भारतीय राजनीति और पार्टियाँ 

आज़ादी के क़रीब ७० साल बाद भी हम राजनीति के क्षेत्र में एक दायित्व पूर्ण पार्टी ब्यवस्था की स्थापना नहीं कर पाये हैं. अधिकांश पार्टियाँ एक न एक परिवार की जागीर बनी हुईं हैं – कांग्रेस के सोनिया राहुल अभी तक नाना और दादा की देश हित किये त्याग की दुहाई दे एक क्षत्र मालिक बने हुये हैं, अपना कुछ कृतित्व न होते हुये भी. अपना जड़ ख़ुद खोद रहे हैं जब कि पूरे देश के समझदार लोग इसे एक दूसरी बडी पार्टी की तरह बचे रहना पसन्द करेगा. आज भी कांग्रेस के शासन को अगर वे जनतांत्रिक आधार पर कर दें तो पार्टी की उम्र बढ़ जायेगी और उनका सम्मान भी जनता में और देश की यह दूसरी राष्ट्रीय पार्टी बनी रह सकती है जो देश हित ज़रूरी है. दुर्भाग्यवश यह राष्ट्रीय पार्टी केवल चमचों या मनसबदारों की पार्टी बन रह गयी है. पर यहां कोई बदलाव के आसार नज़र नहीं आते. सोनिया, राहुल और उनके सिपासलारों का केवल एक सूत्रीय एजेंडा है मोदी का हर बात में बिरोध, भले ही उससे देश का कितना भी बडा अहित क्यों न होता हो. अब राज्य सभा में चिदम्बरम, कपिल सिबल, और जयराम रमेश को एक मात्र इसी काम के लिये लाया गया है. 
सपा मुलायम सिंह यादव के परिवार की रह गई जब लोक सभा चुनाव में उनके दल से केवल उनके परिवार वाले जीत सके. आज़म खान तो थे हीं मुसलमानों के नाम पर, अब अमर सिंह भी लाये गये केवल राजपूतों का भोट लेने के लिये जैसे सभी राजपूत यादवों की तरह बेवक़ूफ़ बनाये जा सकते हैं. प्रदेश की सारी सम्पदा को अपने पास कर लेने का एक मात्र ध्येय है इनकी राजनीति का. 

राजद लालू प्रसाद के पूरी तरह अधीन है. वे तो चुनाव लड़ नहीं सकते क़ानूनी पावन्दी के कारण. बिहार में दो बेटे मंत्री बन गये. उनमें एक उप मुख्य मंत्री बन नीतीश से बढ़ चढ़ कर बोल रहा है. अब बडी बेटी राज्य सभा में आ गई. याद रहे कि यह उनकी वही बेटी है जो बिहार के नामी पटना मेडिकल कालेज में सर्वप्रथम आई थी और जिसे उसके शुभचिन्तकों ने प्रैक्टिस नहीं करने की सलाह दी थी जिसे मीसा ने माना भी. लालू प्रसाद ने राम जेठमलानी को भी राज्य सभा में भेजा है. कारण सभी जानते हैं. जेठमलानी लालू को क़ानूनी तकलीफ़ों में उपचार होंगे. 

दूसरे अन्य प्रदेशों में भी पारिवारिक पार्टियाँ हीं महत्व रखती हैं- शिव सेना थैकरे परिवार की, या शिरोमणी अकाली दल बादल की, और इसी तरह डी. एम. के करूना निधि की. तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में भी नायडू और राव के बेटे आ रहे हैं बागडोर सम्भालने. 

कुछ पार्टियाँ एक ब्यक्तिविशेष के बल पर चल रहीं हैं- टी. एम. सी ममता बनर्जी , आम आदमी केजरीवाल, जेडीयू नीतीश कुमार. इनकी ब्यक्तिगत महात्वाकाक्षायें देश के हित के ऊपर है. सभी देश के प्रधानमंत्री बनने की होड़ में है. नीतीश को लीजिये-कभी राष्ट्रीय पार्टी बनाने की कोशिश, कभी गठबंधन की बातें करते हैं. जनता द्वारा दी पद की शक्ति का उपयोग कर अपने राज्य को शिरमौर बनाने पर ध्यान नहीं देते. पिछले दस सालों में शिक्षा क्षेत्र को सुधार नहीं पाये, न स्वास्थ्य क्षेत्र को. साठ सालों के बाद भी हर पंचायत में एक सामान्य स्वास्थ्य केन्द्र तक नहीं है. एक राज्य को समृद्ध बना न सके, पूरे देश को क्या बनायेंगे. अबोध जनता को बरगला अपना उल्लू सीधा करना इनका एकमात्र लक्ष्य है. 

इन पार्टियों का एकमात्र लक्ष्य केवल पार्टी के लिये साम, दाम, दंड या भेद से धन संग्रह करना होता है, अत: बाहुबलियों का वर्चस्व होता है. यह स्थिति उस परिवार के या ब्यक्ति के लिये तो फ़ायदेमन्द है पर क्या देश का भला हो सकता है? दुख की बात एक और है- ये पार्टियाँ अपने सदस्यों को कोई समाज निमित्त सेवा कार्य करने को प्रोत्साहन नहीं देतीं. राष्ट्रपिता गांधी भी समाजसुधार के रास्ते राजनीति में आये और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं घरेलू उद्योग के ज़रिये समाज में सुधार किये. आज भी कांग्रेस सेवा दल है, पता ही नहीं चलता क्या करता है. मोदी का स्वच्छ भारत, और योग का बढ़ावा शायद राजनीतिक लाभ भले नहीं दें, पर लोकहित एक बडा क़दम हैं. राष्ट्रीय सेवा संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल हिन्दू समाज से जातिगत भेदभाव को मिटाने का काम अच्छी सूझबूझ से तेज़ी से कर सकता था. साधु समाज को लोक कल्याण के कामों में लगाया जा सकता था. पढ़ी लिखी नयी पीढ़ी को एक सही राजनीति द्वारा ही राजनीति के साथ जोड़ा जा सकता है. सभी पार्टियों में शायद ही प्रजातांत्रिक तरीक़े से महत्वपूर्ण निर्णय लिये जाते हैं. पर समझ नहीं आता कि हमारी पार्टियाँ समय रहते ब्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ पायेंगी या नहीं. पुरानी पीढ़ी का होने के कारण कभी कभी अफ़सोस होता है ……कभी कभी लगता है प्रजातंत्र की सफलता के लिये क़रीब शत प्रतिशत शिक्षित एवं समझदार नागरिकों की ज़रूरत है और शायद इसीलिये आज के राजनीतिज्ञ -लालू प्रसाद, मुलायम जैसे लोगों को शिक्षित करने में ध्यान नहीं देते. क्या भोले भोटर समझ पायेंगे इनकी चाल…..शिक्षित वर्ग अपने स्वार्थ सबसे ही ऊपर नहीं उठ पा रहा है….सब आज की अपनी कमाई में व्यस्त हैं. देश के कल का किसे चिन्ता है….वे किसी और वर्ग का काम है और कौन है वह वर्ग कोई नहीं जानता.

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s