बिचारों के जंगल में -५

८.१०.२०१७

पंजाब के किसान, एक समय परिश्रम और श्रेष्ठ उत्पादकता के मिशाल थे, उसका लाभ भी उन्हें मिलता गया, निम्नतम समर्थन मूल्य बढ़ता रहा, प्रान्त की सरकार से उपर से बोनस, बिजली के ख़र्च की माफ़ी मिली, सरकारी क़र्ज़ भले ही बढ़ता गया, भारतीय खाद्य निगम की ख़रीद की प्राथमिकता मिलती रही, और साथ ही पंजाब के किसान समृद्ध होते चले गये और नई पीढ़ी आलसी, यहाँ तक की नशाखोर बनती गई, आमदनी से ज्यादा ख़र्च करती गई, बिहार और अन्य पिछड़े प्रदेशों के लोग मज़दूरी के लिये मिल गये थे बहुत ही कम दाम में. पर साथ ही अधिक पानी के उपयोग से जलस्तर घटता गया. हर सरकार उनके द्वारा उठाये माँगों की भरपाई करते हुये, उन्हें अपने कर्तव्यों से विमुख करती गई, आमदनी के अनुसार ख़र्च न कर बैंकों से क़र्ज़ ले खेती को छोड़ भी अन्य चीज़ों में ख़र्च बढ़ाते गये….बैंकों का क़र्ज़ समय पर न लौटाने से उसका भार भी बढ़ता गया, कुछ नशे में डूबे, तो कुछ आत्महत्या कर बचने का उपाय किये..अब हालत ये हो गई कि कुछ थोड़े मिहनत और ख़र्च के लिये अपना या देश के अन्य लोगों के नुकाशान को भी न समझ खेत कटने के बाद बचे डंठल को आसानी से जला कर आवोहवा को ख़राब करने की ठान ली है. उन डंठलों हके समय रहते अच्छे उपयोग की बात न सोच बहकावे आ एकजुट हो उन्हें जलाने का निर्णय लिया है. नये मुख्य मंत्री भी भोट के चलते उनका साथ दे रहे हैं, माँग है धान के लिये प्रति क्विण्टल २०० रूपये का बोनस दिया जाये तभी वे जलाने को छोड़ दूसरे तरीक़ों को अपनायेंगे. वे यह भी जानते हैं कि खेत के ऊपर डंठलों को जलाने से ज़मीन के उपजाऊ तत्व भी जल जाते हैं और उसकी भरपाई के लिये उन्हें वह केवल अधिक खाद डाल ही कर पायेंगे. वे उसे बाहर के लोगोंको भी नहीं बेंचना चाहते, केवल सरकार पर दबाब डालना चाहते हैं………अगर देश का हर ब्यक्ति सरकार को ऐंठने में ही ख़ुश है चाहे वे ब्यपारी हों या किसान, चाहे मिल मज़दूर या बाबू या शिक्षक राजनीतिक प्रश्रय से , तो देश कैसे आगे जायेगा .

६.१०.२०१७

कल शुक्रवार, अक्टूबर६, को सोनी पर नौ बजे रात के अमिताभ बच्चन के ‘कौन बनेगा करोडपति’ में एक महिला खेल रहीं थीं मीनाक्षी जैन कक्षा दस तक पढ़ी गृहिणी. कितना आत्म विश्वास था मीनाक्षी में? कितना पढ़तीं होंगी? इसबार के के बी सी में काफ़ी ऐसीं महिलाऐं आ रही देश के बिभिन्न प्रान्तों से साधारण परिवारों से. कुछ दिन पहले एक हरियाना की महिला आईं थीं घर में सिलाई करतीं हैं, सिखाती भी हैं. फिर एक करोड़ जीतनेवाली जमशेदपुर की अनामिका मजुमदार …..पर सबमें आत्मविश्वास उतना दृढ़ नहीं होता जितना मीनाक्षी में था…उतना ही गहरा पिता प्रेम ….क्यों इन सब को देखने के बाद भी लोग ग़लत तरीक़ा अपना सर्टिफ़िकेट और डिग्री बटोरने में लगे हैं… क्यों शिक्षा की घिनौनी ब्यवस्था समाज में आन्दोलन और बदलाव का सबब नहीं बनती…..क्यों कम्पनियाँ विषय के ज्ञान और हुनर के हिसाब से नौकरी नहीं देतीं……चारों तरफ़ के मन को दुखित करने वाले वातावरण में साधारण महिलाओं की उपलब्धियाँ कहीं शूकुन दे जाती है, सीना गर्व से फूल जाता है, आँखों में कहीं नमी भी होती है…..चाहे जी डी पी कुछ भी हो देश बढ़ रहा है आगे……..आप सब अगर इसी तरह पढ़ाई को बढ़ावा देते रहे….लोग अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिये पुस्तकालयों में जायें या किताबों का लेन देन करें… तिलक की जगह लड़की लड़के के मन की सौ-हज़ार पुस्तकें माँगे, तो देश की जी डी पी भी बढ़ जायेगी.. चिन्ता नहीं है…

२.१०.२०१७

स्वच्छ भारत अभियान-राजनीति क्यों? आज दिन भर ९ बजे से ९ बजे रात तक NDTV पर अमिताभ बच्चन का स्वच्छ भारत अभियान पर प्रोग्राम चलता रहा जो पिछले तीन सालों से चल रहा है. देश के अलग अलग शहरों में जो स्वच्छता के बहुत से ब्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयास हो रहे हैं, उसकी झाँकी देखने को मिलती है. बहुत प्रभावशाली लगता है यह प्रयास और महशूश होता है कुछ सालों में पूरे देश में स्वच्छता दिखाई देने लगेगी . इसी बीच मोदी के आज के भाषण का भी सीधा प्रसारण सुना, आप भी ज़रूर सुनें और ज्यादा से ज्यादा दोस्तों से शेयर करें. मोदी का एक कहना बडा सठीक लगा – पूरी जी जान लगा देने पर भी, चाहने पर भी सौ गांधी और एक लाख मोदी भी देश के स्वच्छता को उन्नत देशों के स्तर का नहीं बना सकते पर अगर १३५ करोड़ देशवासियों के साझे प्रयास से यह सम्भव हो सकता है. स्वच्छता आन्दोलन की सफलता हर ब्यक्ति की अपनी जीवन पद्धति और आदतों मे स्वास्थ्य हित बदलाव लाने पर है जिसका पहला क़दम शौचालयों के निर्माण, ब्यवहार और रख रखाव की ज़रूरत और उसके लाभ, उसके साथ जुड़े आत्मगौरव की समझ पर है.

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ग़ैर ज़िम्मेदार नागरिक: यह कैसा बनता जा रहा है अपना प्रजातंत्र जहाँ नागरिक अपने ब्यक्तिगत दायित्व को समझता नहीं, कोई ज़िम्मेदारी लेना नहीं चाहते, सभी ग़लतियों के लिये उस समय की सरकार ज़िम्मेदार है. करीब एक महीना पहले ही सासाराम में मेरे गाँव का एक नवयुवक ट्रेन के नीचे आ गया अपनी सुरक्षा का बिना ध्यान रखे अपनी हड़बड़ी में किये ग़लती के कारण. नोयडा की ६- लेन की सड़कों पर ऊपर से पार करने की ब्यवस्था हैं, पर उसका उपयोग मिहनत के कारण बहुत कम ही होता है. बहुत जगहों पर रोड डिभाडर को तोड़ रास्ता बना लिया गया है. और इस क़ानून बिरोधी कार्य को रोकने का कोई तरीक़ा नहीं. मुम्बई में हुई दुर्घटना में भीड के लोगों के मौत की कितनी ज़िम्मेवारी लोगों के ग़लती की थी वहाँ हुई भगदड़ में, कोई नहीं सोचता, सब सरकार पर डाल देते हैं उस घटना की ज़िम्मेवारी-रेलवे ने ब्यवस्था नहीं की दूसरे पूल की या वर्तमान पूल को चौड़ा करने की. दिग्गज बिरोधी लोग , राज थाकरे, यहाँ तक कि चिदाम्बरम की तरह के लोग कह गये कि भारत में बुलेट ट्रेन की क्या ज़रूरत. जब इनके शासन काल में माल डिब्बों को निश्चित सीमा से ज्यादा लोड कर रेल की पटरियों को नुकशान पहुँचाया गया तो वे कुछ नहीं बोले. मुम्बई में लोगों के मुँहों में माइक को ठूँस ठूँस कर रिपोर्टरों ने सरकार की लापरवाही पर बयान दिलवाये, रेल मंत्री मुम्बई जा डेरा डाल दिये, भोट पर आँच नहीं आये के दबाव में दस दस लाख के मुवावजे देने की घोषणा की गई…..किसी में साहस नहीं लोगों को सुधारने का ….मुझे यह सोच तकलीफ़ होता है ….क्या लोगों की सुरक्षा की सब ज़िम्मेवारी सरकार की है , या लोगों का दायित्व भी है अपनी ..और समुदाय की सुरक्षा के बारे में .. शायद हमारे गाँव के लड़के को भी मुवावजा रेल से मिल जाता अगर वह भीड जुटानेवाली माफ़िया का सदस्य होता ….आकार पटेल का ब्लाग पढ़ थोड़ा संतोष हुआ कि एक जाना माना पत्रकार तो लिखा लोगों की ज़िम्मेवारी के बारे में…..

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आज विजयादसमी है . राम का रावण पर विजय का दिन, बुराई पर अच्छाई की विजय. पर हम सबमें एक रावण पक्ष है एक राम- कुछ बुराइयाँ , कुछ सदगुण. हम अपनी कमियों को देख नहीं पाते, शायद कोशिश भी नहीं करते उससे उबरने की. साथ ही अपने आन्तरिक गुणों या सामर्थ्य को भी नहीं समझ पाते. हम अगर अपनी हर बुराइयों के द्वारा हुये अपने हीं नुकशान को समय रहते समझ पाते और अपनी मानशिक दृढ़ता और संकल्प से उन पर विजय पा लेते, तो वह हमारे राम की हमारे रावण पर विजय होती. मैं आम बातचीत में प्रचलित एक आदत की बात कर रहा हूँ. हम मित्रों के साथ किसी अन्य ब्यक्ति की, जो वहाँ मौजूद नहीं है, निन्दा करते या मज़ाक़ उड़ाते है, सोचते हैं क्या फ़र्क़ पड़ता है, वह कहाँ सुन रहा है. अगर हम आज के दिन केवल एक प्रण करें कि किसी की अनुपस्थिति में उस ब्यक्ति की कोई बुराई न की जाये, तो हम इस तरह से अपने राम से रावण को हराते हुये एक ख़ुशी का बातावरण तैयार कर सकते हैं और अपनी हर विजय पर विजया दशमी मना सकते हैं. कितनी बिषम परिस्थियों से राम को जीवन भर जूझना पड़ा ….पर वे हार नहीं माने तो देवता बन गये और हर ब्यक्ति जीतता रह सकता है….विजया दशमी की शुभकामनाओं के साथ…

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कल नवरात्र का आठवाँ दिन, अष्टमी था. यमुना के लिये नौ कन्याओं को खिलाने का उपक्रम तो अब हो नहीं पाता. अत: बिस्कुट के पॉकेट बाँट देते हैं. बच्चियों को भी यही अच्छा लगता है, हैलोविन की तरह झोले लेकर और बढ़ियाँ से बढ़ियाँ कपड़े पहन आती हैं. यमुना भी पूजा कर बैठ गईं…कार्यक्रम पूरा किया गया….इसबार फ़ेसबुक पर ही देश के गाँव, शहरों की दुर्गापूजा के महँगे और आम सभी पंडाल देख लिये….एफ ब्लाक के बंगाली अभी तक संगठित नहीं हो पाये हैं…..अत: यहाँ कोई पंडाल नहीं है. हमारे आम्रपाली इडेन पार्क कॉप्लेक्स मे दो दल अलग अलग कुछ कर रहे हैं…अापस के इस झगड़े को दुख होता है, पर नई पीढ़ी को समझाने का अब साहस नहीं. विचारों की लड़ाई स्वार्थ निहित हो चुकी है….हम केवल मूक दर्शक बन रह गये हैं. पर उम्र के इस पड़ाव ऐसे दिन काटनें होंगे….

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यशवन्त सिंहा अपने सरकार बिरोधी बिचार समाचार पत्र में न छपाते तो देश और अपनी पार्टी के हित में होता. और भी वेशरमी की बात यह है उस लेख में कि उन्होंने नाम लेकर एक मंत्री पर लांक्षन और दूसरे की प्रशंसा की है. मेरी राय में वे शौरी और राम जेठमलानी की श्रेणी में आ गये. उनके बिरोधी बेचारों से ज्यादा उनकी शिक्षा और अनुभवों पर आधारित ब्योरेवार सलाहों को सराहा जाता हमारे तरह के लोगों द्वारा. अब लगता है शौरी की तरह उनको भी मलाल है कि उन्हे वित्त मंत्री क्यों नहीं बनाया गया और जेटली को इतनी अधिक ज़िम्मेदारी क्यों दी गई. ऐसा साफ लगता है लेख पढ़. आप भी पढ़ लें और विचार दें . अपने बूते २०१४ जीतनेवाले प्रधानमंत्री को यह निर्णय लेने दें और पार्टी के हित का ध्यान रखें. गड़करी या गोयल का नाम न लें उन्हें भी अभिभावक की तरह और अच्छे मंत्री बनने में मदद करें, थोड़ा कुछ बोलने के पहले कुछ अच्छे जानकार सलाहकारों से मदद लेने को कहें. गड़करी और गोयल का एक अब्यवहारिक समय सीमा में सभी आॉटोमोबाइल और रेलवे का विद्युतीकरण या मरहौरा के जेनेरल एलेक्टरीक के डिजेल लोको प्रोजेक्ट के बयानों का देश विदेश के उद्योग के लोगों पर कितना ग़लत प्रभाव पड़ा है और पड़ेगा. नोटबन्दी एवं जी एस टी का ऐतिहासिक , बिशालकाय साहसिक निर्णय यशवन्त सिन्हा या आजतक की कोई सरकार नहीं ले सकती थीं. दोनों ही काम बहुत बडा था, मोदी या जेटली को भी मालूम था. पर उन्होंने यह निर्णय लिया सभी मुसीबतों को जानते हुये भी दूरगामी लाभ के लिये. नोटबन्दी के समय और आज भी यही लगता है कि लड़ाई सरकार और देश के ग़लत ढंग से धन बटोरनेवालों में है जो काले धन के बिना सो नहीं सकते, जी नहीं सकते, और उसके लिये देश को बेंच भी देने में नहीं हिचकिचायेंगें. सांसदों , मंत्रियों और बाबुओं को ख़रीद कर कुछ भी अपने हित में करवा सकते हैं, जिनके लिये चुनाव जीतना सबकुछ है….उद्योग के हर सेक्टर पहले की सरकारों के ठीक निश्चय न लेने के कारण पिछड़ गये, कुछ लोगों को करोड़पति बना गये. देश का गृह निर्माण सेक्टर आज कितने लोगों को परेशानी में डाले हुये है…..आज भी टमाटर और प्याज़ का जब चाहे तब दाम बढ़ा कौन कमाता है….उपजानेवाले किसान को क्या मिलता है….और फिर उनको सड़कों पर कौन उतारता है….राम रहीम बनने ही क्यों दिये जाते हैं….आज शिक्षा क्यों कोचिंग की मोहताज बन गई…..राजनेता वह है जो ऐसी ग़लत चीज़ों को पनपने न दे…सत्तर साल से राजनेता और उनके नज़दीकी मलाई खाते रहे, देश बरगलाया जाता रहा, पीढ़ियाँ बदलती गयीं सपने देखते देखते….पता नहीं देश के बुद्धिजीवी अपने बेचारों के स्वान्तर्तय के लिये देश हित पर कुछ नई सोच , सलाह क्यों नहीं देते? 

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२७.९.२०१७

इस साल नवरात्र में वह कुछ न कर सका जो पहले सालों करता था, न तुलसीदास के राम चरित मानस का नवापरायण, न दुर्गासप्तशती का नवों दिन पाठ पूजा. यमुना का पूजा तो उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण बन्द हो गया है. ईश्वर कृपा से मैं नित्य मानस के सुन्दर कांड का पाठ कर लेता हूँ …..यमुना कहतीं हैं ‘जाहि बिधि राखे राम, ताहि बिधि रहियों’…..,. हाँ, इस नवरात्र में मैं बार बार सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला ‘ की महान कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ पढ़ा, यू-ट्यूब के ज़रिये सुना , समझने की कोशिश की. जितनी पढ़ता हूँ और अच्छा लगता है- निराला जी बंगाल में पैदा हुये, बंग्ला में शिक्षा पाई. कविता में बर्णित कथा बंग्ला में लिखे कृतिवास रामायण से है. आख़िरी दिन का युद्ध समाप्त हुआ है….राम ने अपनी दिब्य शक्ति से एक अजीब घटना देखी. काली जो रावण को अपने क्षत्रछाया में रखे है, राम के सभी बाणों को आत्मसात करती जाती हैं……राम डगमगा गये, कैसे जीतेंगे रावण को, …’विच्छुरित वह्नि – राजीवनयन – हतलक्ष्य – बाण,…अनिमेष – राम-विश्वजिद्दिव्य – शर – भंग – भाव,’. ..’.स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर – फिर संशय’… कैसे मिलेंगे प्राण प्रिय सीता से, ग्लानि से भर गये इस घटना से….. लौटे शिविर, ख़ुद सोचमग्न, खिन्न,…चुप हैं, उनकी चुप्पी सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, जामवान को खिन्न किये हुये है….कारण बताते हैं राम, .’यह नहीं रहा नर बानी का राक्षस से रण, उतरी पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण , अन्याय जिधर, है उधर शक्ति….’ फिर वयोवृद्ध जामवान सलाह देते हैं, ‘…….शक्ति कि करो मौलिक कल्पना, करो पूजन……..’ राम करेंगे शक्ति पूजा, हनुमान ले आये दूर नीलदह से १०८ इन्दीवर (नील कमल). राम की शक्तिपूर्वक आरम्भ हुई, …… और फिर.’…गहन से गहनतर होने लगा समराधन ।..चक्र से चक्र मन बढ़ता गया ऊर्ध्व निरलस….आँठवा दिवस मन ध्यान्युक्त चढ़ता ऊपर, कर गया अतिक्रम ब्रह्मा हरि शंकर का स्तर, हो गया विजित ब्रह्माण्ड पूर्ण, देवता स्तब्ध,…….और इसी समय देवी आयीं आख़िरी बचा एक फूल को ध्यानमग्न राम के सामने से उठा ले गईं. जब ध्यान भंग होने पर फूल नहीं दिखा, क्षण में राम मन स्थिर कर निश्चय कर लिये- “कहती थीं माता मुझको सदा राजीव नयन। दो नील कमल हैं शेष अभी…पूरा करता हूँ देकर मात एक नयन. ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन, ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन……. काँपा ब्रह्माण्ड , हुआ देवी का त्वरित उदय, ” साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम”, कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम। ” होगी जय , होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन”, कह महाशक्ति राम के वदन में हुईं लीन. 

शायद आगे से अब इसी ‘राम की शक्ति पूजा’ के पाठ से मैं अपना नवरात्र मनाऊँ. बहुत तथ्यों से भरी है यह रचना…..और हम बेकार की बातों जीवन खपा रहे हैं ..

१७.९.२०१७

सितम्बर १७, मेरी पत्नी यमुना का जन्म दिन है सरकारी दस्तावेज़ों में. यह कम लोगों को मालूम है. यमुना की जन्म पत्री नहीं खोज पाया था, शायद उन दिनों लड़कियों और वह भी गाँव में बनाया ही न जाता था. हाँ, यह याद था यमुना की माताजी को उस दिन वहाँ तीज थी . फिर यमुना बहुत भाई बहन थे , इनसे बड़े और छोटे कुल आठ- पाँच बहनें एवं तीन भाई , पाँच बड़े और तीन छोटे. अत: मुझे जब इनके जन्म दिन को किसी ज़रूरी दस्तावेज़ में देने की ज़रूरत पड़ी तो मैंने उस साल के तीज के अासपास का सहज याद रखने लायक विश्वकर्मा पूजा का दिन चुना जो हरदम सितम्बर १७ ही रहता है सूर्य के आधार पर होने के कारण. मैंने इनके बड़े भाई जो अध्यापक थे और सबसे छोटे भाई जो हिन्दमोटर में हीं काम करते थे, जिनके जन्म दिन सरकारी दस्तावेज़ों के आधार पर था, पता किया और मिला कर देखा यमुना का जन्म दिन करीब करीब ठीक ही लगता है. मुझसे तीन साल के करीब छोटी हैं. बडी बहू केक भिजवा दी थी. काफ़ी लोगों का मुँह मीठा हुआ. मैं शायद पहली बार दो गुलाब के फूल के साथ यमुना की पसन्द राजस्थान का लड्डू और रस्सगुल्ला सेक्टर ५० के मुख्य बाज़ार से ले आया. कोई आनेवाला नहीं, कोई फ़ोन नहीं , हम अपनी शाम हँसते हुये पुर्ज़े दिनों को याद करते करते समय से सो गये…..शुभ जन्मदिन , यमुना! मैंने तो निमंत्रण दिये बहुत पहले , पर कोई नहीं आया तो मेरा क्या दोष। , मैं तो आख़िरी समय तक इंतज़ार करता रहा. यह हीरक जयन्ती थी. हम तो अपना कर्तव्य निभाते जायेंगे….हम माँ बाप जो ठहरे !

२३.९.२०१७

टी.वी. के सभी मंनोरंजनहित दिखायेजाने वाले सभी सीरियल के हास्यप्रद कहानियों और समाचार चैनलों पर होते बकवास के बहस को बर्दास्त नहीं करने के कारण आजकल हम अमिताभ बच्चन का रात ९ बजे से सोमवार से शुक्रवार तक ‘कौन बनेगा करोड़पति’ देखने का आनन्द लेते हैं. बहुत जानकारियाँ मिलती हैं . हम कितना कुछ नहीं जानते जो हमें मालूम होना चाहिये था बिभिन्न विषयों के बारे में. पर मेरा मुख्य ध्यान उन हिस्सा लेते लोगों पर होती है, उनके पृष्ठभूमि, उनकी पारिवारिक अवस्था, उनके कुछ ज्ञान के अर्जन द्वारा कुछ अच्छी धनराशि कमा लेने की लगन पर और उनके दृढ़ मनोबल पर रहता है , अत्यन्त ख़ुशी होती है कुछ लोगों के अद्भुत ध्येय पर. इनमें कोई बिरला या अम्बानी परिवार के नहीं होते, किसी ख़ास जाति या धर्म के नहीं होते, वे पुरूष और महिलाऐं सभी होतें हैं, पिछले दिनों एक हरियाना के गाँव की साधारण महिला थी हॉट सीट पर जो घर पर सिलाई कढ़ाई सिखाती है. कल एक महिला थीं मुहम्मद मसलम बेगम, बहुत समझदार साधारण परिवार की, मियाँ बीबी दोनों पढ़ने के शौक़ीन ..तीन लाख बीस हज़ार जीतीं और इतना ही हार गईं ठीक निर्णय ठीक समय पर न लेने के कारण….हम पता नहीं क्यों महान पुरूषों की लगातार उम्र के अन्त तक पढ़ने की आदत राय को क्यों नहीं डालते. मुझे युवा पीढ़ी से शिकायत है कि वे पढ़ने की आदत छोड़ते जा रहे हैं, जिसकी जानकारी की ज़रूरत है गुग्गल सहायता कर देता है, और यही सीख बच्चों को भी मिलती है. यहाँ वे अमरीका की नक़ल नहीं करते वहाँ की तरह किताबों की दुकानों पर ले नहीं जाते, न लाईब्रेरी हीं…..मैं केवल दो उदाहरण देता हूँ एक हिन्दी के महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी की, दूसरा अमरीका के राइट बर्दास् की . पहले केवल दसवीं तक और दूसरे तो वह भी नहीं…. पर दोनों में अपने विषय की हर किताबों को छोटी उम्र में ही जुनून था….क्या हम यह रास्ता नहीं अपना सकते बच्चों में यह जुनून जगा कर….आरम्भ अपने से करना होगा……

१९.९.२०१७

भारत रोहंगियों को किसी हालत में नहीं रख सकता, जब अपनी ही जनसंख्या १.३५ अरब पहुँच चुकी हो और अभी भी लोग इसे रोकने की बात करने पर धर्म का हवाला देते हैं. ममता कहतीं हैं इनमें आतंकवादी है तो सरकार पता करे, पर उनकी और ज्योति बसु की सरकार ने दो करोड़ बांग्लादेशियों को रॉशन कार्ड , यहाँ तक की आधार कार्ड बनवा सारे देश में फैला दिया, क्या बंगाल की बृन्दाबन एवं बनारस में रहती बंगाली बिधवाओं की समस्यायें ही कम थी. और ये रोहंगिये वर्मा से हवाई जहाज़ से जम्मू और उत्तर के सब शहरों में तो पहुँचे नहीं, बंगाल हो कर ही आये , फिर ममता की सरकार इन्हें क्यों नहीं रोकी? मुसलमानों को यह भी समझना चाहिये कि रोज़ रोज़ के झगड़े से बचने के लिये तो उन्हें पाकिस्तान में होना चाहिये था, यही समझौता था विभाजन का. कोई पूरे देश की राय तो माँगी नहीं गई थी इन्हें भारत में रहने देने के लिये, कुछ दबंग नेताओं का बिचार था. अगर वे अाम नागरिक की नहीं रह सकते , मदरसा छोड़ आधुनिक शिक्षा के विद्यालयों में पढ़ नहीं सकतेऔर अपने दक़ियानूसी तरीक़ों से देश के माहौल को भोट की राजनीति के चलते छोड़ना नहीं चाहते , सभी आतंकबादी घटनाओं में उन्ही का नाम आता है, तो यहाँ के बहुसंख्यक लोग कब यह सहे? इन्हें तो पाकिस्तान के नेताओं ने लेने से अस्वीकार कर  दिया था…..

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१३.९.२०१७

आज अहमदाबाद का रोड शो देख रहा था एअर पोर्ट से साबरमती आश्रम तक का-जापान के सिंजो ऐबे एवं उनकी पत्नी मोदी के साथ खुली जीप में. मुझे १९५५-५७ के कभी की एक याद आ गई …..मैं प्रेसीडेंसी कालेज कलकत्ता में पढ़ता था और इडेन हिन्दू हास्टेल में रहता ….एक दिन हम चितरंजन ऐवेन्यू पर इंतज़ार कर रहे थे ऐसे ही एक क़ाफ़िले का सोभियट यूनियन के करूस्चेभ एवं बुल्गानिन को देखे थे उम्रानुसार उत्सुकता से….शायद वे कलकत्ता में इसी तरह की भीड देखे होंगे और भारत की जनशक्ति का अंदाज लगाये होंगे….पर कलकत्ता उन दिनों बहुत साफ हुआ करता था…और उस देश के साथ भी दोस्ती इसी तरह कामयाब है….हाँ, बिरोधी आवाज़ भी होगी आज की घटना का गुजरात के चुनाव से जोड़ कर….,

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