यह एक सच्ची कहानी है | मैं कल अपने घर के दरवाजे पर अपनी प्रिय जगह बैठा हुआ था| दरवाजा बंद था और दरवाजे की जाली पर मैंने एक मक्खी और एक छोटी सी छिपकिली की लड़ाई पहली बार देखी| मक्खी जहाँ जा बैठती, छिपकिली उधर हीं मुहं घुमा चल देती, और मक्खी पर झपाटा लगाती थी | मक्खी उड़ जाती और दूर जा बैठती| पर फिर कुछ समय बाद मक्खी उड़ कर छिपकिली के आसपास आ बैठती| पहले लगा था छिपकिली ब्यर्थ प्रयास कर रही है | कैसे छिपकिली मक्खी को पकड़ सकती है, वह उड़ तो नहीं सकती| यह प्रश्न भी मन में आया, क्यों मक्खी बार बार छिपकिली के पास आ जाती है, क्यों नहीं उससे डरती | वह उड़ कर दूर जा दीवाल पर बैठ सकती थी|
फिर वही हुआ जो मैं कभी सोच नहीं पाया था | मक्खी एक बार फिर छिपकिली के पास आ बैठी| छिपकिली आगे बढी और इस बार मक्खी उसकी पकड़ के दायरे में आ गई| और मक्खी छिपकिली के पेट में चली गई| उड़ने की शक्ति के वावजूद मक्खी अपने को एक मंद गति के दुश्मन से नहीं बचा सकी |
क्या यह कहानी कोई सीख देती है? अपनी तरफ से मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि मैं कथाकार नहीं हूँ और यह बनाई हुई कहानी नहीं हैं|
यह एक सत्य घटना है जिसे मैंने और मेरी पत्नी ने देखा है |
आप अपनी राय बताएं| क्या मक्खी की गलती थी? क्या मक्खी की बुद्धिशक्ति छिपकिली से कम होती है? क्या कभी कभी हम मनुष्य भी ऐसी ही गलती अनजाने करते है और पीछे बचे लोग इसकी बर्षों तक चर्चा करते रहते हैं|