खाना बनाना: बोझ या एक आनंद

स्‍कूल के दिनों की एक याद है ख़ाना बनाने से सम्बधित ।उन दिनों मैं और मुक्तेश्वर चाचा थे बिरलापुर में ।चाचाजी मुझसे तीन साल आगे थे स्‍कूल में ।वे १९५२ में स्कूल फाइनल दिये, मैं १९५५ में । अच्छा खाना बना लेते थे। एक दिन सबेरे चाचाजी सब्‍जी, दाल बना मुझे चावल जो चूल्हे पर था उसे ठीक दस मिनट बाद उतार देने को समझा अपने ट्यूशन के लिये चले गये ।उस समय मैं पढ़ रहा था, पता नहीं कैसे मुझे अपनी ज़िम्मेवारी का जरा भी ख़्याल नहीं रहा । अलम्युनियम का पतिला पूरी तरह गल गया, पानी निकाल चूल्हा बुझ गया और चावल भी राख हो गया, पर मुझे पता नहीं चला ।जब घंटे बाद याद आइ तो देखकर बहुत क्षोभ हुआ ।चाचाजी लौटने पर देखे, पर कुछ नहीं कहे ।दादाजी को बहुत दिनों बाद यह कहानी बताया गया ।

हिंदमोटर्स में भी एकबार बच्चों के लिये रसोइ में कुछ प्रयोग करना पड़ा था, क्योंकि यमुना गांव गयी थीं और नौकर अचानक गायब हो गया था ।और उस खाने के स्वाद की बाद में भी चर्चा होती रही थी ।

अगस्त २०१२ में अमरीका से लौटने के बाद से मेरी रुचि खाना बनाने में हो गयी है । और अब मुझे इसमें आनंद आने लगा है । यमुना बार बार मुझे इससे हटाना चाहतीं हैं, पर मैं नहीं चाहता । मै सभी सब्जियाँ, दाल बना लेता हूँ । चावल तो राइस कुकर में बन जाता है । पिछले चार महीनों में कोइ गलती नहीं हुइ हैं और रोज़ मेरा आत्म बिशवास बढ़ता जा रहा है ।हां, रोटी नही बना पाता हूँ ।यद्यपि मैं देर से सीखा, पर इस बिधा की जानकारी बहुत जरूरी है जिंदगी सुचारू रूप से चलाने के लिये ।

स्‍कूल के दिनों में जरूरत नहीं पड़ा । नौकरी में बराबर नौकर रहे । पर आज अच्छा नौकर मिलना बड़े भाग्य की बात है ।पर मै निश्चित रूप से कह सकता हू अपनी जानकारी हर रूप में लाभदायक ही होगी । मैं तो रसोइ में काम करते हुए उसमें प्रबंधन और प्राद्योगिकि के सिधान्‍तों के उपयोग के बारे में सोचता रहता हूँ । बहुत नयी बिधा से समय और श्रम कम किया जा सकता है ।पर भारतीय रसोइ में कुछ कार्य बहुत तकलीफ देनेवाले होते हैं और इसके लिये कुछ नये उपकरणों का इजाद करना जरूरी है ।प्याज, लहसुन को छिलना एक दुस्तर कार्य है । इसीतरह सब्‍जी बनाने का एक राइस कुकर की तरह उपकरण होना चाहिये । आज से कुछ बर्षों बाद नौकर शायद ही मिले, उचित और बहुउपयोगी उपकरण इस समस्या का हाल बन सकते हैं ।कुछ आदतें भी बदलने से खाना बनाना समस्या न हो, एक मनोरंजन का साधन बन सकता है ।

आज परिबार छोटा होता जा रहा है और सदस्यों की संख्या दो जो फिर एक बहूत जल्दी ही हो जाती है । स्वत: ही खाना बनाना हर दृष्टि से फायेदे की चीज है ।

हां, एक चीज और । घर की महिलाएं, बिशेष कर भारतीय, कभी नहीं चाहती पुरूषों का रसोइघर पर अधिकार, अत: सावधानी से काम करना जरूरी है ।

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1 Response to खाना बनाना: बोझ या एक आनंद

  1. J S Arora says:

    very good ” mahilayen visheshkar bhartey, kabhi nahi chahti rsoi ghar par purshon ka adhikar “

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