फिर कुछ दिल के ग़ुब्बार

बिहार की नियति: लालू को जीत दिलानेवाले, अपनानेवाले (लोगों के कथनानुसार) बिहार के यादव, दलित एवं मुसलमान या अन्य भोटर भाइयों ! देखो किसके लिये भोट दिये हो…….देखो कैसा बेवक़ूफ़ बने……..लालू ने इतिहास रचा ….. बिना मैट्रिक किये लड़के को उप मुख्य मंत्री …..दूसरे भोचड बेटे को स्वास्थ्य मंत्री ……..बेटी को राज्य सभा में …….सभी करोड़ों के मालिक हैं……बिना योग्यता के ………….और अपने किये कुकृत्यों के कारण क़ानून से अपनी रक्षा के लिये मुम्बई के एक स्वार्थी वक़ील को बिहार से राज्य सभा भेज दिया………तुम्हें ये एेसे ही बरगलाते रहेंगे…..अच्छी पढ़ाई की ब्यवस्था नहीं करेंगे…..अयोग्य आलसी शिक्षकों से लोगों को पिछड़ा बनाये रहेंगे…..किसी तरह पढ़ भी जाओगे तो नौकरी के लिये दूसरे प्रदेशों में ही जाना होगा….इनकी कुकर्मों के उदाहरण हैं बिहार के बारहवीं कक्षा के टापर..क्या इस तरह आयेगी ख़ुशहाली ….,.,.अब तो जागो……जाति, धर्म की बात न कर देश हित प्रगति पर ध्यान दो….अच्छी शिक्षा हक़ से माँगो ….. हर गाँव में स्वास्थ्य केन्द्र माँगों ………वही समृद्धि देगा……सुख देगा…..ख़ुशी देगा……….वही स्वर्ग देगा और जन्नत भी…..,,

हम सभी पढ़ चुके हैं अबतक बिहार परीक्षा बोर्ड के अव्वलों की कहानी……..पहले नक़ल के अभिनव तरीक़ों और जोखिमों को उठाते हुये जग प्रसिद्ध बना बिहार अब आगे बढ़ गया है कुछ क़दम………अगर जैसा सभी टी.वी. दर्शकों को देश भर में ज्ञात हो चुका है अव्वलों की ज्ञान गाथा…..हम बाक़ियों को कैसे लें………कैसे समझें कि उनके प्राप्तांक ढीक है, आगे की पढ़ाई वाला कालेज उनके स्कोर को महत्व दे या नहीं……….क्या नौकरी देने वाले उद्योग उन परीक्षाओं को कोई मूल्य दे या नहीं…….पर जो वर्ग या मानसिकता यह करा रही है उसके बारे में तो कोई कुछ कहता नहीं………बोर्ड के अधिकारी……शिक्षा मंत्रालय के बडी बडी परीक्षाएँ पास कर उस स्थान पहुँचे दिग्गज महानुभाव ………कबतक अपने को बेचते रहेंगे ……..इस सामाजिक अन्याय का उत्तरदायी कौन है……..कौन उन लोगों को सुरक्षा और सम्मान देगा जो इस अपराजेय ब्यवस्था के शिकार बनते रहे हैं ….. कौन यह विश्वास पैदा करेगा कि आगे भी ऐसा ही नहीं होता रहेगा……और मज़े की बात यह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री वहीं बरक़रार हैं…..वे अभी भी अपने को महान मानते हैं…अपने राज्य को, संस्कृति को सबसे आगे…….अपने पूर्वजों के कृतित्व को कबतक भंजातें रहेंगे…….कुछ कहते हैं भुगतो अपने निर्णय का फल…….पर कोई बताये तो हल क्या है……क्या पैसे के लिये हम सब बेंच देंगे……फिर तो कोई हमारा देश भी ख़रीद लेगा…….

भारतीय राजनीति: आज़ादी के क़रीब ७० साल बाद भी हम राजनीति के क्षेत्र में एक दायित्व पूर्ण पार्टी ब्यवस्था की स्थापना नहीं कर पाये हैं. अधिकांश पार्टियाँ एक न एक परिवार की जागीर बनी हुईं हैं – कांग्रेस के सोनिया राहुल अभी तक नाना और दादा की देश हित किये त्याग की दुहाई दे एक क्षत्र मालिक बने हुये हैं, अपना कुछ कृतित्व न होते हुये भी. अपना जड़ ख़ुद खोद रहे हैं जब कि पूरे देश के समझदार लोग इसे एक दूसरी बडी पार्टी की तरह बचे रहना पसन्द करेगा. आज भी कांग्रेस के शासन को अगर वे जनतांत्रिक आधार पर कर दें तो पार्टी की उम्र बढ़ जायेगी और उनका सम्मान भी जनता में और देश की यह दूसरी राष्ट्रीय पार्टी बनी रह सकती है जो देश हित ज़रूरी है. दुर्भाग्यवश यह राष्ट्रीय पार्टी केवल चमचों या मनसबदारों की पार्टी बन रह गयी है. पर यहां कोई बदलाव के आसार नज़र नहीं आते. सोनिया, राहुल और उनके सिपासलारों का केवल एक सूत्रीय एजेंडा है मोदी का हर बात में बिरोध, भले ही उससे देश का कितना भी बडा अहित क्यों न होता हो. अब राज्य सभा में चिदम्बरम, कपिल सिबल, और जयराम रमेश को एक मात्र इसी काम के लिये लाया गया है. 

सपा मुलायम सिंह यादव के परिवार की रह गई जब लोक सभा चुनाव में उनके दल से केवल उनके परिवार वाले जीत सके. आज़म खान तो थे हीं मुसलमानों के नाम पर, अब अमर सिंह भी लाये गये केवल राजपूतों का भोट लेने के लिये जैसे सभी राजपूत यादवों की तरह बेवक़ूफ़ बनाये जा सकते हैं. प्रदेश की सारी सम्पदा को अपने पास कर लेने का एक मात्र ध्येय है इनकी राजनीति का. 

राजद लालू प्रसाद के पूरी तरह अधीन है. वे तो चुनाव लड़ नहीं सकते क़ानूनी पावन्दी के कारण. बिहार में दो बेटे मंत्री बन गये. उनमें एक उप मुख्य मंत्री बन नीतीश से बढ़ चढ़ कर बोल रहा है. अब बडी बेटी राज्य सभा में आ गई. याद रहे कि यह उनकी वही बेटी है जो बिहार के नामी पटना मेडिकल कालेज में सर्वप्रथम आई थी और जिसे उसके शुभचिन्तकों ने प्रैक्टिस नहीं करने की सलाह दी थी जिसे मीसा ने माना भी. लालू प्रसाद ने राम जेठमलानी को भी राज्य सभा में भेजा है. कारण सभी जानते हैं. जेठमलानी लालू को क़ानूनी तकलीफ़ों में उपचार होंगे. 

दूसरे अन्य प्रदेशों में भी पारिवारिक पार्टियाँ हीं महत्व रखती हैं- शिव सेना थैकरे परिवार की, या शिरोमणी अकाली दल बादल की, और इसी तरह डी. एम. के करूना निधि की. तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में भी नायडू और राव के बेटे आ रहे हैं बागडोर सम्भालने. 

कुछ पार्टियाँ एक ब्यक्तिविशेष के बल पर चल रहीं हैं- टी. एम. सी ममता बनर्जी , आम आदमी केजरीवाल, जेडीयू नीतीश कुमार. इनकी ब्यक्तिगत महात्वाकाक्षायें देश के हित के ऊपर है. सभी देश के प्रधानमंत्री बनने की होड़ में है. नीतीश को लीजिये-कभी राष्ट्रीय पार्टी बनाने की कोशिश, कभी गठबंधन की बातें करते हैं. जनता द्वारा दी पद की शक्ति का उपयोग कर अपने राज्य को शिरमौर बनाने पर ध्यान नहीं देते. पिछले दस सालों में शिक्षा क्षेत्र को सुधार नहीं पाये, न स्वास्थ्य क्षेत्र को. साठ सालों के बाद भी हर पंचायत में एक सामान्य स्वास्थ्य केन्द्र तक नहीं है. एक राज्य को समृद्ध बना न सके, पूरे देश को क्या बनायेंगे. अबोध जनता को बरगला अपना उल्लू सीधा करना इनका एकमात्र लक्ष्य है. 

इन पार्टियों का एकमात्र लक्ष्य केवल पार्टी के लिये साम, दाम, दंड या भेद से धन संग्रह करना होता है, अत: बाहुबलियों का वर्चस्व होता है. यह स्थिति उस परिवार के या ब्यक्ति के लिये तो फ़ायदेमन्द है पर क्या देश का भला हो सकता है? दुख की बात एक और है- ये पार्टियाँ अपने सदस्यों को कोई समाज निमित्त सेवा कार्य करने को प्रोत्साहन नहीं देतीं. राष्ट्रपिता गांधी भी समाजसुधार के रास्ते राजनीति में आये और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं घरेलू उद्योग के ज़रिये समाज में सुधार किये. आज भी कांग्रेस सेवा दल है, पता ही नहीं चलता क्या करता है. मोदी का स्वच्छ भारत, और योग का बढ़ावा शायद राजनीतिक लाभ भले नहीं दें, पर लोकहित एक बडा क़दम हैं. राष्ट्रीय सेवा संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल हिन्दू समाज से जातिगत भेदभाव को मिटाने का काम अच्छी सूझबूझ से तेज़ी से कर सकता था. साधु समाज को लोक कल्याण के कामों में लगाया जा सकता था. पढ़ी लिखी नयी पीढ़ी को एक सही राजनीति द्वारा ही राजनीति के साथ जोड़ा जा सकता है. सभी पार्टियों में शायद ही प्रजातांत्रिक तरीक़े से महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं. पर समझ नहीं आता कि हमारी पार्टियाँ समय रहते ब्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ पायेंगी या नहीं. पुरानी पीढ़ी का होने के कारण कभी कभी अफ़सोस होता है ……

नीतीश एक महाढोंगी हैं. आजकल मद्य निषेद्ध पर भोलीभाली औरतों को अपने को चुनाव जीतने के लिये मसीहा मसीहा बनाने के लिये रिझाने में लगे हैं. कोई उनसे यह तो पूछे कि किस काल में बिहार में शराब की सबसे ज्यादा तदाद में दुकानें खुलीं और उसके लिये इजाज़त देते समय क्यों नीतीश जी को उसके दूरगामी परिणाम का ख़्याल नहीं आया? कुँआ खोदने पर शाबाशी, कुँआ भरने पर शाबाशी. इससे बडा ढोंग क्या हो सकता है. मोदी से ब्यक्तिगत ईर्ष्या के कारण बी.जे.पी से अलग हुये और चुनाव जीतने के लिये बिहार के लिये ख़तरनाक लालू और देश के लिये ख़तरनाक गांधी से हाथ मिलाये. इससे बडा ढोंग क्या हो सकता है? अब जब तय है कि लालू परिवार के हाथ बिहार बीक गया तो बाहर बाहर रह अपनी साख बनाये रखने का ढोंग करते नीतीश क्यों बेवक़ूफ़ बना रहे हैं महिलाओं को. और नीतीश का पिछले दिनों जग ज़ाहिर हुये टापरस् की कहानी का न्याय देखिये जो नीतीश के ढोंग का अप्रतिम प्रमाण है: एक भोली भाली लड़की जेल में. इस नीरीह बच्ची को जेल भेज और मीडिया में उसका फ़ोटो छपा उसका आज और भविष्य दोनों का गला घोंट दिये नीतीश नाम कमाने के चक्कर में. शर्म आती है ….बिहार का कहाने में….जेल रूबि राय को नहीं उसके बाप और उसके आकाओं को होना चाहिये. अगर इस दुर्वस्था के लिये कोई ज़िम्मेवार है तो वे हैं नीतीश, जो बड़े दावे तो किये, पर न शिक्षा को, न स्वास्थ्य विभाग को दस सालों में सुधार पाये. आज जब सब छोटे बड़े के शिक्षा का द्वार खुला है, क्यों नहीं नीतीश शिक्षा को अपने नियंत्रण में रख देश के अन्य उन्नत राज्यों की बराबरी में ला सकते. आज बिहार में गाँवों में स्कूल तो हैं, पर शिक्षा नहीं, जब की अधिकांश बिहार गाँवों में बसता है. बिहार की स्कूली शिक्षा मर चुकी है और केवल बाहुबलियों के कोचिंग सेन्टरों तक सीमट चुकी है और इसका दायित्व नीतीश क्यों नहीं लेते. आज बिहार के हर तबके के अधिकांश बिहारियों को क्यों बिहार के बाहर निकलना पड़ता है नौकरी के लिये, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिये? अगर शिक्षा क्षेत्र में इस तरह का व्यापक घूसख़ोरी का आलम ला दिया गया है तो लालू, नीतीश छोड़ किसका दोष है जो मिल कर पिछले २६ साल से बिहार के मालिक हैं …,कल कोई कह रहा था, ‘अगर रूबि राय को जेल दिया गया है तो राज्य सभा सदस्य मीसा भारती को क्यों नहीं दिया गया?’ ………कितना कुछ कहा जाये…पर मन का दर्द कहने का मन कर जाता है, क्योंकि मैं भी उसी प्रदेश में पैदा हुआ था…….और जन्मभूमि को स्वर्गादपि गरीयसी मानता हूँ….मेरा तो नीतीश से यही अनुरोध है कि किसी शेखचिल्ली मानसिकता में न पड़ केन्द्र की भरपूर सहायता ले बिहार के गाँवों में शिक्षा और स्वास्थ्य की ब्यवस्था पर ब्यक्तिगत रूप से ध्यान दें….मुझे दुख होता है शिक्षकों की लापरवाही पर जो बारह साल में बच्चों को हिन्दी, इंग्लिश पढ़ना, लिखना और बोलना नहीं सीखा सकते इस डिजिटल शताब्दी में भी….और शर्म आती है किसी को यह बताते कि जितने गाँवों को मैं जानता हूँ बिहार में उनमें किसी में कोई स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है..,,,…

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