कुछ यादें, कुछ सपने

बचपन में ही मैं बहुत ज़िद्दी था, शायद घर में सबसे छोटा होने के कारण । मां घर में अकेली बहु थी, नाते में सबसे छोटी । घर का पूरा काम उन्हे ही करना पड़ता था, पर मैं बाध्य करता खाट पर आ ही दूध पिलाने को, भले ही वे कितनी भी जरूरी काम में क्यों न लगी हों । खाने में छोटी उम्र में हीं अपनी पसंद बना ली थी । दूध भात मन भाता था, पर कोइ उसना या मोटे चावल का भात सोते में भी नहीं खिला सकता था । उन दिनों गुड़ भी नहीं भाता था । एक बात और याद आती है परदादी का प्रसिद्ध लोकगीत -‘ चंदा मामा आरे आव, बारे आव, नदिया किनारे आव हो’। आज भी लगता है, कल की बात है।
———
बचपन से मुझे दूध से प्रीत रहा, यमुना बाबा भैंस धुहते थे सबेरे सबेरे । मैं वहीं जा खड़ा होता था । और बाबा मेरे मुंह को दूध की धार से नहला देते थे । आज भी सोच कर बड़ा अच्छा लगता है । बड़े होने पर गिलास मगांते और उसमें दुह कर देने लगे।फेन भरा थान से निकाला गर्म गर्म दूध क्या मन भाता स्वाद । फेनुस बनाती थी परदादी नयी बच्चा दी गाय या भैंस के दूध का ।मुझे खूब  भाता था ।
……
मेरी परदादी मुझे पढ़ाना चाहतीं  थी, पर कोइ शिक्षक नहीं मिलता था ।मेरे हाथ में सलेट और खड़ी दे बड़े दरवाजे पर मूझे ले बैठ ज़ातीं और प्यार से कहतीं ” लिख अ राम अ गति देहू सुमति” ।बार बार सोचता हूँ तो यही लगता है कि केवल पर दादी के कारण जीवन में कुछ कर सका कुछ पा सका ।हां फिर जब गली से किसी को जाती देखतीं तो उसे बुलातीं और सलेट पर कुछ लिख देने को कहतीं । और फिर मुझे लिखते जाने को कहतीं, जबतक फिर दूसरा कोइ दिख नहीं जाता । उससे पूछती ” का ठीक लिखले बाडान? ” अगर ऐसी दादी हो तो कोई क्यों न सफल बने ।
…..
वही परदादी  मुझे ले पहली बार बिरलापुर आइं दादाजी के पास,  पढ़ने के लिये ।हमारा स्कूल सामने के घर में चलता था । पर देश की आजादी नजदीक आ रही थी । दंगे और उनकी अफवाह भी बढ़ती जा रही थी । दादाजी चिंतित थे । हम रात होते ही जुट मिल के हाते के भीतर रहनेवाले एक सज्जन के घर चले जाते थे सुरक्षा के लिहाज से । वह परिवार दादाजी का बहुत आदर करता था । औरतें साहसी थींं, लाल मिर्च को कूट बदमाशों से सामना करने की तैयारी करता थीं ।
उस समय की एक बात और याद आती है । हमारे घर के बगल में एक बंगाली परिबार ता , उनकी एक छोटी लड़की थी । परदादी मुझसे मज्जाक  करतीं, ‘बबु आ , त  तोर बिआह एक रे ले कर देल जाउ ‘ । मैं गम्भीरता से कहता, ‘आजी ओकर  बोली त हमरा बुझ ईबे ना करी ।’  आज सोचकर केवल हंसी आती है ।
——-
मेरा साधारण ज्ञान कभी बहुत अच्छा नहीं था । पर सभी दिक्कतों के बावज़ूद परीक्षा में सदा अव्वल आता था ।स्कूल में दो वार इंस्पेक्टर आये- पहली बार गांव के स्कूल में। मै न उनकी शुद्ध हिन्दी में पूछा सवाल समझा, न ठीक उत्तर दिया । मेरे गुरुजी को बहुत दुख हुआ अपने प्रिय शिष्य की बेवकूफ़ी से । पर कुछ कहे नहीं कभी । फिर एक बार इंस्पेक्टर आये बिरलापुर विद्यालय में । मुझसे इस बार भी हमारे अध्यापकों को बहुत उमीद थी, पर इस वार भी तबीयत का बहाना कर मैं स्कूल ही नहीं गया । पता नहीं मुझमें आत्मविश्वास इतना कम क्यों था या हीनभावना थी कहीं ।
….
एक याद चौकचंदा की है । दोनों हाथों में दो लकडियां, उसे बजाते और चौकचंदा गाते विद्यालय के सभी लड़के पहले गांव में हर घर के दरवाजे दरवाजे जाते। वहाँ जो मिलता गुरुजी का होता। मैं और मेरे छोटे चाचाजी गाने में टोली का नेतृत्व करते थे । गाने में ‘भारत भारती’ और ‘राधेश्याम रामायण’ मुख्य होता था । बगल के गांवों में जाते थे , क्योंकि लड़के वहाँ के भी होते थे । गुरुजी हमारी खूब बडाइ करते थे और हम उससे खुश हो जाते थे । उस समय हमारे गुरुजी की मासिक तनख्वाह केवल १५ रुपये हुआ करती थी ।मैं दस साल की उम्र में अपनी पढाइ बिरलापुर विद्यालय में प्रारंभ कर पाया कक्षा ६ से।
…….
हमारे गुरुजी ने मुझे शाकाहारी बनाया और बहुत सारे संस्कार दिये, धार्मिक ग्रंथो में रुचि जगाये, स्वाधीनता आन्दोलन और उनके नेताओं के बारे में जानकारी दी, हिन्दी और उसके लेखकों, कबियों में श्रधा जगाई ।हां, गुरुदक्षिणा में मेरी शादी १९४९ में जब मैं केवल १०साल का था अपने चचेरी बहन से करानी चाही । हमें एक बार अपने गांव मनीपूर भी ले गाये अपने गांव के सुंदर मंदिर को दिखाने के बहाने । बाबा भी तैयार हो गये थे ।पर मेरा भाग्य या दुर्भाग्य तिलक के दिन उनके लोग नहीं आये । मैं उस साल तो बच गया । १९५० से बिरलापूर में पढ़ाई प्रारंभ हुइ। 
……
आगे अगली बार……

This entry was posted in Uncategorized. Bookmark the permalink.

1 Response to कुछ यादें, कुछ सपने

  1. jkchaturvedi says:

    Your writeup refreshed lot of childhood memories. Yes, we have come a long way but the sweetness of childhood and love from parents is unparallel. Thank you for the journey of remembrance.

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s