जिदंगी कब कहाँ किस हालात में दगा दे मालूम नहीं ? अमरीका प्रवास में यह प्रश्न बार बार सताया । यह एक अनावश्यक चिन्ता थी , पर निदान मेरे वश के बाहर था । दो बार ऐसा हुअ। ।
बहुत सारी तकलीफें हैं, पर बारह साल पहले हुआ हार्ट आपरेशन और घाव के सिलाइ के ऊपर के कोलवायड की खुजली बहुत तकलीफ देती है । बहुत रातों को डराती भी है।आपरेशन भारत प्रसिद्ध डाक्टर के हाथों Escorts Heat Centre में हुइ थी ।हर साल उनके कहने अनुसार अच्छी फीस दे जांच भी करवाता रहा हूँ ।पर डाक्टर मेरी खुजली का कोई उपचार नहीं बताये । अत: डाक्टर के पास जाने की इच्छा नहीं होती , शायद डर भी लगता है ।
पर अगर मैं अपने को समझदार मानता हूँ तो ऐसा नहीं होना चाहिये। शायद डॉक्टरी सलाह जरूरी है।उम्र तो अपना कारनामा दिखाएँगी ही ।
उम्र के ऊपरांत भी सामने से दिखनेवाले दाँत साथ हैं, खानेवाले कुछ अपने निकल गये, कुछ तकलीफ की शिकायत पर डॉक्टरों ने निकाल दिये । पर खानेवाले दाँत की जरूरत महशुश होती है । कबतक दाँत की कमजोरी के बहाने मन मारा जाये खाने की टेबल पर । कल जब यमुना की मांग पर चिक्की लाया तो अपने दाँत की कमजोरी को देखते हुए अपने लिये गज्जक लाया । खाने की चीजों का चुनाव बड़ी सावधानी से करता हूँ जिससे दांतों का सहारा न लेना पड़े । साथ ही खाने में कमी भी आ गयी है, जो सेहत के लिये उचित ही है ।
यही हाल आखों का भी है । पढ़ने में तकलीफ होती है, पर काम चला रहा हूँ । आपरेशन आसान होता है आजकल पर फिर भी डर लगता है और टाले जा रहा हूँ ।समाचार पत्र खरीदना बंद कर दिया क्योंकि पढ़ना मुश्किल हो रहा था । ऐपल का भला हो और आनंद द्वारा दिये आइ-पैड का । उसी की सहायता से सब अखबार और ई-बुक में उपलब्ध किताबें पढ़ लेता हूँ । हां, एक बात और, मंद दृष्टि हो जाने के कारण सभी चीजें ज़्यादा सुंदर दिखतीं हैं ।
डॉक्टरों से डर लगता है ।बड़ी फीस, सब तरह के महंगे लैब टेस्ट, और दामी दवाइयों की लम्बी फैहरीस्त । लोग कहते हैं, पाकेटमार भांप जाते हैं की शिकार के पास कितना माल है । डाक्टर भी समझ जाते हैं आसामी कितना मालदार है ।मैं बटुआ कभी नहीं रखा । पर डाक्टर के पास जाने पर हजार, दो हजार जरूर रख लेता हूँ पाकेट में ।सच कहता हूँ – दो बार ऐसा हूआ, डाक्टर ने मेरे पास का सभी पैसा अपनी बिल के एवज में ले लिया । पहला डाक्टर आयुर्वेद के थे और काफी नामी, राष्ट्रपति के डाक्टर होने का बिल्ला था उनके पास ।दूसरा वाक़या नोयडा के एक प्राइवेट अस्पताल का है जहां के मालिक डाक्टर को पहले मैं मिला चुका था ।दोनों ही बार गनीमत था कि पैसे पूरे पड़ गये, नहीं तो लज्जा जनक बात होती ।
आश्चर्य हुआ और प्रश्न आया दिमाग में कैसे डॉक्टरों को मालूम हो गया मेरे पास की धनराशि की बात ।
पिछले हफ्ते मैंने हृदय सम्बंधी सब जांच कराइ थी, पर बहुत दिनों तक किसी डाक्टर के पास नहीं गया ।सोचता रहा, कोइ सब रिपोर्ट ले जाता और एक अच्छे डाक्टर से दिखा इसबात की पुष्टि कर देता कि सब ठीक है । ऐसा कोइ नहीं मिला । अब न मैं कोइ इस शरीर पर आपरेशन कराना चाहता हूँ न बहुत सारी दवाइयों का सेवन । खाना कम और सादा कर दिया हूँ । और बस ऐसे ही जीना चाहता हूँ ।
पर आखिर मैं हार गया । पिछले हफ्ते मुझे एक दिन वही तकलीफ हुयी जो अमरीका में आनंद के साथ रहते हुए एक दिन हुयी थी ।सबेरे जब घूमने जाने के लिये तैयार हुआ तो मेरे पैर ठीक नहीं पड रहे थे । डाक्टर का आसरा लेना ही पड़ा, आखिरकार हर साधारण ब्यक्ति की तरह मैं भी डरपोक ही हूँ । तीन गोलियां पहले ही खाता था, चार और बढ़ गयीं ।
जितना ही डॉक्टरों से बचना चाहता हूँ उतना ही कठिन होता जा रहा है । किसी समर्थ सहायक का अभाव मेरी चिंता को और बढ़ा देता है । एेसे जीवन की कल्पना भी न थी ।