बिचारों के जंगल में-३

27.7.2017
नीतिश फिर से राजा बन गये उन्हीं का साथ ले जिन्हें वे अकारण छोड़ गये थे क्योंकि राजनीति में कोई लड़ाई ब्यक्ति बिशेष से तो होनी ही नहीं चाहिये अगर वह परिवार या जाति राज न चलाता हो. उस समय में भी मैंने उन्हे ग़लत कहा था, आज भी मैं वही सोचता हूँ . यह कैसे सम्भव है कि लालू के रेल मंत्री काल की हेरा फिरी , लेनदेन नीतिश को पहले से मालूम न हो, कैसे वे लालू के दोनों लड़कों को मंत्री परिषद में ले लिये जो दोनों बिहार के लिये मज़ाक़ बन गये सारे भारत में और इसका दर्द दूरदेश में रहनेवाले बिहारियों को झेलना पड़ा. कैसे उन्होंने वित्त मंत्री चुनाव किये और रखे, क्या बिहार का कुछ भी भला हो सकता है. बिहार के गाँवों और छोटे शहरों की शिक्षा की दुर्गति पर वे कुछ न कर पाये….वे गद्दी बच जाने ख़ुश होंगे, पर जाते जाते लालू ने उन पर राष्ट्रीय टी वी न्यूज़ चैनलों पर उन पर लांक्षन लगाया उससे कैसे उबरेंगे लाख कोशिश कर. सुशील मोदी ने एक दोस्त की अच्छी भूमिका निभाई. क्या अब वे अपने नये साथियों से अनुगरहित रहेंगे, उससे क्या बिहार शिरमौर बन पायेगा. इस उम्र में मेरे लिये तो देश या प्रान्त का दुनिया, और देश में सबसे समृद्ध और सबसे ज्ञानपरक शिक्षा में सर्व श्रेष्ठ होने की एक मात्र कामना है. नीतिश जी अब मत बदलना….नहीं तो लोग तुम्हें कहीं का न छोड़ेंगे ……शुभेच्छा…

26.7.2017
भूमिहारों का गौरव गान करनेवालों से एक बात पूछनी है? आज से चार साल पहले मैं अपनी पत्नी और कुछ अन्य जातिय रिश्तेदारों के कहने पर आम्रपाली इडेन पार्क में एपारटमेंट लिया. मेरे जैसे बहुत बिहारियों का अपनत्व का कारण था, किसी विशेष सुबिधा की नहीं. आज मालिक अनिल शर्मा को केवल इस प्रोजेक्ट का २३ करोड़ बक़ाया रूपया नोयडा अॉथरिटी को देना है. लोग गालियाँ दे रहे हैं, रजिस्टरी नहीं हो सकती. कोई भूमिहार नेता बतायेगा क्या करना चाहिये. लोग कहते हैं ऐसे इसके २० प्रोजेक्ट हैं, सभी पैसा चुका कर अपने भाग्य को कोश रहे हैं. कैसे जाति के लिये आदर हो जब धूर्तता करना जाति धर्म बन जाये…

25.7.2017
देश के दो राजनीतिज्ञ दिग्गजों के निवास बदल जायेंगे आज से- एक बड़े से छोटे और दूसरा छोटे से बड़े घर में सोयेंगे. क्या आज रात उन्हें नींद आयेगी इतनी उम्र में (मैं अनुभव पर कह रहा हूँ) ? प्रजातंत्र में यही बडी बात है…..पूरा देश यह ज़रूर सोचता होगा .बच्चों को बताना चाहिये..मैं बहुत दिनों पहले मज़ाक़ में कहा करता था.. मैं देश का राष्ट्रपति तो बन सकता हू पर हिन्दुस्तान मोटर्स का प्रेसीडेंट नहीं …..यहाँ सबकुछ सम्भव है कर्म और धर्म से…, क्या इसे भाग्य कहा जाये या …पर शायद एक को ज़रूर अपने बचपन के दिन आये होंगे जो दूसरे को पाँच साल पहले एक ऐसे ही दिन याद आया होगा गाँव का… परिवार का.. गाँव के घर का .. उसकी दयनीय हालत का… और फिर लम्बे जीवन के कटु और मधुर यादें…

24.7.2017

ब्यापारियों की हठधर्मी: यह कैसा भारत ! जहाँ टैक्स न देना या चुराना बड़प्पन समझा जाने लगा है आज़ादी के सत्तर साल बाद भी. गुजरात के सूरत में पिछले सप्ताह हजारों कपड़ा व्यापारियों ने जीएसटी के तहत टेक्सटाइल पर पांच प्रतिशत टैक्स लगाने के विरोध में प्रदर्शन किया। जानकारी के मुताबिक गुजरात के हीरा व्यापारी भी जीएसटी का विरोध कर रहे हैं। ये वही ब्यापारी हैं जो देश के मजबूर ग़रीबों को कम से कम माहवारी पर रख और हर तरह का शोषण कर अपने बच्चों की शादियों में सैकड़ों करोड़ रूपया ख़र्च करते हैं काले धन को बढ़ाने में मदद करते हैं . फिर मन्दिरों में जा हांडी में करोड़ों नक़दी डाल स्वर्ग में स्थान बनाने के भ्रम में सब ग़ैरक़ानूनी काम करते रहते हैं और यह सब बिना टैक्स दिये. जी. एस. टी की तरह युगान्तरकारी कर ब्यवस्था में सहर्ष भाग ले देश की समृद्धि के रास्ते बढ़ने में रोड़ा अटकाते हैं….,काश, जल्दी समझ जायेंगे अपनी नासमझी. एक तरफ़ गुजरात का एक बेटा इतिहास रच रहा है, दूसरी तरफ़ वहीं के ब्यापारी रास्ते और हार्दिक पटेल ख़ुद सोचें वे क्या कर रहे हैं, ठीक या ग़लत.

21.7.2017

गोरक्षकों की हिंसक ज़्यादती और बीफ फ़ेस्टिवल का भड़काऊ भावनात्मक समारोह: देश के युवकों का नया तरीक़ा अलग अलग तरह के तर्क और बहाने से देश को तोड़ने का ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रयास है, दोनों ग़लत ह मेरे बिचार में, मुझे पता नहीं ऐसे लोग आज के क़ानून के अपराधी हैं या नहीं? देश के कोने कोने से आते हर उम्र की लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार के जघन्य समाचार किसी भी ब्यक्ति को अन्दर तक हिला देने के लिये काफ़ी है बिशेषकर उनके लिये जिनकी बहूबेटियां आज काम के लिये निकलती हैं. क्या पुलिस या क़ानून इसे रोक सकती है, क्या दंड बिधान बलात्कार के लिये फाँसी की सज़ा दे कर यह बन्द करा सकता है? क्या हर महिला के बाहर निकलने पर उसकी रक्षा केलिये एक पुलिस इसका उतर हो सकता है? क्या यह ब्यवहारिक सुझाव है? कोई माँग किसी को देश या जनसाधारण में किसी के घर या गाड़ी या कोई आग लगाने की इजाज़त नहीं देती. देश के रखवालों के बिरूद्ध हिंसा कर बाहवाही पाने की तो एकदम नहीं. समाज अपने दायित्व को सरकार पर डाले जा रहा है. हम समझे और समझायें कि तोड़ फोड़ और हिंसक आंदोलन किसी ज़िम्मेदार प्रजातंत्र का तरीक़ा नहीं हो सकता . जो देश पूर्व पस्थर काल से आघुनिकतम परम्पराओं को ले एक साथ रहता है और जिस देश की अच्छी शिक्षा की नींव ही बहुत कमज़ोर हैं, वहाँ उदारवादी पर उत्तरदायी समाज और देश को ठीक रास्ते पर लाने के लिये वैसे ही उचित ब्यवहार करने के लिये मज़बूत और ईमानदार क़ानून और ब्यवस्था की ज्यादा ज़रूरी है. देश के प्रबुद्ध लोगों सब मिल कर इसका हल खोजना ही बाक़ी है, क्योंकि राजनीतिज्ञों को आग लगाना आता है, न बुझाना, न आग किसी हालत में नहीं लगे , उसका कारगर उपाय खोजना …..

20.7.2017

नरेश अग्रवाल ने कल राज्य सभा में जो बातें कही, वह बताती है कि अधिकांश विरोधी हिन्दू नेताओं की मानसिकता क्या है धर्म में पूजित देवता के प्रति , फिर चरित्र कहाँ से आयेगा और अगर नेता ही ऐसे हैं जो अपने धर्म की मर्यादा नहीं समझते हैं न राष्ट्र की तो उनके साधारण पिछलग्गू तो क्या कहेंगे और करेंगे मालूम नहीं. मैं अगर राहुल, सोनिया या ओवासी कहते तो मान लेता क्योंकि वे हिन्दू हैं ही नहीं, पर नरेश अग्रवाल को अपना धर्म बता देना चाहिये. सोचने की बात है यह राज्य सभा में कही गई. दुर्भाग्यवश देश की सरकार और मंत्री पिछले ७० सालों में अच्छी शिक्षा पर कोई ज़ोर नहीं दिया, नहीं तो आज ऐसे नेता कभी सांसद नहीं बनते. मैं दुर्भाग्यवश यह सब ख़ुद सुन रहा था…आश्चर्य यह कि बिपक्षी नेता या अन्य कई सांसद इस दुरावस्था की ज़िम्मेदारी मोदी पर थोपी, पर किसी ने कोई सुझाव नहीं दिया समाज के ब्यक्तिगत मानशिकता या हिंसा को रोकने का. वे सर्वसम्मति से यह सुझाव दे सकते थे अपने भाषणों में-क्यों न हर सासंद अपने क्षेत्र में जाये और चुनावों की तरह रैलियाँ करे कि हर धर्म के लोग समाज में फैलते इन विषैले दुर्भावना को ख़त्म करें. जाति और धर्म को लेकर आपसी वैमनस्य के लिये आज केवल राजनीतिज्ञ ज़िम्मेदार है नासमझों की भावना को हवा देकर. समाज का वह वर्ग जो अपनी रोज़ी रोटी के लिये ईमानदारी से काम करता है उसके पास इन ग़लत पाप कर्मों के लिये समय नहीं….चीन और पाकिस्तान जब भारत को मौक़ा ही नहीं देना चाहते कि वह आगे बढ़ जाये या दुनिया में सिरमौर बन जाये, सभी नेता देश को तोड़ने में लगे हैं, क्योंकि ये इसी की रोटी खाते है, अपने लिये और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये ग़लत रास्ते से चाहे वह काला ही क्यों न हों, किसी ग़रीब की थाली का चुराया ही क्यों नहो….

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भारत और विचित्र भारतीय: राजस्थान के नागौर जिसे के एक गाँव की एक भीड ने पुलिस पर आक्रमण कर १६ पुलिसवालों को बुरी तरह ज़ख़्मी कर दिया एक ख़तरनाक बदमाश के मारे जाने के बिरूद्ध, क्योंकि वह उन्हीं के जाति का था. भीड सी बी आई द्वारा जाँच की माँग कर रही थी. जिसे सारे राजपूतों ने इसे अपने शान की बात बना लिया है, पूरा ज़िला जल रहा है, बसें और सरकारी सम्पति जलाई जा रहीं है, यही है जाति की राजनीति, महाराणा प्रताप अपने बंशजों की करतूत पर रो रहे होते. राजपूतों दिखाने के अवसर तो सीमा पर है, सेना में भर्ती होओ या पढ़ाई लिखाई करो, समृद्ध बनो…. बाहुबलियों को राणा प्रताप न बनाओ. उनका तो तुमने साथ नहीं दिया, और देश को ग़ुलाम बनने से रोकने के लिये तो एक नहीं हो पाये…राजपूतों के गुणों से हज़ारों मील दूर रह कर भी अपने को राजपूत कहते शरम क्यों नहीं आती?

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नोयडा में एक डंडे पत्थर लिये भीड ने २००० परिवारों के एक हाते बन्द बहुमंज़िला आवास कॉम्पलेक्स को पथराव किया और भीतर प्रवेश कर एक फ़्लैट को बहुत नुकशान पहुँचाया इस ग़लतफ़हमीमें कि मालिक ने महिला नौकर को घर में बन्द कर रखा है. सत्य यह था कि महिला अपने रिश्तेदार के यहाँ ठहर गई थी उस रात.

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सबेरे शाम पुलिसवालों को मेघदूतम् एपार्टमेंट और पार्क कोने पर देखता हूँ तो अच्छा लगता है. एक बात और अच्छी है वे सभी नौजवान और चुस्त लगते हैं. एक बार और भी ध्यान में आता है – सबके पास स्मार्ट फ़ोन हैं. आज मैं रूका और पूछा कि क्या स्मार्ट फ़ोन उनका है या पुलिस विभाग ने दिया है. ‘ नहीं अंकल, यह हमलोगों का अपना है’. वे फ़ोन को ब्यक्तिगत परिवार या दोस्तों से सम्पर्क के लिये रखते है या अपने लिये मनोरंजन के लिये, गाने, फ़िल्म, समाचार. मेरा अगला सुझाव था कि आप में कोई इस पर किसी ‘ऐप’ का इजाद क्यों नहीं जो क्षेत्र के सभी क़ानून ब्यवस्था से आपको हरदम जोड़े रह सके और क़ानून तोड़नेवाले लोगों के साथ रियल टाइम में जोड़े रह सके.’यह सम्भव है और बहुत काम का बन सकता है. पर हम तो इतना टेक्निकल जानते नहीं है. बिभाग को कुछ पहल करना चाहिये . मैं आगे बढ़ गया पर सोचता रहा, भोट के लिये गैजेटों को न बाँट हर योग्य पुलिसवालों को यह क्यों नहीं दिया जा सकता……हम पुलिसवालों के काम का ऐप क्यों ईजाद कर सकते..,,,

9.7.2017

कल शाम मेघदूतम् पार्क जा रहा था…..कोने पर रोज़ की तरह दो पुलिसवाले खड़े थे, तीन चार छोटी उम्र के लड़के उनसे बात कर रहे थे, उनमें एक लड़की भी थी……और एक दुबला पतला अबोध सा गाँव का लड़का ज़मीन पर पसरा हुआ था…..मुझसे रोका नहीं गया मन की बात, चलते चलते कह दिया, ‘अरे भैया, पसरे क्यों हो इस तरह’, और आगे बढ़ गया…..कुछ देर में देखा वह लड़का पीछे दौड़ा आ रहा है, हमारे साथ दौड़ो ….मुझे भी कुछ क्षण दौड़ने का स्वाँग कर अच्छा लगा….फिर ‘तुम जीत गये’ कह कर जान छुड़ाना चाहा, पर इतने में एक आवाज़ आई, ‘यह यादव है’….फिर दूसरी, ‘और वह , अंकल मोहमडन…. ‘, मैं हतप्रभ हो खड़ा हो गया, , ‘अरे तुम स्कूल जाते हो ,पढ़ते हो …तुम सभी बिद्यार्थी हो’.., उनकी समझ में नहीं आई शायद यह बात, हम अभी सौ वर्ष पीछे हैं….हों भी क्यों नहीं ,जब राष्ट्रपति के उम्मीदवार अभी भी अपने को बिना ज़रूरत दलित कहने के पहले सोचते नहीं, अपने साथ हुये भेदभाव की कहानियाँ सुना कॉलेज के लड़कों के बीच सहानूभुति पाना चाहते हैं या पता नहीं क्या सुख आज उस बात को कह…,जब देश केवल आपकी योग्यता, आपका कृतित्व, आपके आका का बिचार कर आपके बारे में राय बनाता है…

8.7.2017
ब्यवसायी, किसान, प्याज़ और टमाटर -कौन हँसा, कौन रोया: कल मुझे टमाटर ख़रीदना था. मैं गोल टमाटरों को पसन्द करता हूँ , पर आज तो लम्बे वाले मिले, लगता है कोल्ड स्टोरेज का हो. पता नहीं यह भी चीन से आता हो, हमारे ब्यपारी चला रहें हैं यह देश या फिर चीन , अमरीका. हमारा सरकारी तंत्र तो मूक दर्शक हैं चाहे जो भी सरकार हो राज्य में ,दलो के बड़े नेता मलाई खाने में ब्यस्त रहते हैं. प्रश्न है कि टमाटर की कमी है या फिर जमाख़ोरी के कारण मुझे या देश के अन्य लोगों को ८० रूपये किलो टमाटर के देने पड़े. यही टमाटर महीने पहले किसानों को २-३₹/ किलो के हिसाब से ब्यवसायियों को बेंचना पड़ा नहीं तो ख़राब हो जाता. आज का समाचार है कि किसानों को प्याज़ २-३₹/किलो बेंचना पड़ रहा है ब्यवसायियों के दबाव में. सरकारी कर्मचारियों को दिखता है न सुनता है , न कुछ रास्ता ढूँढने की कोशिश करते हैं , न किसी जानकार की राय लेते हैं. पिछले सालों में हम देखें थे दालों की बढती क़ीमत और राज्यों में केन्द्र के दबाव से छापेमारियों से निकले थे लाखों टन दालें. क्या उनके बिरूद्ध कोई कारवायी हुई, या उनका यही काम रोज़ी रोटी है . बेईमान सरकारी तंत्र उन पर सख़्त कार्रवाई कैसे करे. देश की कमजोरी या यह दयनीय हालत, पैदा करनेवाले और ख़रीदने वाले मजबूर लोगों के बीच पाँच-छ: बिचौलियों की है , जो अपने में सब पैसा बाँट लेते हैं, न पैदा करनेवाले किसान को उसकी लागत और लाभ मिलता है, न उन की खपत करने वाले परिवारों को महँगाई से छुटकारा मिलता है. और इन बिचौलियों में देश के बहुत अरबपति, हज़ारों करोड़पति से ले लाखों लखपति भी हैं और अधिकांश ब्यवसाय नक़दी में करते हैं और बहाना रहता है -हम कम्प्यूटर नहीं जानते, हम ख़रीद नहीं सकते, हम कम्प्यूटर जानने वाले को रख नहीं सकते, और फिर कुछ पढ़े लिखे इंटरनेट के स्पीड और अभाव का भी बहाना करते हैं मीडिया पर हाथ में बड़े बड़े स्मार्ट फ़ोन लिये हुये इंटभिउ देते हमें मीडिया को या जबकि उनमें काफ़ी इन सभी गैजेटों को रखते हैं , बहुत थोड़े भजन सुनते हैं या फ़िल्म देखते हैं कुछ ब्लू फ़िल्म और पोर्नोग्राफ़ी के साइटों का मज़ा लेते हैं. सरकार जब तक बिचौलियों को कम करने एवं किसान बाज़ार के माध्यम से ग्राहकों तक किसान की पैदा बस्तुओं को पहुँचाने का सरल उपाय नहीं निकालेगी, देश के वैज्ञानिक एवं टेक्नोकराट इसका सठीक अध्ययन कर उपाय नहीं खोजेंगे, हर पंचायत या ब्लॉक में संरक्षण की ब्यवस्था नहीं होगी , सस्ते फ़ूड परोसेसिंग के संसाधान की ब्यवस्था नहीं होगी, किसान की आमदनी नहीं बढ़ेगी, उनके नेताजी किसान आन्दोलन के रास्ते नाम और दाम कमाते रहेंगे.

29.6.2017
मेरे मित्र चतुर्वेदी जी ने कल ज़िक्र किया था देश के लोगों के नकारात्मक राजनीतिक प्रेरित बिध्वसक घटनाओं का . कुछ बातों से मैं सहमत नहीं हूँ . कारण समाजिक उतना ही है जितना राजनीतिक. मीडिया अपने टी आर पी पर आधारित ख़बरों को तुल देती है. कहीं कोई अच्छे समाचार का ज़िक्र ही नहीं होता. पूरे सत्तर साल में हमने बेसिक चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया…ख़ुद बताइये जब देश के फल, सब्जी, दूध की उपदवार अनाज से ज्यादा हो गई, टमाटर किसानों ने दो रूपये में बेंचें , यही हाल अन्य जल्दी नष्ट होनेवाली चीज़ों के साथ भी हुआ. पर पैसा बनाये बिचौलियॉ एवं ब्यवसायी.कल तक वे भारतीय जनता पार्टी के साथ थे , पर वही आज देश बिरोधी हो गये. कहीं हड़ताल, कहीं बिरोध . ग़लत तरह से कमाये रूपयों से ख़रीद कर आधुनिकतम गाड़ियाँ चलाना सीख लेते हैं, पर जी. एस. टी नहीं सीखना, अपनाना चाहते, जब देश और विदेशों के सभी सर्वश्रेष्ठ जानकार लोग इसकी बड़ाई कर रहे हैं, पूरे देश के लोगों को लाभ पहुँचेगा…लोग खेती के लिये क़र्ज़ का भुगतान माफ़ कराना चाहते हैं, सभी कुछ मुफ़्त चाहिये…..कभी सफल किसानों से सीख नहीं लेते….सबसे ग़रीब पिछड़े बिहार में किसान आत्महत्या नहीं करते सरकारी क़र्ज़ वापस न देने के कारण ….देश के हर क्षेत्र में बहुत किसान खेती को पुराने ढंग का त्याग कर पानी संचयन, फ़सलों के परिवर्तन, उत्पादकता बढ़ा ब्यवसायी ढंग से कर काफ़ी लाभ कमा समृद्ध एवं सुखी हो रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दे रहें हैं, जो लोग सरकारी सुविधाओं का उचित उपभोग कर रहे हैं. समस्यायें अधिक दरिद्र परिवार के लिये, पर वहाँ ब्यक्ति या परिवार पर निर्भर कर रहा उसके परिवार की ख़ुशहाली. मेरी पत्नी की दो सहनायिका हैं जो कुछ घंटें मेरे यहाँ भी काम करतीं हैं .दोनों के परिवार की करीब बराबर ही आमदनी है, पर एक का बैंक खाता है, दो बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाने का इंतज़ाम किया है. मैं उसके बैंक में उनका पैसा एक मिनट में भेज देता हूँ. पर दूसरी कितने ज़ोर देने पर भी बैंक खाता नहीं खुलवाई. उसके कोई बच्चे नहीं पढ़ते और न पढ़ाना चाहती है. सरकार कैसे इसके लिये दोषी होगी. हर चीज़ के लिये सरकार पर निर्भर रहना बिना अपने कर्त्बयों के निबाहे…कहाँ तक समझदारी है….और इसका अधिकांश दोष देश के राजनीतिज्ञों का हैं लोगों को बरगला कर ग़लत रास्ता दिखा ग़लती किये हैं पिछले सालों में. मीडिया के कई चैनलें ग़लतफ़हमियाँ फैला रहीं हैं. जहाँ भी लोग बिना कोई टैक्स दिये करोड़ों कमा रहे थे, वे नाराज़ हैं और इनकी संख्या दुर्भाग्यपूर्ण बहुत बडी है. कांग्रेस या तृणमूल की सोनिया और ममता लोगों के इस मानसिकता क ध्यान रख, जिसका प्रश्रय और तेज़ गति से हुआ है आज़ादी के सत्तर साल में, आज की आधी रात की सरकारी आयोजन का बहिष्कार कर , लोगों का सहानभुति बटोर , चुनाव जीतना चाहती है.

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