निर्भया की आखिरी ख्वाहिश
‘मां, मैं जीना चाहती हूँ’
हरपल उन गिधों की
उन दो घंटों की यातना
कैसे भूल पाउँगी
जब समय सदियों में
बदल गया था
पर बिश्ववास करो मां
मैं लड़ी थी अंत तक
काश ! तुमने मुझे बनाया
होता दुर्गा या रणचंडी काली
मुझे भी देवताओं ने
दिये होते दस भुजायें
दस घातक अस्त्र
मैं असुरों का अंत कर पाती
मां, सहा नहीं जाता दर्द
क्षत विक्षत अंग अंग
मन भी और प्राण भी
मां, गोद में रख लो
मेरा सर, सोउंगी
पर हां असुरों को कहना
उनकी अपनी मां या बहना
हीं बनेंगी काली
करेंगी अंत सब
असुरों का, और मेरे
भाइयों और बहनों
याद हर पल रखना
मेरी शहादत ।