२०.५ २००१.
एक पुरानी कविता
हर युग में भीष्म शर कुंठित हुए
शिखंडी के सामने
आचार्य द्रोन देते रहे आटा घोल
पुत्र को
लेते रहे एकलव्य के अंगूठे
दक्षिणा में शाशकवर्ग हित
मारे गए शोकावस्था में
धनुष छोड़ झूठे शिष्य से
पुत्र बध की भनक सुन |
हर युग का कर्ण
माँ को रुलाता रहा
मिथ्या अहंकार में
और फिर
गलत सारथी चुन
मरता रहा चालक शत्रु से |
हर काल में
भाई भाभी का चिर हरण कर
खुश हुआ
देवर के खून से रंगती रही
केशराशि खुले रख बर्षों तक |
फिर वही द्रौपदी
सुहाग मनाती रही
पांच पांच पुत्र दे
बलि |
अमित बलि होकर भी
दुर्योधन मारा गया
छल से |
शम्बूक को ब्राहमन
मिलने न दिया राज वर्ग
छल से सम्पूर्ण अमृत पान किया देवों ने
मिहनत मरती रही
बुद्धि घात करती रही |
जो दूसरों के लिए गलत था
अपने लिए सही बना
अहिंसा कभी नहीं जीती
न अशोक काल में
न अब \
कलिंग युद्ध की याद ,
या डर
अशोक के धर्म चक्र का
बापू की अहिंसा नहीं
भारत का जन बल जो
जाग्रत हुआ
था लाया १५ अगस्त |
गरीबी हटेगी नहीं कानून से से
हटेगी तो डर से
गरीबों की संख्या
निगल जाएगी
अमीरों के ऊँचे महल |
Ati Uttam