कंहा से शुरू हुई, कंहा ले जायेगी इस देश को जाति प्रथा?

वर्ण ब्यवस्था को सदियों पहले तत्कालीन समाज को ब्यवस्थित करने के लिये प्रारम्भ किया गया था. यह ब्यक्ति के जन्म पर नहीं, वल्कि वह किस कार्य में लगा है उस पर आधारित थी. ब्राह्मण का पढ़ना-पढ़ाना, क्षत्रिय का युद्ध में लड़ना और समाज की रक्षा करना, बैश्य ब्यापार करना और सम्पति संजोना, और चौथा वर्ण अन्य सबका था जो ऊपरी तीनों को कार्य सिद्धि में सहायता करते थे. यही कारण था कि विश्वमित्र ब्राह्मण बनने के लिये तपस्या किये. रावण ब्राह्मण होते हुये भी समाज में राक्षस बन गया. धर्म एवं जातियाँ न लोगों को महान बनने से रोक सकीं, न बैबाहिक सम्बन्ध स्थापित करने से, न बाल्मीकी को, न बेदव्यास को और न हीं महाभारत काल के शान्तनु को, न चन्द्र गुप्त मौर्य को. समाज में कभी उनके जाति की चर्चा नहीं हुई, न उन्हें हेय समझा गया.

समय गुज़रता गया, और काम के अनुसार सैकड़ों, हज़ारों जातियाँ बनती गई , क्योंकि संतानें भी वही काम सीखती रहीं जो पूर्वजों की थी. फिर हर जातियां अनेक नामों से बँटतीं गईं, जैसे ब्राह्मणों में – कान्यकुब्ज, सकलद्वीपीय, मैथिल, गौड़, और पता नहीं कौन कौन……सब अपने को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने में किसी हद तक मिथ्या प्रचार में जाने लगे. सब मुख्य जातियों में यह हुआ.
आश्चर्य है आज़ादी के बाद एक नई बात दिखी, कुछ तथाकथित नीचे की जातियां बड़ी जातियों की पदवियाँ लगाने लगीं- सिंह, ठाकुर, राय, शर्म्मा ……….सभी इसीतरह के एक नाम जादव सिंह से परिचित होंगे………यह मेरे बिचार में कहीं न कहीं ऊपर आने की आकांक्षा का चिन्ह था. एक और तरीक़ा अपनाया गया, लोगों ने अपने के आगे पदवी लगाना छोड़ कर ‘कुमार’, ‘प्रसाद’ लिखने लगे….,,,,,,,
पर फिर आया संरक्षण और अब होड़ लगी है अपने को उन जातियों में सम्मिलित करने का जिन्हें संरक्षण दिया गया है बिभिन्न पार्टियों की सरकारों द्वारा चुनाव जीतने के लिये ….. पर सार्वभौम शिक्षा का अधिकार जातिगत पेशा से निकाल कर सभी को एक समान धरातल पर ला दिया.

यह कोई ज़रूरी नहीं कि जाति के चले आते काम में नई पीढ़ी लगेगी. अपनी शैक्षिक योग्यता के बल किसी पैदायसी जात का बच्चा इंजीनियर , डाक्टर, शिक्षक, ब्यवसायिक बन सकता है. सभी रास्ते खुले हैं शिक्षा और हुनर अर्जित कर लेने पर सम्पति प्राप्त करने के लिये.
हज़ारों तथा- कथित दलित करोड़ों के ब्यवसाय के मालिक हैं और लाखों तथाकथित सवर्ण उन्हें सलाम और उनकी जीहजूरी करते हैं और दलितों का काम करते हैं परिवार पोषण के लिये. कुछ पिछड़े रूढ़िवादियों या गाँववालों को छोड़ कोई जाति नहीं पूछता.

आज शिक्षा और कुछ कर गुज़रने की ठान लेने पर किसी जाति एवं धर्म का ब्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य चुन सकता है. संस्कृत में एक कहावत है ‘बिद्वान सर्वत्र पूजयते’. बिद्वानों की पूजा असल में होने लगी है. स्वेच्छा से अंतरजातिय शादियाँ कर रहे हैं आज के युवक युवती और सम्मानित जीवन जी रहे हैं. हर किसी को अधिकार है शिक्षा और हुनर पाने की. फिर यह छोटी बड़ी जातियों की मानसिकता क्यों. यह केवल हार जाने पर हारने का बहाना हो सकता है सुविधा या सहारे की कमी नहीं. रोहित वेमुला या महेश बाल्मीकी या कोई जब उच्च शिक्षा संस्थान में दाख़िला लेता है तो वह ब्राह्मण बन जाता है, उसे वैसे ही अनुभूति होनी चाहिये. यह शिक्षित ब्यक्ति का कर्तव्य है कि अज्ञानियों के अंधकार से उन्हें मुक्ति दिलाये. यह अलग संस्था बना भीड़ इकट्ठा कर, एक दूसरे को नीचा दिखा, बल प्रयोग कर या आन्दोलन कर नहीं हो सकता. कोई सरकार इसे क़ानून बना नहीं ठीक कर सकती. इस ग़लत मानसिकता को राजनीति करनेवाले उपयोग कर भोट बटोर कुर्सी पा लेंगे और जनता आपस में लड़ती रहेगी. यही राजनीति करने वाले अशोक को कुसवाहा, राम को क्षत्रिय और कृष्ण को यादव बनाते रहते हैं. अत: हर मुल्य पर हर को अपनी पसंद की शिक्षा प्राप्त कर बिद्वान बनना है, परिश्रम कर धन अर्जित करना होगा, समर्थ बनना होगा. आज हर ब्यक्ति के लिये यह राह खुला है और यही कुछ कर गुज़रने का मार्ग है. राजनेता और मीडिया के लोग इस मसले को हल करने में सकारात्मक भूमिका अदा कर देश के बिगड़ते माहौल को और हानि न पहुचांयें

मेरी राय में भारतीय जनता दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय हिन्दु महासभा और ऐसी सभी हिन्दुओं की संस्थाओं का दायित्व बनता है पिछड़ी जातियों को, दलितों को पूरे सम्मान के साथ अपने में सब तरह से शामिल करना. जन्माधारित बड़े छोटे के भेद भाव को हरदम के लिये और सभी तरह से मिटाने के बिना न हिन्दु बचेंगे, न उनका धर्म, और न हीं यह राष्ट्र . तथाकथित बड़ी जातियों के लोग अपने समुचित ब्यवहार से इस बढ़ते ज़हरीले माहौल को रोकें और सौहार्द पूर्ण बनायें. यही समय की माँग है . यह हमारी राष्ट्रीय ज़िम्मेवारी हैं. यह न होने पर हम इस महान देश को असलियत में कभी दुनिया के प्रथम श्रेणी के देशों में नहीं ला पायेंगे. समय की माँग है कि हम समझ और सँभल जाये और सोच बदलें…. “जाति, धर्म हैं नहीं बड़े अब, सबसे श्रेष्ठ देश अभिमान “

This entry was posted in social issues. Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s