डाक्टरों की कमी- कुछ सुझाव

आज भी मेरे गांव में या पूरी पंचायत में कोइँ योग्यता प्राप्त डाक्टर नहीं है ।बचपन में थोड़े दूर के गांव सोनाडिह के पंडितजी आते थे या बुलाये जाते थे ।शायद वे होमोपैथी या आयुर्वेदिक गोलियां देते थे, पर उनकी घोड़ी एवं उनकी सफेद मिर्जइ हमें बड़ी प्रभावित करती थीं । मुझे उनके इलाज की कभी जरूरत नहीं पड़ी । थोडा बड़े होने पर एक मौला नाम कें होमियोपैथ आने लगे । और फिर तो हमारे पड़ोस के श्री भगवानजी दवाइयां देने लगे, कहाँ पढ़े मालूम नहीं ।मुझे हरदम इन डॉक्टरों से डर लगा रहता है ।मैं हर बार जब इनसे मिलता हूँ, इनसे अनुरोध करता हूँ, कोइ कडी अनजान दवा न दें ।पर हम सब रास भरोसे जिंदा हैं ।मैं खुद जब गावंं या ननिहाल जाता था अपने छोटे बच्चों के साथ, कभी कभी ऐसे ही डॉक्टरों से इलाज कराना पड़ता था और मैं हरदम डरा रहता था । आज देश की आजादी के ६६ साल बाधित भी मेरे गावं, ननिहाल, और वहाँ के चारो और के गांंवों में वैसी ही हालात है ।

डॉक्टरी का पेशा महत्वपूर्ण और मानवियता का है, और समाज में सदा सम्मानपूर्ण रहा है ।साधारणत: १२ वी कक्षा के बाद लड़के या लड़कियां मेडिकल शिक्षा के लिये जाते हैं । मेरे बड़े लड़के के दो साथी डाक्टर बने । एक के पिता तो डाक्टर थे हमारी कम्पनी के अस्पताल में, पर दूसरे के पिता फ़ैक्टरी के बिभाग में अफसर थे, मां भी सरकारी कर्मचारी थीं ।फिर अपने चचेरे भाइै, निर्मल के साले अखिलेश को डाक्टर बनते देखा । मैंने अपने दूसरे लड़के राजेश की शादी के लिये एक डॉक्टरी पढ़ती लड़की का चुनाव किया । हमारी धारणा थी अधिकाँश डॉक्टरों के लड़के डाक्टर बनना चाहते हैं ।हिंदमोटर में डा०मलय राय चोोधरी का लड़का डाक्टर बना, डॉ० बर्मन के तीन लड़कों में एक डाक्टर बना पाया । पर नयी पीढ़ी इस में बदलाव ला रही है । कल अपने पड़ोसी जो मिंया बीबी दोनों डाक्टर हैं के पिताजी मिल गये थे, समाचार पूछने पर बताये, डाक्टर दम्पति अमरीका गये हैं अपने बेटों के पास, दोनों में किसी ने डाक्टर बनना नहीं चाहा । मेरे अपने संम्बंधियों में न डॉ० कृष्णा के बच्चे, न अखिलेश के डाक्टर बने ।सबने यही कहा कि बच्चे डॉक्टरी पढ़ाइ और पेशे की तकलीफ को देखते हुए इस क्षेत्र में जाने से कतराते हैं ।फिर कंहा से आयेगें डॉक्टरी पढ़ने वाले ? डॉक्टरी की पढ़ाइ बहुत महंगी हो गयी है । प्राइवेट कॉलेज २०-२५ लाख लेते हैं । पूरे देश में ३३५ मेडिकल कालेज हैं जंहा केवल ४२,०००० के करीब छात्र लिये जा सकते हैं ।हर दो हजार की जनसंख्या पर औसतां एक डाक्टर है । सरकार २०२१-२२ तक प्रति १००० ब्यक्ति पर एक डाक्टर कर देने का बिचार रखती है मेडिकल कॉलेजों में ८०,००० सीटों की ब्यवस्था कर ।पर क्या देश के ८ लाख डाक्टर अपनी उत्पादकता बढ़ा लोगों को अच्छी सेवाएँ नहीं मुहया कर सकते ।

जनवरी ८ को मैक्स हॉस्पिटल में यमुना को डॉ० नीरू गेरा से दिखाना था ।आश्चर्य हुआ जब फीस के रकम के लिये सात सौ रुपये देने पड़े, दो साल पहले यह रकम चार सौ हुआ करता था । डाक्टर की फीस पर कोइ नियंत्रण नहीं है इस देश ।न कोइ तरीका है पता लगाने का कि कौन डाक्टर कितना योग्य है, जिसका जो चल जाये । ऊपर से कइ महंगे टेस्ट और महंगी दवाइयां ।किसी डाक्टर पर भरोसा ही नहीं आता । बचपन में सुनता था डाक्टर भगवान की तरह है, वह जिंदगी देता है ।

क्या डाक्टर बदलेंगे अपनी सोच ? पर वे भी क्या करें, जब उन पर ६ साल की पढाइ का लाखों के क़र्ज़े का भार हो ।

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1 Response to डाक्टरों की कमी- कुछ सुझाव

  1. brajesh(bablu) says:

    papa ,akhilesh mama ka ladka medical me hi hai, mbbs first year from guahati medical college, and hope so that his daughter also went in medical ,she is in 10th std.

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