकता.जैसा मंत्री जी ने ठीक ही कहा भारत एक ऐसा देश है जहाँ दुनिया भर में उपयोग आनेवाली सब सब्ज़ियाँ, फल, और पौधे- फूल के या लकड़ी के लिये, लगाये जा सकते हैं.गांव से आये सभी प्रतिनिधियों के कपड़ों और बातों से वे गँवार नहीं लगे, वे सभी उपरोक्त को अपना, मिहनत कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. पर टूटते परिवार और घटती ज़मीन से कमाई करने के लिये दक़ियानूसी धान, गेहूँ की खेती को लेकर तो कुछ नहीं होगा, पशुपालन और कृषि को एक तरह से ब्यवसाय रूप लेना होगा, यही भगवत् गीता के १८वें अध्याय के श्लोक संख्या ४४ में है,’कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं’.और हर सफल ब्यवसाय में, अत: खेती और पशुपालन में भी, हानि को कम करने के लिये और लाभ बढ़ाने के लिये उत्पादकता, गुणवत्ता बढ़ाने के लिये तकनीकी सहायता लेना होगा अच्छी आमदनी के लिये.
3. नये ईमानदार तरीक़े सोचने होंगे और मिहनत करनी होगी. केवल न्यूनत्तम समर्थन मूल्य बढ़ाना या क़र्ज़ा माफ़ करना सहज तरीक़ा तो है , पर देश में केवल यही एक धंधा नहीं है जहाँ लोग क़र्ज़ा लेते हैं, सभी क्षेत्रों में सरकार को देश को बढ़ाने के लिये पूजी लगानी पड़ती है, क़र्ज़े की ब्यवस्था करनी पड़ती है और यह उस अवस्था में जब देश का अधिकांश सम्पन्न वर्ग (करोड़ों की कमाईवाले किसान, डाक्टर,वक़ील, चार्टर्ड एकाउंटेंट, और पता नहीं कौन कौन, जब शिक्षक भी ब्यवसायिक बन करोड़ों कमा रहे हों) कर देना ही न चाहे कैसे सम्भव है.
4. किसान परिवार के कम से कम एक सदस्य खेती अच्छी जानकारी और उसका ब्यवसायिक ढंग सीखना होगा, इसके लिये सरकार को ब्यवस्था करनी होगी…. मोदी हों या राहुल कृषि की उन्नति के लिये किसी ब्यवसाय की तरह अच्छेजानकार प्रशिक्षित लोगों की ज़रूरत है. क़र्ज़ा माफ़ कर या सब्सिडी दे भोट जीतना सहज नहीं होगा, कितनों का क़र्ज़ माफ करेंगे,जब पूरी अर्थनीति क़र्ज़ पर चलती हो..क़र्ज़ को ठीक समय लौटाने की बात हमारे पूर्वजों ने कही है, मिहनत कर. उदाहरण है अपने अभिनेता अभिषेक बच्चन, नहीं तो पाप भोगना होगा…या क़र्ज़ की माफ़ी का मोहताज होना होगा या फिर सबसे कायराना हरकत पर उतरना होगा…अपने सीखना होगा उनको जो कृषि पर आश्रित हैं, इस सबसे अच्छे धंधे में रहना चाहते है.
5. हाँ एक बात और है सोचने की.अधिकांश ऐतिहासिक रूप से खेती करते परिवार अपनी ज़मीन को एक सालाना रेंट पर अन्य ग़रीब लोगों को खेती करने के लिये दे देते हैं, वे ग़रीब इतनी बड़ी रक़म रेंट में दे कैसे समृद्ध हो? किसको क़र्ज़ मिलना चाहिये या सब्सिडी -मालिक को या रेंट पर लेनेवाले को? कौन असली खेती आश्रित किसान कहलायेगा या कहलाना चाहिये. आज की खेती ट्रैक्टर, या हार्वेस्टर कंबाइन से होती बिशेषकर बड़ी पैमानेवाली फ़ैक्टरी तरह, पर दो फ़सली ज़मीनों में क्षेत्रफल के अनुसार बहुत कम काम रहता है पूरे साल, वे लोग कुछ और धंधा क्यों नहीं करते, उदाहरणरूप वीना योजना लोगों की या खेती की, कुछ घर में उत्पादन करवाने और शहरों में बेंचने की क्यों वहीं सोचते? हज़ारों तरीक़े साथ साथ मिल कमाने की, औरतों को सीरियल देखना या खाना बनाने से हटा उन्हें कुछ हुनर सीखा काम क्यों नहीं करवाते?……..