10.11.2016
नक़ली और काली नोटों के मुहिम में सरकार का साथ हर ज़िम्मेदार और ईमानदार को देना देश हित है. साथ ही कुछ फ़ायदे के लिये काले धन के झाँसे में नहीं आने में हीं चालाकी है. कल का दो अनुभव है. हमने एक टैक्सी ली थी राजेश और अपने मित्र को दोपहर के खाने के लिये सेक्टर १६ ले जाने के लिये, और एक रात दस बजे उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे ले जाने के लिये. दोनों ड्राईवरों ने हज़ार के नोट ले लिये. हाँ, हमारे मित्र से पानेवाले ने पाँच सौ का नोट नहीं लिया. इसीतरह हमारी मेड ने जो पड़ोसी के यहाँ भी काम करती है उनके हज़ार और पां सौ के नोट पिछली तनख़्वाह के एवज़ में लेना अस्वीकार कर दिया था. सबेरे बता रही थी हमारे घर काम करते करते. समाचार देश के कोने कोने में फैल गया है और लोगों को क्या करना है मालूम है. हाँ , राजेश और जनार्दन के पास भी कुछ हज़ार रूपये थे, भारत आने पर ख़र्च करने के लिये….आशा है एअरपोर्ट पर बिदेसी मुद्रा मिल गई होगी….व्यवसायी वर्ग लगा है नोटों को किसी तरह क़ानूनी मान्यता दिलाने के लिये….पर अभीतक हार्ट फ़ेल की कोई ख़बर नहीं आती है….आश्चर्य है नीतिश कुमार ने इस क़दम का स्वागत किया है पर ममता ने बिरोध. चिदाम्बरम् हमेशा की तरह राहुल को सह दे रहे हैं….गाँव के ग़रीबों का बहाना बना.
11.11.2016:
मायावती के आँसू और सरकार के काले धन के बिरूद्ध अभियान का उनका बिरोध: मायावती और वे सभी जो सरकार के हज़ार और पाँच सौ के पुराने नोटों को ग़ैरक़ानूनी क़रार कर देने का बिरोध कर रहें हैं . ख़ुद अकूत कालेधन के मालिक हैं. पता नहीं कहाँ और कैसे उसे बचायेगें? मायावती को सरकार का यह क़दम दलित बिरोधी दिखता है. दलितों और अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा परेशानी होगी मायावती जी के अनुसार. आश्चर्य तब होता है जब मायावती कहतीहैं, सरकार को सभी काले धन के बिरूद्ध लिये क़दमों की कमाई को दलितों की भलाई में लगा देना चाहिये. अपनी इस सलाह को सबसे पहले अपने से शुरू करना चाहिये उन्हें. मायावती जी के पास तो अथाह सम्पति है. आयकर विभाग में जमा किये सूचना के आधार पर भी. उनकी तो कोई वारिस नहीं, न होने की उम्मीद है अब. उनके भाई भी उनके बल पर अरबों के मालिक हैं. क्यों नहीं वे कम से कम अपने इस धन की एक वसियत कर दलितों के भलाई में लगा देने का ऐलान कर देतीं और कम से कम दलितों की असल महादेवी बन जातीं और इतिहास रच लेती? आज मायावती समझती ही नहीं की वे अब दलित नहीं हैं किसी तरह. या तो वे अपनी पढ़ाई के बल पर ब्राह्मण बन चुकी हैं या क्षत्रिय (महारानी)…
13.11.2016
कृपया इसे पढ़ें , लोगों को सुनायें, यथा सम्भव अधिक से अधिक शेयर करें और गाँव देहात , शहर गली गली में इस पर चर्चा करें ) हमें, हर नागरिक को समझना चाहिये ब्लैक मनि है क्या, जिससे वे सरकार की मनसा को बड़े नोटों को बन्द करने के निर्णय के पीछे के कारण को समझ पायें. ब्लैक मनि वह कमाई आमदनी है जिस पर हम टैक्स नहीं देते. हम लालची हो जाते हैं थोड़े रूपये टैक्स का चुराने के लिये और ज्यादा रूपया को अपने बेकार ख़र्च के लिये रखने के लिये. अगर सभी ऐसा करने लगे तो देश कैसे चलेगा, हम नहीं सोचते. देश को चलाने का, हमारी आय को स्थायी करने और लगातार बढ़ते रहने के लिये प्रबन्ध करने के लिये सरकार को बहुत धन की आवश्यकता होती ह जो उसे विभिन्न टैक्सों से मिलता है. यह काला धन उस धंधें में ज्यादा है जहाँ आमदनी का हिसाब नहीं रहता है साफ़ साफ़ जैसे उन डाक्टरों, वकीलों, एजेंटों, चार्टरड एकाउनटेटों की कमाई में, जो नगद पैसा लेते हैं अपनी फ़ीस के बदले. जो कार्ड या डिजीटल ढंगों से पैसा लेते है वे नहीं पड़ते काले धनवालों की सूची में. पैसा बैंक में जमा करते समय अपना PAN या आधार कार्ड नहीं लिखते. टैक्स न देनेवाले वे लोग उस नगद को सोना, ज़मीन, मकान, बिदेसी मुद्रा, या ऐयासी की चीज़ें आदि ख़रीद कर सम्पति बनाते हैं या कुछ चली आ रही सामाजिक कुरीतियाँ पर ख़र्च करते हैं जैसे बच्चियों की शादी या धार्मिक गुरुओं या मन्दिर का चढावा. राजनेता करोड़ों और अरबों में नक़द जमा करते हैं और अपनी और परिवार की ऐयासी से ज्यादा बचा धन नक़दी बोरों में बन्द कर सुरक्षित जगह पर विश्वसनीय लोगों के पास रखते हैं और चुनाव पर ख़र्च करते हैं. आज भारत संसार में नाम कर रहा हर क्षेत्र में, पर यहाँ एक बडा समुदाय बहुत ग़रीब है. उनको भी काम देने के लिये सरकार को पूँजी की ज़रूरत है, वह तभी आयेगी जब सरकार को हर ब्यक्ति या कम्पनी की कमाई पर निर्धारित टैक्स प्राप्त हो. दुनिया के सभी उन्नत या उन्नत बनते देशों में किसी बस्तु ख़रीदने या सेवा लेने के लिये नक़द पैसे देने का रिवाज ख़त्म होता जा रहा है, जब हम एकदम पिछड़े हैं. हम सभी को पैसा देने और लेने में डिजीटल तरीक़े को अपनाना ज़रूरी है. एक सौ करोड़ से ज्यादा मोबाइल फ़ोन को रखने के कारण अधिकांश नागरिक और परिवार यह आसानी से कर सकते हैं…,,…ख़ुशी की बात है इन चार-पाँच दिनों में बहूत किराना, फल और सब्जी की दुकानों पर कार्ड से पेमेंट लिया जाने लगा है. हमारे घर काम करनेवाली चेक से अपना महीना लेने के लिये तैयार है……यह बदलाव शुभ संकेत है…..हर ब्यक्ति को जन-धन या अन्य एकाउन्ट में अपनी कमाई का सब पैसा जमा करने की यथासम्भव कोशिश करनी चाहिये….रू.पे या किसी कार्ड से पैसा चुकता करना चाहिये और अपने फ़ोन पर इसकी तुरन्त सूचना की ब्यवस्था होनी चाहिये ..हर जवान शिक्षित सदस्यों को घर के बुज़ुर्गों को भी सीखाना चाहिये……,आश्चर्य तब होता है जब पढ़े लिखे, काफ़ी समझदार बड़े बड़े ओहदे पर काम किये लोग भी डिजीटल सेवा के तरीक़ों की जानकारी नहीं रखते न सीखना चाहते हैं..यह मेरा नोयडा के लोगों से बात कर मालूम हुआ है.,,..कुछ नेताओं के बहकावे में आ सरकार के इस क़दम का बिरोध नहीं करें…..देशहित कुछ असुविधा को सहे और अन्य नासमझ लोगों की यथासम्भव सहायता करें . …..एक बात और नीतीश और दक्षिण भारत के सभी राजनेताओं ने इसका समर्थन किया, पर मायावती, मुलायम ने बिरोध,,पर अखिलेश नहीं. ममता ने क्यों बिरोध किया समझ नहीं आता, पर अब श्रद्धा काँड में ममता के शामिल होने की ख़बर सच लगने लगी है. पर खडगपुर IIT के अरबिन्द का बिरोध दुख देता है..,,,,,राजनीति में जाते ही बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है… ,,,