3.12.2016 विमुद्रीकरण और काला धन: नोयडा आने के पहले कलकत्ता में मुझे केवल वहाँ के सेठों के घर अपार नगदी रूपयों के होने की जानकारी थी. मैंने मारवाड़ी वयस्क महिलाओं को अपने बैग से मुठ्ठी भर भर न्यू मार्केट में नोट निकाल दुकानदार को हीं गिन लेने के लिये कहते देखा था. हमारे एक हिन्द मोटर के सहकर्मी, जो बम्बई के प्रसिद्ध सेटलवाद परिवार के थे , नोटों से भरे घरों की बातें भी बताये थे. विश्वास नहीं होता था, यद्यपि कुछ हिन्दी चलचित्रों में ऐसे दृश्य देखे थे. नोयडा आने के बाद नोटों से ठसाठस भरे कालेधन की कमाई कीबातें समय समय से छोटे बड़े पदासीन लोगों से सुनता रहा हूँ. दो परिवारों का नाम चर्चित रहा है, एक मायावती और उसके भाई आनन्द , और दूसरा मुलायम के बड़े कुनबे का. नोयडा में रहते अब बीस साल हो गये. बहुत लोगों से परिचय हुआ. लोगों ने पौंटी चढ्ढा, यादव सिंह, आनन्द और बहुत ऐसे मुलायम, मायावती से जुड़े लोगों की बहुत कहानियाँ सुनाई. मीडिया में भी यदाकदा ख़बरें छपतीं रहीं.टीवी के समाचार चैनलों पर रजत शर्म्मा जैसे लोग इनकी दिल्ली से मुम्बई तक फैले अकूत चल अचल सम्पति की बातें करते रहे हैं. नोयडा आथरिटी के भ्रष्टाचार का तो मायावती के आयकर में घोषित ६०-७० करोड़ की बात भी आई. लगा, मैं इतने बड़े शिक्षा संस्थानों से पढ़ लिख अच्छे ओहदे पर काम कर क्या कमाया. विमुद्रीकरण की घोषणा से मुझे यह उम्मीद थी कि कम से कम सौ पचास राजनीतिक नेतागण और इतने या इससे ज्यादा सेक्रेटरी स्तर के सरकारी अफ़सरों के नाम ज़रूर सामने आयेंगे कालेधन के मालिकों के नामों की सूची में . यह बात आम जनता के मन में था. मोदी ने भी कुछ राजनीतिक नेताओं के बिरोध का कारण बताते हुये कहा कि उनकी बौखलाहट इस लिये है कि उन्हें अपने धन को ठिकाने लगाने का समय नहीं मिला. अभी तक तो ऐसा कुछ ज्ञात नहीं हुआ समाचारों से अगर राजनीतिक समझौता नाम को गुप्त रखने का न किया गया हो …चेहरे ज़रूर उड़े हुये हैं, पर बोली नहीं बदली है….अब तो लोगों में विश्वास होता जा रहा है कि राज नेता और सरकारी बाबू लोग मोदी के इस प्रहार से भी किसी अपने बचा जायेंगे. शायद यह प्रयास केवल कैशलेस या कमकैस की अर्थ ब्यवस्था भर का ही कुछ सफलता पाप्त कर सके….कालेधन के मालिकों को कुछ कड़ा आघात न दे सके………आयकर विभाग सम्बंधित एक बिल आया है काला धन रखनेवालों के लिये. मेरा इसके बारे में एक अलग बिचार है. काला धन दो तरह का है पहली श्रेणी में वे लोग आते हैं जो टैक्स की चोरी कर या असल आय को छिपा, जितना देना चाहिये उसे न दे, धन जमा करते हैं. एक दूसरा वर्ग है जिसमें राजनीतिक नेता, बाबू, या वे अफ़सर आते हैं यहाँ तक की न्यायाधीश भी, जो एक मोटी तनख़्वाह लेते हैं, पर बहुत सारे अनैतिक क़ानून बिरोधी काम कर घूस में धन लेते है नियत मूल्य का मिहरबानियों के बदले लेते हैं . मेरे बिचार से ऐसे धन पर किसी तरह की छूट नहीं मिलना चाहिये, वह पूरी सम्पति सरकार को ज़ब्त कर उन्हें क़ानून के अनुसार दंड देना चाहिये. क्या ऐसा होता है…..आप कृपया इस पर अपने बिचार दीजिये…..
4.12.2016 ममता क्यों विमुद्रीकरण के ख़िलाफ़ इतनी बौखला गईं है जितना और कोई नहीं? ममता नीतीश को भी विमुद्रीकरण का समर्थन करने के कारण और ममता के भारतव्यापी बिरोध का साथ न देने पर विश्वासघाती क़रार दिया. फिर ममता अपने हत्या के षड्यंत्र की बात कही जब उनके हवाई जहाज़ को कलकत्ता एअरपोर्ट पोर्ट पर पटना से आने के समय उतरने के पहले कुछ चक्कर लगाते रहना पड़ा और देरी हुई. उसके बाद ममता ने बृहस्पतिवार को भारतीय सेना पर निशाना साधा और नाटकीय ढंग से राईटर बिल्डिंग के आफ़िस में सेना द्वारा कूप बात घोषित कर रात भर बैठी रहीं. उनके निशाने पर केन्द्र सरकार और मोदी हैं- वे मोदी को हटा देने की बात की , केन्द्र सरकार को लुटेरा कहा….क्या यह उनके दिमाग़ की ऊपज है या बंगाल का कोई चाणक्य यह रास्ता दिखा रहा है ममता को नीतीश और राहुल को हटा २०१९ में भारत के प्रधान मंत्री के पद के लिये मोदी के बिरूद्ध अपने को सबसे मज़बूत प्रतिद्वन्दी दिखाने की कोशिश कर रहा है उनके इसारे पर और समर्थन से यह सब किया जा रहा है? क्या बंगाल का दुर्भाग्य नहीं है? प्रदेश पिछड़ता जा रहा है दूसरे उन्नत प्रदेशों की तुलना में, रोज़गार का कोई सुबिधा नही, कोई नई सोच नहीं , राहुल गांधी के तर्ज़ पर ममता का भी एक सूत्रीय एजेंडा मोदी की हर बात का बिरोध करना रह गया है और वह भी अत्यधिक नीच ढंग से……करीब करीब केन्द्र के ख़िलाफ़ बग़ावत की आवाज़ को बल देते हुये.. क्या यही चाहे होंगे बंगाल के वे राष्ट्र भक्त जो देश के लिये अपनी जान न्योछावर कर दिये देश को आज़ाद करने के लिये? http://www.telegraphindia.com/1161203/jsp/bengal/story_122730.jsp#.WELBxLSXehAममता ने गुरुवार को आरोप लगाए थे कि राज्य सरकार को सूचित किए बगैर सेना तैनात की गई थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि सैन्यकर्मी वाहनों से पैसा वसूल रहे थे जो उन्हें नहीं करना था। मेजर जनरल यादव ने कहा कि नवंबर 2015 में इसी तरह का एक अभ्यास उत्तरी कमान ने उन्हीं स्थानों में किया था। http://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/army-used-as-political-tool-mamata-banerjee/articleshow/55760205.cms
…..बचपन में एक भोजपुरी के शब्द- ‘खनगीन’ का उपयोग कुछ ख़ास तरह के महिलाओं के लिये गाँवों में सुना था. पता नहीं क्यों इतने सालों तक बंगाल में रहने के कारण और ममता बनर्जी के आचरणों को नज़दीक से देखने के अनुभव के आधार पर उसके लिये भी कभी कभी उसी बिशेषण या संज्ञा लगाने की इच्छा होती हैं . वहीं असम के मुख्य मंत्री चायबगानों के लाखों लोगों का बैंक खाता खुलवाने के लिये बैंकों से मिल युद्धस्तर पर प्रयास कर रहे हैं जिससे मज़दूरों की तनख़्वाह सीधे बैंक में जाये, दूसरी तरफ़ ममता बनर्जी भूखी शेरनी की तरह सब तरह की देश बिरोधी हरकतें कर रही हैं और उसके मातहत काम करने वाले इस को सह दे रहे. कल तक मोदी जी एस टी पर साथ देने के बाद अब उसे समय सीमा में न लागू होने देने में सबसे बडी भूमिका निभा रही है और अमित मित्रा, जो अपने को अर्थशास्त्री कहते हैं ममता का भरपूर साथ दे रहे हैं. बंगाल को तो कंगाल बना दिया अब देश को पिछड़ा बनाये रखने का लोगों को बेवक़ूफ़ बनाये रख प्रयास है. काश, बंगाल के बुद्धिजीवी समझ पाते….
4.12.2016 जैसा बाप वैसा बेटा: बाप कहा था भारत में ट्रैक्टर से खेती नहीं होनी चाहिये, बैलों और हलवाहोंका क्या होगा? ट्रैक्टर बन्द करा देंगे….कम्प्यूटर इस देश के लिये नहीं है…….बेटा बाप को झुठला दिया ….लैप टॉप बँटवा दिया …. बेटा को स्वच्छ भारत अभियान देश के लिये क्यों ज़रूरी है समझ नहीं आया……पी.एम के बुलाने के बावजूद उनका साथ नहीं दिये…..यही कारण है नोयडा की स्वच्छता में कोई ध्यान नहीं दिया गया….और नोयडा को स्मार्ट सिटी की लिस्ट में नहीं रखा गया. अब अखिलेश को मोदी के कम कैश और फिर कैस रहित भारत की अर्थ व्यवस्था बनाने की की बात की वे कैसे समर्थन करते….मुझे तकलीफ़ इसलिये हो रही है कि वे अपने को आस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा लिया हुये बताते हैं …..केवल पैसे के बल पर शिक्षित होने पर ऐसे ही ज्ञान मिलता है…मज़े की बात है कि अखिलेश के सुझावों पर पहले ही काम हो रहा है……….हर राज्य सरकार को केन्द्र से मिले सहायता भरपूर स्वागत करना चाहिये……पर दुर्भाग्य से सभी बिरोधी सरकारें सभी काम में राजनीति पर ज्यादा बल देती हैं…..,राज्य के ज़िम्मे दो महत्वपूर्ण बिभाग है शिक्षा और स्वास्थ्य …..क्या उन दोनों की बदहाली के लिये केन्द्र ही ज़िम्मेवार है’?
दिसम्बर ९, मुझे यमुना की दवाई लेने सेक्टर ५० के मेन मार्केट की एक दूकान पर गया, जब पी.ओ.एस से देने की बात कही तो पता चला, नहीं चल रहा है . पेटीएम पर देने की कोशिश की. ‘पे’ बटन पर दबाता रहा ….पर वह भी नहीं हुआ. आख़िर में दवाई का लिफ़ाफ़ा वहीं छोड़ना पड़ा . दूसरे दुकानों पर मसीनें ठीक थीं…एक बिजली का सामान लिया, फिर दूसरे दूकान से वे दवाइयाँ भी ली …..सब कार्ड से….पर पार्किंग का २० रूपया डीजिटल तरीके से देने का कोई उपाय नहीं है अभी….यह कैस के बिना भी हो सकता है कार्ड के ज़रिये….नोयडा के सी.इ. ओ. को आज मेल भेजा…यह तो काले धन जमा करने का ज़रिया है ठेकेदारों और पुलिस के लिये..देश के सभी शहरों में……हॉ, एक बात और हुई शाम को फ़ोन में एक मेसेज देखा पेटीएम का मेरा दवाई का ५९७ रूपया कट गया है…अब मुझे वह दवाई लाना होगा जो मेरे पास अगले तीन महीने के लिये है…पैसे तो वह लौटायेगा नहीं…पता नहीं यह सोफ़्टवेयर की समस्या है या ऐअरटेल के इंटरनेट की…,,
9.12.2016 (मुझे बडी उत्सुकता है दो बातों के बारे में लोगों की राय जानने की, जिसका मौक़ा मोदी की नोटबन्दी से मिला था. क्या शादियों को अंजाम देनेवाले लाखों लोगों ने तिलक छोड़ दिया ……कैशवाला अंश, …..बेकार के तामझाम के ख़र्चे कम हुये? घर में आये काले धन के नगदी का ब्यवहार कर शॉपिंग करनेवालों पर असर पड़ा? घर के बेकार ख़र्चों में कोई कमी आई? ७० साल से समानांतर चलनेवाली काली अर्थ ब्यवस्था को बदलने में तकलीफ़ तो बहुतों को महशूश होगी. मोदी तो हर छोटे से छोटे ब्यक्ति को, जिसके जन धन खाते का बदनीयत लोगों ने ब्यवहार करना चाहा हो, उठ खड़ा हो साहस से न लौटाने तक का , मौक़ा दिया. अब एक मोदी क्या करे? अगर कुछ बैंक के कर्मचारी मिल करोड़ों में नये नोट सामर्थ्यवानों को दे देने की साजिस करें….अगर सभी बिरोधी पार्टियाँ, मीडिया, यहाँ तक की सर्वोच्च न्यायालय के मान्य लोग भी बग़ावत करने के लिये उकसाते रहें…..मोदी किस किस से लड़े जब चरितरहीनता, लालच, इतने गहरे जा चुका हो सत्तर सालों में….नोटबन्दी से उपजे हैं कितने कमीने ठंग से कमाने के रास्ते लोगों को बरगलाने का..सावधान रहिये और लालच से बचिये..मज़ेदार बात यह है कि हिन्दू महासभा, मुलायम, ममता, मायावती, राहुल सभी मोदी को धमकी दिये जारहे हैं ….यह परीक्षा देश के ईमानदार लोगों की भी है जो अल्पसंख्यक बाहुबलियों या बेईमानों पर थोड़ी मानसिक दृढ़ता दिखा देश को जीता सकते हैं, सम्मानित करा सकते है कुछ धैर्य और साहस का परिचय दे. )
दिसम्बर ११ आज रविवार है, राकेश कलकत्ता या कोलकात्ता से वापस आ जायेंगे शाम तक. मुझे याद नहीं रहा कि मेघदूतम् पार्क में एक बच्चों का अनुष्ठान था…..रविवार पूरी छुट्टी रखता हूँ और केवल मनोरंजन के लिये घूमने निकलता हूँ …..आज भी वैसे ही निकला १०.३० बजे और मेघदूतम् की तरफ़ से आती आवाज़ से अनुष्ठान की याद आई और उधर ही निकल चला…..काफ़ी भीड़ थी….मन कुछ ज्यादा नहीं लगा …बाहर निकलते समय सिद्दीक़ी मिल गये उन्हीं के साथ आलोकबिहार के गेट से बाहर निकल गया….रास्ते में सोचा कि केन्द्रीय विहार से सेक्टर ५०-५१ के बीच के रास्ते से निकला जाये….. इस रास्ते के किनारे मोबाइल फल वालों की दूकानों से हरदम की तरह कुछ घर के लिये फल लेना चाहता था, पैसे तो लिया नहीं था पर फ़ोन था सोचा था कुछ दूकानवालों के पास तो पेटीएम से ख़रीदना सम्भव हो जायेगा…..पर यह हुआ नहीं ….उनमें किसी ने यह सुबिधा लेने की कोशिश नहीं की है….मेरे पूछने पर अपने पास स्मार्ट फ़ोन न होने का कारण बताये……..फिर पेटीएम से पैसे के देनलेन समझ में नहीं आने की बात भी कही…. मुझे एकमात्र समझ में नहीं आई ….उन दूकानों की संख्यायें तो बढती ही जा रही है….ब्यवसाय भी ढीकढाक चल रहा है……मतलब फल ख़रीदनेवालों के पास पैसे की कमी नहीं है….केवल मेरी तरह के कुछ लोगों के पास नगदी की कमी है…..क्या मैं भी अब ज़िद छोड़ दूँ .,,., पेटीएम की तरह की कम्पनियों के लिये तगड़ा ब्यवसाय इंतज़ार कर रहा है….हाँ, आते समय यह ज़रूर पता लग गया कि सफल और मदर डेरी में पेटीएम तो स्वीकार है पर डेविट कार्ड से ख़रीदारी की कोई ब्यवस्था नहीं है, जबकि इन दोनों अर्ध सरकारी कम्पनियों को इसकी ब्यवस्था ज़रूर करनी चाहिये……पर देश के लाखों ठेलेवालों और वैसे लोग जो रोज़ सड़क किनारे अपनी दूकान लगाते हैं या मुहल्ले मुहल्ले घूमते चलते हैं ठेले को ले, कोई सस्ता, सहज और सुरक्षित तरीक़ा भी होना चाहिये…..फिर उसे सहज तरीके से सीखाने की पहल भी होनी चाहिये….देश के नये स्टार्ट-अपों को यह बडा मौक़ा है … कहते हैं साधारण फ़ीचर फ़ोनों से भी पैसा लिया दिया जा सकता है……मुझे नहीं मालूम … क्या कोई जानकार बतायेगा…,,