16.06.2016 सबेरे प्रात: भ्रमण से लौटा, कल के बारिस और तूफ़ान से गिरे फूलों के पौधों को बाँध कर सीधा किया. चाय के समय पुच्चु और सैन्नन भी साथ थे. फिर जैक एम्मा को स्कूल तक का साथ दे लौट आया. पुच्चु जी आफ़िस जाते भी मिले. फिर कुछ पढ़ने लिखने का काम किया. यमुना ब्रेक फ़ास्ट माँगी तो सीरियल दही के साथ निकाला. गरमी के कारण भीतर बैठ खाने लगा सोफ़ा पर, यमुना खाने के टेबल थीं. अचानक ऊपर से सीढ़ी उतरते राकेश को देखा तो स्वप्न सा लगा, फिर सम्भल आशीर्वाद दिया. राकेश कल रात ११ बजे ही आ गये थे. कल रात हमारे सो जाने के बाद पुच्चु सैन्नन जा उसे एअरपोर्ट से लाये थे. सबने मुझे बडी सावधानी से छकाया. और फिर हम चाय दिये, सैन्नन सीरियल का नाश्ता और राकेश से इधर उधर की बातें करते रहे.. कुछ देर बाद यमुना नहाने गईं, आईं पूजा पर बैठ गईं. कुछ देर बाद फिर कुछ सरगर्मी हुई, पूजास्थल के पास हँसी बौछार हो रही थी. केशव रमन खड़ा था, दादी को प्रणाम कर रहा था. केशव रमन भी आया है कल रात न सैन्नन बताई, न राकेश. आज के लड़के आश्चर्य चकित करने में हो गये हैं. पर हम ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे. यही है प्रियजनों से मिलने का आनन्द. बहुत सालों के बाद इनसे मिला. बातचीत का सिलसिला ……..यमुना की राकेश , केशव से खाने पीने की मनुहारें……..जबतक यमुना की पूजा ख़त्म हुई, मैं दाल बना चुका था, नहाने के बाद चावल बना, और हम पूजा कर खाने पर बैठे.. केशव केवल दाल, दही खाया. राकेश अच्छी तरह खाया, मेरी बनाई सब्ज़ी एवं छोले की प्रशंसा करता रहा…..सैन्नन बताई ३.३० तक पुच्चु भी आ जायेगा……और तीसरे बार आश्चर्य तब हुआ जब पुच्चु आया और उसके साथ साथ राजेश …घर का पूरा माहौल ही बदल गया…..तीनों भाइयों को एक साथ ८ साल के बाद…….लौट आये थे उनके बचपन के दिन जब वे बड़े हो रहे थे …….हमारी खुसी का ठिकाना न था………सोचता था ऐसा मौक़ा शायद आये ही नहीं….पर कोई बहुत दूर सुन रहा था मेरी अतिमानवीय आकांक्षा को …..और यह सम्भव हो पाया. रात को पूर्व निर्धारित जगह ‘टावर’ रेस्टोरेंट में दक्षिण भारतीय खाना खाया गया…
17.6.2016 शुक्रवार सभी देर से उठे थे. यमुना के अनुसार राकेश क़रीब ३ बजे सबेरे तक अपने हैदराबाद स्थित भारतीय सहयोगियों के साथ मीटिंग करता रहा था. मैं सबेरे २ मील घूम आया, चाय बना पी लिया और बच्चों के लिये भी रख दिया. नाश्ते के बाद ग्रीन वे ट्रेल पर सभी पुरूष घूमने निकल गया. तीनों फ़ोटो लेते रहे इस मौक़े को यादगार बनाने के लिये. राजेश एवं केशव काफ़ी दौड़ भी लगाये. राकेश भी कभी कभी उनका साथ दिये…दोपहर का खाना चिपोतले में और शाम का चुई में…….
18.6.2016 शनिवार सबसे पहले राकेश नीचे आये. चाय के बाद उनके साथ एक मील घूम आया. राजेश जग गये थे और यमुना के साथ बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. जौरडन लेक जाना था जो मेरा केरी का प्रिय स्थान है. हर यात्रा में एक बार जाता रहा हूँ. हम सभी गये और भरपूर आनन्द उठाये….. बच्चे पानी में, पेड़ पर, खेल कर …………मैं तो घंटों बैठ लेक को देखते रह सकता हूँ ….बहूत अच्छा लगता है……..आज दो बजे के क़रीब राकेश, राजेश निकल गये कैलिफ़ोर्निया और अस्टिन के लिये, पुच्चु छोड़ आये….पुच्चु एवं सैन्न की मेज़बानी अनुकरणीय रही….तीनों का और उनके बच्चों का आपसी प्यार और सम्बन्ध मधुर बना रहे….इसे छोड़ और क्या अभिलाषा हो सकती है……
पूरा सप्ताह आनन्दमय रहा, अनायास बहुत अप्रत्याशित ख़ुशियाँ मिली, बहुत पुरानी यादें गुदगुदा गईं, और एक बात और उत्साहित कर गई- जो चाहता हूँ कठिन या सहज, वह हो जाता है मिल जाता. कैसे मालूम नहीं, पर शायद सर्वशक्तिमान की कृपा से होता हो. बहूत इच्छा थी कि तीनों बेटे कुछ दिन साथ रहते….आज की व्यक्तिगत व्यस्तता को देख यह सम्भव नहीं लगता था और मैं अपनी इच्छा आज थोपने में विश्वास नहीं करता…हाँ, समय देख ज़ाहिर ज़रूर कर देता हूँ….पर हो गया..
आज पितृ दिवस है फादर्स डे. आदर्श पिता को कठिन तपस्या करनी पड़ती है बच्चों को सफल बनाने के लिये.पता नहीं मैंने कितनी की, वह तो बच्चे बतायेंगे. पर आज भी प्रार्थना यही है कि हमारे बच्चे गौरवशाली पिता बनें और परम्परा चलती रहे, उनकी तपस्या और उस परम शक्ति की कृपा के कारण…….पर मेरे विचार में मातृदिवस ‘मदर्स डे’ को भारत में भी महत्वपूर्ण बना देना चाहिये……पिछले दिनों बहूत अच्छा रहा, राकेश, राजेश भी आनन्द के घर केरी में आ गये…. सोने में सुहागा की तरह केशव की उपस्थिति रही जो हमारी नई पीढ़ी सबसे बड़े सदस्य हैं….कुछ पुराने दिनों को याद करने का सुनहरा अवसर मिला….सब कुछ मिल गया….
पितृ दिवस- कुछ और विचार : अगर व्यक्ति किसी सर्व शक्तिमान में विश्वास रखता हो तो सहज भाव से इच्छित चीज़ें मिल जाती हैं. पिछले दिनों ऐसी ही दो वारदात मेरे साथ हुये: कुछ दिनों से इच्छा हो रही थी कि तीनों बेटे एक साथ कुछ दिन मेरे साथ रहें. इस इच्छा को मैंने किसी से व्यक्त नहीं किया था, पत्नी यमुना से भी नहीं. पर यह पिछले हफ़्ते सम्भव हो गया.राकेश, राजेश, यहाँ आ आनन्द के साथ तीन दिन रहे. हम आज की व्यस्त ज़िन्दगी इसे ईश्वरीय प्रदत्त सुख ही मानते हैं. इसी तरह कुछ दिनों से गणितज्ञ रामानुजन के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी. उन पर बनी मुवी भी हालों में लग उठ गई थी. पर वह अंग्रेज़ी में थी. शायद ही अंग्रेज़ों की अंग्रेज़ी समझ आती. मैंने बहुत थोड़ी अंग्रेज़ी की फ़िल्में देखीं है. फादर्स डे पर आनन्द ने एक गिफ़्ट दिया. जब खुलवाने की प्रकिया पूरी हुई तो देखा वह रामानुजन पर लिखी उनकी जीवन गाथा है जिस पर फ़िल्म बनी है. सोचता हूँ किसी तमिल गणितज्ञ को यह किताब लिखनी चाहिये थी, और तमिल फ़िल्म के सबसे अच्छे निर्देशक को उस पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की एक फ़िल्म निर्देशित करना चाहिये था, जिसे विश्व के हर भाषा में डब करने की माँग होती……,, मेरी सोच में आज के अन्य भारतीय गणितज्ञ मंजुल भार्गव और उनका संस्कृत ज्ञान रामानुजन की कहानी सठीक ठंग से भारतीयों और दुनिया को बताने में ज्यादा सक्षम रहती. सोचने का क्रम चलता रहता है……,मुझे देश सम्बन्धी सपनों से तो कोई रोक नहीं सकता…..
‘फादर्स डे’ या पितृ दिवस जो ‘मदर्स डे’ के बाद मनाया जाता है अमरीका में कुछ और लिखने को कहता रहा है पिछले दिनों. हमारे यहाँ भारत में तो क़रीब पन्द्रह दिन का शायद साल में दो वार पूरा पितृ पक्ष मनाया जाता है दसहरा या दुर्गा पूजा के प्रारम्भ होने के पहले. पूरे पक्ष में पूर्वजों को अर्घ्य दिया जाता है, बहुत वर्जनाओं के साथ जीवन यापन किया जाता है. यही समय है जब लोग गया आदि ख़ास तीर्थ स्थलों में जा वहाँ के पंडों को यथा साध्य दान दक्षिणा देते हैं और पितरों के प्रेत योनि से मोक्ष को सुनिश्चित कर देने का आश्वासन पाते हैं
मैं भी अपने पूर्वजों के लिये गया गया था और वह सब किया था जो चाचाजी बताये थे. पर मन उस समय भी यही कहा था कि मुझे भले ही प्रेत योनि में रहना पड़ें मेरे बेटे मेरे लिये श्रद्धा का यह रास्ता न अपनायें. मुझे मालूम नहीं क्यों, पर मुझे पंडितों के बताये किसी कर्म कांड और उनके द्वारा बताये ज़रूरतों में कभी कोई विश्वास नहीं रहा. अगर हर भारतीय या हिन्दू उस पक्ष को पूर्वजों को याद करते हुये समाज के अभी भी पिछड़े वर्ग में अच्छी शिक्षा के प्रसार के लिये या उनके स्वास्थ्य सुधार के लिये कुछ मदद कर सके तो देश के हित में अच्छा होगा. और बहुत सारे हिन्दू कर्म कांडों को बदलना चाहिये और पंडितों के लिये नहीं समाज के लिये कुछ करना चाहिये.