शब्दों के मौत का मातम

खोती जा रही एक दुनिया
समय के साथ सैकडों
हजारों या लाखों शब्द
और वे चीजें
कहाँ गए कोठे, बरजा
और आँगन के शिव बाबा
न ढेंका, न जांत, और न ओखल मूसर
न वे गीत
न डाली, न ओडी, न दवूरा, न सुप
न सिल ही कहीं है, न लोढा
न पितरियावा लोटा, न कंसह्वा डूभा
फिर बटलोही, कठवत तो
बहूत भारी हैं
अब न आग मांगने कोई जाता
न मसाला पिशा जाता
न मथनी चलती, न बेछिनुई दही
न गोरस, न फेनूस, न खोआ
न लयनू, न मिसिरी के ढेला
यहाँ तक की मट्ठा भी
महंगा है
और साथ गए छिपा और खोरा भी
कौन इस सबका जहमत उठाये
अब तो गुर भी दिखता नहीं
फिर रस, राब कहाँ खोजें
गायब हुए कोनहर के ताल, तलैया भी
और उसमें लेवाड लेती भैसे
और चलते ढेकूल, सैर और दोन
नहीं रहीं रेंहट, न बैलों की जोड़ी
अब हल नहीं बाँधते जोगन या लंगटू
इनार कहाँ गए
साथ ही गए गगरा, घइला
और डोर भी
जाड भी आया पर
न कवूर जलता न बोरसी
न तिलवा मिलता है न सोंठ
अब तो गाँव में भुजनिहारिन
ही नहीं, न मलहोरिन
और दरवाजे सुने
नरिया खपरा के साथ
भूंसंहूल भी गायब
न कहीं चैइता, न होरी
या बारहमासा या रामायन
न पनढकउआ, न चिक्का का
न कोई कनिया आती है
न कोहबर, न सिन्होरा
न आता बहुरंवता न कसार
कितना पीछे छोड़ आये
चन्दा मामा को भी
कैसे आयेंगे कटोरा में
दूध भात लिए
कितने मीठे शब्द कभी न
सुनेगें, न दिखेंगी वे चीजें
क्यों न समय रहते कोई सहरी
बनाये हर क्षेत्र में
कुछ जादूघर
अगली पीढ़ी के लिए |

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

1 Response to शब्दों के मौत का मातम

  1. Ramesh Roy says:

    awesome !! we are missing lots of past days words !! Thanks for making remind those old memories.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s