सर्दी के मौसम के सर्द ख़्यालात

दिसम्बर २३ से लगता था मौसम कोहरा आच्छन सबेरे का आ गया । दिल के बीमार ब्यक्ति को ऐसे मौसम में घूमने की सलाह नहीं दी जाती है । पर एक बार घर से न निकलने पर घुटन सी महशुश होती है । फिर घर की कुछ आवश्यक चीजें भी लानी होती हैं, जैसे दूध, सब्‍जी । याद आती हैं पुरानी बातें और यादें, घने से घने कोहरे में भी काम पर जाना पड़ता था ।हमारे देश में घर से काम करने का चलन तब तो एकदम ही नहीं था, शायद आज भी बहुत लोकप्रिय नहीं हुआ है, नहीं तो बहुत समस्यायों का समाधान हो जाता । सड़कों पर वाहनों की संख्या कम हो जाती । दुर्घटनाएं कम होती ।भयंकर ट्राफिक में कमी आती। अगर e-shopping लोकप्रिय हो जाता जैसा अमरीका, यूरोप और यहाँ तक की चीन में है और हमारे यहाँ भी हो रहा है, सड़कों की भीड़ भी कम हो जाती। पर शायद यहाँ के कर्मचारियों पर उनके मालिक बिशवास नहीं करते । हम कामचोर जाति के हैं ।हम एक दूसरे की ईमानदारी पर भरोसा नहीं रखते । उद्योग क्षेत्र हो या शिक्षा का केंद्र, सभी जगह एक ही हाल है ।

सर्दी के मौसम की एक और खासियत है, खाने की चीजें – विशेषत: सब्‍जी, फल की बत होती हैः और सस्ती भी मिलतीं हैं कुछ खास को छोड़ । आलू, गोभी, गाजर, मूली, शलगम, मटर, सेव, केनु, नारंगी और पता नईं क्या, क्या । एक लड़की यमुना की सहायिका अभी है, अत: कभी पकौड़ा, कभी गाजर का हलवा, कभी हरे ताजे मटर की दाल या बिहार स्पेशल मटर का भभरा बना जाता है ।गांव की याद आती है बचपन की- सर्दी के मौसम में गांव में नाश्ते के लिये बहुत सारी चीजें बनती थी- तिलवा, हल्दी और मेथी लड्डू, या सबेरे में लिटी-चौखा और दोपहर में खेतोंं में मटर या चने का होरहा । जीभ कंहा उम्र की मजबूरी को समझ पाती है ?

सर्दी के मौसम के कपड़े भी ज़्यादा आकर्षक होते है । कुछ लोग तो रोज़ ही अपना स्वेटर तक बदलते रहते हैं ।पर तुलसीदास जी सर्दी को दुखदायक मानते हुए लिखते हैं- ‘सीता सीत निशा सम आई’, मंदोदरी रावण से कहती है सुंदरकांड में और उन्हे श्रीराम को लौटा दे।

असल बात यह है कि सर्दी में गर्मी की अच्छाइयों का ध्यान आता है, और गर्मी में सर्दी अच्छी बन जाती है ।हम वर्तमान में संतोष करना सीखते ही नहीं । पर इस साल सर्दी भयानक पड रही है । पारा १.५ ०C तक आ गया है दिल्ली में, नोयडा में ज़्यादा ही कम होगा । घर से बाहर निकलना मुश्किल है । घर में भी संगमरमर के कारण सर्दी असह्य हो रही है । हमारी दुनिया केवल अपने गर्म बेड रूम में सिमट कर रह गयी है । क्या यह मौसम का परिवर्तन है ? अतिसभ्य और सम्पन्न देश इसके कारण हैं ।

और इस सर्दी में एक ख़्याल और आता है, उन पांच लाख लोगों का । कैसे समय काटते होंगे दिल्ली की सड़कों पर खुले आसमान के नीचे? देश उन्हे एक रैन बसेरा भी नहीं दे सकता रात बिताने के लिये । और रैन बसेरा बनाने का करोड़ों कुछ भद्र कहानेवाले खा पी कर हजम कर जाते हैं ।

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s