३१.१०.२०१७
आज राष्ट्रीय एकता दिवस जो राष्ट्र निर्माता लौह पुरूष सरदार पटेल के जन्म दिवस भी है, देश भर में ‘एकता हित दौड’ का आयोजन कर मनाया जा रहा है. मेघदूतम् पार्क सीनियर सिटिजेन फ़ोरम, जिसे हम मज़ाक़ में M कम्पनी भी कहते है, ने इसका आयोजन किया था सबेरे ६.३० बजे. मैंने सोचा था पूरे एफ ब्लॉक के बाहरी रास्ते को कवर करेंगें, पर पार्क का एक चक्कर कर ही यह दौड समाप्त हो गई, शायद इस लिये कि दौड़ सकनेवाले युवकों की संख्या कम ही थी. पता नहीं पर क्यों डा. डी. शर्म्मा के ग्रुप, जिन्हें हम D कम्पनी कहते है, के कोई लोग न दिखें. कहाँ इस देश में एकता आ पायेगी. यही हाल हर RWAs, पंचायत, और सभी संस्थाओं का है,हर जगह दो या ज़्यादा है. क्या राजनीति यह दरार डाल रही है या ब्यक्तिगत स्वार्थ. आज कम से कम कांग्रेस के राहुल गांधी, चिदाम्बरम्, सिंब्बल आदि को दिल्ली में आयोजित एकता हित दौड़ में तो शामिल होना चाहिये था. पटेल कांग्रेस से थे और नेहरू के नजदिकी भी. फिर यहाँ क्यों नहीं पूरा देश ग़ैरराजनीतिक ढंग से मिल कर आगे आये. क्या भविष्य देंगे ये राजनीतिक नेता देश की नई पीढ़ी को, जिनका एक धर्म और एक कर्म चुनाव जीतना रह गया है. ये सब आयोजन भी फ़ोटो एवं सेल्फ़ी तक ही सीमित हो रह जाता है? आम जनता पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डालता.
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पहले भूमिहार समाज अपनी कमज़ोरियों पर ध्यान दे, शिक्षा हो या ब्यवसाय हर काम में महारत हासिल करवाये अपने बेटियों और बेटों को, दहेज बन्द करे देना लेना. गीता का कर्मयोगी बराहम्ण बने. भूमिहार का पर्याय बाहुबली, दबंगई और धूर्तता न हो. हमारा आचरण अनुकरणीय हो. संरक्षण के लिये आन्दोलन करना घटिया तरीक़ा है समाज मे बिभाजन का , बिना परिश्रम कोई समृद्धि नहीं मिलने वाली. हाँ कुछ तथाकथित भूमिहार नेता ज़रूर बन जायेंगे.. अच्छा नहीं लगे फिर भी मान लीजिये मेरी बात, ७८+ का हूँ और…
२८.१०.२०१७
हिन्दुस्तान मोटर्स के ३७ सालों की बहुत खट्टी मिठ्ठी यादें है. इस उम्र में खट्टी यादों को भूल चुका हूँ, मीठ्ठी यादें आज भी मेरे उदास क्षणों को ख़ुश करती रहतीं हैं. मुझ गाँव के गँवार को अपने को सफल सिद्ध करना था. मज़ा तब आता था जब मेरे सामने किसी तकनीकी समस्यायों को सुलझाने की ज़रूरत पड़ती थी. मैंने सभी बाधाओं को कठिन परिश्रम , लगातार उस विषय के अध्ययन और कुछ नई सोच से सुलझाया और इस प्रक्रिया का दौर अभी भी चल रहा है, बहुत पढ़ता हूँ, अपने अनुभवों से सोचता हूँ, और लिखता रहता हूँ व्लाग, फ़ेसबुक, ट्विटर पर विभिन्न विषयों पर और ज़िन्दगी चलती जा रही है. हाँ , मैंने हिन्दमोटर से ही सब कुछ सीखा क्योंकि किसी ने उसमें अड़चन नहीं डाली, किसी को उससे मतलब ही नहीं था, न समय था, मुझे समय भी बहुत कुछ पाने की लालसा नहीं थी, थोड़े में ख़ुश हो जाता था, ऊपरवाले मेरी इस कमज़ोरी को जान गये थे. बहुत लोगों ने आकर्षित करना चाहा, पर मैं अपने कार्य के स्वतंत्रता को कभी छोड़ना नहीं चाहा. बच्चे ख़ुश हैं, हम भी. बहुत याद आता गुज़रा हुआ ज़माना……
१९.१०.२०१७
# माँ धनलक्ष्मी की एक नई प्रार्थना
इस साल दीप पर्व पर
मेरा आग्रह माँ तुमसे
कुछ आज नया कर दे तू
रंकों को राज दिया है
बचपन से यही सुना हूँ
है आज प्रार्थना मेरी
न भटक
कृत्रिम भक्तों में
जो चीनी दीप जलाकर
उज्जवलित किये घर कोना,
गहनों की चमक दमक है
ब्यंजन से थाल अटे हैं
मूर्ति तेरी कंचन है
न भटक वहाँ तू जाकर
माँ, आज नया तू कुछ कर
एक लक्ष्मी जहाँ रोती हो
एक रोटी हित मरती हो
जिनका घर न रोशन हो,
बन जीवन भार खड़ा हो,
तू त्वरित आज उधर चल
अपनी कृपा बरसा कर
मां आज उन्हें ही हरित कर….
१८.१०.२०१७ आजकल ताजमहल पर घमासान मचा हुआ है मीडिया में और टी.वी. के समाचार चैनेलों पर. बिरोधी पार्टियाँ को अच्छा मौक़ा मिला है भगवा मानशिकता पर बोलने का. मीडिया तो जाति एवं धर्म या सेक्स सम्बन्धी सभी नकारात्मक समाचारों को खोज या आविष्कार कर ज़हर बो रहा है. पर कुछ लोग जो सकारात्मक ख़बर देते उससे आते बदलाव की मादक मनमोहक सुगन्ध लोगों तक नहीं जाती. आज उत्तर प्रदेश शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयर मैन सैयद वसीम रिज़वी ने बयान दिया कि एक दो छोड़ अधिकांश मुग़ल यैआस थे- The Taj Mahal cannot be a symbol of “worship.”….”most Mughals were ‘aiyaash'” or ‘dissolute.’
“The Taj Mahal can be a symbol of love but not of worship. मुझे याद चार पाँच साल पहले की कहानी: मेरी चचेरी बहन अपने गाँव से अपने छोटे भाई के साथ वृन्दावन, मथुरा आई थी यमुना में स्नान कर यमराज को ख़ुश करने के लिये, जिससे वे नर्क का कष्ट न दें मरने के बाद दोनों को. यमुना यमराज की बहन जो ठहरीं. मान्यता है गाँवों में किसी पंडितजी का बताया. भाई सोचा समय ख़र्च का उचित उपयोग करते हुये सबको आगरा में ताजमहल भी दिखला दिया जाये, वे गये, देखे, पर वहाँ चढ़ावा तो केवल गाइड लेते हैं, बहन उन्हें पंडा समझती रही , सब जगह हाथ जोड़ माथा टेकती रहीं……निकलने के बाद भाई से पूछी यह किसका मन्दिर था इतना सुन्दर एकदम निस्पृह भाव से….तब भाई बताया कि देश में एक बहुत बड़े मुसलमान राजा हुये थे और वे अपनी पत्नी को बहुत मानते थे, चौदह-पन्द्रह बच्चे पैदा होने के बाद रानी या बेगम मर गईं, उन्हीं को वहाँ दफ़नाया गया है…..बहन ग़ुस्से से लालपीली हो गईं, तुमने मेरे यमुना में नहाने का सब फल नष्ट करवा दिया…..हम ऐसे जगह जाना ग़लत समझते हैं… होटल चलो, पहले नहायेंगे……कितनी सहज, सरल बात है, हम इसे क्या कहेंगे? ….वैसे बहुत लोग मानते हैं कि शाहजहाँ केवल बाहरी सजावट किये थे..और ताजमहल एक पुराना मन्दिर है..एक पूरी की पूरी किताब लिखी गई है बहुत तार्किकता से ….https://timesofindia.indiatimes.com/india/taj-mahal-not-a-symbol-of-worship-most-mughals-aiyaash-up-shia-waqf-board-chairman/articleshow/61117915.cms
२
मैं चाहूँगा कि आप इसे ध्यान से पढ़े, सब मोदी और फिर नीतीश के भी ख़िलाफ़ होंगे क्योंकि नीतीश ने देर से ही सही ग़लती अपनी दुरुस्त कर दी, शराबबन्दी जो गाँव के घर घर में फैलता जा रहा था, मर्द औरत की कमाई भी पी जाता था….अब बडा धमाका बाल बिबाह एवं तिलक पर हथौड़ा प्रहार, मैंने तय किया है हमें इसकी जानकारी होते ही पुलिस में रिपोर्ट करूँगा. हम बिना ज़िम्मेदारी लिये संरक्षण और क़र्ज़ माफ़ की माँग कर देश को महान नहीं , देश को तोड़ने की बात कर रहे हैं और यह सब एक नालायक परिवार और उनके चार-दस बेईमान पिछलगुओं के कारण है….ब्यक्तिक या पारिवारिक पार्टियों को मुफ़्त दी हुई आफ़िस की ज़मीन वापस ले लेनी चाहिये….
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सुनारों के बारे में प्रसिद्ध है कि वे व्यवसाय में अपने बाप के भी नहीं होते, सब गहनों में मिलावट करते हैं, छोटे शहरों, क़स्बों में तो ज़रूरत से ज्यादा. हिन्दमोटर रहते हुये यमुना के कहने पर मैंने उनकी शादी के समय का एक ऐसे ही क़स्बे के सुनार का बनाया उनका दस भर का नेकलेस अपने सामने हिन्दमोटर में मेरे ही नीचे काम करते बहुत क़रीबी के एक सुनार से घर में लगवाया, केवल तीन भर सोना निकला. आज न सरकार उनको बिना पैन के पचास हज़ार से ऊपर के गहने की बिक्री रोक सकी, न हॉलमार्क को क़ानूनी बनाने की हिम्मत रखती है. बार बार वे हड़ताल किये हैं और इन कारणों से लाखों व्यवसाय में लगे मज़दूरों को बेकार हो जाने का बहाना बना सरकार को धमकी दे देते हैं, सरकार डर जाती है और बिरोधी दल भी साथ देते हैं, काला धन सोने में जमा होता रहता है बेईमानों का. लगता है कोई सुधार हमारी तरह के प्रजातंत्र में सम्भव ही नहीं है. अब सब छूट के बावजूद भी मन्दी का कारण सरकार को बता मज़दूरों न्यूनतम मिहनताना दे रहे हैं. आश्चर्य है कि एक मज़दूर जो ज़ेवर तैयार करता है दिन भर में मिहनत से स्वास्थ्य के लिये हानिकारक वातावरण में उसे ३०० रूपया मिलता है और मालिक को १५०० से ३००० तक. क्या निदान है इसका? हमारी महिलायें जो सभी अमरीकन रीति रिवाज के अनुकरण में सब देशों से आगे हैं, अमरीका की तरह गहनों पर भी उन्हीं की तरफ़ कम आकर्षित हों…..एक अजीब परिस्थिति है हम नगदी क्रय विक्रय नहीं छोड़ेंगे, हम टैक्स नहीं देंगे चाहे जितना भी कमाये और उसको क़ानून से बचने के लिये और अन्य पेशेवालों को बेईमानी का रास्ता बताने के लिये व्यवहार करेंगे…..उन पर बेतिहासा ख़र्च करेंगे, पर सरकार का टैक्स नहीं भरेंगे….
१५.१०.२०१७
कल पटना विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह था…..नरेन्द्र मोदी पहुँचे थे, ….नीतीश के दोस्त बन चुके हैं…..राजनीतिक बाध्यता के बावजूद दोनों हीं समाज की कुरीतियाँ से मुक्त करना चाहते हैं देश को….बेटियों को समान सम्मान सब क्षेत्र में, भ्रूण हत्या पर सख़्त रोक, हर बेटी सरस्वती की आराधना कर लक्ष्मी की कृपा पाये. पर दुख तब होता है जब कुछ अति शिक्षित महिलाओं को भी मर्दों के सब बदगुणों को अपनाते पाता और देखता हूँ. नीतीश पहले शराबबन्दी की क़ानून द्वारा, और अब दो बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार को लागू करने का एलान कर चुकें हैं- तिलक और बाल बिबाह के बिरूद्ध, जो बहुत ज़रूरी है.पर इसके लिये अच्छी शिक्षा जिसमें सर्टिफ़िकेट पर ज़ोर न दें अच्छे कर्मठ बनने की प्रेरणा मिले, ज्ञान प्राप्ति पर ज़ोर हो, ज्ञान के ब्यवहारिक उपयोग का रास्ता मिले, जो विद्यार्थियों को हर तरह की समस्यायों के समाधान करने का रास्ता बतायें. शिक्षक भी केवल माँग की लड़ाई न लड़ दायित्व को भी समझें , लगातार योग्यता बढ़ाते रहें , बिद्यार्थियों को प्रश्न करने को प्रोत्साहित करे, सकारात्मक राजनीति की भी शुरूआत हो, विज्ञान को ज्यादा प्रोत्साहित किया जाये, नये विषयों को लाया जाये और …हज़ारों चीज़ें हैं जो हम कर सकते है मरती या कोचिंग सेन्टरों में सिमटती शिक्षा में सुधार करने की, या बदलने की…..पुराने ज़माने में मन से या कर्म से तपस्वी त्यागी मुनि ही अध्यापन का कार्य करते थे आज भी उसके विना शिक्षा में हम आगे नहीं बढ़ सकते… निजी शिक्षा संस्थान अगर शिक्षा को लाभदायक व्यवसाय बना चलाना चाहतें हैं…..तो सरकार को उनपर अंकुश लगाना जरूरी है, नहीं तो देश का विघटन कोई रोक नहीं सकता…..और किसी क्षेत्र में कुछ भी चले विद्या के क्षेत्र को पवित्र रखना ही पड़ेगा……..